बीरबल की चतुराई की 10 कहानियां | 10 Interesting Birbal Stories In Hindi

मित्रों, इस बीरबल की कहानियां  Interesting Birbal Stories Hindi, Birbal Ki Kahaniya, Birbal Ki Chaturai Ke Kisse मे पढ़िये अकबर के नवरत्न बीरबल की चतुराई की कहानियां :

Interesting Birbal Stories In Hindi

Interesting Birbal Stories Hindi

अकबर बीरबल की कहानी सोने का खेत 

बादशाह अकबर के शयनकक्ष में सफाई करते हुए एक सेवक के हाथ से गिरकर उनका पसंदीदा फूलदान टूट गया. फूलदान टूटने पर सेवक घबरा गया. उसने चुपचाप फूलदान के टुकड़े समेटे और उन्हें बाहर फेंक आया. 

अकबर जब शयनकक्ष में आये, तो उन्हें अपना मनपसंद फूलदान नदारत दिखा. उन्होंने सेवक को बुलाकर उसके बारे में पूछा, तो डर के मारे सेवक ने झूठ कह दिया, “जहाँपनाह मैं वह फूलदान साफ़ करने घर ले गया था. इस वक़्त वो वहीं है.”

अकबर ने सेवक को तुरंत वह फूलदान घर जाकर लाने का आदेश दे दिया. यह आदेश पाकर सेवक के पसीने छूटने लगे. बात छुपाने का कोई औचित्य ना देख उसने अकबर को सब कुछ सच-सच बता दिया और हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा.  

अकबर फूलदान टूटने की बात पर तो उतने नाराज़ नहीं हुए, लेकिन उन्हें सेवक का झूठ बोलना हज़म नहीं हुआ और उन्होंने उसे फांसी की सजा सुना दी. सेवक गिड़गिड़ाता रहा. लेकिन अकबर ने उसकी एक न सुनी.

अगले दिन अकबर ने दरबार में इस विषय को चर्चा का मुद्दा बनाया और दरबारियों से पूछा, “क्या आपमें से किसी ने कभी झूठ बोला है?”

सारे दरबारियों ने एक स्वर में इंकार कर दिया. जब अकबर ने बीरबल से पूछा, तो बीरबल बोला, “जहाँपनाह! हर इंसान कभी ना कभी झूठ बोलता है. मैंने भी बोला है. मुझे लगता है कि जिस झूठ से किसी को नुकसान न पहुँचे, उसे बोलने में कोई बुराई नहीं है.”

बीरबल की बात सुनकर अकबर गुस्सा हो गए. उन्होंने उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनाई, किंतु उसे अपने दरबार से निकाल दिया. बीरबल तुरंत दरबार छोड़कर चला गया. उसे अपनी चिंता नहीं थी, किंतु बिना बात के सेवक का फांसी पर चढ़ जाना उसे गंवारा नहीं था.

वह उसे बचाने की युक्ति सोचने लगा. कुछ सोच-विचार उपरांत उसने घर की जगह सुनार की दुकान की राह पकड़ ली. सुनार को उसने सोने से धान की बाली बनाने कहा.

अगली सुबह सुनार ने बीरबल को सोने की बनी धान की बाली बनाकर दे दी, जिसे लेकर बीरबल अकबर के दरबार पहुँचा. दरबार से निकाले जाने के बाद भी वहाँ आने की बीरबल की हिमाकत देखकर अकबर नाराज़ हुए. लेकिन बीरबल ने उन्हें अपनी बात सुनने के लिए किसी तरह राज़ी कर लिया.

पढ़ें : अहंकार का फल मूर्तिकार की कहानी

वह सोने की बनी धान की बाली अकबर को दिखाते हुए बोले, “जहाँपनाह! एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात आपको बतानी थी. इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा. कल शाम घर जाते समय रास्ते में मेरी मुलाकात एक सिद्ध महात्मा से हुई. उन्होंने मुझे ये सोने की धान की बाली देकर कहा कि किसी उपजाऊ भूमि में इसे लगा देना. इससे उस खेत में सोने की फ़सल होगी. मैंने एक उपजाऊ भूमि खोज ली है. मैं चाहता हूँ कि सभी दरबारी और आप भी इसे लगाने उस खेत में चलें. आखिर देखें तो सही कि महात्मा की कही बात सच है या नहीं.”

अकबर बीरबल की बात मान गए और दूसरे दिन एक नियत समय पर खेत में पहुँचने के लिए दरबारियों को आदेशित कर दिया.

