फ्रेंड्स इस पोस्ट में हम क्रोध पर कहानियाँ (Hindi Stories On Anger Management) शेयर कर रहे हैं. “Controlling Anger Story In Hindi With Moral” क्रोध का दुष्परिणाम बतलाती और क्रोध पर नियंत्रण (Anger Management) का महत्व और तरीका बतलाती हैं. क्रोध न सिर्फ दूसरों के साथ हमारे संबंधों में कडुवाहट घोलता है, बल्कि हमारी स्वयं की मानसिक शांति और सुकून हर लेता है. क्रोध से दूर रहें. पढ़िए Krodh Par Kahani :
Hindi Stories On Anger
Table of Contents
क्रोध की दवा : Best Medicine For Anger Story In Hindi
एक गाँव में एक स्त्री रहा करती थी. वह स्वभाव से बहुत बहुत गुस्से वाली थी. गुस्सा उसकी नाक पर बैठा रहता था. छोटी-छोटे बात पर वह तुनक जाती और लोगों को भला-बुरा कह देती थी.
आस-पड़ोस में रहने वाले लोग उससे परेशान थे और उससे बात करने से घबराते थे. घर कैसे अछूता रहता? उसका गुस्सा घर पर कलह का कारण बन चुका था.
उस स्त्री को अहसास था कि गुस्सा उसके लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. अक्सर गुस्सा उतरने के बाद वह पछतावे की आग में जला करती थी. लेकिन गुस्सा नियंत्रण के बाहर होने के कारण स्वयं को लाचार पाती.
एक दिन गाँव में एक महात्मा पधारे. उनकी कीर्ति जब स्त्री के कानों तक पहुँची, तो उसने निश्चय किया कि वह महात्मा जी से मिलकर अपने गुस्से को दूर करने का उपाय पूछेगी.
वह महात्मा से मिलने पहुँची और प्रमाण कर बोली, “गुरूवर! मैं अपने गुस्से से परेशान हूँ. गुस्से पर काबू ही नहीं रख पाती. गुस्से में अक्सर लोगों को भला-बुरा कह जाती हूँ और बाद में पछताती हूँ. मेरे गुस्से के कारण सब मुझे नज़र अंदाज़ करने लगे हैं. इससे मैं बहुत दु:खी भी हूँ. मुझे कोई ऐसी दवा दीजिये कि मैं गुस्सा करना छोड़ दूं.”
महात्मा ने उसे एक शीशी दी और बोले, “पुत्री, इस शीशी में क्रोध दूर करने की दवा है. अबसे जब भी तुम्हें क्रोध आये, इस शीशी से मुँह लगाकर दवा के कुछ घूंट पी लेना.”
स्त्री दवा पाकर बहुत ख़ुश हुई और महात्मा का धन्यवाद कर अपने घर लौट गई. उसके बाद उसे जब भी गुस्सा आता, वह शीशी से मुँह लगाकर दवा पी लेती. धीरे-धीरे उसका गुस्सा कम होने लगा.
सात दिन बाद जब शीशी की दवा ख़त्म हो गई, तो वह फिर से महात्मा के पास पहुँची और बोली, “गुरूवर, आपने मुझे गजब की दवा दी है. पीते साथ ही गुस्सा छूमंतर हो जाता है. अब वह दवा ख़त्म हो गई है. कृपाकर मुझे उस दवा की एक शीशी और दे दीजिये.”
महात्मा मुस्कुराते हुए बोले, “पुत्री, तुम्हें जानकार आश्चर्य होगा कि उस शीशी में कोई दवा नहीं थी. उसमें सादा पानी भरा हुआ था. क्रोध आने पर जब भी तुम उस शीशी से पानी पीती थी, तो शीशी मुँह में होने के कारण तुम कुछ बोल नहीं पाती थी. क्रोध दूर करने का उपाय बस अपना मुँह बंद कर लेना है. अबसे यही किया करो.”
