फ्रेंड्स इस पोस्ट में हम हाथी की कहानी लिखी हुई (Hathi Ki Kahani Elephant Story In Hindi Written With Moral For Kids) की कहानी शेयर कर रहे हैं।
Hathi Ki Kahani
Table of Contents
हाथी और दर्जी की कहानी
एक गाँव में एक दर्जी रहता था। वह नेकदिल, दयालु और मिलनसार था। सभी गाँव वाले अपने कपड़े उसी को सीने दिया करते थे।
एक दिन दर्जी की दुकान में एक हाथी आया। वह भूखा था। दर्जी ने उसे केला खिलाया। उस दिन के बाद से हाथी रोज दर्जी की दुकान में आने लगा। दयालु दर्जी उसे रोज केला खिलाता। बदले में हाथी कई बार उसे अपनी पीठ पर बिठाकर सैर पर ले जाता। दोनों की घनिष्ठता देखकर गाँव वाले भी हैरान थे।
एक दिन दर्जी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा। उसने अपने बेटे को दुकान पर बिठा दिया। जाते जाते वह उसे केला देते हुए कह गया कि हाथी आये, तो उसे खिला देना।
दर्जी का बेटा बड़ा शरारती था। दर्जी के जाते ही उसने केला खुद खा लिया। जब हाथी आया, तो उसके शैतानी दिमाग में एक शरारत सूझी। उसने एक सुई ली और उसे अपने पीछे छुपाकर हाथी के पास गया।
हाथी ने समझा कि वह केला देने के लिए आया है। इसलिए अपनी सूंड आगे बढ़ा दी। उसके सूंड बढ़ाते ही दर्जी के बेटे ने उसे सुई चुभो दी। हाथी दर्द से बिलबिला उठा। ये देखकर दर्जी के लड़के को बड़ा मज़ा आया और वह ताली बजाकर ख़ुश होने लगा।
दर्द से बिलबिलाता हाथी गाँव की नदी की ओर भागा। वहाँ जाकर उसने अपनी सूंड पानी में डाल दी। कुछ देर नदी के शीतल जल में रहकर उसे राहत महसूस हुई।
उसे दर्जी के लड़के पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। उसने उसे सबक सिखाने की ठानी और अपनी सूंड में कीचड़ भरकर दर्जी की दुकान की तरफ बढ़ा। दर्जी के लड़के ने जब फिर से हाथी को आते देखा, तो सुई लेकर बाहर आ गया।
वह हाथी के पास आते ही उसे सुई चुभाने के लिए आगे बढ़ा, मगर हाथी ने सूंड में भरा सारा कीचड़ उस पर उड़ेल दिया। लड़का दुकान के दरवाज़े के सामने खड़ा था। वह ऊपर से नीचे तक कीचड़ से लथपथ हो गया। दुकान के अंदर भी छिटक गया और लोगों द्वारा दिए गए कपड़े भी गंदे हो गये।
उसी समय दर्जी भी अपना काम निपटाकर दुकान वापस आया। वहाँ की ये हालत देखकर उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने अपने बेटे से पूछा, तो बेटे ने सारी बात बता दी।
दर्जी ने बेटे को समझाया कि तुमने हाथी के साथ बुरा व्यवहार किया है, इसलिए उसने भी तुम्हारे साथ वैसा ही व्यवहार किया है। जैसा व्यवहार करोगे, वैसा ही पाओगे। आज के बाद किसी के साथ बुरा मत करना।
फिर दर्जी ने हाथी के पास जाकर उसकी पीठ सहलाई और उसे केला खिलाया। हाथी ख़ुश हो गया। दर्जी के बेटे ने भी उसे केले खिलाये, जिससे हाथी और उसकी दोस्ती हो गई। उस दिन के बाद से हाथी दर्जी के बेटे को भी अपनी पीठ पर बिठाकर घुमाने लगा।
अब दर्जी के बेटे ने शरारत छोड़ दी और सबसे अच्छा व्यवहार करने लगा।
सीख
- जैसा करोगे, वैसा भरोगे।
- जैसा व्यवहार दूसरों से चाहते हो, वैसा व्यवहार दूसरों के साथ करो।
- बुरे काम का बुरा नतीजा।
हाथी और चूहा की कहानी
एक राज्य में एक राजा का शासन था। हर सप्ताह पूरी शानो-शौकत से नगर में उसका जुलूस निकला करता था, जहाँ प्रजा उसके दर्शन किया करती थी।
एक दिन एक नन्हा चूहा उसी राजमार्ग के किनारे-किनारे कहीं जा रहा था, जहाँ राजा का जुलूस निकलने वाला था। वह चूहा था तो छोटा सा, मगर उसका घमंड बहुत बड़ा था और वह ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ और महान समझता था।
कुछ देर बाद राजमार्ग से राजा का भव्य जुलूस निकला, जिसे देखने लोगों की भीड़ लगने लगी। राजा अपने पूरे दल-बल के साथ था। उसके सैनिक उसे घेरे हुए थे। कई मंत्री और अनुचर उसके पीछे थे। वह एक विशाल शाही हाथी पर सवार था। हाथी शाही था। इसलिए उसे भव्यता से सजाया गया था और उसकी शान भी देखते बनते थी। जुलूस में हाथी के साथ एक शाही बिल्ली और एक कुत्ता भी थे।
राजा का जुलूस देखने को उमड़ी भीड़ राजा के साथ-साथ उसके शाही हाथी की भी प्रशंसा कर रहे थी। यह सुनकर घमंडी चूहे को बहुत बुरा लगा।
वह हाथी को गौर से देखने लगा, फिर सोचने लगा – ‘इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है, जो मुझमें नहीं। मैं भी उस जैसा ही हूँ। मेरे पास भी दो आँखें, दो कान, एक नाक और चार पैर हैं। फिर उसकी इतनी प्रसंशा क्यों? उसके विशाल शरीर के कारण, लंबी सूंड के कारण, छोटी-छोटी आँखों के कारण या झुर्रीदार चमड़ी के कारण। किस कारण? एक बार तुम लोग मुझे देख लो, उस हाथी को भूल जाओगे। मैं हाथी से ज्यादा महान हूँ।‘
चूहा ये सब सोच ही रहा था कि शाही बिल्ली की नज़र उस पर पड़ गई और उसकी लार टपक गई. जुलुस छोड़ वह उसकी ओर लपकी। फिर क्या था? चूहा अपनी सारी महानता भूलकर दुम दबाकर भागा। भागते-भागते वह हाथी के सामने आ गया। आगे बढ़ते हाथी ने उस पिद्दी से चूहे को देखा तक नहीं और अपना विशाल पैर उठा लिया। चूहा उसके पैर के नीचे कुचलने ही वाला था, मगर किसी तरह उसने ख़ुद को बचाया।
वहाँ से बचा, तो खतरनाक कुत्ता सामने था, जो उसे देखकर गुर्राया। चूहा पूरी जान लगाकर वहाँ से भागा और राजमार्ग के किनारे स्थित एक छेद में घुस गया। उसका सारा घमंड उतर चुका था। उसे समझ आ चुका था कि वह इतना भी श्रेष्ठ और महान नहीं।
सीख
किसी से मात्र रूप रंग की समानता हमें महान नहीं बनाती। महान हमारे गुण और कार्य बनाते हैं।
हाथी और भालू की कहानी
एक जंगल में एक हाथी रहता था। वह बड़ा दयालु था। मुसीबत के समय वह सदा सबकी सहायता किया करता था। उसके इस स्वभाव है कारण जंगल के सभी जानवर उससे बहुत प्रेम करते थे।
एक दिन हाथी को प्यास लगी और वह पानी पीने नदी पर गया। वहाँ उसने देखा कि नदी के किनारे एक बड़े से पत्थर के नीचे एक मगरमच्छ दबा हुआ है और दर्द से कराह रहा है।
हाथी ने उससे पूछा, “मगरमच्छ भाई! ये क्या हो गया? तुम इस पत्थर के नीचे कैसे दब गये?”