अगले दिन सभी नियत समय पर खेत पर पहुँचे. अकबर ने बीरबल को सोने से बना धान का पौधा खेत में लगाने को कहा. लेकिन बीरबल ने इंकार करते हुए कहा, “जहाँपनाह! महात्मा ने यह पौधा देते हुए मुझे निर्देश दिया था कि जिस व्यक्ति ने कभी झूठ ना बोला हो, उसके द्वारा लगाने पर ही खेत में सोने की फ़सल होगी. इसलिए मैं तो यह पौधा लगा नहीं सकता. कृपया आप दरबारियों में से किसी को यह पौधा लगाने का आदेश दे दीजिये.”

अकबर ने जब दरबारियों से धान का वह पौधा लगाने कहा, तो कोई सामने नहीं आया. अकबर समझ गए कि सभी ने कभी ना कभी झूठ बोला है. तब बीरबल ने वह पौधा अकबर के हाथ में दे दिया और बोला, “जहाँपनाह, यहाँ तो कोई भी सच्चा नहीं है. इसलिए ये पौधा आप ही लगायें.”

लेकिन अकबर भी वह पौधा लेने में हिचकने लगे और बोले, ”बचपन में हमने भी झूठ बोला है. कब ये याद नहीं, पर बोला है. इसलिए हम भी यह पौधा नहीं लगा सकते.”

यह सुनने के बाद बीरबल मुस्कुराते हुए बोला, “जहाँपनाह, इस पौधे को मैंने सुनार से बनवाया है. मेरा उद्देश्य मात्र आपको यह समझाना था कि दुनिया में लोग कभी न कभी झूठ बोलते ही हैं. जिस झूठ से किसी का बुरा ना हो, वह झूठ झूठ नहीं है.”

अकबर बीरबल की बात समझ गए थे. उन्होंने उसे वापस दरबार में स्थान दे दिया और सेवक की फांसी की सजा माफ़ कर दी.   

बीरबल ने पलटी बाज़ी अकबर बीरबल की कहानी

एक दिन की बात है. अकबर राज-दरबार की कार्यवाही समाप्त कर दरबारियों को पिछली रात देखा अपना सपना सुना रहे थे, “अंधेरी रात थी. मैं और बीरबल एक-दूसरे की ओर चले आ रहे हैं. अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ने के कारण हम दोनों एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े. लेकिन ख़ुदा का शुक्र है कि मैं खीर के तालाब में गिरा और आप जानते हैं कि बीरबल कहाँ गिरा?”

“नाली में” बीरबल से जलने वाले दरबारियों ने एक स्वर में कहा और ठहाके लगाने लगे. अकबर भी उनके साथ हो लिए. उस दिन अकबर भी बीरबल के मज़े लेना चाहते थे और अपनी बातों से उसे निरुत्तर कर देना चाहते है.

पढ़ें : अकबर बीरबल के १० मज़ेदार चुटकुले 

अकबर और सभी दरबारियों को ख़ुद पर हँसते हुए देखकर भी बीरबल विचलित नहीं हुआ. वह शांति से ठहाकों के बंद होने का इंतज़ार करने लगा. जैसे ही ठहाके बंद हुए, वो अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और बोला, “जहाँपनाह, इत्तेफ़ाक की बात है कि कल मैंने भी यही सपना देखा. लेकिन शायद आपकी नींद हमारे गिरकर उठने के बाद टूट गई थी. पर मैंने अंत तक सपना देखा है. इसलिए आपको बताता हूँ कि आगे क्या हुआ?”

“क्या हुआ?” अकबर ने कौतुहलवश पूछा.

“आप खीर के तालाब से बाहर निकले और मैं नाली से बाहर निकला. ख़ुद को साफ़ करने के लिए हमने पानी की तलाश की. लेकिन हमें कहीं भी पानी नहीं मिला. तब जानते हैं, हमने क्या किया?”

“क्या किया?” अकबर का कौतूहल बढ़ता जा रहा था.

“एक-दूसरे को साफ़ करने के लिए हम एक-दूसरे को चाटने लगे.” बीरबल ने मुस्कुराते बोला.

यह सुनना था कि शर्म के मारे अकबर का चेहरा लाल हो गया. बीरबल ने बाज़ी पलट दी थी. उस दिन उन्होंने कसम खाई कि अब कभी भी बातों में बीरबल से नहीं उलझेंगे.    

बीरबल और पानवाला की कहानी 

एक दिन अकबर को पान खाने की तलब हुई. उन्होंने अपने ख़ास पान वाले को बुलवाया और उससे पान पेश करने को कहा. पान वाले ने बिना देर किये पान बनाया और उसे अकबर को दे दिया.

