फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम एक ‘जल की मिठास’ गुरु और शिष्य की कहानी (Guru Shishya Story In Hindi) प्रस्तुत कर रहे हैं. इस कहानी में गुरु के प्रति शिष्य के प्रेम का वर्णन किया गया है. साथ ही ये कहानी सकारात्मकतता पर बल देती है. पढ़िए गुरु शिष्य कथा :
Guru Shishya Story In Hindi
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गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे एक शिष्य को अपने पिता का संदेश मिला. पिता ने उसे घर बुलाया था. बिना देर किये शिष्य गुरु के पास गया और उनसे घर जाने की अनुमति मांगी.
गुरु द्वारा अनुमति दे दी गई और अगले दिन शिष्य घर की ओर निकल पड़ा. वह पैदल चला जा रहा था. गर्मी के दिन थे. रास्ते में उसे प्यास लग आई.
वह पानी का स्रोत ढूंढते हुए आगे बढ़ने लगा. रास्ते एक किनारे उसे एक कुआं दिखाई पड़ा. उसने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझाई. उस कुएं का पानी शीतल और मीठा था. शिष्य उसे पीकर तृप्त हो गया.
वह आगे बढ़ने को हुआ ही था कि उनके मन में विचार आया – इतना मीठा जल मैंने आज तक कभी नहीं पिया. मुझे गुरूजी के लिए यह जल ले जाना चाहिए. वह भी तो इस मीठे जल का पान करके देखें.
यह सोचकर उसने कुएं से जल निकाला और मशक में भरकर वापस गुरुकुल की ओर चल पड़ा. गुरुकुल में उसे देख गुरूजी ने चकित होकर पूछा, “वत्स, तुम इतनी जल्दी लौट आये?”
शिष्य ने उन्हें अपनी वापसी का कारण बताया और मशक में भरा हुआ जल उनकी ओर बढ़ा दिया. गुरूजी ने वह जल पिया और बोले, “वत्स, ये तो गंगाजल की तरह है. इसे ग्रहण कर मेरी आत्मा तृप्त हो गई.”
गुरु के शब्द सुन शिष्य प्रसन्न हो गया. उसने पुनः गुरु से आज्ञा ली और अपने घर की ओर निकल गया.
शिष्य द्वारा लाया गया मशक गुरूजी के पास ही रखा था. उसमें कुछ जल अब भी शेष था. उस शिष्य के जाने के थोड़ी देर बाद गुरुकुल का एक छात्र गुरूजी के पास आया.
उसने वह जल पीने की इच्छा जताई, तो गुरूजी ने उस मशक दे दिया. छात्र ने मशक के जल का एक घूंट अपने मुँह में भरा और तुरंत बाहर थूक दिया.
वह बोला, “गुरूजी, ये जल कितना कड़वा है. मैं तो उस शिष्य की आपके द्वारा की गई प्रशंषा सुन इसका स्वाद लेने आया था. किंतु अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपके उसकी झूठी प्रशंषा क्यों की?”
गुरूजी ने उत्तर दिया, “वत्स, हो सकता है. इस जल में शीतलता और मिठास नहीं, किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इसे लाने वाले के मन में अवश्य है. जब उसने वह जल पिया, तो मेरे प्रति मन में उमड़े प्रेम के कारण वह मशक में जल भरकर गुरुकुल वापस लौट आया, ताकि मैं उस जल की मिठास का अनुभव कर सकूं. मैंने भी जब इस जल को ग्रहण किया, तो इसका स्वाद मुझे ठीक नहीं लगा, किंतु मैं उस शिष्य के हृदय में उमड़े प्रेम को देखते हुए उसे दु:खी नहीं करना चाहता था. इसलिए मैंने इस जल की प्रशंषा की. ये भी संभव है कि मशक के साफ़ न होने के कारण जल का स्वाद बिगड़ गया हो और वह वैसा न रहा हो, जैसा कुएं से निकाले जाते समय था. जो भी हो, मेरे लिए वह मायने नहीं रखता. जो मायने रखता है, वह है उस शिष्य का मेरे प्रति प्रेम. उस प्रेम की मिठास मेरे लिए जल की मिठास से अधिक महत्वपूर्ण है.”
सीख (Moral of the story)
“हमें किसी भी घटना का सकारात्मक पक्ष देखना चाहिए. नकारत्मक पक्ष देखकर न सिर्फ़ हम अपना मन मलिन करते हैं, बल्कि दूसरों का भी. इसलिए सदा अच्छाई पर ध्यान दें. “
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