सीख
क्रोध दूर करने का उपाय बस अपना मुँह बंद कर लेना है.
मिट्टी का दिल : Controlling Anger Story In Hindi
Story About Anger Management In Hindi : एक गाँव में एक व्यक्ति अपनी पत्नि और पुत्र के साथ रहता था. जहाँ वह और उसकी पत्नि नम्र स्वभाव के थे, वहीं उनका पुत्र बहुत गुस्सैल था. वह हर समय चिढ़ा हुआ रहता था और बात-बात पर गुस्सा हो जाया करता था.
गुस्सैल स्वभाव के कारण उसकी किसी से नहीं बनती थी. आये दिन उसका आस-पड़ोस के लोगों से झगडा होता रहता था. उसे कोई पसंद नहीं करता था. उसके कोई दोस्त नहीं थे.
माता-पिता अपने पुत्र को लेकर चिंतित थे. वे चाहते थे कि उसके स्वभाव में परिवर्तन आ जाये. लेकिन लाख समझाने पर भी उसका गुस्सा जस-का-तस रहा.
एक दिन गाँव में एक सन्यासी का आगमन हुआ. वह विचित्र तरीकों से लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए लोकप्रिय थे. जब माता-पिता ने उनके बारे में सुना, तो अपने पुत्र को लेकर उनके पास पहुँचे और बोले, “बाबा! ये हमारा पुत्र है. समस्या ये है कि इसे गुस्सा बहुत आता है. गुस्से पर इसका कोई नियंत्रण नहीं है. ये हर किसी से लड़ पड़ता है. हमारे समझाने का भी इस पर कोई असर नहीं होता. आप कुछ ऐसा करें कि ये गुस्सा करना छोड़ दे.”
सन्यासी ने कहा, “ऐसा करो. आप अपने पुत्र को आज दिन भर के लिए मेरे पास छोड़ जाओ.”
माता-पिता ने वैसा ही किया. वे अपने पुत्र को सन्यासी के पास छोड़कर घर चले गए. सन्यासी ने लड़के से कहा, “पुत्र! मैं तुम्हें एक काम देता हूँ. क्या तुम वह करोगे?”
लड़का भी अपने गुस्से से परेशान था और चाहता था कि उसकी यह आदत छूट जाए. वह बोला, “यदि आपके दिए काम से मेरे गुस्सा करने की आदत छूट जाएगी, तो ज़रूर करूंगा.”
सन्यासी उसकी बात उन मुस्कुराए और बोले, “मैं प्रयास कर रहा हूँ पुत्र. तुम भी मेरा साथ दो. जाओ चिकनी मिट्टी के दो ढेर तैयार करो.”
लड़के ने वैसा ही किया. तब सन्यासी ने कहा, “अब इस मिट्टी से दो दिल तैयार करो.”
लड़के को यह काम कुछ अजीब लगा. लेकिन वह सन्यासी की बात मानकर मिट्टी से दो दिल तैयार करने लगा. दिल बनाते समय कई बार उसके मन में कई बार झुंझलाहट आई. वह सोचने लगा कि मैं यहाँ अपनी गुस्सा करने की आदत छोड़ने आया हों और इस सन्यासी ने मुझे किस काम में लगा दिया है. इस तरह तो मेरा गुस्सा ख़त्म होने की जगह बढ़ जाएगा. लेकिन उसने किसी तरह काम करना जारी रखा और मिटटी के दो दिल तैयार कर लिए.
वह उन दो दिलों को लेकर सन्यासी के पास गया और बोला, “बाबा, ये रहे मिट्टी के दो दिल. मैंने आपका काम कर दिया है. अब मैं जिस उद्देश्य के लिए मेरे माता-पिता ने मुझे आपके पास भेजा है, उस पर आइये. उसके लिए कुछ कीजिये.”