अकबर ने चुपचाप पान खाया. फिर पानवाले से बोले, “जाओ, आधा किलो चूना लेकर आओ.”

पानवाला तुरंत दुकान की ओर भागा. जिस रास्ते से वह दुकान की ओर जा रहा था, उसी रास्ते से बीरबल महल की ओर आ रहा था. उसने पानवाले को जल्दी-जल्दी कहीं जाते हुए देखा, तो पूछ लिया, “कहो भाई! इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हो?”

पानवाले ने बीरबल को पूरी बात बता दी. पूरी बात सुनने के बाद बीरबल बोला, “ठीक है भाई! तुम जाओ दुकान से चूना ख़रीद लो. लेकिन एक बात ध्यान रखना. बादशाह सलामत के पास जाने के पहले ढेर सारा घी पीकर जाना.”

पानवाले को बीरबल को ये बात समझ नहीं आई.  

उसे हैरान देखकर बीरबल बोला, “हैरान मत हो. मैंने जैसा कहा है, वैसा ही करो. मैं भी राजमहल पहुँच रहा हूँ. वहाँ तुम्हें पूरी बात बताऊंगा.”

पानवाला बीरबल के कहे अनुसार ढेर सारा घी पीकर अकबर के पास पहुँचा. वहाँ पहुँचकर उसने आधा किलो चूना उनके सामने पेश किया.

चूना देखकर अकबर ने पानवाले को आदेश दिया, “ये पूरा चूना तुम्हें अभी हमारे सामने खाना होगा.”

अकबर के आदेश का पालन करते हुए पानवाले ने पूरा चूना खा लिया.

चूना खाने के बाद भी जब वह सही-सलामत अकबर के सामने खड़ा रहा, तो अकबर को हैरानगी हुई. उन्होंने पूछा, “इतना सारा चूना खाने के बाद भी तुम सही-सलामत कैसे हो?”

तब पानवाले के बताया कि वह ढेर सारा घी पीकर आया है और ऐसा उसने बीरबल के कहने पर किया है.

अकबर ने बीरबल की ओर नज़र घुमाई, तो बीरबल बोल पड़ा, “जब मुझे पानवाले ने बताया कि पान खाने के बाद आपने बिना कुछ कहे उसे आधा किलो चूना लाने के लिए कहा है. तो मुझे शक़ हुआ कि गलती से उसने पान में ज्यादा चूना डाल दिया होगा और आपके मुँह में छाले हो गए होंगे. सबक सिखाने के लिए आपने उसे इतना चूना लाने के लिए कहा होगा. हुज़ूर! इतना चूना खाने के बाद बेचारा पानवाला जान से जाता. माना इससे गलती हुई, पर इतनी बड़ी सजा का हकदार ये नहीं था. इसलिए मैंने चूने का असर कम करने के लिए इससे घी पीकर आपके सामने हाज़िर होने को कहा था.”

अकबर बीरबल की अक्लमंदी पर खुश हुए और पानवाले को अगली बार ऐसी गलती ना करने के लिए आगाह कर जाने दिया.   

बीरबल का न्याय 

बादशाह अकबर के राज्य के एक गाँव में एक अंधा साधु रहा करता था. अपना भविष्य जानने लोगों का उसके पास तांता लगा रहता था. सबका मानना था कि वह एकदम सही भविष्यवाणी करता है.

एक दिन गाँव में रहने वाले एक आदमी का रिश्तेदार अपनी भतीजी का इलाज़ कराने उसके घर आया. उस बच्ची के माता-पिता की उसकी आँखों के सामने ही हत्या कर दी गई थी. तबसे वह बीमार रहा करती थी.

गाँव में रहते हुए एक दिन बच्ची की नज़र अंधे साधु पर पड़ी. उसे देखते ही वह चीख पड़ी, “इसने अम्मी-अब्बू को मारा है.”

बच्ची के इस इल्ज़ाम पर अंधा साधु नाराज़ हो गया. उसने उसके रिश्तेदारों को कहा, “मुझ अंधे पर ये कैसा इल्ज़ाम लगा रही है? तुम्हें इसे समझाना चाहिए.”

साधु से माफ़ी मांगकर बच्ची के रिश्तेदार घर चले आये. घर पर बच्ची पूरे दिन रोती रही और यही कहती रही कि वह साधु ही उसके माता-पिता का हत्यारा है.