मगरमच्छ ने कराहते हुए उत्तर दिया, “क्या बताऊं हाथी दादा! मैं खाना खाकर नदी किनारे आराम कर रहा था। जाने कैसे उस बड़ी चट्टान का ये टुकड़ा टूटकर मुझ पर आ गिरा। बहुत दर्द हो रहा है। मेरी मदद करो। इस पत्थर को हटा दो। मैं ज़िन्दगी भर तुम्हारा अहसानमंद रहूंगा।”
हाथी को उस पर दया आ गई। लेकिन उसे डर भी था कि कहीं मगरमच्छ उस पर हमला न कर दे। इसलिए उसने पूछा, “देखो मगरमच्छ भाई! मैं तुम्हारी मदद तो कर दूं, लेकिन वादा करो कि तुम मुझ पर हमला नहीं करोगे।”
“मैं वादा करता हूँ।” मगरमच्छ बोला।
हाथी मगरमच्छ के पास गया और उसकी पीठ से भारी पत्थर हटा दिया। लेकिन पत्थर के हटते ही धूर्त मगरमच्छ ने हाथी का पैर अपने जबड़े में दबा लिया।
हाथी कराह उठा और बोला, “ये क्या मगरमच्छ भाई? ये तो धोखा है। तुमने तो वादा किया था।”
लेकिन मगरमच्छ ने हाथी का पैर नहीं छोड़ा। हाथी दर्द से चीखने लगा। कुछ ही दूर पर एक पेड़ के नीचे एक भालू आराम कर रहा था। उसने हाथी की चीख सुनी, तो नदी किनारे आया।
हाथी को उस हालत में देख उसने पूछा, “ये क्या हुआ हाथी भाई?”
“इस धूर्त मगरमच्छ की मैंने सहायता की और इसने मुझ पर ही हमला कर दिया। मुझे बचाओ।” हाथी ने कराहते हुए मगमच्छ के पत्थर के नीचे दबे होने की सारी कहानी सुना दी।
“क्या कहा? ये मगरमच्छ पत्थर के नीचे दबा था और फिर भी ज़िन्दा था। मैं नहीं मानता।” भालू बोला।
“ऐसा ही था।” मगरमच्छ गुर्राया और अपनी पकड़ हाथी के पैरों पर मजबूत कर दी।
“हो नहीं सकता!” भालू फिर से बोला।
“ऐसा ही था भालू भाई!” हाथी बोला।
“बिना देखे तो मैं नहीं मानने वाला। मुझे दिखाओ तो ज़रा कि ये मगरमच्छ कैसे उस पत्थर के नीचे दबा था और उसके बाद भी ज़िन्दा था। हाथी भाई ज़रा इस मगरमच्छ की पीठ पर वो पत्थर तो रख देना। फिर उसे हटाकर दिखाना।” भालू बोला।
मगरमच्छ भी तैयार हो गया। वह हाथी का पैर छोड़कर नदी के किनारे चला गया। हाथी ने वह भारी पत्थर उसके ऊपर रख दिया।
मगरमच्छ भालू से बोला, “ये देखो! मैं ऐसे इस पत्थर के नीचे दबा था। अब यकीन आया तुम्हें। इसके बाद हाथी ने आकर पत्थर हटाया था। चलो हाथी अब पत्थर हटा दो।” मगरमच्छ बोला।
“नहीं हाथी भाई! ये मगरमच्छ मदद के काबिल नहीं है। इसे ऐसे ही पड़े रहने दो। आओ हम चले।” भालू बोला।
इसके बाद हाथी और भालू वहाँ से चले गए। मगरमच्छ वहीं पत्थर के नीचे दबा रहा। उसकी धूर्तता का फल उसे मिल चुका था।
सीख
- हमें हमेशा सहायता करने वाले के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।
- बुद्धिमानी से किसी भी मुसीबत से निकला जा सकता है।
हाथी और बंदर की कहानी
एक जंगल में एक हाथी और एक बंदर रहते हैं। विशाल शरीर वाला हाथी बलशाली था। वह अपने बल से बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ फेंकता था। अपने विशाल पैरों के नीचे छोटे पौधे और झाड़ियों को रौंद डालता था। वहीं बंदर तेज और फुर्तीला था। पलक झपकते ही उछलता-कूदता ऊँचे पेड़ पर चपलता से चढ़ जाया करता था।
हाथी और बंदर दोनों को अपने-अपने गुणों पर अभिमान था और दोनों स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ समझते थे। इस बात पर प्रायः उनमें बहस होती, जो कई बार झगड़े का रूप ले लेती थी। लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकलता था।
जंगल में रहने वाला एक उल्लू अक्सर हाथी और बंदर की लड़ाई देखा करता था। वह उनकी बहसबाजी और लड़ाई से तंग आ चुका था। एक दिन वह उन दोनों से बोला, “तुम दोनों की बहस मैं कई दिनों से देख रहा हूँ। आज फैसला हो ही जाये। क्यों न तुम दोनों में एक प्रतियोगिता करवाई जाये, जो जीतेगा, वो श्रेष्ठ होगा। क्या कहते हो?”
हाथी और बंदर मान गये। एक स्वर में उन्होंने पूछा, “मगर प्रतियोगिता क्या होगी?”