सन्यासी बोला, “मैं अच्छी तरह जानता हूँ पुत्र कि तुम यहाँ क्यों आये हो? पहले मेरा यह काम कर दो, फिर मैं तुम्हारे गुस्से के लिए कुछ करता हूँ.”
“बताइए अब क्या करना है?” लड़का मन मारकर बोला.
“इस एक मिट्टी के दिल को लेकर कुम्हार के पास जाओ और उससे कहकर इसे भट्टी में अच्छी तरह तपा कर वापस ले आओ.”
लड़का कुम्हार से उस मिट्टी के दिल को तपाकर वापस सन्यासी के पास ले आया. तब सन्यासी ने उसके कहा, “अब इस दिल में जो चाहे रंग भर दो.”
लड़के ने उस दिल को लाल रंग से रंग दिया. रंग चढाने के बाद वह दिल बहुत सुंदर नज़र आने लगा. लड़के ने जब अपने दिन भर की मेहनत से तैयार उस दिल को देखा, तो बहुत ख़ुश हुआ और सोचने लगा कि सन्यासी बाबा से कहकर मैं इसे अपने घर ले जाऊंगा और अपने कमरे में सजाऊँगा.
वह ख़ुशी-ख़ुशी सन्यासी के पास गया और वह दिल दिखाते हुए बोला, “बाबा, देखिये रंग भरने के बाद ये दिल कितना सुंदर दिखने लगा है.”
“हाँ, ये बहुत सुंदर दिख रहा है. आखिर तुमने इतनी मेहनत से इसे तैयार किया है. लेकिन अब तुम्हें इस दिल पर हथौड़े से चोट करनी होगी.” कहते हुए सन्यासी ने एक हथौड़ा लड़के के हाथ में पकड़ा दिया.
अपनी दिन भर की मेहनत पर हथौड़ा चलाते हुए लड़के को बहुत गुस्सा आया. लेकिन किसी तरह अपने गुस्से को पीकर उसने उस दिल पर वार कर ही दिया. हथौड़े की चोट से वह दिल टूटकर बिखर गया. लड़के को बहुत दुःख हुआ.
वह बोला, “बाबा, मेरे दिन भर की मेहनत बर्बाद हो गई.”
लेकिन सन्यासी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और मिट्टी का बना दूसरा दिल उसे देते हुए कहा, “अब इस दिल पर भी हथौड़े से वार करो.”
लड़के ने वैसा ही किया. लेकिन हथौड़े के वार से उस दिल पर हथौड़े का निशान उभर आया. लेकिन वह टूटा नहीं.
लड़का आश्चर्यचकित होकर कभी उस दिल को तो कभी सन्यासी को देखने लगा. वह सोचने लगा कि मेरे माता-पिता मुझे किसके पास लेकर आ गए. ये सन्यासी बाबा तो मुझे पागल लगते हैं.
वह बोला, “मेरा पूरा दिन यहाँ बेकार के काम में चला गया. अब मैं यहाँ एक क्षण भी नहीं रुकने वाला. मैं जा रहा हूँ.”
“ठहरो..” सन्यासी ने उसे रोका, “…आज दिन भर तुमें जो काम किया, उसका वास्तविक अर्थ तो समझते जाओ.”
लड़का ठिठक गया.
