ग्रामीण जीवन पर लघु कथा (Gramin Jivan Par Laghu Katha) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Gramin Jivan Par Laghu Katha
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वह सवेरे का वक्त था, जब सूरज की पहली किरणें आसमान को नारंगी रंग में रंग रही थीं। गाँव की संकरी गलियाँ धीरे-धीरे जाग रही थीं। मुर्गों की बांग और गाय-बैलों के गले में बंधी घंटियों की आवाज से पूरा माहौल एक अद्भुत सजीवता से भर चुका था। एक छोटे से गाँव के बाहर, हरियाली से ढके खेतों के बीच एक झोंपड़ी थी, जिसमें रामू किसान अपने परिवार के साथ रहता था। रामू एक साधारण किसान था, लेकिन उसके दिल में गांव और खेती के प्रति असीम प्रेम था।
रामू के दिन की शुरुआत सूर्योदय से पहले ही हो जाती थी। आज भी, जैसे ही अंधेरा छंटा, वह अपने खेत की ओर निकल पड़ा। गाँव के पास एक नदी बहती थी, जिसकी कल-कल ध्वनि में रामू का मन बस यही सोचता रहता था कि इस बार फसल कैसी होगी। यह वही समय था जब खेतों में धान की रोपाई होनी थी। रामू ने अपने हल और बैलों के साथ खेत में प्रवेश किया और खेत को जोतने लगा।
गाँव का जीवन, चाहे कितना भी सरल और शांतिपूर्ण लगे, परंतु वह उतना ही संघर्षपूर्ण भी है। किसान का जीवन प्राकृतिक बदलावों पर निर्भर करता है। कभी बारिश ज्यादा होती है तो कभी सूखा पड़ जाता है। फिर भी रामू और उसके जैसे हजारों किसान, बिना किसी शिकायत के, इस जीवन को अपनाए रहते हैं। उनके लिए यह जीवन केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि एक संस्कृति और परंपरा है।
रामू की पत्नी, गीता, घर के कामकाज में व्यस्त थी। वह सवेरे जल्दी उठकर चूल्हे पर रोटी और सब्जी बना रही थी। गाँव में आज भी गैस के चूल्हे नहीं पहुंचे थे, इसलिए खाना लकड़ी के चूल्हे पर ही पकता था। गीता को इस जीवन में कोई शिकायत नहीं थी। वह रोज़ अपने काम को पूरी निष्ठा और संतोष के साथ करती थी। उसके लिए परिवार की सेवा करना ही सबसे बड़ा सुख था।
गीता ने जैसे ही खाना बनाया, उसकी छोटी बेटी राधा दौड़कर उसके पास आई और बोली, “माँ, मैं भी खेत में पापा के साथ जाना चाहती हूँ।” गीता हँस पड़ी और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “पहले खाना खा ले, फिर चलेंगे।”
गाँव के बच्चों का जीवन भी बड़ों से कम मेहनती नहीं होता। स्कूल के बाद बच्चे घर के कामों में हाथ बँटाते थे। राधा छोटी थी, पर उसे भी अपने माता-पिता के कामों में मदद करना अच्छा लगता था। वह कभी घर में गायों के लिए चारा लाती तो कभी खेत में जाकर अपने पिता के लिए पानी। बच्चों की यह सादगी और उनका पारिवारिक लगाव गाँव के जीवन की विशेषता होती है।
रामू जब खेत से लौटता, तो थकावट उसकी आँखों में साफ दिखती थी, पर चेहरे पर एक संतोष का भाव होता। खेत में काम करना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था, लेकिन इससे उसे एक अजीब सी शांति मिलती थी। उसकी शामें भी उसी खेत में बीततीं, जहाँ वह बैठकर आसमान में उड़ते पक्षियों को देखता और सोचता कि एक दिन उसकी फसल भी ऐसी ही लहलहाएगी।
गाँव के लोगों के लिए खेती केवल एक काम नहीं, बल्कि उनका धर्म और संस्कृति का हिस्सा थी। रामू की तरह अन्य किसान भी दिनभर खेतों में काम करते, और रात होते ही गाँव की चौपाल पर इकट्ठा होते। गाँव की चौपाल ही वह जगह थी, जहाँ गाँव के बुजुर्ग और युवा साथ बैठकर दिनभर की बातें किया करते थे। आज की चौपाल में भी सभी किसान चर्चा कर रहे थे कि इस बार बारिश कैसी होगी और फसल का भविष्य कैसा रहेगा।