उल्लू बोला, “इस जंगल के पार एक दूसरा जंगल है। वहाँ एक पुराना वृक्ष है, जिस पर एक स्वर्णफल लगा हुआ है। तुम दोनों में से जो भी उस स्वर्ण फल को ले आयेगा, वह विजेता होने के साथ ही दूसरे से श्रेष्ठ होगा।”
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हाथी और बंदर के बीच प्रतियोगिता प्रारंभ हुई। बंदर फुर्ती से एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल-उछलकर आगे बढ़ने लगा। वहीं हाथी अपनी सूंड से रास्ते में आने वाले पेड़ों को उखाड़ता और रौंदता हुए आगे बढ़ने लगा।
कुछ ही देर में उन दोनों ने जंगल पार लिया। अब उनके सामने नदी थी, जिसे पार कर ही दूसरे जंगल में पहुँचा जा सकता था।
बंदर जल्दी से नदी में कूद गया। मगर पानी की तेज धार में वह बहने लगा। उसे बहता देख हाथी ने अपनी सूंड से पकड़कर उसे बाहर निकाला। बंदर हाथी का यह रूप देख चकित था, क्योंकि उसे आशा नहीं थी कि वह उसकी किसी भी प्रकार की सहायता करेगा। वह कृतज्ञता प्रकट करते हुए बोला, “धन्यवाद भाई! तुमने मेरी जान बचाई। अब यहाँ से आगे तो मैं जा नहीं पाऊंगा। तुम ही जाओ।”
हाथी ने उत्तर दिया, “तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। इस तरह हम दोनों नदी पार कर लेंगे।”
बंदर हाथी की पीठ पर बैठ गया। हाथी ने बड़े आराम से नदी पार कर ली। नदी पार कर दोनों दूसरे जंगल में पहुँचे। वहाँ वे खोजते हुए उस पुराने पेड़ तक गए, जहाँ स्वर्ण फल लगा हुआ था।
हाथी ने अपने सूंड से पेड़ के तने को पकड़कर पेड़ उखाड़ने का प्रयास किया, किंतु पेड़ का तना इतना मोटा था कि वह उसे ठीक से पकड़ नहीं पाया। ऐसे में पेड़ क्या उखड़ता? वह निराश होकर बोला, “अब स्वर्ण फल तोड़ना संभव नहीं।”
बंदर बोला, “मैं प्रयास करता हूँ।”
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और वह उछलकर पेड़ की एक डाली पर चढ़ गया। उछलते-कूदते वह पेड़ की सबसे ऊपरी डाली पर पहुँचा, जहाँ स्वर्ण फल लगा हुआ था। स्वर्णफल तोड़कर वह नीचे उतर आया। फिर दोनों वापस लौट आये और उल्लू को जाकर वह स्वर्ण फल दिया।
उल्लू बोला, “इस प्रतियोगिता का विजेता है…”
उसे टोककर बंदर और हाथी एक स्वर में बोले, “नहीं उल्लू दादा! अब विजेता घोषित करने की आवश्यकता नहीं है। हम दोनों के संयुक्त प्रयास से ही यह फल लाना संभव हो पाया है। हमें समझ आ गया है कि हम दोनों के गुण अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ हैं। हमने फैसला किया है कि अब से हम कभी नहीं लड़ेंगे और मित्र बनकर रहेंगे।”
उल्लू का प्रयोजन सिद्ध हो चुका था। वह यही सीख दोनों को देना चाहता था।
वह बोला, “हर प्राणी एक दूसरे से भिन्न होता है। उनमें अपने गुण होते हैं और अपनी कमजोरियाँ भी होती है। कोई एक-दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है, बस भिन्न है और अपने स्तर पर श्रेष्ठ है। हमें एक दूसरे से लड़ना नहीं हैं, बल्कि सबका सम्मान कर मिल जुलकर रहना है।‘
उस दिन से हाथी और बंदर मित्र बन गये।
सीख
एक दूसरे के गुणों का सम्मान कर मिलजुल कर रहें। जीवन सुखद रहेगा।
हाथी और रस्सी की कहानी
एक दिन एक व्यक्ति सर्कस देखने गया. वहाँ जब वह हाथियों के बाड़े के पास से गुजरा, तो एक ऐसा दृश्य देखा कि वह हैरान रह गया. उसने देखा कि कुछ विशालकाय हाथियों को मात्र उनके सामने के पैर में रस्सी बांधकर रखा गया है. उसने सोच रखा था कि हाथियों को अवश्य बड़े पिंजरों में बंद कर रखा जाता होगा या फिर जंजीरों से बांधकर. लेकिन वहाँ का दृश्य तो बिल्कुल उलट था.
उसने महावत से पूछा, “भाई! आप लोगों ने इन हाथियों को बस रस्सी के सहारे बांधकर रखा है, वो भी उनके सामने के पैर को. ये तो इस रस्सी को तो बड़े ही आराम से तोड़ सकते हैं. मैं हैरान हूँ कि ये इसे तोड़ क्यों नहीं रहे?”
महावत ने उसे बताया, “ये हाथी जब छोटे थे, तब से ही हम उसे इतनी ही मोटी रस्सी से बांधते आ रहे हैं. उस समय इन्होंने रस्सी तोड़ने की बहुत कोशिश की. लेकिन ये छोटे थे. इसलिए रस्सी को तोड़ पाना इनके सामर्थ्य के बाहर था. वे रस्सी तोड़ नहीं पाए और ये मान लिया कि रस्सी इतनी मजबूत है कि वे उसे नहीं तोड़ सकते. आज भी इनकी वही सोच बरक़रार है. इन्हें आज भी लगता है कि ये रस्सी नहीं तोड़ पाएंगे. इसलिए ये प्रयास भी नहीं करते.”
यह सुनकर वह व्यक्ति अवाक् रह गया.
सीख
“दोस्तों, उन हाथियों की तरह हम भी अपने जीवन में नकारात्मक सोच रुपी रस्सी से बंध जाते हैं. जीवन में किसी काम में प्राप्त हुई असफ़लता को हम मष्तिष्क में बिठा लेते हैं और यकीन करने लगते हैं कि एक बार किसी काम में असफ़ल होने के बाद उसमें कभी सफ़लता प्राप्त नहीं होगी. इस नकारात्मक सोच के कारण हम कभी प्रयास ही नहीं करते.
आवश्यकता है इस नकारात्मक सोच से बाहर निकलने की; उन कमियों को पहचानकर दूर करने की, जो हमारी असफ़लता का कारण बनी. नकारात्मक सोच हमारी सफ़लता में सबसे बड़ी बाधक है. इसलिए नकारात्मक सोच रुपी जंजीर को तोड़ कर सकारात्मक सोच को अपनायें और जीवन में प्रयास करना कभी न छोड़ें, क्योंकि प्रयास करना सफ़लता की दिशा में कदम बढ़ाना है.”
हाथी और चतुर खरगोश की कहानी
एक हरे-भरे वन में नदी किनारे हाथियों का एक समूह रहता था, जिसका मुखिया चतुर्दंत नामक हाथी था. वर्षों से वह समूह उस वन में सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था.
किंतु, एक समय वन अकाल की चपेट में आ गया. नदी का जल सूख गया, वन की हरियाली चली गई और हाथी भूख-प्यास से मरने लगे.
