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घमंड पर छोटी सी कहानी | Ghamand Par Chhoti Si Kahani

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Ghamand Par Chhoti Si Kahani

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Ghamand Par Chhoti Si Kahani

राकेश एक छोटे से गाँव में पला-बढ़ा, लेकिन उसकी मेहनत और लगन ने उसे शहर में एक सफल व्यवसायी बना दिया। वह अब एक बड़ी कंपनी का मालिक था, कई कर्मचारियों को रोजगार देता था और शहर में उसका बड़ा नाम था। उसकी कामयाबी ने उसे न सिर्फ दौलत और शोहरत दी, बल्कि उसे खुद पर बहुत घमंड भी हो गया था। 

राकेश को लगता था कि वह जो कुछ भी है, वह सिर्फ उसकी मेहनत और बुद्धिमानी का नतीजा है। वह इस बात को भूल गया था कि उसकी सफलता में भाग्य और दूसरों के सहयोग का भी बड़ा हाथ है। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि वह दूसरों से बेहतर है और इसी कारण उसका व्यवहार धीरे-धीरे अहंकारी होता गया।

एक दिन, राकेश अपने गाँव वापस गया। गाँव के लोग उसे देखकर बहुत खुश थे। उसके पुराने दोस्त, रिश्तेदार, और पड़ोसी उससे मिलने आए। हर कोई उसकी सफलता की तारीफ कर रहा था, लेकिन राकेश अब पहले वाला सरल और मिलनसार व्यक्ति नहीं रहा था। उसके चेहरे पर अहंकार साफ झलक रहा था। वह गाँव के लोगों को तुच्छ समझने लगा था और उनसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था।

उसके पुराने दोस्त मोहन ने उससे कहा, “राकेश, चलो हमारे साथ थोड़ी देर खेतों में घूम आते हैं। पुराने दिनों की तरह।”

राकेश ने हँसते हुए जवाब दिया, “अरे मोहन, मैं अब इन खेतों में घूमने का शौक नहीं रखता। अब मेरा जीवन शहर के ऊँचे दफ्तरों और बिजनेस मीटिंग्स में बीतता है। तुम्हें पता है, अब मैं कितना बड़ा आदमी बन गया हूँ?”

मोहन उसकी बात सुनकर थोड़ा दुखी हुआ, लेकिन चुपचाप रह गया। गाँव के अन्य लोग भी राकेश के इस बदले हुए व्यवहार से हैरान थे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।

अगले दिन, गाँव के सरपंच ने एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया, जहाँ राकेश को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया। राकेश इस अवसर को पाकर बहुत खुश हुआ। वह सोच रहा था कि पूरे गाँव के सामने उसकी तारीफ होगी और उसे सम्मान मिलेगा। 

कार्यक्रम शुरू हुआ, और सरपंच ने राकेश को मंच पर बुलाया। राकेश ने बड़े गर्व के साथ माइक पकड़ा और अपनी सफलता की कहानी सुनानी शुरू की। उसने बताया कि कैसे उसने अपने दम पर इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की और कैसे वह अब दूसरों से बेहतर है। उसके भाषण में अहंकार की कोई कमी नहीं थी। 

जब राकेश ने बोलना खत्म किया, तो सरपंच ने मुस्कुराते हुए कहा, “राकेश, तुमने सच में बहुत मेहनत की है और हमें तुम पर गर्व है। लेकिन, एक बात याद रखना—सफलता में मेहनत के साथ-साथ विनम्रता भी जरूरी है। हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कौन हैं और कहाँ से आए हैं।”

राकेश को सरपंच की बात का कुछ असर नहीं हुआ। वह अपने घमंड में चूर था। उसे लग रहा था कि वह अब गाँव वालों से ऊपर उठ चुका है और उसे किसी की सलाह की जरूरत नहीं है।

कार्यक्रम के बाद, राकेश अपने बड़े और महंगे गाड़ी में वापस शहर जाने के लिए निकला। रास्ते में एक घने जंगल से होकर गुजरना पड़ा, जहाँ अचानक उसकी गाड़ी खराब हो गई। राकेश ने गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन कुछ काम नहीं आया। वह परेशान हो गया। आस-पास न तो कोई मैकेनिक था और न ही फोन का सिग्नल। 

कुछ देर बाद, एक साधारण सा किसान वहाँ से गुजर रहा था। उसने राकेश को गाड़ी के पास खड़ा देखा और उसके पास जाकर पूछा, “भाई साहब, क्या आपकी गाड़ी खराब हो गई है?”

राकेश ने घमंड भरे स्वर में कहा, “हाँ, पर तुम्हें क्या? तुम्हारे पास गाड़ी ठीक करने का हुनर होगा क्या?”

किसान मुस्कुराया और बोला, “मेरा नाम रघु है, और हाँ, मैं गाड़ियाँ ठीक कर सकता हूँ। अगर आप चाहें तो मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।”

राकेश को पहले तो यकीन नहीं हुआ, लेकिन उसके पास और कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उसने किसान को इजाजत दे दी। रघु ने गाड़ी का बोनट खोला और कुछ ही मिनटों में गाड़ी को ठीक कर दिया। राकेश हैरान रह गया। 

उसने रघु से पूछा, “तुमने यह कैसे किया?”

रघु ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूँ, लेकिन मुझे जो आता है, उसे पूरी लगन से करता हूँ। मेहनत और ज्ञान किसी भी इंसान को सफल बना सकते हैं, लेकिन हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए।”

राकेश ने रघु की बातें सुनीं और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे समझ में आ गया था कि घमंड ने उसे अंधा कर दिया था और वह अपनी विनम्रता भूल गया था। उसने तुरंत रघु का धन्यवाद किया और गाँव लौटकर अपने दोस्तों और सरपंच से माफी मांगी। 

अब राकेश ने अपनी सफलता को घमंड की नजर से देखना बंद कर दिया और वह फिर से अपने पुराने, विनम्र स्वभाव में लौट आया। 

सीख

घमंड इंसान को दूसरों से दूर कर देता है और असफलता की ओर ले जाता है। सच्ची सफलता केवल मेहनत से नहीं, बल्कि विनम्रता और दूसरों के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार से मिलती है।

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