आखिरकार, सबको उसकी बात पर यकीन आ गया और उन्होंने तय किया कि वे उस संबंध में बीरबल से मदद मागेंगे. वे बीरबल के पास पहुँचे और उसे पूरी बात बता दी.

पूरी बात जानकर बीरबल बोला, “आप लोग बादशाह अकबर के दरबार में जाकर इंतजार करो. मैं कुछ देर में आता हूँ.”

उन्होंने वैसा ही किया. इधर बीरबल ने अंधे साधु को भी अकबर के दरबार में आमंत्रित कर लिया.  

पढ़ें : स्वर्ग की कुंजी तेनालीराम की कहानी 

साधु के दरबार में पहुँचने पर बीरबल ने अकबर और सभी मंत्रियों के सामने अपनी तलवार निकाल की और साधु को मारने के लिए उसके करीब ले गया. यह देख साधु घबरा गया और उसने अपने कपड़ों के पीछे छुपाकर रखी तलवार निकाल ली.

बीरबल समझ गया कि साधु अंधा नहीं है, बल्कि वह अंधा होने का दिखावा कर रहा है. उसने सारा माज़रा अकबर को बताया और बच्ची को न्याय दिलाने की गुज़ारिश अकबर से की. अकबर ने सैनिकों को आदेश दिया कि वे साधु को बंदी बना लें.

साधु से बंदीगृह में कड़ाई से पूछ-ताछ की गई, तो उसने अपना अपराध कबूल कर लिया. उसे फांसी की सजा सुनाई गई. इस तरह बीरबल की सूझ-बूझ से बच्ची को न्याय मिल सका. 

बीरबल की चित्रकारी 

बादशाह अकबर अक्सर अपने दरबारियों से कुछ अजीबोगरीब काम करने कहते रहते थे और न कर पाने पर बहुत नाराज़ हुआ करते थे. एक दिन भरे दरबार में उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल! मैं चाहता हूँ कि तुम अपने कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल कर एक ऐसा चित्र बनाओ, जिसे देखकर मैं ख़ुश हो जाऊं.”

बीरबल को चित्रकारी नहीं आती थी. वह अकबर से बोला, “हुज़ूर! मैं तो आपका मंत्री हूँ. मैं कैसे चित्र बना सकता हूँ? मुझे तो चित्रकारी आती ही नहीं है.”

बीरबल के जवाब पर अकबर नाराज़ होते हुए बोले, “मैं कुछ सुनना नहीं चाहता. तुम्हे हर हाल में मेरा हुक्म मानना होगा. यदि एक सप्ताह के अंदर तुम अपनी कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल कर चित्र बनाकर नहीं लाये, तो तुम्हें फांसी पर लटका दिया जायेगा.”

मरता क्या न करता? बीरबल को अकबर का हुक्म मानना ही पड़ा. वह घर लौट आया और सोचने लगा कि कैसे अपनी जान बचाई जाए. आखिरकार उसे एक उपाय सूझ ही गया. फिर वह एक सप्ताह तक आराम से घर पर रहा.

एक सप्ताह बाद जब वह अकबर के दरबार में गया, तो साथ में एक चित्र भी लेकर गया. वह चित्र उसने एक कपड़े से ढक रखा था. अकबर बीरबल को देखकर ख़ुश हो गए कि उसने उनका हुक्म माना है. लेकिन जैसे ही उन्होंने चित्र के ऊपर से कपड़ा हटाया, उनका चेहरा उतर गया.

दरबारी भी हैरान हो गए कि एक पल में बादशाह की ख़ुशी कहाँ गायब हो गई? सबने बीरबल के द्वारा लाये चित्र को देखा. उसमें एक कोरा कागज भर था, जिसमें चित्र का कोई नामो-निशान नहीं था.

आग-बबूला होते हुए अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल ये क्या है?”

बीरबल बोला, ”हुज़ूर! आपका हुक्म बजाकर लाया हूँ. अपनी कल्पनाशक्ति का पूरा इस्तेमाल कर मैंने ये चित्र बनाया है.”

“ये कोई चित्र है? क्या बनाया है तुमने?” अकबर अब भी गुस्से में थे.

“हुज़ूर! ये घास खाती गाय का चित्र है.” बीरबल ने विनम्रता से जवाब दिया.

“लेकिन इसमें तो न गाय नज़र आ रही है, न ही घास.”

“हुज़ूर! जैसे मैंने अपनी कल्पना का इस्तेमाल किया है, वैसे आप भी कीजिये. इस चित्र में घास नहीं हैं, क्योंकि घास गाय खा चुकी है.”

“लेकिन गाय भी तो नहीं है.”

