कहानी पांडा की : सिक्किम की लोक कथा | Story Of Panda Sikkim Folk Tale In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम सिक्किम की लोक कथा “कहानी पांडा की” (Kahani Panda Ki Sikkim Ki Lok Katha) शेयर कर रहे है. सिक्किम की ये लोक कथा राज्य पशु चुने गए पांडा की है, जो इस दंभ में चूर हो जाता है कि वह राज्य पशु चुना गया है और अपने साथियों को नीचा समझने लगता है. क्या उसका दंभ टूटता है? जानने के लिए पढ़िये Story Of Panda Sikkim Folk Tale In Hindi

Kahani Panda Ki Sikkim Ki Lok Katha

Kahani Panda Ki Sikkim Ki Lok Katha
Kahani Panda Ki Sikkim Ki Lok Katha

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सिक्किम के राजा राज्य पशु का चुनाव करना चाहते थे. इस हेतु उन्होंने सारे पशुओं की सभा बुलाई. राज्य के सारे पशु सभा में उपस्थित हुए. मंगन के जंगल से पांडा परिवार के नेता मिस्टर पांडीज्यान को विशेष रूप से इस सभा में आमंत्रित किया गया और अंततः सिक्किम का राज्य पशु चुना गया.

राज्य पशु चुने जाने पर पांडीज्यान ख़ुशी से फूला ना समाया. वह सोचने लगा कि अब मेरा जीवन राजमहल के बगीचे में आराम से बीतेगा. खाने-पीने की कोई कमी न होगी, कई सेवक मेरी सेवा-सुश्रुषा करेंगे, ख़ूब मौज-मस्ती होगी. राजमहल जाने के पूर्व ही उसका अपने साथियों के प्रति व्यवहार बदल गया. अपने अहंकारवश वह उन्हें नीचा समझने लगा. जंगल के उसके साथी उसके इस व्यवहार पर दु:खी थे, किंतु क्या करते?

कुछ दिनों बाद राजा के सिपाही जंगल आकर पांडीज्यान को अपने साथ ले गए. पांडीज्यान ख़ुशी-ख़ुशी राजमहल आया. वहाँ उसे बगीचे के एक चिड़ियाघर में ले जाकर एक पिंजरे में कैद कर दिया गया. उस चिड़ियाघर में कई पशु-पक्षी कैद थे. कई पांडा भी वहाँ पहले से ही कैद थे.

पहले तो पांडीज्यान को कुछ समझ नहीं आया, किंतु धीरे-धीरे वहाँ की स्थिति ज्ञात होती गई. वहाँ उसे स्वतंत्रतापूर्वक घूमने की मनाही थी, न उसके देखभाल की अच्छी व्यवस्था थी, न ही खाने-पीने की. कुछ दिनों में ही उसे जंगल के मौज-मस्ती भरे जीवन और अपने साथियों की याद आने लगी. उसे अपने साथियों के प्रति किये बुरे व्यवहार पर आत्म-ग्लानि भी महसूस होने लगी.

राजमहल के चिड़ियाघर में रहते-रहते वह दु:खी हो गया. वह किसी भी तरह वहाँ से निकल भागना चाहता था. किंतु, उसे कोई रास्ता दिखाई न पड़ रहा था. अब तो वह ढंग से खाता-पीता भी ना था. धीरे-धीरे वह दुर्बल होने लगा. वह दिन भर पिंजरे के एक कोने में बैठा रहता.

वह पहले से ही दु:खी था, इस पर एक रात एक मुसीबत और उस पर टूट पड़ी. एक खूंखार चीते ने उस पर हमला कर दिया. पांडीज्यान को लगा कि उसका अंत समय निकट है, किंतु साथी पशुओं ने उसके प्राण बचा लिये और उसे वहाँ से भागने में भी सहायता की.

पांडीज्यान भागकर अपने घर मंगन के जंगल पहुँचा और अपने परिवार वालों और साथियों से मिला. उन्हें राजमहल का सारा हाल बताकर अपने किये की उनसे क्षमा मांगी. सबने उसे क्षमा कर दिया और वह उनके साथ ख़ुशी-ख़ुशी जंगल में रहने लगा. वहाँ वह स्वतंत्र था और ख़तरे से दूर था.

सीख (Moral of the story)

चाहे जीवन में कितनी ही प्रगति क्यों न कर लो, अहंकार से सदा दूर रहना चाहिए. दूसरों से सदा अच्छा व्यवहार करना चाहिए.


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