इस विपत्ति से निकलने की प्रार्थना लिए सभी हाथी अपने मुखिया चतुर्दंत के पास गए और बोले, “गजराज! इस अकाल की स्थिति में यदि हम और अधिक इस वन में रहे, तो काल का ग्रास बन जायेंगे. यहाँ भूखे-प्यासे रहना दुष्कर है. कृपा कर किसी अन्य स्थान की खोज करें, जहाँ जल स्रोत और हरियाली हो.”
चतुर्दंत विचार मग्न हो गया. कुछ देर विचार करने के बाद वह बोला, “यहाँ से कुछ दूरी पर एक तालाब है, जो पूरे वर्ष जल से परिपूर्ण रहता है. हमें वहीं चलना चाहिए. कल प्रातःकाल ही हम सब उस तालाब की ओर प्रस्थान करेंगे.”
अगले ही दिन सभी हाथी उस तालाब की ओर चल पड़े. पाँच दिन और पाँच रात की यात्रा पूर्ण कर वे वहाँ पहुँचे. जल से पूर्ण तालाब को देख वे बहुत प्रसन्न हुए और दिन भर वहाँ क्रीड़ा करते रहे. संध्या होने पर वे बाहर निकले और वन में चले गए.
तालाब के किनारे खरगोशों की बस्ती थी, जिसमें उनके असंख्य बिल थे. किंतु, हाथी इससे अनभिज्ञ थे. अतः वे खरगोशों के बिलों को रौंदते हुए निकल गए. खरगोशों के बिल तहस-नहस हो गए, कई खरगोश घायल हुए और कई मारे गए.
हाथियों के जाने के बाद सभी खरगोश एकत्रित हुए और स्वयं पर आये इस संकट के विषय में चर्चा करने लगे.
एक खरगोश बोला, “हाथियों का समूह प्रतिदिन जल के लिए तालाब में आया करेगा. ऐसे में हमारा यहाँ रहना प्राणघातक होगा. वे हमारे बिलों के साथ हमें भी रौंद देंगे. हममें से कोई भी नहीं बचेगा. हमारा वंश समाप्त हो जायेगा.”
“जीवन है, तो सर्वस्व है. जीवन रक्षा के लिए जो संभव हो, हमें करना चाहिए. परिस्थिति कहती है कि हमें जीवन रक्षा के लिए तत्काल इस स्थान को छोड़कर अन्यत्र प्रस्थान करना चाहिए.” एक अन्य खरगोश बोला.
खरगोश अपनी भूमि छोड़कर अन्यत्र जाने के विचार से दु:खी थे. उनका दुःख देख लम्बकर्ण नामक खरगोश आगे आया और बोला, “हम वर्षों से इस भूमि पर निवास कर रहे हैं. हम अपनी भूमि क्यों छोड़े? इस भूमि पर हमारा अधिकार है. हमें हाथियों से बात कर उन्हें यहाँ आने से रोकना चाहिए.”
“किंतु, उनसे कौन बात करेगा? कौन उन्हें समझाएगा?” सभी खरगोशों ने एक स्वर में पूछा.
“मैं उनसे बात करूंगा और यहाँ आने से मना करूंगा.” लम्बकर्ण बोला.
“किंतु, क्या वे तुम्हारी बात मानेंगे?”
“अवश्य मानेंगे. मेरे पास एक युक्ति है. मैं उनसे कहूंगा कि ये तालाब चंद्रमा में बैठे खरगोश का है और उसने आप लोगों का यहाँ आने से मना किया है. संभवतः, वे मेरी बात मान जाये.” लम्बकर्ण बोला.
अगले दिन लम्बकर्ण हाथियों के मुखिया से मिलने तालाब के मार्ग में स्थित एक ऊँचे टीले पर बैठ गया. जब हाथियों का समूह वहाँ से गुज़रा, तो वह हाथियों के मुखिया चतुर्दंत से बोला, “गजराज! क्या आपको ज्ञात नहीं यह तालाब चाँद में रहने वाले खरगोश का है? आपको बिना उसकी अनुमति के इस तालाब के जल का उपयोग नहीं करना चाहिए.”
चतुर्दंत ने पूछा, “तुम कौन हो?”
“मैं चाँद में रहने वाले खरगोश का संदेशवाहक हूँ. उसने मुझे अपने संदेश के साथ आपसे मिलने भेजा है.” लम्बकर्ण बोला.
“संदेश क्या वह है?” चतुर्दंत ने फिर से पूछा.
“संदेश है कि इस पवित्र तालाब में चंद्रदेव का वास है. इसलिए तुम लोग इसके जल का उपयोग नहीं कर सकते.”
“मैं कैसे मान लूं कि यह तालाब चंद्रदेव का है? जब तुम मुझे तालाब में चंद्रदेव के दर्शन कराओगे, तभी मैं यह बात मानूंगा और अपने दल को यहाँ आने से रोकूंगा.”
“चलो मेरे साथ और स्वयं देख लो.” कहकर लम्बकर्ण चतुर्दंत को तालाब के किनारे ले गया.
उस समय तालाब में चाँद की छाया पड़ रही थी. लम्बकर्ण चतुर्दंत को वह छाया दिखाते हुए बोला, “गजराज! देखो तालाब में चाँद का वास है. अब तो मेरी बात मान लो.”
चाँद की छाया को चंद्रदेव समझकर चतुर्दंत ने उसे प्रणाम किया और वहाँ से लौट गया. उसके बाद उस तालाब में हाथियों का समूह कभी नहीं आया.
सीख
बुद्धिमानी से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है.
हाथी और सियार की कहानी
घने जंगल में कर्पूरतिलक नामक हाथी रहता था. उसका शरीर हृष्ट-पुष्ट और मांसल था. जब भी उस पर दृष्टि पड़ती, जंगल में रहने वाले सियारों के मुँह में पानी आ जाता. वे हाथी को मारकर कई दिनों के लिए अपने भोजन की व्यवस्था करना चाहते थे. किंतु हाथी जैसे विशाल और ह्रष्ट-पुष्ट जानवर को मारना उनके बस के बाहर था.
अन्य सियारों की मंशा जानकर उनके दल के सबसे वृद्ध सियार (Jackal) ने एक दिन सभा बुलाई और बोला, “मैं एक ऐसी युक्ति जानता हूँ, जिससे हम इस विशालकाय हाथी का कामतमाम कर सकें. यदि तुम वैसा करो, जैसा मैं कहता हूँ, तो इस हाथी के मांस का हम कई दिनों तक भक्षण कर सकेंगे.”
सियारों को यही चाहिए था. वे तैयार हो गए. बूढ़े सियार ने उन्हें युक्ति बता दी. युक्ति अनुसार कुछ सियार हाथी के पास गए और उसे प्रणाम कर बोले, “महाराज की जय हो. महाराज की जय हो.”