“हुज़ूर! घास खाने के बाद भला गाय यहाँ क्या करेगी? वह भी चली गई है.” बीरबल मासूमियत से बोला.

ये सुनकर अकबर जोर से हंस पड़े और उनका गुस्सा काफूर हो गया. उन्होंने बीरबल को उसकी अक्लमंदी के लिए पुरुस्कृत किया. 

बीरबल और मित्र का वचन

एक दिन बीरबल अपने मित्र के साथ भ्रमण के लिए निकला. दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे. इसलिए बातचीत करते हुए न समय का पता चला, न ही दूरी का. चलते-चलते दोनों बहुत दूर निकल आये.

उनके मार्ग में एक नदी पड़ी. उन्हें नदी पार कर दूसरे छोर पर जाना था. नदी पार करने का एक ही माध्यम था. उस पर बना हुआ एक पुराना पुल.

पुल बहुत संकरा था. एक बार में केवल एक ही व्यक्ति द्वारा उसे पार किया जा सकता था. बरसात के दिन थे, तो पुल पर काई जमी हुई थी. इसलिए उसे संभलकर पार करने की आवश्यकता थी.

पहले बीरबल पुल पार करने के लिए बढ़ा और सावधानी से धीरे-धीरे चलते हुए सही-सलामत नदी के दूसरे छोर पर पहुँच गया. अब मित्र की बारी थी. वह भी पूरी सावधानी से पुल पार करने लगा. लेकिन पूरी सावधानी बरतने के बाद भी नदी के दूसरे छोर तक पहुँचने के कुछ दूर पहले उसका संतुलन बिगड़ गया और वह नदी में जा गिरा.

मित्र को नदी में गिरते देख बीरबल फुर्ती से अपना हाथ बढ़ाया और बोला, “मित्र, जल्दी से मेरा हाथ पकड़ लो. मैं तुम्हें बाहर खींच लूंगा.”

मित्र ने वैसा ही किया. उसने बीरबल का हाथ पकड़ लिया और बीरबल उसे किनारे की ओर खींचने लगा.

बीरबल पूरा ज़ोर लगाकर उसे बाहर खींच रहा था कि वह बोल पड़ा, “मेरे प्राण बचाने के लिए धन्यवाद बीरबल. मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि इसके लिए मैं तुम्हें एक बड़ी धन राशि पुरुस्कार स्वरुप दूंगा.”

यह सुनना था कि बीरबल बे कहा, “धन्यवाद.” और मित्र का हाथ छोड़ दिया. मित्र फिर से पानी में गिर गया. लेकिन वह तब तक लगभग किनारे पहुँच चुका था. थोड़ी मशक्कत कर वह नदी के बाहर आ गया.

बाहर निकलते ही उसने बीरबल से पूछा, “क्यों? तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मेरा हाथ अचानक छोड़ क्यों दिया?”

“अपना पुरुस्कार लेने के लिए” बीरबल तपाक से बोला.

“पुरुस्कार!!! लेकिन वह तो मैं तुम्हें नदी से बाहर निकलने के बाद देता. तुम मेरे सुरक्षित बाहर निकलने की प्रतीक्षा तो करते.” मित्र बोला.

“तुम भी मुझे पुरुस्कार देने की बात कहने के पहले पानी से बाहर आ जाने की प्रतीक्षा कर लेते मित्र.” बीरबल ने शांत भाव से उत्तर दिया.

बीरबल उसे समझाना चाहता है कि मित्र कभी भी एक-दूसरे की सहायता पुरुस्कार प्राप्त करने के लिए नहीं करते. बीरबल की बात समझकर उसके मित्र ने उससे क्षमा मांगी और उसका धन्यवाद भी किया.

मित्रता धन से बढ़कर है. उसे धन के तराजू में नहीं तौलना चाहिए.

बीरबल और तानसेन का विवाद

बादशाह अकबर के नवरत्नों में से दो रत्न तानसेन और बीरबल में एक दिन विवाद छिड़ गया. विवाद का विषय दोनों द्वारा स्वयं को एक-दूसरे से गुणी बताना था.

विवाद की ख़बर जब बादशाह अकबर तक पहुँची, तो उन्होंने दोनों को अपने पास बुलाया और कहा, “तुम दोनों का विवाद यदि आपस में नहीं सुलझ रहा, तो तुम्हें किसी को मध्यस्थ बनाकर उनसे अपने विवाद का निपटारा करवाना चाहिए.”

