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ज्यादा बोलने वाले भिक्षु की कहानी | Jyada Bolne Wale Bhikshu Ki Kahani

ज्यादा बोलने वाले भिक्षु की कहानी (Jyada Bolne Wale Bhikshu Ki Kahani Buddhist Story) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। ये कहानी मैं का वास्तविक अर्थ बतलाती है।

Jyada Bolne Wale Bhikshu Ki Kahani

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Jyada Bolne Wale Bhikshu Ki Kahani

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ था। उस मठ में कई भिक्षु रहते थे, जो शांति, ध्यान और साधना में लीन रहते थे। लेकिन इन सभी भिक्षुओं में से एक भिक्षु ऐसा था जो बहुत ज्यादा बोलता था। उसका नाम भिक्षु चंद्र था।

भिक्षु चंद्र का जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने दुनिया की माया-मोह से मुक्त होने के लिए अपना परिवार छोड़कर मठ में आने का निर्णय लिया था। चंद्र बुद्धिमान और ज्ञान पिपासु थे, लेकिन उनकी एक आदत थी – वे हमेशा बोलते रहते थे। उनकी यह आदत मठ के अन्य भिक्षुओं के ध्यान और साधना में बाधा उत्पन्न करती थी।

मठ के प्रमुख, आचार्य शांत, ने चंद्र को कई बार समझाया कि मौन ध्यान और साधना के लिए आवश्यक है। लेकिन चंद्र की आदत ऐसी थी कि वे इसे बदल नहीं पाते थे। एक दिन आचार्य शांत ने निर्णय लिया कि वे चंद्र को एक पाठ पढ़ाएंगे ताकि वे मौन का महत्व समझ सकें।

एक दिन, आचार्य शांत ने चंद्र को बुलाया और कहा, “चंद्र, आज से तुम एक विशेष साधना करोगे। तुम्हें अगले एक महीने तक मौन रहना होगा और किसी से भी बात नहीं करनी होगी। यह साधना तुम्हें आत्म-निरीक्षण करने और मौन के महत्व को समझने में मदद करेगी।”

चंद्र ने आचार्य की आज्ञा मान ली और मौन साधना शुरू कर दी। पहले कुछ दिन उनके लिए बहुत कठिन थे। हर बार जब वे कुछ कहना चाहते थे, तो उन्हें अपने शब्दों को रोकना पड़ता था। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने विचारों को नियंत्रित करना सीख लिया और आत्म-निरीक्षण में समय बिताने लगे।

एक दिन, मठ के पास के जंगल में एक घोर तूफान आया। तूफान से बचने के लिए गाँव के लोग मठ में शरण लेने आए। सभी भिक्षु और गाँव वाले मिलकर तूफान के समय की व्यवस्था करने लगे। चंद्र भी अपनी मौन साधना को तोड़कर उनकी मदद करने लगे, लेकिन बिना बोले ही। उन्होंने इशारों से लोगों की सहायता की और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया।

तूफान के बाद, गाँव वालों ने चंद्र की प्रशंसा की। उन्होंने देखा कि बिना बोले भी चंद्र ने कितनी कुशलता से सबकी मदद की। आचार्य शांत ने भी चंद्र की सराहना की और कहा, “देखो चंद्र, तुमने बिना बोले भी कितना कुछ किया है। यह है मौन का असली महत्व। शब्दों की बजाय कर्मों से अधिक प्रभाव पड़ता है।”

चंद्र ने इस अनुभव से बहुत कुछ सीखा। उन्होंने महसूस किया कि मौन में एक विशेष शक्ति होती है, जो आत्मा को शांति और स्थिरता प्रदान करती है। वे समझ गए कि जब हम मौन रहते हैं, तो हम अपने भीतर के सच्चे स्वरूप को देख पाते हैं और उसे महसूस कर पाते हैं।

इस घटना के बाद, चंद्र ने अपने जीवन में मौन को अपनाया और अपनी बोलने की आदत को बहुत हद तक नियंत्रित कर लिया। वे अब पहले की तरह हर समय बोलते नहीं थे, बल्कि अपने विचारों को पहले सोचते और फिर सोच-समझकर ही बोलते थे। उनकी साधना में भी सुधार आया और वे अपने ध्यान और साधना में अधिक गहराई तक जा पाए।

मठ में भी इस परिवर्तन का असर दिखा। अन्य भिक्षुओं ने भी चंद्र के बदलाव से प्रेरणा ली और मौन साधना का महत्व समझा। मठ में अब अधिक शांति और स्थिरता थी, और सभी भिक्षु अपने-अपने साधना में लीन रहते थे।

एक दिन, आचार्य शांत ने मठ के सभी भिक्षुओं को एकत्र किया और कहा, “हम सबने चंद्र से बहुत महत्वपूर्ण पाठ सीखा है। मौन केवल शब्दों का अभाव नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शांति और स्थिरता का मार्ग है। हमें अपने जीवन में मौन को अपनाना चाहिए और अपने भीतर के सत्य को खोजने का प्रयास करना चाहिए।”

भिक्षु चंद्र ने आचार्य शांत के शब्दों को सुना और मन ही मन मुस्कुराए। उन्होंने समझ लिया था कि मौन एक साधना है, जो हमें आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने में मदद करती है। वे अब अपने जीवन में इस साधना को अपनाकर आत्मा की शांति और स्थिरता की ओर अग्रसर थे।

सीख

शब्दों से अधिक महत्वपूर्ण हैं हमारे कर्म और हमारे भीतर की शांति। मौन में एक विशेष शक्ति होती है, जो हमें आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने और उन्हें महसूस करने में मदद करती है। जब हम मौन रहते हैं, तो हम अपने सच्चे स्वरूप को देख पाते हैं और उसे समझ पाते हैं। यही है मौन का असली महत्व।

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