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स्वयं के लिए महाराज का संबोधन सुनकर हाथी चौंका और बोला, “कौन हो तुम लोग? मेरे पास क्यों आये हो? और मुझे महाराज क्यों संबोधित कर रहे हो?
सियारों के दल में से एक सियार बोला, “महाराज! हम सियार है. इसी वन में निवास करते हैं. बिना राजा के ये वन हमें नहीं सुहाता. इसलिए हम सबने निर्णय लिया है कि आपको इस वन का राजा घोषित कर दिया जाए. महाराज कृपा कर इस वन के राजा बनकर हमारा उपकार करें. हम सबने आज ही आपके राज्यभिषेक की व्यवस्था कर दी है. राज्यभिषेक का लग्न समय पर निकट है, महाराज, कृपया शीघ्र हमारे साथ चलें.”
सियारों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर हाथी जंगल का राजा बनने तैयार हो गया और उनके पीछे-पीछे चलने लगा. सियार उसे जिस मार्ग से ले जा रहे थे, वहाँ एक गहरा दलदल था.
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अनभिज्ञ हाथी दलदल में फंस गया. निकलने का बहुत प्रयास करने के बाद भी हाथी दलदल से बाहर नहीं निकल पाया. उसने सहायता के लिए सियारों को पुकारा, “अपने होने वाले राजा की सहायता करो.”
तब सियार बोले, “ऐसा मूर्ख हमारा राजा कैसे हो सकता है? तुम्हारी तो यही गत होनी थी. तुम हमारा आहार हो. तुम्हारे मांस का भक्षण कर हमारे कुछ दिन मज़े से कटेंगे.”
हाथी अपनी मूर्खता पर पछताने लगा. वह दलदल से निकल नहीं पाया और वहीं उसके प्राण-पखेरू उड़ गए. सियारों ने छककर दवात उड़ाई.
सीख
जो कार्य बल से संभव नहीं, उसमें युक्ति से काम लेना चाहिये.
हाथी और छः अंधों की कहानी
एक गाँव में छः अंधे व्यक्ति रहते थे. एक दिन उनके गाँव में एक हाथी आया, जो पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन गया. सब उसे देखने जाने लगे, विशेषकर बच्चे. लंबी सूंड और पंखे जैसे कान वाले विशालकाय हाथी को देखकर बच्चे बड़े ख़ुश थे.
छः अंधे व्यक्तियों को भी एक गाँव वाले ने बताया कि आज गाँव में हाथी आया है. हाथी के बारे में सुनकर उनमें जिज्ञासा जाग उठी. उन्होंने हाथी के बारे में सुना अवश्य था, किंतु छूकर उसके स्पर्श को महसूस नहीं किया था.
एक अंधे व्यक्ति बोला, “दोस्तों! इतना सुन रखा है हाथी के बारे में. आज गाँव में हाथी आया है, तो मैं उसे छूकर महसूस करना चाहता हूँ. क्या तुम लोग नहीं चाहते?”
उसकी बात सुनकर अन्य पाँच भी हाथी को छूकर महसूस करने के लिए लालायित हो उठे. वे सभी उस जगह पर पहुँचे, जहाँ हाथी था. वे हाथी के करीब गए और उसे छूने लगे.
पहले व्यक्ति ने हाथी के खंबे जैसे विशाल पैर को छुआ और बोला, “ओह, हाथी खंबे जैसा होता है.”
दूसरे व्यक्ति के हाथ में हाथी की पूंछ आई, जिसे पकड़कर वह बोला, “गलत कर रहे हो दोस्त, हाथी खंबे की तरह नहीं, बल्कि रस्सी की तरह होता है.”
तीसरे व्यक्ति के हाथी की लंबी सूंड पकड़ी और कहने लगा, “अरे नहीं, हाथी तो पेड़ के तने जैसा होता है.”
चौथे व्यक्ति ने हाथी के पंखें जैसे कान छुए और उसे लगा कि बाकी सब गलत कह रहे हैं, वो उन्हें समझाते हुए बोला, “हाथी पंखें जैसा होता है.”
पांचवें व्यक्ति ने हाथी का पेट छूते हुए कहा, “अरे तुम सब कैसे अजीब बातें कर रहे हो. हाथी तो दीवार की तरह होता है.”
छटवें व्यक्ति ने हाथी के दांत को छुआ और बोला, “सब गलत कह रहे हो. हाथी कठोर नली की तरह होता है.”
सब अपनी-अपनी बात पर अडिग थे. कोई दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं था. वे आपस में बहस कर अपनी बात सही साबित करने में लग गए. धीरे-धीरे बहस बढ़ती गई और झगड़े में तब्दील हो गई.
उस समय एक सयाना व्यक्ति वहाँ आया. उन सबको झगड़ते हुए देख उनसे पूछा, “तुम लोग आपस में क्यों झगड़ रहे हो?”
छहो अंधे व्यक्तियों ने उसे बताया कि वे हाथी को छूकर महसूस करने आये थे और उसे छूने के बाद हम सबमें बहस हो रही है कि हाथी होता कैसा है. फ़िर सबने उसे अपना आंकलन बताया.
उनकी बात सुनकर सयाना व्यक्ति हँस पड़ा और बोला, “तुम सब लोग ख़ुद को सही साबित करने के लिए झगड़ रहे हो और सच ये है कि तुम सब सही हो.”
“ऐसा कैसे हो सकता है?” अंधे व्यक्ति हैरत में बोले.
“बिल्कुल हो सकता है और ऐसा ही है. तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो. तुम लोगों ने हाथी के शरीर के अलग-अलग अंगों को छुआ है और उसके हिसाब से उसका वर्णन किया है. इसलिए हाथी के बारे में तुम्हारा आंकलन भिन्न है. वास्तव में हाथी तुम सबके आंकलन अनुसार ही है, वह खंबे जैसे पैरों वाला, पंखे जैसे कान वाला, रस्सी जैसे पूंछ वाला, तने जैसे सूंड वाला, दीवार जैसे पेट वाला, नली जैसे दांतों वाला एक विशालकाय जानवर है. इसलिए झगड़ा बंद करो और अपने-अपने घर जाओ.”
यह सुनकर सब सोचते लगे कि हम सब बेकार में ही झगड़ रहे थे और फ़िर सब घर लौट गये.
सीख
१. अक्सर हम किसी विषय के संबंध में सीमित ज्ञान के आधार पर अपनी धारणा बना लेते हैं और दूसरों से अपनी धारणा को लेकर उलझ जाते हैं तथा स्वयं को सही साबित करने की कोशिश करने लगते हैं. जबकि संभव है कि उस व्यक्ति की धारणा भी उसके सीमित ज्ञान के दायरे में सही हो. किसी भी विषय के हर पहलू के बारे में जाने बिना उस संबंध में एकदम से कोई अटल धारणा नहीं बनाना चाहिए.
