Moral Story In Hindi

कहानी एक बुढ़िया की | Old Woman Story In Hindi With Moral

कहानी एक बुढ़िया की (Kahani Ek Budhiya Ki) Old Woman Story In Hindi With Moral इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

Kahani Ek Budhiya Ki

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Kahani Ek Budhiya Ki

बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में एक बूढ़ी अम्मा रहती थी। उसका नाम गीता था, लेकिन गांव के सभी लोग उसे “अम्मा” कहकर पुकारते थे। गीता अम्मा का परिवार कभी संपन्न हुआ करता था, लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल गया। उसके पति का देहांत हो गया और उनके इकलौते बेटे ने शहर की ओर रुख कर लिया, जहां उसने अपनी नई जिंदगी शुरू कर दी। धीरे-धीरे उसने गांव से नाता तोड़ लिया और अम्मा अकेली रह गई।

अम्मा के पास एक छोटी सी झोपड़ी थी, जो गांव के किनारे स्थित थी। उसी में वह अपनी बाकी की जिंदगी बिता रही थी। झोपड़ी के चारों ओर एक छोटा सा बगीचा था, जिसे अम्मा ने अपने हाथों से सजाया था। वहां रंग-बिरंगे फूल खिलते थे और कुछ फलदार पेड़ भी थे। अम्मा का दिन इन्हीं पौधों की देखभाल में बीतता था। उसके पास कुछ मुर्गियां और एक गाय थी, जिससे उसे ताजा दूध मिल जाता था। अम्मा का जीवन सादा और सरल था, लेकिन वह खुश थी।

गांव में अम्मा की इज्जत थी, क्योंकि उसने अपने जीवन में बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया था, लेकिन कभी हार नहीं मानी। लोग उसकी ओर सम्मान से देखते थे और अक्सर उसकी सलाह लेने आते थे। अम्मा बहुत ज्ञानी थी और जीवन के हर पहलू को समझने की गहरी दृष्टि रखती थी। उसने जीवन के सुख-दुख को नजदीक से देखा था, इसलिए उसकी बातों में एक गहरी सच्चाई थी।

अम्मा का दिल बहुत बड़ा था। वह गांव के बच्चों को कहानियां सुनाती और उन्हें जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाती थी। बच्चे उसकी कहानियों को बड़े ध्यान से सुनते और उसकी बताई बातें याद रखते। अम्मा की कहानियां हमेशा नैतिकता और जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों से भरी होती थीं। बच्चों के लिए वह किसी ज्ञान के खजाने से कम नहीं थी। 

गांव में हर कोई अम्मा की मदद करने को तत्पर रहता था, लेकिन अम्मा ने कभी किसी से कुछ नहीं मांगा। वह अपनी मेहनत और सादगी से जीती थी। वह कहती थी, “जिसने कड़ी मेहनत करना सीख लिया, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती।” उसकी इस बात को सुनकर गांव के लोग और बच्चे भी मेहनत करने के लिए प्रेरित होते थे।

एक बार गांव में भयंकर सूखा पड़ गया। फसलें बर्बाद हो गईं और पानी की कमी ने गांववालों की परेशानी बढ़ा दी। गांव के लोग चिंतित थे कि अब कैसे जीवनयापन होगा। कई लोग गांव छोड़कर अन्य स्थानों की ओर जाने लगे। लेकिन अम्मा ने गांव नहीं छोड़ा। वह अपने बगीचे की देखभाल करती रही और हर सुबह भगवान से गांव की भलाई के लिए प्रार्थना करती। अम्मा का विश्वास अडिग था। वह कहती थी, “हर कठिनाई के बाद सुख जरूर आता है। हमें धैर्य रखना चाहिए और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।”

अम्मा की बातों ने गांववालों को हिम्मत दी। उन्होंने गांव छोड़ने का विचार त्याग दिया और मिलजुलकर काम करने का निश्चय किया। सूखे के बावजूद, अम्मा का बगीचा हरा-भरा था। गांव के लोग आश्चर्यचकित थे कि अम्मा ने कैसे अपने बगीचे को सूखे से बचा रखा था। अम्मा ने उन्हें बताया कि उसने बारिश के दिनों में पानी को बड़े मटकों में जमा कर रखा था और उसी पानी से अपने बगीचे की सिंचाई कर रही थी। 

