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हंस और लकड़हारे की कहानी | Swan And Woodcutter Story In Hindi

हंस और लकड़हारे की कहानी (Hans Aur Lakadhare Ki Kahani) Swan And Woodcutter Story In Hindi इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। यह एक लालची लकड़हारे की कहानी।

Hans Aur Lakadhare Ki Kahani

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Hans Aur Lakadhare Ki Kahani

एक घने जंगल के पास छोटा सा गांव था। गांव में एक लकड़हारा मोहन रहता था। वह बहुत मेहनती और ईमानदारी था। वह हर रोज जंगल जाकर पेड़ काटता और अपनी पत्नी और बच्चों के लिए लकड़ियों को बेचकर कुछ पैसे कमाता। लेकिन वक्त के साथ गरीबी और कठिनाइयों ने मोहन के स्वभाव को बदल दिया, और उसकी लालच ने उसे अंधा कर दिया।

मोहन की दिनचर्या बहुत कठिन थी। वह हर सुबह सूरज उगने से पहले उठता, अपनी पुरानी कुल्हाड़ी उठाता और जंगल की ओर चल पड़ता। जंगल में वह दिनभर मेहनत करता, पेड़ों को काटता और लकड़ियों को इकट्ठा करता। शाम होते-होते, वह थकान से चूर होकर घर लौटता। बाजार में बेची जाने वाली लकड़ियों से जो पैसे मिलते, वे उसके परिवार की जरूरतों के लिए काफी नहीं होते।

एक दिन जब मोहन जंगल में लकड़ी काट रहा था, उसने एक अद्भुत हंस को देखा। हंस के सुनहरे पंख उसकी चमकदार रोशनी फैला रहे थे। मोहन ने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था। हंस ने धीरे-धीरे मोहन के पास आकर कहा, “तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी से मैं प्रभावित हुआ हूं। मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं। मैं हर रोज़ तुम्हें एक सुनहरा पंख दूंगा, जिससे तुम्हारी गरीबी दूर हो जाएगी।”

मोहन को यह सुनकर बहुत खुशी हुई और उसने हंस का धन्यवाद किया। अगले दिन हंस ने मोहन को एक सुनहरा पंख दिया। मोहन ने पंख को बाजार में बेचकर बहुत सारे पैसे कमाए। उसकी पत्नी और बच्चों को अच्छी भोजन और कपड़े मिलने लगे। परिवार की हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी।

लेकिन जल्द ही, मोहन के मन में लालच घर करने लगा। उसे लगा कि अगर हंस हर दिन एक सुनहरा पंख दे सकता है, तो क्यों न सारे पंख एक साथ ही प्राप्त कर लिए जाएं। इस विचार से मोहन का मन अशांत हो गया। उसने सोचा कि अगर हंस को पकड़कर सारे पंख निकाल लिए जाएं, तो उसे भविष्य में कभी मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

अगले दिन मोहन ने एक योजना बनाई। जैसे ही हंस ने उसे सुनहरा पंख दिया, मोहन ने हंस को पकड़ लिया और सारे पंख एक साथ निकालने की कोशिश की। हंस ने दर्द से चीखते हुए कहा, “लालच मत करो, मोहन! मैं तुम्हारी मदद कर रहा था, लेकिन तुम्हारे लालच ने तुम्हें अंधा कर दिया है।”

मोहन ने हंस की बातों को अनसुना किया और जबरदस्ती पंख निकालने की कोशिश करता रहा। अचानक, हंस ने अपनी शक्ति से खुद को मोहन की पकड़ से छुड़ा लिया और उड़ गया। हंस ने उड़ते हुए कहा, “तुम्हारी लालच ने तुम्हें अंधा कर दिया है, अब तुम अपने इस लालच का परिणाम भुगतोगे।”

हंस के जाने के बाद मोहन को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सोचा कि अगर उसने हंस की बात मानी होती तो उसे हमेशा के लिए सुनहरे पंख मिलते रहते। लेकिन अब हंस चला गया था और मोहन के पास कुछ भी नहीं बचा था। उसके परिवार की स्थिति फिर से पहले जैसी हो गई। गरीबी और कठिनाइयाँ फिर से उसके जीवन का हिस्सा बन गईं।

मोहन ने अपनी गलती से सीख ली और समझा कि लालच इंसान को अंधा कर देता है। उसने फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में लौटने का प्रयास किया और कड़ी मेहनत करने लगा। लेकिन हंस का दिया हुआ सुनहरा मौका अब कभी वापस नहीं आ सका।

सीख

  • लालच बुरी बला है।
  • मेहनत और ईमानदारी से ही सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।

हमें जो कुछ भी मिलता है, उसका सम्मान करना चाहिए और मेहनत और ईमानदारी से अपनी जिंदगी को संवारने का प्रयास करना चाहिए। लालच में आकर कोई भी कदम उठाना हमें नुकसान ही पहुंचाता है।

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