अकबर की बात सुनकर बीरबल बोले, “जहाँपनाह! आपकी बात से हम दोनों इस बात पर सहमत है. किंतु, दुविधा ये है कि हम मध्यस्थ बनाये किसे? कृपया, आप ही कोई मध्यस्थ सुझा दें.”

अकबर ने सुझाव दिया, ”तुम दोनों महाराणा प्रताप को अपना मध्यस्थ बनाएं.”

बीरबल और तानसेन दोनों महाराणा प्रताप को अपना मध्यस्थ बनाने तैयार हो गए. अगले दिन दोनों उनके पास पहुँचे. वहाँ पहुँचकर गायनाचार्य तानसेन ने तुरंत अपनी रागनी छेड़ दी.

बीरबल ख़ामोशी से अपने अवसर की प्रतीक्षा करने लगा. किंतु, तानसेन के अनवरत गायन से उसे अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहा था. जब उसने देखा कि तानसेन अपनी गायन विद्या से महाराणा प्रताप को मोहित कर बाज़ी मार लेना चाहता है, तो उसने तानसेन को बीच में टोकते हुए राणा से कहा, “राणा जी, हम दोनों एक साथ शाही दरबार से चलकर आपको मध्यस्थ बनाने यहाँ आये हैं. हमें आपके निर्णय पर पूर्ण विश्वास है और जो भी आपका निर्णय होगा, हमें शिरोधार्य होगा.”

बीरबल आगे बोला, “मार्ग में मैंने पुष्कर में और मियां तानसेन ने ख्वाज़ा की दरगाह में मन्नत मांगी है. मैंने मन्नत मांगी है कि यदि मैं आपके दरबार से मानपत्र प्राप्त कर लौटूंगा, तो सौ गायें ब्राह्मणों को दान करूंगा. मियां तानसेन ने मन्नत मांगी है कि यदि वे आपसे मानपत्र प्राप्त कर लौटेंगे, तो सौ गायों की कुर्बानी देंगे. अब सौ गायों का जीवन और मरण आपके हाथ है. यदि उन्हें जीवन दान देने का विचार है, तब मुझे मानपत्र दे दीजिये.”

महाराणा प्रताप गायों का वध कैसे होने देते? गायें उन्हें मातातुल्य और पूज्यनीय थी. इसलिए उन्होंने बीरबल को मानपत्र देते हुए अकबर को संदेश भिजवाया – “बीरबल बड़ा नीतिज्ञ है. उसकी जितनी बड़ाई की जाए, कम है.”

इस प्रकार तानसेन और बीरबल के विवाद में बीरबल ने अपनी अक्लमंदी से विजय प्राप्त कर ली.

 बीरबल की खिचड़ी 

वह रात भर अकबर के सैनिकों की निगरानी में यमुना में कमर तक पानी में डूबकर खड़ा रहा. भोर होते ही सैनिक उसे लेकर अकबर के सामने हाज़िर हुए.

अकबर के लिए यह यकीन कर पाना मुश्किल था. उन्होंने धोबी से पूछा, “तुम सारी रात यमुना के पानी में कैसे खड़े रह पाए?”

“जहाँपनाह! मैं रात भर आपके महल में जल रहे दीपक को देखता रहा और इस तरह पूरी रात गुजर गई.” धोबी बोला.  

पढ़ें : जो चाहोगे सो पाओगे प्रेरणादायक कहानी

ये सुनकर अकबर का पारा चढ़ गया और वे बिफ़रते हुए बोले, “ओह, तो तुम सारी रात महल के दीपक से गर्मी लेते रहे. ये तो तुमने बेईमानी की है. तुम ईनाम के नहीं बल्कि सज़ा के हक़दार दो. सैनिकों इसे बंदी बना लो.”

निर्धन धोबी को कारागार में डाल दिया गया. जब ये बात बीरबल को पता चली, तो वो बड़ा दु:खी हुआ. उस दिन वह दरबार नहीं गया.

दरबार से बीरबल को नदारत पाकर अकबर ने एक सैनिक को उसे बुलवाने उसके घर भेजा. सैनिक ने वापस आकर अकबर को बताया कि बीरबल ने भोजन नहीं किया है. वह खिचड़ी बना रहा है. खाकर वह दरबार में हाज़िर हो जायेगा.

समय गुजरता गया. सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गई, लेकिन बीरबल दरबार में हाज़िर नहीं हुआ. बीरबल कभी ऐसा नहीं करता था. बीरबल की ये हरक़त अकबर की समझ के बाहर थी.