उसने गांववालों को सलाह दी कि वे भी पानी के संरक्षण के लिए यही तरीका अपनाएं। अम्मा की बातों को सुनकर गांववालों ने उसका अनुसरण किया। धीरे-धीरे वे अपने खेतों और बगीचों के लिए पानी की व्यवस्था करने लगे। सूखे का प्रकोप कम होने लगा और गांव के लोग अपनी मेहनत और अम्मा की सलाह से फिर से खेती करने लगे।

अम्मा का योगदान गांव के लोगों के लिए अनमोल था। उन्होंने सीखा कि कैसे मुश्किल हालातों में भी धैर्य और समझदारी से काम लिया जा सकता है। सूखे का समय बीत गया, लेकिन गांववालों के दिलों में अम्मा के प्रति सम्मान और बढ़ गया। अब वे उसे केवल एक बूढ़ी औरत नहीं, बल्कि अपने मार्गदर्शक के रूप में देखने लगे।

समय बीतता गया, और अम्मा का शरीर कमजोर होने लगा। उसकी चाल धीमी हो गई और उसे झुककर चलना पड़ता था। लेकिन उसकी आंखों में वही चमक थी, और उसका दिल उतना ही बड़ा और उदार था जितना पहले था। एक दिन, जब अम्मा अपनी झोपड़ी के सामने बैठी थी, गांव के बच्चे उसके पास आए और उससे एक कहानी सुनाने की जिद करने लगे। अम्मा ने हंसते हुए कहा, “अब मेरी कहानियां सुनने का समय नहीं रहा, बच्चों। अब तुम्हें अपनी कहानियां खुद बनानी होंगी। जीवन की कहानियों को जीना और उन्हें अपने अनुभवों से संवारना, यही असली कहानी है।”

बच्चे उसकी बातें समझ नहीं पाए, लेकिन उन्होंने उसकी ओर ध्यान से देखा। वे जानते थे कि अम्मा जो कहती है, उसमें कुछ खास जरूर होता है। उसी रात, अम्मा ने अपने बिस्तर पर लेटते हुए भगवान का ध्यान किया और धीरे-धीरे उसकी आंखें बंद हो गईं। अगले दिन गांववालों ने देखा कि अम्मा हमेशा के लिए सो गई थी। गांव में शोक की लहर दौड़ गई। हर कोई जानता था कि उन्होंने एक अमूल्य रत्न खो दिया है।

गांव के लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने निर्णय लिया कि अम्मा की झोपड़ी को एक स्मारक के रूप में बदल दिया जाए। वे चाहते थे कि आने वाली पीढ़ियां अम्मा की याद को हमेशा संजोए रखें और उसकी शिक्षा का अनुसरण करें। अम्मा की झोपड़ी के चारों ओर उन्होंने एक बगीचा तैयार किया और उसके बीच में एक छोटा सा मंदिर बनवाया। उस मंदिर में अम्मा की मूर्ति रखी गई, जहां लोग आकर उसकी शिक्षा और उसके जीवन के आदर्शों को याद करते थे।

अम्मा के जाने के बाद भी, उसकी बातें, उसकी कहानियां और उसकी दी हुई सीख गांव के लोगों के दिलों में जीवित रही। गांव के बच्चे, जो अब बड़े हो गए थे, अपने बच्चों को अम्मा की कहानियां सुनाते थे और उन्हें सिखाते थे कि जीवन में धैर्य, मेहनत और एक-दूसरे की मदद करने की कितनी अहमियत होती है।

इस तरह अम्मा का नाम और उसकी शिक्षाएं पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहीं। गांव के लोग हमेशा अम्मा के आशीर्वाद में विश्वास रखते थे और उसे अपने जीवन का मार्गदर्शक मानते थे। अम्मा की कहानी सिर्फ एक बूढ़ी औरत की कहानी नहीं थी, बल्कि यह जीवन की सच्चाई, मेहनत और धैर्य की एक अमर कथा थी।

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