२. कई बार फ़र्क नज़रिये का होता है. किसी भी चीज़ को देखने का हमारा नज़रिया दूसरों से भिन्न हो सकता है. हमें एक-दूसरे के नज़रिये का भी सम्मान करना चाहिए.
घमंडी हाथी और चींटी की कहानी
एक जंगल में एक हाथी रहता था. उसे अपनी ताकत पर बड़ा घमंड था. वह अपने सामने दूसरे जानवरों को कुछ नहीं समझता था. अपने मज़े के लिए वह उन्हें हर समय तंग करता था.
वह कभी किसी पक्षी के पेड़ पर बनाये घोंसले को उजाड़ देता, तो कभी पूरा का पूरा ही पेड़ की उखाड़ देता. कभी बंदरों को उठा कर पटक देता, तो कभी खरगोशों को अपने पैरों तले रौंद देता. सभी जानवर उससे परेशान थे. लेकिन उसकी ताकत के सामने कुछ कर नहीं पाते थे.
एक दिन हाथी नदी से पानी पीकर लौट रहा था. वहीं नदी किनारे एक पेड़ के नीचे चींटियों का बिल था. आस-पास ही चींटियाँ अपने काम में जुटी हुई थीं. बरसात के पहले वे अपने बिल में भोजन इकठ्ठा करने मेहनत कर रही थीं.
हाथी को मस्ती सूझी और उसने अपनी सूंड में भरा पानी चींटियों के बिल पर डाल दिया. चींटियों का बिल उजड़ गया. अपना घर उजड़ जाने के बाद भी डर के कारण चींटियाँ हाथी से कुछ कह नहीं पा रही थीं.
लेकिन एक चींटी को बहुत गुस्सा आया. वह बिना डरे तेज आवाज़ में हाथी से बोली, “ये क्या कर दिया तुमने? हमारा घर उजाड़ दिया. अब हम कहाँ करेंगे?”
चींटी की बात सुन हाथी बोला, “चुप कर चींटी, नहीं तो अभी तुझे अपने पैरों के नीचे दबाकर कुचल दूंगा.”
“तुम्हें इस तरह दूसरों को तंग नहीं करना चाहिए. जब तुम्हें कोई तंग करेगा, तब तुम्हें समझ आएगा.” चींटी ने फिर से बिना डरे कहा.
“कौन मुझे तंग करेगा. तू….पिद्दी सी तो है…तू मेरा क्या बिगाड़ लेगी. तू मुझे जानती नहीं है क्या? मैं इस जंगल का सबसे ताकतवर जानवर हूँ. किसी की हिम्मत नहीं कि मुझे कुछ कह सके. तूने पहली बार ये गलती की है. इसलिए माफ़ कर रहा हूँ. आइंदा ध्यान रखना. नहीं तो मारी जाओगी.” हाथी धमकाते हुए बोला.
चींटी उस समय तो चुप हो गई. लेकिन मन ही मन सोचने लगी कि इस घमंडी हाथी को सबक सिखाना ज़रूरी है. वरना, ये यूं ही सबको यूं ही तंग करता रहेगा.
ये मौका उसे उसी दिन शाम को मिल गया. उसने देखा एक पेड़ के नीचे हाथी बड़े आराम से सो रहा है. चींटी उसकी सूंड में घुस गई और काटने लगी.
आराम से सो रहे हाथी की दर्द से छटपटा उठा. उसकी नींद खुल गई. छटपटाते हुए अपनी सूंड इधर-उधर हिलाने लगा. यह देख चींटी और जोर से उसे काटने लगी. हाथी से दर्द सहा नहीं जा रहा था. वह जोर-जोर से रोने लगा और मदद की पुकार लगाने लगा.
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लेकिन उसकी मदद को कौन आता? उसने तो जंगल में सबको परेशान कर रखा था. चींटी उसे काटती रही और वह दर्द से चीखता रहा. अंत में निढाल होकर वह जमीन पर गिर पड़ा और रो-रोकर कहने लगा, “क्यों मुझे परेशान कर रहे हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”
यह सुनना था कि चींटी बोली, “मैं वही चींटी हूँ, जिसका और जिसके साथियों का घर तुमने उजाड़ दिया था. अब तुम्हें समझ आया कि जब तुम दूसरों को तंग करते हो, तो उन्हें कैसा लगता है?”
“मुझे सबक मिल गया है. मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूँ और वचन देता हूँ कि फिर कभी किसी को तंग नहीं करूंगा. सबसे मिल-जुलकर प्रेम से रहूंगा. कृपा कर मुझे काटना बंद करो और मेरी सूंड से बाहर आ जाओ.” हाथी रोते हुए बोला.
चींटी को हाथी पर दया आ गई. उसे लगा कि अब हाथी का घमंड भी टूट गया है और उसे एक अच्छा सबक भी मिल गया है. इसलिए उसे माफ़ कर सुधरने का एक मौका देना चाहिए.
चींटी हाथी की सूंड से बाहर आ गई. हाथी की जान में जान आई. उस दिन के बाद से हाथी सुधर गया. उसने जंगल के सभी जानवरों से अपने किये की माफ़ी मांगी और वादा किया कि वह अब उन्हें कभी तंग नहीं करेगा.
जानवरों ने उसे माफ़ कर दिया और उससे दोस्ती कर ली. हाथी भी सबका दोस्त बनकर बहुत ख़ुश हुआ. सब जंगल में मिल-जुलकर रहने लगे.
सीख
- कभी घमंड नहीं करना चाहिए. घमंडी का घमंड कभी न कभी ज़रूर टूटता है.
- दूसरों की सदा सहायता करनी चाहिए. तभी मुसीबत के समय वे आपकी सहायता करेंगे.
- कभी दूसरों को परेशान नहीं करना चाहिए और सबके साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए.
हाथी और गौरैया की कहानी
एक वन में बरगद के पेड़ की ऊँची डाल पर एक घोंसला था, जिसमें गौरैया का जोड़ा रहता था. दोनों दिन भर भोजन की तलाश में बाहर रहते और शाम ढले घोंसले में आकर आराम करते थे. दोनों ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे.
मौसम आने पर गौरैया ने अंडे दिये. अब उसका पति भोजन की तलाश में जाता और वह घोंसले में रहकर अंडों को सेती और उनकी देखभाल करती थी. वे दोनों बेसब्री से अंडों में से अपने बच्चों के बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे.
एक दिन रोज़ की तरह गौरैया का पति भोजन की तलाश में गया हुआ था और गौरैया घोंसले में अंडों को से रही थी. तभी एक मदमस्त हाथी (Elephant) उस वन में आ गया और उत्पात मचाने लगा. वह अपने विशालकाय शरीर से टकराकर और सूंड से हिला-हिलाकर पेड़-पौधों को उखाड़ने लगा.