शाम को वह स्वयं सैनिकों सहित बीरबल के घर पहुँचे. वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि बीरबल अपने घर के आँगन में चारपाई डालकर लेटा हुआ है. पास ही एक पेड़ के नीचे आग जल रही है और ऊपर घड़ा लटका हुआ है.

यह नज़ारा देख अकबर हैरत में तो पड़े ही, साथ ही क्रोधित भी हुए. क्रोध में लाल-पीले होते हुए उन्होंने बीरबल से पूछा, “ये क्या है बीरबल? तुम अब तक दरबार में हाज़िर क्यों नहीं हुए?”

“मैंने ख़बर भिजवाई थी जहाँपनाह कि मैं खिचड़ी बना रहा हूँ. खाकर दरबार में हाज़िर हो जाऊंगा. देखिये सामने पेड़ पर लटके घड़े में खिचड़ी पक रही है.” पेड़ पर लटके घड़े की ओर इशारा कर बीरबल ने उत्तर दिया.

“ऐसे कोई खिचड़ी बनाता है. पेड़ के नीचे जल रही आग से ऊपर लटके घड़े की खिचड़ी कैसे पकेगी?” अकबर चिल्लाये.

“जब यमुना में खड़े धोबी को इतने दूर स्थित महल में जल रहे दीपक से गर्मी मिल सकती है. तो इस तरह भी खिचड़ी पक सकती है हुज़ूर. यहाँ तो आग उस दीपक की तुलना में निकट ही है.” बीरबल झट से बोला.

बीरबल की बात सुनकर अकबर का गुस्सा शांत हो गया. वे समझ गए कि बीरबल ने ये स्वांग उन्हें धोबी के साथ हुए अन्याय की बात समझाने के लिए किया है. उन्हें अपने किये पर पछतावा हुआ. सैनिकों से कहकर उन्होंने धोबी को कारागार से बाहर निकलवाया और उसे ईनाम की १०० स्वर्ण मुद्रायें दी.

इस तरह बीरबल ने अपनी अक्लमंदी से एक निर्धन धोबी के साथ अन्याय नहीं होने दिया.

बीरबल की कहानी रानी की बात

एक दिन बादशाह अकबर अपनी बेगम साहिबा से गुफ़्तगू कर रहे थे.  बातों-बातों में अकबर बेगम के सामने बीरबल की बुद्धिमानी और चतुराई की प्रशंसा करने लगे.

बेगम बोली, “हुज़ूर! बीरबल कितना ही चतुर सही, मुझसे वह ज़रूर हार जाएगा.”  

“ऐसी बात है, तो आप बीरबल की परीक्षा लेकर देख लीजिये.” अकबर  बेगम को चुनौती देते हए बोले.

अगले दिन दरबार की कार्यवाही समाप्त होने के बाद अकबर ने बीरबल को अपने कक्ष में बुलवाया. जब बीरबल कक्ष में पहुँचा, तो अकबर के साथ बेगम साहिबा भी वहाँ मौज़ूद थी.

उन्होंने सेविका को बुलवाया और उसे बीरबल के लिए शर्बत लाने का आदेश दिया. सेविका के जाने के बाद वह बीरबल बोली, “दस तक गिनने तक सेविका शर्बत लेकर हाज़िर हो जायेगी.”

फिर वो एक से लेकर दस तक गिनती गिनने लगी. दस गिनते ही सेविका शर्बत का गिलास लेकर कक्ष में मौज़ूद थी.

महारानी बोली, “बीरबल देखो हमारा कितना नपा-तुला अंदाज़ है.” बीरबल मुस्कुराया.

फिर महारानी बोली, “बीरबल, कल हम तुम्हारे घर दावत पर आएंगे.”

बीरबल सोचने लगा कि महारानी स्वयं दावत पर आने को कह रही है. ज़रूर दाल में कुछ काला है.

इधर अकबर को भी अपनी बेगम साहिबा की दावत वाली समझ नहीं आई. उन्होंने पूछा, “आप तो बीरबल की परीक्षा लेने की बात कर रही थी. फिर ली क्यों नहीं?”

रानी बोली, “कल बताऊंगी.”

अगले दिन अकबर और महारानी बीरबल के घर पहुँचे. बीरबल ने उनका स्वागत किया. थोड़ी देर उसने सेवकों को खाना लगाने का आदेश दिया.

महारानी कहने लगी, “बीरबल क्या तुम हमारी तरह गिनकर बता सकते हो कि खाना कितने बजे आएगा?”

बीरबल ने जवाब दिया, “महारानी जी! आपके सामने मैं कैसे कुछ बोल सकता हूँ? बेहतर होगा कि आप गिनिये. जिस क्षण आप रुकेंगी, खाना हाज़िर हो जायेगा.”

