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गरीब श्रावक की दानशीलता की कहानी | Garib Shravak Ki Dansheelta Ki Kahani

गरीब श्रावक की दानशीलता की कहानी (Garib Shravak Ki Dansheelta Ki Kahani)

जैन धर्म में दान को सबसे पुण्यकारी कर्मों में से एक माना गया है। “दान” न केवल भौतिक वस्त्रों या धन का दान है, बल्कि यह दूसरों की सहायता करने की भावना का प्रतीक है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि दान करने से न केवल दूसरों का भला होता है, बल्कि यह आत्मा को भी शुद्ध करता है। “गरीब श्रावक की दानशीलता” एक ऐसी प्रेरक कहानी है, जो यह दिखाती है कि दान की महिमा केवल संपत्ति से नहीं, बल्कि निष्ठा और भावना से बढ़ती है।

Garib Shravak Ki Dansheelta Ki Kahani

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Garib Shravak Ki Dansheelta Ki Kahani

प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक गरीब श्रावक रहता था, जिसका नाम सुदर्शन था। वह अत्यंत धर्मपरायण व्यक्ति था और जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करता था। उसके पास धन-संपत्ति नहीं थी, लेकिन उसकी आत्मा में करुणा और दानशीलता की भावना प्रबल थी।

सुदर्शन रोज़ सुबह मंदिर जाकर भगवान की पूजा करता और फिर अपना दिन मजदूरी कर बिताता। वह जो भी थोड़ा-बहुत कमाता, उसमें से आधा हिस्सा भगवान को अर्पित करता और बाकी से अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करता। उसका जीवन सरल और त्यागमय था।

एक दिन, नगर में जैन साधुओं का एक बड़ा संघ प्रवास के लिए आया। साधु महाराज तपस्वी और ज्ञानी थे। उन्होंने प्रवचन दिया कि दान आत्मा को पवित्र करता है और भवसागर से पार करने का मार्ग प्रशस्त करता है। साधुओं ने यह भी कहा, “दान केवल धनवानों के लिए नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकता है। दान का मूल्य धन की मात्रा से नहीं, बल्कि दान करने वाले की निष्ठा और भावना से आंका जाता है।”

सुदर्शन ने यह प्रवचन सुना और उसका हृदय दान करने की प्रेरणा से भर गया। उसने निश्चय किया कि वह भी साधुओं को कुछ अर्पित करेगा, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो।

सुदर्शन के पास धन तो नहीं था, लेकिन उसके पास अपने परिश्रम से जुटाया हुआ थोड़ा-सा भोजन था। उसने अपनी पत्नी से कहा, “आज साधु महाराज को दान देना है। उनके लिए कुछ भोजन तैयार करो।”

पत्नी ने उत्तर दिया, “हमारे पास तो बस इतना ही है कि उससे आज रात का भोजन हो सके। अगर इसे भी दान कर देंगे, तो हम क्या खाएंगे?”

सुदर्शन ने उत्तर दिया, “दान का अर्थ त्याग है। भगवान हमारी चिंता करेंगे। अगर हम अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के लिए कुछ दे सकते हैं, तो यही सच्चा धर्म है।”

पत्नी ने उनकी बात मानी और थोड़े से आटे और सब्जियों से रोटियाँ और सादा भोजन तैयार किया।

सुदर्शन भोजन लेकर साधु संघ के पास पहुँचा। उसने विनम्रता से कहा, “हे साधु महाराज, यह मेरी तुच्छ भेंट है। कृपया इसे स्वीकार करें।” साधु महाराज ने उसकी दानशीलता की भावना को देखकर प्रसन्न होकर भोजन ग्रहण किया।

भोजन ग्रहण करने के बाद, साधुओं ने सुदर्शन को आशीर्वाद दिया और कहा, “तुमने जो दान दिया है, वह साधारण नहीं है। यह तुम्हारी निष्ठा और त्याग का प्रतीक है। यह दान तुम्हारे जीवन को सार्थक करेगा और तुम्हारी आत्मा को शुद्ध करेगा।”

सुदर्शन की दानशीलता की परीक्षा अभी बाकी थी। उसी रात, जब सुदर्शन और उसका परिवार भूखा था, उनके घर एक अजनबी व्यक्ति आया। वह भूखा और थका हुआ दिख रहा था। उसने कहा, “मैं कई दिनों से भूखा हूँ। कृपया मुझे कुछ खाने को दीजिए।”

सुदर्शन ने उसकी स्थिति देखी और बिना किसी संकोच के उसे अपना भोजन दे दिया, जो उनकी पत्नी ने बचाकर रखा था। परिवार ने फिर से भूखा रहकर रात बिताई।

अगली सुबह, सुदर्शन ने देखा कि उनके घर के आँगन में सोने और चाँदी के सिक्कों से भरा एक बड़ा थैला पड़ा था। यह देखकर वह स्तब्ध रह गया। उसने सोचा, “यह धन कहाँ से आया? क्या यह किसी का गिरा हुआ है?”

तभी साधु महाराज वहाँ आए और उन्होंने कहा, “सुदर्शन, यह तुम्हारी दानशीलता और त्याग का प्रतिफल है। भगवान ने तुम्हारे त्याग और निष्ठा को देखा और तुम्हें यह वरदान दिया है। लेकिन यह धन तुम्हारे जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। इसका उपयोग धर्म और करुणा के कार्यों में करना।”

सुदर्शन ने भगवान और साधु महाराज को धन्यवाद दिया और वचन दिया कि वह इस धन का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करेगा। उसने गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना शुरू कर दिया।

सीख

1. दान की महिमा: दान की मूल्यवानता वस्त्र या धन में नहीं, बल्कि देने वाले की भावना और निष्ठा में है।

2. त्याग का महत्व: सच्चा त्याग वह है, जो अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों की सहायता के लिए किया जाए।

3. धैर्य और विश्वास: जब हम कठिन समय में भी धर्म का पालन करते हैं, तो भगवान हमारी सहायता अवश्य करते हैं।

4. समर्पण और निष्ठा: धर्म के प्रति समर्पण और निष्ठा हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं।

“गरीब श्रावक की दानशीलता” जैन धर्म की शिक्षाओं का आदर्श उदाहरण है। यह कहानी हमें सिखाती है कि दान और त्याग का महत्व केवल धनवानों तक सीमित नहीं है। सुदर्शन जैसे साधारण व्यक्ति ने यह दिखाया कि सच्ची दानशीलता दिल से होती है। यह कहानी आज के समय में भी प्रेरणा देती है कि हमें अपने जीवन में दान, करुणा और निष्ठा का पालन करना चाहिए।

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