जादुई पुस्तक तेनालीराम की कहानी | Jadui Pustak Tenaliram Ki Kahani | Tenali Raman And Magical Book Story In Hindi
तेनालीराम, विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध विदूषक और राजा कृष्णदेवराय के प्रिय दरबारी, अपनी चतुराई और हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते हैं। उनकी कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाती हैं। आज की कहानी में, तेनालीराम ने अपनी बुद्धिमत्ता से एक जादुई पुस्तक के रहस्य को सुलझाया और साबित कर दिया कि असली जादू ज्ञान और समझदारी में होता है।
Jadui Pustak Tenaliram Ki Kahani
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एक दिन विजयनगर के दरबार में एक विद्वान आया। वह अपने साथ एक मोटी और प्राचीन दिखने वाली पुस्तक लेकर आया था। उसने राजा कृष्णदेवराय से कहा,
“जहांपनाह, यह कोई साधारण पुस्तक नहीं है। यह एक जादुई पुस्तक है, जिसमें दुनिया का हर रहस्य और हर सवाल का जवाब छिपा है। लेकिन इसे पढ़ने और समझने के लिए असाधारण बुद्धिमत्ता चाहिए।”
राजा ने उत्सुकता से पूछा, “तो क्या यह पुस्तक हमें दिखा सकते हो?”
विद्वान ने पुस्तक को बड़े नाटकीय अंदाज में खोला और कहा, “महाराज, इसे पढ़ने का एक खास तरीका है। जो इसे सही से पढ़ सकेगा, वही इसका जादू समझ पाएगा। यदि आपके दरबार में कोई इतना बुद्धिमान है, तो वह इसे पढ़कर मेरे सवालों का जवाब दे सकता है।”
विद्वान ने राजा को चुनौती दी, “अगर कोई मेरे सवालों का जवाब दे सके, तो यह पुस्तक और इसका ज्ञान मैं विजयनगर साम्राज्य को उपहार में दे दूंगा। लेकिन यदि कोई असफल हुआ, तो मुझे सोने की थैलियां देनी होंगी।”
राजा ने दरबार के विद्वानों और मंत्रियों को बुलाया। हर कोई पुस्तक को देखकर चकरा गया। कोई भी विद्वान इसे पढ़ने का तरीका नहीं समझ पाया। राजा चिंतित हो गए, लेकिन तभी उन्होंने तेनालीराम की ओर देखा और कहा, “तेनाली, क्या तुम इसे पढ़ने और इसका रहस्य सुलझाने की कोशिश करोगे?”
तेनालीराम मुस्कुराए और बोले, “जहांपनाह, मैं इस पुस्तक का रहस्य सुलझाने की कोशिश करूंगा। लेकिन मुझे इसके लिए थोड़ा समय चाहिए।”
विद्वान ने सहमति जताई और कहा, “ठीक है, लेकिन याद रखो, इसका रहस्य समझने के लिए केवल बुद्धिमत्ता नहीं, बल्कि धैर्य और समझदारी भी चाहिए।”
तेनालीराम पुस्तक को लेकर घर गए। उन्होंने देखा कि पुस्तक का हर पृष्ठ खाली था। यह देखकर वह समझ गए कि यह विद्वान दरबार को धोखा देने की कोशिश कर रहा है।
अगले दिन तेनालीराम दरबार में पुस्तक लेकर आए। उन्होंने विद्वान से कहा, “मैंने पुस्तक को पढ़ा और इसका रहस्य समझा। अब मैं आपके सवालों का जवाब देने के लिए तैयार हूं।”
विद्वान हैरान रह गया, क्योंकि उसे यकीन था कि कोई भी व्यक्ति इस पुस्तक का रहस्य नहीं सुलझा सकता। उसने पहला सवाल पूछा,
“यदि यह पुस्तक सचमुच जादुई है, तो इसका असली संदेश क्या है?”
तेनालीराम मुस्कुराए और बोले, “इस पुस्तक का असली संदेश यह है कि बाहरी दिखावे पर विश्वास नहीं करना चाहिए। असली जादू ज्ञान और समझदारी में है, न कि किसी चमक-दमक में।”
विद्वान ने दूसरा सवाल पूछा, “तो क्या तुम बता सकते हो कि यह पुस्तक किसके लिए उपयोगी है?”
तेनालीराम ने उत्तर दिया, “यह पुस्तक उन लोगों के लिए उपयोगी है, जो इसे पढ़ने से पहले सोचते हैं और हर स्थिति को समझदारी से देखते हैं। जो बिना सोचे इस पर भरोसा करेगा, वह केवल धोखा खाएगा।”
तेनालीराम के जवाब सुनकर विद्वान निरुत्तर हो गया। वह समझ गया कि उसकी चालाकी काम नहीं आएगी।
तेनालीराम ने दरबार में सभी को बताया, “जहांपनाह, इस पुस्तक का हर पृष्ठ खाली है। इस विद्वान ने हमें धोखा देने की कोशिश की। उसने हमारी बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाया, लेकिन यह भूल गया कि विजयनगर का दरबार केवल बाहरी दिखावे पर नहीं चलता।”
राजा कृष्णदेवराय ने विद्वान को डांटते हुए कहा, “तुमने हमारी ईमानदारी और समझ का अपमान किया है। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।”
विद्वान ने अपनी गलती स्वीकार की और माफी मांगी। उसने कहा,
“महाराज, मैं आपके दरबार की बुद्धिमत्ता को परखना चाहता था। तेनालीराम की चतुराई ने मुझे सिखा दिया कि असली ज्ञान दिखावे में नहीं, बल्कि विवेक में है।”
सीख
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि बाहरी आडंबर और दिखावा हमें सच्चाई से दूर कर सकते हैं। असली जादू किसी वस्तु में नहीं, बल्कि हमारी समझदारी, धैर्य और ज्ञान में छिपा होता है। हमें हर परिस्थिति में सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए।
तेनालीराम ने अपनी चतुराई से साबित किया कि दिखावे से प्रभावित हुए बिना विवेक और बुद्धिमत्ता का उपयोग करना सबसे बड़ा गुण है। उनकी यह कहानी आज भी हमें समझदारी और सच्चाई का महत्व सिखाती है।
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