रामू ने हँसते हुए कहा, “भाई, चाहे कुछ भी हो जाए, मेहनत करने से हम पीछे नहीं हटेंगे। खेत हमारा मंदिर है, और मेहनत हमारी पूजा।” उसके इस कथन पर सभी हँस पड़े, लेकिन सभी जानते थे कि उसके शब्दों में सच्चाई है।
गाँव की एक और विशेषता थी – त्यौहार। गाँव में हर त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व होता था। चाहे होली हो या दिवाली, या फिर फसल के त्योहार, हर त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता। जब भी त्यौहार पास आते, गाँव की महिलाएँ घरों की साफ-सफाई में जुट जातीं। बच्चे मस्ती में खो जाते और पुरुष मंडली नए कपड़ों और सामान की तैयारियों में लग जाते।
पिछले साल की फसल अच्छी हुई थी, इसलिए इस बार होली पर गाँव में विशेष उत्सव का आयोजन किया गया था। गाँव के हर कोने से हँसी-ठिठोली की आवाज आ रही थी। रामू के घर में भी रंग और मिठाइयों की खुशबू फैली थी। राधा अपनी सहेलियों के साथ गुलाल खेलने में व्यस्त थी। रामू और गीता भी इस खुशी के माहौल में डूबे हुए थे। त्यौहार के दौरान सब मिलजुलकर काम करते थे। गाँव में हर घर एक परिवार की तरह होता था।
लेकिन गाँव का जीवन सिर्फ उत्सवों और खुशियों से भरा नहीं होता। वहां पर कठिनाइयाँ भी कम नहीं होतीं। एक साल, जब सूखा पड़ा, तब रामू और अन्य किसानों की फसल बर्बाद हो गई। गाँव में निराशा का माहौल था। किसान कर्ज में डूब गए थे और खेतों में दरारें पड़ने लगी थीं। रामू के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें साफ दिखने लगी थीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
उसने अपने गांव के अन्य किसानों के साथ मिलकर पंचायत से मदद मांगी। गाँव की पंचायत ने भी किसानों की स्थिति को समझा और सरकारी सहायता के लिए निवेदन किया। कुछ समय बाद, सरकार की ओर से राहत सामग्री और बीज आए। यह मदद छोटे किसानों के लिए जीवनदान साबित हुई। रामू और बाकी किसान फिर से अपने खेतों में जुट गए।
इस बार बारिश भी सही समय पर हुई, और फसल धीरे-धीरे लहलहाने लगी। गाँव में फिर से खुशी की लहर दौड़ गई। किसान एक बार फिर अपने खेतों में मेहनत करने लगे, और इस बार उनकी मेहनत का फल उन्हें अच्छी फसल के रूप में मिला।
यह घटना रामू के जीवन की एक महत्वपूर्ण सीख थी – चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, मेहनत और धैर्य से हर परिस्थिति का सामना किया जा सकता है। गाँव का जीवन यही सिखाता है कि जीवन में संतुलन बनाकर चलना बहुत जरूरी है। सुख-दुख जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन सच्चा आनंद उस सरल और प्राकृतिक जीवन में है, जिसे गाँव के लोग जीते हैं।
आज भी जब सूरज ढलता है और रामू अपने खेत से लौटता है, तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि होती है। वह जानता है कि उसका जीवन भले ही संघर्षपूर्ण हो, लेकिन उसमें सच्ची खुशी और संतोष है। गाँव का जीवन उसे हर दिन एक नई सीख देता है और उसे प्रकृति के करीब बनाए रखता है।
गाँव की सादगी और उसकी कठिनाइयाँ दोनों ही रामू के जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन वह इन दोनों के साथ खुश है, क्योंकि उसे पता है कि असली सुख मेहनत और संतोष में ही है।