कुछ ही देर में सारा वन तहस-नहस हो गया. आगे बढ़ते-बढ़ते वह उस बरगद के पेड़ के पास पहुँचा, जहाँ गौरैया का घोंसला था. वह जोर-जोर से पेड़ को हिलाने लगा. लेकिन बरगद का पेड़ (Banyan Tree) मजबूत था. हाथी उसे गिरा नहीं पाया. लेकिन इन सबमें गौरैया का घोंसला टूटकर नीचे गिर पड़ा और उसके सारे अंडे फूट गए.
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अपने बच्चों की मृत्यु पर गौरैया विलाप करने लगी. जब उसका पति वापस लौटा, तो गौरैया ने रोते-रोते उसे हाथी की करतूत के बारे में बताया. वह भी बहुत दु:खी हुआ.
दोनों प्रतिशोध की आग में जल रहे थे और हाथी को सबक सिखाना चाहते थे. लेकिन हाथी जैसे विशालकाय जीव के सामने उन जैसे निरीह प्राणियों का क्या बस चलता? उन्हें अपने मित्र कठफोड़वा की याद आई और वे उसकी सहायता लेने का पहुँच गए. कठफोड़वा के दो मित्र थे – मधुमक्खी (Bee) और मेंढक (Frog). वे दोनों भी गौरैया के जोड़े की सहायता को तैयार हो गए.
सबने मिलकर योजना बनाई और हाथी को सबक सिखाने निकल पड़े. पूरे वन को तहस-नहस करने के बाद हाथी एक स्थान पर आराम कर रहा था. उसे देख योजना अनुसार मधुमक्खी ने उसके कानों में अपनी स्वलहरी छेड़ दी.
हाथी स्वरलहरी में डूबने लगा ही था कि कठफोड़वा ने उसकी दोनों आखें फोड़ दी. हाथी दर्द से चीख उठा. इधर हाथी के अंधे होते ही कुछ दूरी पर मेंढक टर्र-टर्र करने लगा. मेंढक के टर्राने की आवाज़ सुनकर हाथी ने सोचा कि अवश्य ही कुछ दूरी पर तालाब है. वह मेंढक की आवाज़ की दिशा में बढ़ने लगा.
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योजना अनुसार मेंढक एक दलदल के किनारे बैठा टर्रा रहा था. हाथी तालाब समझकर दलदल में जा घुसा और फंस गया. दलदल से निकलने का भरसक प्रयास करने के बाद भी वह सफ़ल न हो सका और उसमें धंसता चला गया. कुछ ही देर में वह दलदल में समा गया और मर गया.
इस तरह जैसे गौरैया ने अपने मित्रों की सहायता से हाथी से अपने बच्चों की मौत का प्रतिशोध ले लिया.
सीख
एकजुटता में बड़ी शक्ति होती है. एकजुट होकर कार्य करने पर कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति भी बड़े से बड़ा कार्य संपन्न कर सकता है.
पागल हाथी की कहानी
मोती राजा साहब की सवारी का खास हाथी था। यों तो बादल बहुत ही सीधा और समझदार किस्म का था, पर कभी कभी उसका मिजाज़ बिगड़ जाता था और वह अपने आपे में न रहता था। उस हालत में उसे किसी बात की सुधि न रहती थी, महावत का दबाव भी न मानता था। एक बार उसने इसी पागलपन में अपने महावत को मार डाला।
राजा साहब ने यह खबर सुनी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। मोती की पदवी छिन गई। राजा साहब की सवारी से निकाल दिया गया। कुलियों की तरह उसे लकड़ियाँ ढोनी पड़ती, पत्थर उठाने पड़ते और शाम को पीपल के नीचे मोटी जंजीरों से बांध दिया जाता। उसके सामने खाने के लिए सूखी टहनियाँ डाल दी जाती। उन्हीं को खा कर अपनी भूख की आग बुझाता था।
जब वह इस दशा को पहले की दशा से मिलाता, तो वह बहुत चंचल हो उठता। सोचता – ‘कहाँ मैं राजा का सबसे प्यारा हाथी था, कहाँ आज मामूली मजदूर हूँ। यह सोचकर ज़ोर से चिंघाड़ता और उछलता। आखिर एक दिन उसे इतना जोश आया कि जंजीरे तोड़ डाली और जंगल की तरफ भागा।
थोड़ी ही दूर पर एक नदी थी। मोती पहले उस नदी में जाकर खूब नहाया। फिर वहाँ से जंगल की ओर बढ़ा। इधर राजा साहब के सिपाही उसको पकड़ने के लिए दौड़े, मगर मारे डर के कोई उसके पास जा न सका। जंगल का जानवर जंगल ही में चला गया।
जंगल में पहुँचकर अपने साथियो को ढूंढने लगा। वह कुछ दूर और आगे बढ़ा, तो उसे उसके साथी दिख गये। पर जब उसके साथियो ने उसके गले मेरे रस्सी और पांव में टूटी जंजीर देखी, तो उससे मुँह फेर लिया। उसकी बात तक न पूछी। उनका शायद यह मतलब था कि तुम तो गुलाम थे ही, अब नमकहराम गुलाम हो गए हो। तुम्हारी जगह इस जंगल में नहीं हैं।
जब तक वे आँखों से ओझल न हो गए, मोती वहीं खड़ा ताकता रहा। फिर न जाने क्या सोचकर वहाँ से भागता हुआ महल की ओर चला।
वह रास्ते ही में था कि उसने देखा कि राजा साहब शिकारियों के साथ घोड़े पर चले आ रहे हैं। वह फौरन एक बड़ी चट्टान की आड़ में छिप गया। धूप तेज थी। राजा साहब जरा दम लेने को घोड़े से उतरे। अचानक मोती आड़ से निकल पड़ा और गरजता हुआ राजा साहब की ओर दौड़ा।
राजा साहब घबराकर भागे और एक छोटी झोंपड़ी में घुस गये। जरा देर बाद मोती भी पहुँचा। उसने राजा साहब को अंदर घुसते देख लिया था। पहले तो उसने अपनी सूंड़ से ऊपर का छप्पर गिरा दिया, फिर उसे पैरों से रौंदकर चूर-चूर कर डाला। भीतर राजा साहब का मारे डर के बुरा हाल था, जान बचने की कोई आशा न थी।
आखिर कुछ न सूझी, तो वह जान पर खेलकर पीछे दीवार पर चढ़ गए और दूसरी तरफ कूदकर भाग निकले। मोती द्वार पर खड़ा छप्पर रौंद रहा था और सोच रहा था कि दीवार कैसे गिराऊं। आखिर उसने धोखा देकर दीवार गिरा दी। मिट्टी की दीवार पागल हाथी का धक्का क्या सहती? मगर जब राजा साहब भीतर न मिले, तो उसने बाकी दीवारें भी गिरा दी और जंगल की तरफ चला गया।
घर लौटकर राजा साहब ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो व्यक्ति मोती को जीता पकड़कर लाएगा, उसे हजार रुपये इनाम दिया जायेगा। कई आदमी इनाम के लालच में उसे पकड़ने गये। मगर उनमें से एक भी न लौटा।
मोती के महावत का एक लड़का था। उसका नाम था मुरली। अभी वह कुल आठ नौ बरस का था। राजा साहब दया करके उसको और उसकी माँ को कुछ खर्च दिया करते थे। मुरली था तो बालक, पर हिम्मत का धनी था। कमर बांधकर मोती को पकड़ लाने के लिए तैयार हो गया। मगर माँ ने बहुतेरा समझाया, और लोगों ने भी समझाया, मगर उसने एक न सुनी और जंगल की ओर चल दिया।
जंगल में गौर से इधर-उधर देखने लगा। आखिर उसने देखा कि मोती सिर झुकाये उसी पेड़ की तरफ चला आ रहा हैं। उसकी चाल से ऐसा मालूम होता था कि उसका मिजाज ठंडा हो गया है। ज्यों ही मोती उस पेड़ के नीचे आया, उसने पेड़ के ऊपर से पुचकारा – ‘मोती!’