महारानी के गिनती शुरू की. उनके गिनती खत्म करते ही खाना आ गया. अकबर बोले, “बेगम साहिबा! बीरबल आपकी बात भांप गया था. अब तो आप शर्त हार गई हैं. मान लीजिये बीरबल को चतुराई में कोई नहीं हरा सकता.”

महारानी कुछ कहती, इसके पहले ही बीरबल बोल पड़ा, “जहाँपनाह, जीत महारानी जी की ही हुई है. खाना तो इनके गिनने पर ही आया.”

यह सुन रानी बोली, “बीरबल तुम्हारी बुद्धिमानी और चतुराई का कोई सानी नहीं. तुमने हमें हराया भी तो जिताकर.”

 अधर महल बीरबल की कहानी

एक दिन दरबार के काम-काजों से निवृत्त हो बादशाह अकबर बीरबल के साथ गपशप कर रहे थे. उसी दौरान उनमें एक अधर महल निर्मित करने की इच्छा जागृत हुई.

इस अभिप्राय से प्रेरित होकर वे बोले, “बीरबल क्या तुम मेरे लिए एक अधर महल बनवा सकते हो? बनवाना तुम्हारा काम है और खर्चा करना मेरा.”

बीरबल ने सोच-विचार कर उत्तर दिया, “जहाँपनाह! थोड़ा ठहर कर महल बनवाने का कार्य आरंभ करूंगा. इस कार्य के लिए कुछ मुख्य समानों का संग्रह करना पड़ेगा.”

अकबर राज़ी हो गए,

फ़िर बीरबल ने दूसरी बात छेड़ दी और अकबर का दिमाग दूसरे विषय में उलझाकर घर लौट आया. दूसरे दिन उसने बहेलियों को धन देकर जंगल से तोतों को पकड़ लाने का आदेश दिया. आदेश का पालन करते हुए बहेलिये उसी दिन सैकड़ों तोते पकड़ लाये.

बीरबल ने चुन कर कुछ तोतों को खरीद लिया और उनके प्रशिक्षण का कार्य अपनी पुत्री को सौंपकर दरबार के नित प्रतिदिन के कार्य में संलग्न हो गया. कुछ ही दिनों में बीरबल की पुत्री ने तोतों को प्रशिक्षित कर दिया.

जब बीरबल ने उनकी परीक्षा ली, तो वे उसकी मर्जी के मुताबिक निकले. फिर क्या था? वह तोतों को लेकर दरबार चला गया. वहाँ उन्हें दीवाने ख़ास में बंद कर वह सीधा अकबर के पास गया. दीवाने ख़ास में वे पिंजड़े से बाहर निकालकर छोड़ दिए गये थे. सारे दरवाज़े बंद थे. प्रशिक्षण अनुसार सभी तोते भीतर ही भीतर राग अलाप रहे थे.

इधर बीरबल अकबर के पास पहुँचकर बोला, “जहाँपनाह! अधर महल का कार्य प्रारंभ करवा दिया गया है. इस समय उनमें बहुत से मिस्त्री वहाँ काम कर रहे हैं. आप चलकर मुआयना कर लें.”

अकबर महल का मुआयना करने बीरबल के साथ हो लिए.

बीरबल ने दीवाने-ख़ास के पास पहुँचकर उसका दरवाज़ा खुलवा दिया. दरवाज़ा खुलते ही तोते उड़ते हुए बोलने लगे – ईंट लाओ, चूना लाओ, दरवाज़ा लाओ. चौखट तैयार करो, दीवार बनाओ. तोतों ने ख़ूब शोर मचाया.

बीरबल अकबर से बोला, “जहाँपनाह! अधर महल तैयार हो रहा है. उसमें मिस्त्री और बढ़ई लोग लगे हुए हैं. समस्त सामग्री एकत्रित हो जाने पर महल का निर्माण हो जायेगा.”

बीरबल की बुद्धिमानी देख अकबर ख़ुश हो गए और उसे पुरुस्कृत किया.

दोस्तों, आशा है आपको “interesting birbal stories hindi“ की ये कहानी पसंद आई होगी. आप इसे Like कर सकते हैं और अपने Friends को Share भी कर सकते हैं. ऐसी ही मज़ेदार “Akbar Birbal Stories In Hindi” पढ़ने के लिए हमें subscribe ज़रूर कीजिये. Thanks.    

Read More Hindi Kahani

मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियां

शेखचिल्ली की कहानियां

तेनालीराम की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ

 

Leave a Comment