सन्यासी उसे समझाते हुए कहने लगे, “पुत्र! जिस मिट्टी के दिल पर तुम काम कर रहे थे. वह वास्तविक दिल का एक क्षद्म रूप था. जैसे तुम मिट्टी के दिल को आग की गर्मी में तपाया, वैसे ही अपने दिल को भी क्रोध की भट्ठी में तपाते हो. तुम्हें ऐसा लगता है कि इस तरह तुम इस दुनिया के समाने मजबूती से खड़े हो, लेकिन ऐसा नहीं है. जीवन रुपी हथौड़े का एक वार भी तुम्हारा कठोर हो चुका दिल झेल नहीं पायेगा और चकनाचूर हो जायेगा. ऐसे में तुम संभल नहीं पाओगे. जीवन के दुःख-दर्द को सहन करने के लिए तुम्हें अपना दिल नरम बनाना होगा. तब जब भी उस पर कोई दुःख आएगा, उस पर कुछ समय के लिए असर ज़रूर होगा. लेकिन वह टूटेगा नहीं. बल्कि कुछ ही दिनों में संभल जाएगा. क्रोध जितना नुकसान दूसरों का करता है, उससे कहीं अधिक तुम्हारा स्वयं का करता है. इसलिये क्रोध करना छोड़ दो. अपने दिल में प्रेम और क्षमा को स्थान दो, उसे विनम्र बनाओ.”
लड़के की आँखें खुल चुकी थी. उसे सन्यासी को वचन दिया कि वह अब से अपने क्रोध पर काबू रखेगा और अपना व्यवहार सुधारेगा.
सीख
क्रोध जितना नुकसान दूसरों का करता है, उससे कहीं अधिक तुम्हारा स्वयं का करता है. इसलिये क्रोध करना छोड़ दो. अपने दिल में प्रेम और क्षमा को स्थान दो, उसे विन्रम बनाओ.
सांप और आरी : Krodh Par Kahani
Story About Anger In Hindi : एक दिन कहीं से एक सांप आया और एक गोदाम में घुस गया. गोदाम में अंधेरा था. अंधेरे में सांप किसी चीज़ से टकरा गया और थोड़ा ज़ख़्मी हो गया. फिर क्या सांप पर गुस्सा चढ़ गया और उसने अपना फन उठा लिया.
उसने उस चीज़ को डसने का प्रयास किया, जिससे वह टकराया था. इस प्रयास में वह अपना मुख भी ज़ख्मी कर बैठा क्योंकि वह चीज़ कुछ और नहीं बल्कि धारदार आरी थी – एक ऐसी चीज़ जिस पर सांप का बस नहीं चलना था.
लेकिन गुस्से ने उसे जकड़ रखा था और उसका ख़ुद पर कोई काबू नहीं रह गया था. फिर उसने वैसा ही किया, जैसा सांप अक्सर किया करते हैं. वह आरी से कसकर लिपट गया और दबाव बनाकर उसका दम घोंटने के प्रयास में लग गया. फिर वही हुआ, जो होना था. आरी की तेज धार के उसका पूरा शरीर लहुलुहान हो गया.
अगले दिन गोदाम के मालिक ने जब गोदाम खोला, तो वहाँ आरी से लिपटे एक सांप को मरा हुआ पाया. क्रोध पर कोई नियंत्रण न होने के कारण सांप ने अपने प्राण गंवा दिये थे.
सीख
क्रोध से सबसे अधिक हानि खुद की होती है.
क्रोधी बालक : Anger Control Story In Hindi
एक गाँव में एक लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था. एकलौती संतान होने के कारण वह माता-पिता का बहुत लाड़ला था.
उसके माता-पिता उसे चाहते तो बहुत थे, लेकिन उसकी एक आदत के कारण हमेशा परेशान रहते थे. वह लड़का बहुत क्रोधी स्वभाव का था. उसे छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आ जाता था और वह तैश में आकर लोगों को भला-बुरा कह देता था. इसलिए पड़ोसी से लेकर स्कूल के दोस्तों तक ने उससे किनारा कर लिया था.
माता-पिता ने उसे कई बार समझाया. लेकिन उसके स्वभाव में बदलाव लाने में असमर्थ रहे.
एक दिन पिता को एक युक्ति सूझी और उसने लड़के को अपने पास बुलाया. एक हथौड़ा और कीलों से भरी हुई थैली देते हुए पिता ने लड़के से कहा, “बेटा, अब से जब भी तुम्हें क्रोध आये. तुम इस थैले में से एक कील निकालना और हथौड़े की मदद से घर के सामने की दीवार पर ठोंक देना. यह तुम्हारा क्रोध शांत करने में मदद करेगा.” लड़के ने पिता की बात मानकर वह थैला और हथौड़ा ले लिया.