मोती इस आवाज को पहचानता था। वहीं रुक गया और सिर उठा कर ऊपर की ओर देखने लगा। मुरली को पहचान गया। यह वही मुरली था, जिसे वह अपनी सूंड में उठाकर अपने मस्तक पर बैठा लेता था।
‘मैंने ही इसके बाप को मार डाला है।’ यह सोच कर उसे उस बालक पर दया आई। खुशी से सूंड हिलाने लगा। मुरली उसके मन के भाव को पहचान गया। वह पेड़ से नीचे उतरा और उसकी सूंड को थप क्या देने लगा। फिर उसे बैठने का इशारा किया। मोती बैठा नहीं, मुरली को सूंड से उठाकर पहले की ही तरह मस्तक पर बिठा लिया और राजमहल की ओर चला।
मुरली जब मोती को लिए हुए राजमहल के द्वार पर पहुँचा, तो सबने दांतो तले उंगली दबाई। फिर भी किसी की हिम्मत न होती थी कि मोती के पास जाये। मुरली चिल्लाकर बोला – ‘डरो मत। मोती बिल्कुल सीधा हो गया है। ऐसा किसी से न बोलेगा।’
राजा साहब भी डरते-डरते मोती के सामने आये। उन्हें कितना अचंभा हुआ कि वही पागल मोती अब गाय की तरह सीधा हो गया है।
उन्होंने मुरली को एक हजार इनाम दिया ही, उसे अपना खास महावत बना लिया और मोती फिर से राजा साहब का सबसे प्यारा हाथी बन गया।
गजराज और मूषकराज की कहानी
गजराज ने उसके आने का प्रयोजन पूछा, तो मूषकराज बोला, “गजराज! मैं आपके पास एक निवेदन लेकर आया हूँ.”
“कहो” गजराज बोला.
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“खंडहर बन चुके नगर में हम चूहों की बस्ती है. वर्षों से हम वहाँ निवास करते आ रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से आप लोगों की जलाशय की ओर की आवाजाही से आपके पैरों तले कुचले जाकर हमारे संपूर्ण वंश का नाश हो रहा है. मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप जलाशय जाने का कोई नया मार्ग ढूंढ लें.”
गजराज एक उदार ह्रदय हाथी थे. वह बोला, “मूषकराज! हमारे कारण आपको और आपकी प्रजा को कष्ट हुआ, इसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ. हम इससे अनभिज्ञ थे कि जलाशय के मार्ग में चूहों की बस्ती है और हमारे द्वारा अनर्थ हो रहा है. आप निश्चिंत रहें, हम अपना मार्ग परिवर्तित कर लेंगे.”
मूषकराज कृतज्ञतापूर्वक बोला, “गजराज! मैं आपका सदैव आभारी रहूंगा और कभी भी मैं आपके काम आ सकूं, तो इसे मैं अपना भाग्य समझूंगा. आवश्यकता पड़े, तो अवश्य स्मरण कीजियेगा.”
गजराज ने सोचा कि यह नन्हा जीव हमारे क्या काम आएगा? किंतु, उसने वह कुछ नहीं बोला. मूषकराज ने प्रणाम कर गजराज से विदा ली. उस दिन के उपरांत से हाथियों के दल का चूहों की नगरी से आवाजाही बंद हो गई.
उस स्थान से कुछ दूरी पर एक नगर स्थित था, जहाँ का राजा अपनी सेना को सुदृढ़ करना चाहता था. मंत्रीगणों के परामर्श पर उसे अपनी सेना में हाथियों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया.
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राजा के सैनिक हाथियों को पकड़ने लगे. गजराज इस बात से अत्यंत चिंतित था, क्योंकि उसके दल के कई हाथी पकड़ लिए गए थे. एक रात वह जंगल में विचरण कर रहा कि उसका पैर सूखी पत्तियों के नीचे छुपाये गए रस्सी के फंदे पर पड़ा और उसमें फंस गया. रस्सी का दूसरा सिरे एक पेड़ के तने से बंधा हुआ था.
उसने ख़ुद को छुड़ाने का बहुत प्रयास किया किंतु असफ़ल रहा. अंततः, वह सहायता के लिए चिंघाड़ने लगा. जिसने भी उसकी चिंघाड़ सुनी, वह इस भय के कारण उसके निकट नहीं आया कि कहीं वह भी किसी फंदे में फंस न जाए. गजराज हताश होने लगा.
तभी एक युवा जंगली भैंसा वहाँ से गुजरा. एक बार गड्ढे में गिर जाने पर उसे बाहर निकालकर गजराज ने उसकी सहायता की थी. इसलिए वह भैंसा गजराज का बहुत आदर करता था. गजराज को उस अवस्था में देख वह बड़ा दु:खी हुआ और पास जाकर बोला, “गजराज! क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ.”
गजराज बोला, “तुम दौड़कर खंडहर नगरी जाओ. वहाँ चूहों की बस्ती है. चूहों के राजा मूषकराज को मेरे बारे में बताओ और सहायता मांगो.”
भैंसा दौड़कर खंडहर नगरी में मूषकराज के पास गया और गजराज के बारे में जानकारी दी. मूषकराज अविलंब बीस-तीस चूहों के साथ भैंसे की पीठ पर बैठ गया और भैंसा उन्हें गजराज के पास लेकर पहुँच गया.
वहाँ पहुँचते ही सारे चूहे भैंसे की पीठ से कूदे और फंदे की रस्सी कुतरने लगे. कुछ देर में उन्होंने रस्सी कुतर दी और गजराज स्वतंत्र हो गया. उसने मूषकराज और उसके साथियों का कोटि-कोटि धन्यवाद दिया. उस दिन के बाद वे बहुत अच्छे मित्र बन गए.
सीख
आपसी सद्भाव और प्रेम के साथ रहना चाहिए और कष्ट के समय एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिये.
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