गोनू झा की कुश्ती की कहानी (Gonu Jha Ki Kushti Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Gonu Jha Ki Kushti Ki Kahani
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मिथिला के राजदरबार में एक दिन दिल्ली से ज्वालासिंह नाम का पहलवान आया। यह पहलवान सात फुट लंबा, भारी-भरकम और मजबूत शरीर वाला था। मिथिला नरेश कला प्रेमी थे और इस पहलवान का आदरपूर्वक स्वागत किया। ज्वालासिंह ने गर्व से कहा कि दिल्ली में उसके मुकाबले का कोई पहलवान नहीं है और वह आसपास के सभी राज्यों के पहलवानों को कुश्ती में हरा चुका है। अब वह मिथिला आया था क्योंकि उसने सुना था कि यहाँ एक से बढ़कर एक मल्ल हैं। उसने चुनौती दी कि देखना चाहता हूँ कि कोई उसे टक्कर दे सकता है या नहीं।
महाराज ने कहा कि ज्वालासिंह को अपनी शक्ति पर घमंड है, लेकिन हर कला में एक से बढ़कर एक मर्मज्ञ होते हैं। ज्वालासिंह ने दावा किया कि आज तक कोई उसे द्वंद्वकला में हरा नहीं सका। महाराज ने कहा कि अगले दिन अखाड़े में उसकी शक्ति और कुश्ती के पैतरों का आकलन होगा।
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अगले दिन, अखाड़े में ज्वालासिंह की गर्जना सुनाई दी। मिथिला के कई मल्ल उसके साथ द्वंद्व के लिए तैयार थे। पहली कुश्ती में ही उसने अपने प्रतिद्वंद्वी को क्षण भर में चित कर दिया। उसके बाद चार और पहलवानों ने भी उसके सामने घुटने टेक दिए। मिथिला का सम्मान खतरे में था और राजा चिंतित हो गए। उस दिन ज्वालासिंह को शाही मेहमान बना कर भोजन कराया गया।
दूसरे दिन, कोई भी पहलवान ज्वालासिंह से मुकाबला करने को तैयार नहीं था। महाराज समझ गए कि मिथिला का सम्मान बचाना मुश्किल होगा। दरबार में गोनू झा भी उपस्थित थे और उन्होंने महाराज की उदासी देखी। गोनू झा ने गरज कर कहा कि वे ज्वालासिंह से मल्लयुद्ध करेंगे। उन्होंने कहा कि यद्यपि यह उनका क्षेत्र नहीं है, लेकिन बचपन में वे कुश्ती लड़ते थे और उनके हाथों में मानहत्या की रेखा है, इसलिए वे द्वंद्व नहीं करते। परंतु मिथिला के सम्मान की बात है, इसलिए वे अवश्य लड़ेंगे।
ज्वालासिंह ने गोनू झा को देखा और भौंचक्का रह गया कि यह कमजोर-सा आदमी इतनी गरज के साथ चुनौती स्वीकार कर रहा है। महाराज समझ गए कि गोनू झा बुद्धि का प्रयोग करके पहलवान का गर्व चूर करना चाहते हैं।
गोनू झा ने ज्वालासिंह से कहा कि कुश्ती की सरगम तो जानते होंगे। ज्वालासिंह अचकचा गया। दरबार में वह कैसे कहता कि वह कुश्ती की सरगम नहीं जानता। उसने कह दिया कि वह सब जानता है। गोनू झा ने कहा कि फिर कल कुश्ती पंचम स्वर, द्रुत लय और पटक ताल में होगी और कालभैरव राग में होगी। ज्वालासिंह ने सहमति में सिर हिला दिया, लेकिन वह अंदर से घबरा गया। उसने आज तक इस तरीके से कुश्ती नहीं लड़ी थी।
ज्वालासिंह इसी उधेड़बुन में था। रात्रि का भोजन करने के बाद आराम कर रहा था कि एक दरबारी बोला कि कल असली कुश्ती देखने को मिलेगी। गोनू झा पटक ताल में कच्चे हैं, पर द्रुत लय में उनका जवाब नहीं। दरबारी ने कहा कि गोनू झा राग काल भैरव के उस्ताद हैं और काल भैरव बड़े क्रोधी मल्ल हैं। ज्वालासिंह को कुछ सूझ नहीं रहा था। उसने दरबारी से कहा कि अब मुझे आराम करने दो, प्रातः जल्दी जागना है। दरबारी हँसता हुआ वहां से चला गया।
सुबह अखाड़े में गोनू झा शेर की भांति गरज रहे थे। चारों तरफ भीड़ का कोलाहल था। मिथिला नरेश अपनी गद्दी पर बैठे थे, लेकिन दिल्ली के पहलवान ज्वालासिंह का कहीं अता-पता नहीं था। सारे मिथिला में खोजने पर भी वह कहीं नहीं मिला। महाराज समझ गए और गोनू झा को विजेता घोषित कर दिया गया तथा ढेरों पुरस्कारों से नवाजा गया।
महाराज के पूछने पर गोनू झा ने हँसते हुए बताया कि उन्होंने ज्वालासिंह को सुर, लय, ताल की उलझन में डाल दिया था। रात को एक विश्वस्त दरबारी द्वारा उसे इतना भयभीत कर दिया गया कि उसने भाग जाने में ही भलाई समझी। महाराज प्रसन्न हो गए क्योंकि मिथिला का सम्मान बच गया था।
इस प्रकार, गोनू झा ने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई से मिथिला का सम्मान बचाया और ज्वालासिंह के गर्व को चूर कर दिया। महाराज और सभी दरबारी गोनू झा की प्रशंसा करने लगे और मिथिला में उनकी कीर्ति फैल गई।
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