फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम गिलहरी और बुद्ध की कहानी (Gilahari Aur Buddha Ki Kahani) शेयर कर रहे है. Squirrel And Buddha Story In Hindi उस समय का वर्णन करती है, जब गौतम बुद्ध आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए कठोर साधना कर रहे थे. उनमें भी निराशा का संचार होने लगा था. ऐसे में उन्होंने कैसे एक गिलहरी से सीख ली और लक्ष्य प्राप्ति में जुट गये, इस प्रेरक कहानी में पढ़िये :
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Gilahari Aur Buddha Ki Kahani
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भगवान बुद्ध अपना परिवार, सगे-संबंधी, सुख-सुविधायें त्याग कर आत्मज्ञान की खोज में भटक रहे थे। उनके मस्तिष्क में विचारों की आंधियाँ आती, प्रश्न उमड़ते और वे उनका समाधान प्राप्त करने प्रयत्नशील रहते।
वे आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए कई स्थानों का भ्रमण कर रहे थे, कठोर जीवन शैली का पालन कर रहे थे, कई कष्ट सहते हुए कठोर तप कर रहे थे, किंतु फिर भी आत्मज्ञान से वंचित थे।
एक दिन एक वृक्ष के तले आसन जमाये वे गहन विचारों में लीन थे। धन, माया, मोह, संसार की समस्त सुख-सुविधाओं के त्याग के बाद भी आत्मज्ञान प्राप्त न होने के कारण उनके हृदय में निराशा का संचार होने लगा था। निराशवश वे सोचने लगे कि प्रयासों में मैंने कोई कमी न की, तिस पर भी मुझे सफलता प्राप्त न हुई। क्या मुझे आत्मज्ञान प्राप्त न हो सकेगा?
उदास मन से वे अपने मस्तिष्क में उठ रहे इन प्रश्नों में उलझे हुए थे कि उन्हें प्यास लग आई। वे अपने आसन से उठे और पानी पीने सरोवर की ओर चल पड़े।
वहाँ उन्होंने देखा कि एक छोटी सी गिलहरी मुँह में फल दबाये सरोवर के किनारे आई। अचानक उसके मुँह से फल छिटककर सरोवर में गिर गया। फल सरोवर की गहराई में समाने लगा।
गिलहरी तुरंत सरोवर में कूद पड़ी और उसके जल से अपने शरीर को भिगोकर बाहर आ गई। बाहर आकर उसने अपने शरीर से पानी झड़ाया और फिर सरोवर में कूद गई। ये क्रम उसने जारी रखा। वो सरोवर में कूदती और खुद को भिगोकर बाहर आ जाती। उसके बाद शरीर से पानी झड़ाकर फिर सरोवर में कूद जाती।
बुद्ध बड़े ध्यान से उसकी गतिविधियों को देख रहे थे और इससे अनभिज्ञ गिलहरी अपने कार्य में जुटी हुई थी।
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बुद्ध सोचने लगे कि इस छोटी-सी गिलहरी के लिए सरोवर खाली कर अपने मुँह से गिरा फल प्राप्त करना असंभव है। तिस पर भी ये बिना हिम्मत हारे पूरी आशा और लगन से अपना लक्ष्य प्राप्त करने में जुटी हुई हैं। एक छोटी-सी गिलहरी जब निराश हुए बिना अपना लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में प्रयास कर सकती है, तो मनुष्य होकर मैं क्यों नहीं? मैं क्यों निराशा के भंवर में डूब रहा हूँ? नहीं, मुझे निराशा त्यागकर पुनः आत्मज्ञान प्राप्ति की दिशा में प्रयासरत हो जाना चाहिए।
वे लौट गए और पुनः तप में लीन हो गए। एक छोटी-सी गिलहरी से सीख लेकर वे आत्मज्ञान प्राप्ति में जुट गए। एक दिन उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हो गया और वे बुद्ध कहलाये।
सीख (Moral Of Squirrel & Buddha Story Hindi)
दोस्तों, लक्ष्य कितना ही कठिन क्यों न हो, लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में कितनी ही बाधायें क्यों न आ जाये, आप खुद को निराशा के भंवर में फंसा हुआ क्यों न पायें, हिम्मत हारे बिना अनवरत प्रयास करते रहे, सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
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