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जैन मुनि और भूखा शेर की कहानी | Jain Muni Aur Bhukha Sher Ki Kahani

जैन मुनि और भूखा शेर की कहानी (Jain Muni Aur Bhukha Sher Ki Kahani) जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है, जो केवल मानवों तक सीमित नहीं है, बल्कि समस्त जीव-जंतुओं के प्रति करुणा और प्रेम का संदेश देता है। अहिंसा का पालन जैन मुनियों का मुख्य धर्म होता है, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो। जैन धर्म की ऐसी ही प्रेरणादायक कहानियों में से एक है “जैन मुनि और भूखा शेर की कहानी।” यह कहानी न केवल अहिंसा और करुणा का संदेश देती है, बल्कि यह सिखाती है कि अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना सच्ची साधना का मार्ग है।  

Jain Muni Aur Bhukha Sher Ki Kahani

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Jain Muni Aur Bhukha Sher Ki Kahani

बहुत समय पहले एक घने जंगल में एक जैन मुनि तपस्या कर रहे थे। उनका नाम मुनि अनंत था। वे कई वर्षों से वन में ध्यान और स्वाध्याय कर रहे थे। उन्होंने सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया था और अपना जीवन आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए समर्पित कर दिया था।  

वन में शांति थी, लेकिन साथ ही जंगली जानवरों का भय भी था। मुनि को इसका कोई डर नहीं था, क्योंकि उनके मन में सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव था।  

उसी जंगल में एक बूढ़ा शेर रहता था, जो अब शिकार करने में असमर्थ हो गया था। उसकी भूख कई दिनों से शांत नहीं हुई थी, और वह तड़प रहा था। उसकी हालत इतनी खराब थी कि वह चलने-फिरने में भी कठिनाई महसूस कर रहा था।  

एक दिन शेर भटकते हुए उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ मुनि अनंत तपस्या कर रहे थे। मुनि को देखकर शेर की आँखों में भूख और क्रोध साफ झलक रहा था। उसने सोचा, “यह मनुष्य मुझे भोजन के रूप में मिल सकता है। इससे मेरी भूख मिट जाएगी।”  

शेर धीरे-धीरे मुनि के पास पहुँचा और गरजते हुए कहा, “मैं भूख से मर रहा हूँ। तुम मेरे भोजन बन सकते हो। यदि मैं तुम्हें खा लूँ, तो मेरी भूख शांत हो जाएगी।”  

मुनि ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “हे वनराज, मैं तुम्हारी पीड़ा समझता हूँ। लेकिन मैं अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला साधु हूँ। मेरा धर्म किसी भी प्राणी को हानि पहुँचाना या उसकी मृत्यु का कारण बनना नहीं है। यदि तुम मुझे खाकर अपनी भूख शांत करोगे, तो यह हिंसा होगी।”  

शेर ने कहा, “मैं जीवित रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। यदि मैं भोजन नहीं करूँगा, तो मैं मर जाऊँगा।”  

मुनि ने उसे समझाते हुए कहा, “भूख को सहन करना कठिन है, लेकिन हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। मैं तुम्हें एक उपाय सुझाता हूँ। यदि तुम थोड़ी देर प्रतीक्षा कर सको, तो मैं तुम्हारे लिए ऐसी जगह खोजूँगा, जहाँ तुम फल और जड़ी-बूटियों से अपनी भूख मिटा सको।”  

शेर ने व्यंग्य करते हुए कहा, “मैं फल और जड़ी-बूटियाँ नहीं खा सकता। मैं मांसाहारी हूँ। मेरे लिए मांस ही भोजन है।”  

मुनि ने उत्तर दिया, “तुम्हारे इस स्वभाव को बदलना कठिन है, लेकिन तुम एक बार मेरी बात मानकर प्रयास करो। जीवन केवल पेट भरने के लिए नहीं है; यह अपने भीतर की हिंसा को त्यागकर शांति और संतोष पाने का मार्ग भी है।”  

मुनि ने शेर के सामने अपना तप बल दिखाया। उन्होंने बिना भोजन या जल ग्रहण किए ध्यान लगाना शुरू किया। उनकी साधना से ऐसी सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई कि शेर को लगा जैसे उसकी भूख शांत हो रही है। उसने मुनि के चारों ओर एक अद्भुत शांति का अनुभव किया।  

शेर ने मुनि से कहा, “आपका तप और करुणा देखकर मैं समझता हूँ कि हिंसा का मार्ग गलत है। मैं अपनी भूख को नियंत्रित करने का प्रयास करूंगा। क्या मैं फल और वनस्पतियाँ खाकर जीवित रह सकता हूँ?”  

मुनि ने उत्तर दिया, “हर प्राणी में आत्मा है, और आत्मा का पोषण केवल प्रेम और करुणा से होता है। यदि तुम अहिंसा का मार्ग अपनाओगे, तो तुम्हारी आत्मा शुद्ध होगी। जीवन का उद्देश्य केवल भूख मिटाना नहीं, बल्कि अपनी आत्मा को पवित्र करना है।”  

मुनि की बातों का शेर पर गहरा प्रभाव पड़ा। उसने हिंसा का त्याग करने और अहिंसा का मार्ग अपनाने का संकल्प लिया। शेर ने वन में फल और अन्य प्राकृतिक खाद्य पदार्थ खाकर जीना शुरू कर दिया। उसने अन्य प्राणियों के प्रति हिंसा करना बंद कर दिया।  

कुछ ही समय में, शेर का स्वभाव पूरी तरह बदल गया। वह अब हिंसा से दूर, शांतिपूर्ण जीवन जीने लगा। अन्य जानवर भी उसे देखकर प्रेरित हुए और जंगल में एक नया संतुलन स्थापित हो गया। 

सीख  

1. अहिंसा का महत्व: यह कहानी हमें सिखाती है कि अहिंसा केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि जीवन का मार्ग है।  

2. करुणा और धैर्य: मुनि ने करुणा और धैर्य से शेर का स्वभाव बदल दिया, जो दर्शाता है कि प्रेम और धैर्य से किसी भी कठिनाई का समाधान संभव है।  

3. स्वभाव में बदलाव: चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हों, सही मार्गदर्शन और संकल्प से किसी का भी स्वभाव बदला जा सकता है।  

4. आत्मा की शुद्धि: जीवन का उद्देश्य केवल शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करना नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करना और शांति पाना है।  

“जैन मुनि और भूखा शेर” की कहानी जैन धर्म के मूल सिद्धांतों का आदर्श उदाहरण है। यह हमें यह सिखाती है कि जीवन में हिंसा और क्रोध से ऊपर उठकर करुणा और प्रेम का मार्ग अपनाना चाहिए। मुनि का तप और शेर का परिवर्तन दर्शाता है कि सही मार्गदर्शन और अहिंसा के माध्यम से हम किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। यह कहानी आज भी जैन धर्म की शिक्षाओं और जीवन मूल्यों का प्रतीक है।  

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