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काले कौए की कहानी उत्तर प्रदेश की लोक कथा | Kaale Kaue Ki Kahani Uttar Pradesh Ki Lok Katha

काले कौए की कहानी उत्तर प्रदेश की लोक कथा (Kaale Kaue Ki Kahani Uttar Pradesh Ki Lok Katha) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

Kaale Kaue Ki Kahani Uttar Pradesh Ki Lok Katha

Kaale Kaue Ki Kahani Uttar Pradesh Ki Lok Katha

बहुत समय पहले की बात है, एक ऋषि थे जो अपने ज्ञान और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे। उनके पास बहुत से शिष्य आते थे, जो उनसे ज्ञान प्राप्त करते थे। ऋषि का एक प्रिय शिष्य था, एक सफेद कौवा, जो अपनी बुद्धिमानी और वफादारी के लिए जाना जाता था। एक दिन, ऋषि ने कौवे को बुलाया और उससे कहा, “तुम्हें अमृत की तलाश में जाना होगा। यह एक महत्वपूर्ण कार्य है, लेकिन ध्यान रखना, तुम केवल अमृत के बारे में पता करोगे, उसे छुओगे या पियोगे नहीं। अगर तुमने अमृत का पान किया, तो तुम्हें इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा।” कौवे ने ऋषि की बात सुनी और उसे वचन दिया कि वह अमृत का पान नहीं करेगा, केवल उसकी जानकारी लाएगा।

कौवा अपने पंख फैलाकर उड़ चला। वह अमृत की खोज में जगह-जगह गया। कई पर्वत, नदियाँ, और जंगल पार किए, पर उसे अमृत का कहीं पता नहीं चला। समय बीतता गया और एक साल बाद, कठिन परिश्रम के बाद, अंततः कौवे को अमृत के बारे में पता चला। अमृत का पात्र स्वर्ग में एक गुप्त स्थान पर रखा हुआ था। जब कौवे ने उसे देखा, तो उसकी आँखों में लालच आ गया। उसे ऋषि की चेतावनी याद आई, लेकिन वह अमृत की चमक से मंत्रमुग्ध हो गया। उसे लगा कि अगर वह थोड़ी मात्रा में अमृत का पान कर ले, तो शायद कोई उसे नहीं देखेगा और वह अमर हो जाएगा।

आखिरकार, कौवा अपने लोभ पर काबू नहीं रख पाया। उसने अमृत का पान कर लिया। अमृत का पान करते ही कौवे को एहसास हुआ कि उसने ऋषि का वचन तोड़ दिया है। उसे तुरंत पछतावा हुआ, लेकिन अब कुछ भी नहीं किया जा सकता था। उसने जल्दबाजी में अमृत का पात्र वहीं रखा और ऋषि के पास लौट आया।

ऋषि ने जब कौवे को देखा, तो उन्होंने तुरंत जान लिया कि कौवा अमृत का पान कर चुका है। ऋषि ने गुस्से में कौवे से पूछा, “क्या तुमने अमृत का पान किया है?” कौवे ने शर्मिंदा होते हुए सिर झुका लिया और अपनी गलती स्वीकार कर ली। उसने ऋषि को बताया कि वह अमृत की चमक से आकर्षित हो गया था और अपने वचन को भूलकर उसने अमृत का पान कर लिया।

ऋषि को बहुत क्रोध आया। उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, “तुमने मेरी चेतावनी की अवहेलना की और अमृत को छूकर उसकी पवित्रता को अपवित्र किया। यह घोर अपराध है। अब तुम्हें इसका दंड भुगतना होगा।” ऋषि ने कौवे को श्राप दिया, “आज से तुम्हारा रंग काला हो जाएगा, और तुम्हारे कारण तुम्हें पूरी मानव जाति से घृणा का सामना करना पड़ेगा। तुम्हें सबसे अशुभ और निंदनीय पक्षी माना जाएगा। लोग तुम्हें देखकर अशुभ मानेंगे, और तुमसे डरेंगे या नफरत करेंगे।”

ऋषि ने आगे कहा, “चूंकि तुमने अमृत का पान किया है, इसलिए तुम कभी स्वाभाविक रूप से मृत्यु को प्राप्त नहीं करोगे। तुम्हें न तो कोई बीमारी होगी और न ही वृद्धावस्था आएगी। परंतु तुम्हारी मृत्यु अचानक और आकस्मिक रूप से ही होगी। भले ही लोग तुम्हें नफरत की नजर से देखें, लेकिन भाद्रपद के महीने के सोलह दिनों के दौरान तुम्हें पितरों का प्रतीक मानकर आदर दिया जाएगा। लोग तुम्हारे माध्यम से अपने पितरों का तर्पण करेंगे।” 

ऋषि ने इतना कहने के बाद अपने कमंडल से काले पानी का एक घड़ा उठाया और उसे कौवे पर डाल दिया। जैसे ही पानी ने कौवे के शरीर को छुआ, उसका रंग सफेद से काला हो गया। कौवा, जो पहले सुंदर और सफेद था, अब पूरी तरह काला हो चुका था। वह दुखी मन से वहां से उड़ गया।

कौवा अब अमर हो चुका था, परंतु उसे अपने जीवन में मानव जाति की घृणा और नफरत झेलनी पड़ी। वह जहां भी जाता, लोग उसे अशुभ मानते और दूर हट जाते। उसकी सफेद छवि का स्थान अब काले रंग ने ले लिया था, और उसकी सच्चाई लोगों की नजरों में बदल गई थी।

 सीख

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि लालच और अनुशासनहीनता हमें हमेशा नुकसान पहुंचाती हैं। कौवे ने ऋषि के स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन किया और अपने लालच के कारण अमृत का पान किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि उसे जीवनभर श्राप का सामना करना पड़ा। यह कहानी हमें बताती है कि हमें अपने कर्मों में सदैव सचेत रहना चाहिए और अपने वचनों का पालन करना चाहिए। लालच या स्वार्थ के कारण किए गए गलत निर्णय का परिणाम अक्सर भयंकर होता है।

किसी के द्वारा दिए गए निर्देशों या वचनों का उल्लंघन, चाहे वह छोटी सी ही गलती क्यों न हो, उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। कौवे ने ऋषि की बात को हल्के में लिया और अपनी इच्छा पूरी करने के लिए अमृत का पान कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसे जीवनभर का श्राप मिल गया और उसका सुंदर सफेद रंग काले रंग में बदल गया। इसी प्रकार, जब हम किसी के विश्वास को तोड़ते हैं, तो हमें भी अपने कार्यों का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है।

इस कहानी का एक और महत्वपूर्ण संदेश है कि जो कर्म हम करते हैं, उसका फल हमें अवश्य भुगतना पड़ता है। अगर हम अच्छे कर्म करते हैं, तो उसका फल हमें अच्छा मिलता है, और अगर बुरे कर्म करते हैं, तो उसका परिणाम बुरा होता है। इसलिए, हमें सदैव अपने कर्मों को सोच-समझकर करना चाहिए और ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को नुकसान पहुंचे या हमें भविष्य में पछताना पड़े।

कहानी के अंत में, यह भी बताया गया है कि कौवे को पितरों का प्रतीक मानकर कुछ दिनों के लिए आदर दिया जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि हमारे जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और असफलताएँ क्यों न हों, हमारे अच्छे कर्म हमें अंततः सम्मान दिलाते हैं। इसलिए, हमें सदैव सच्चाई, ईमानदारी, और अनुशासन के साथ अपने जीवन को जीना चाहिए, ताकि हमें किसी प्रकार के कष्ट का सामना न करना पड़े।

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