उसके बाद से जब भी उसे क्रोध आता, वह दौड़कर घर के सामने वाली दीवार तक जाता और थैले में से एक कील निकालकर उसे दीवार पर ठोंक देता. इस तरह पहले दिन उसने ४० कीलें दीवार पर ठोंकी. उसे थोड़ी-थोड़ी देर में क्रोध आ जाता था. इसलिए उसे बार-बार दीवार तक जाना पड़ता था और वहाँ कील ठोकनी पड़ती थी. कुछ दिनों में वह इससे तंग आ गया और उसने तय किया कि वह अपने क्रोध पर नियंत्रण करने की कोशिश करेगा.
धीरे-धीरे उसने अपने क्रोध पर नियंत्रण करना प्रारंभ किया और दीवार पर ठुकी हुई कीलों की संख्या कम होने लगी. ऐसा भी दिन आया, जब लड़के ने दीवार पर एक भी कील नहीं ठोकी. उसने अपने क्रोध पर पूरी तरह नियंत्रण कर लिया था.
उसके बाद भी कुछ दिनों तक उसने खुद को परखा और जब उसे यकीन हो गया कि उसका क्रोध पूरी तरह से उसके नियंत्रण में है, तो वह अपने पिता के पास गया और बोला, “पिताजी! अब मुझे इस हथौड़े और कीलों की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैंने अपने क्रोध पर नियंत्रण करना सीख लिया है.”
सुनकर पिता खुश हुआ और उससे हथौड़ा और कीलें वापस ले ली. अब उसने एक नया काम लड़के को दिया और कहा, “बेटा, अब से जब भी तुम अपने क्रोध पर काबू करो, तो जाकर दीवार में से खींचकर एक कील निकाल लेना.”
लड़का ऐसा ही करने लगा. हथौड़े से कीलें दीवार में ठोकने से कहीं ज्यादा मेहनत उसे कीलें निकालने में लगने लगी. लेकिन जैसे-तैसे उसने दीवार में से अधिकांश कीलें निकाल ली. फिर भी कुछ कीलें पूरी कोशिश करने के बाद भी वह निकाल नहीं सका.
उसने पिता को जाकर सारी बात बताई. पिता ने उसकी प्रशंषा की और दीवार की ओर इशारा करते हुए उससे पूछा, “बताओ इस दीवार पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?”
“मुझे कुछ छेद दिखाई पड़ रहे है पिताजी.” लड़के ने उत्तर दिया.
पिता ने उसे समझाया, “कील तुम्हारा वह क्रोध था, जिसे तुम कड़वे शब्द रूपी हथोड़े के द्वारा लोगों के ह्रदय में ठोक दिया करते थे. जैसा तुम देख रहे हो कि कील निकाल देने के बाद भी दीवार पर हुए छेद बरक़रार है और कुछ कीलें तो ऐसी भी हैं, जिसे तुम निकाल भी नहीं पाए हो. अब तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो, ये दीवार पहले जैसी नहीं हो सकती. ठीक उसी तरह क्रोध में शब्द रूपी बाण से लोगों को पहुँचाया गया आघात टीस बनकर उनके ह्रदय में रह जाता है और तमाम प्रयासों के बाद भी पूरी तरह से समाप्त नहीं होता. इसलिये क्षणिक आवेश में आकर गलत शब्दों का उपयोग कर दूसरों को चोट मत पहुँचाओ.”
सीख
शब्द रुपी बाण लोगों के दिल पर आघात पहुँचाते हैं. इसलिए क्षणिक आवेश में आकर गलत शब्दों का उपयोग कर दूसरों को चोट मत पहुँचाओ.
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