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कर्मों का फल कहानी | Karmo Ka Fal Kahani

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Karmo Ka Fal Kahani

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Karmo Ka Fal Kahani

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में शिव नाम का एक किसान रहता था। शिव गरीब था, लेकिन अपने कर्मों से वह संतुष्ट था। वह प्रतिदिन अपने खेत में मेहनत करता और जो कुछ भी उपजता, उसे लेकर बाजार में बेचने चला जाता। उसकी पत्नी गीता और एक छोटा बेटा था रामू। शिव और उसका परिवार भले ही गरीबी में जीवन बिता रहा था, लेकिन उनके जीवन में खुशियां और संतोष था।

शिव के खेत के बगल में ही एक और बड़ा खेत था, जो एक धनी ज़मींदार का था। उस ज़मींदार का नाम रघुवीर सिंह था। रघुवीर सिंह बहुत अमीर था, लेकिन उसके अंदर घमंड और क्रूरता कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह हमेशा अपने धन के बल पर दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता। गांव के लोग उससे डरते थे, क्योंकि वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर उन्हें परेशान करता रहता था।

शिव ने हमेशा अपने कर्मों को महत्व दिया और कभी किसी से कोई ईर्ष्या नहीं की। वह अपने काम में व्यस्त रहता और हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता। लेकिन रघुवीर सिंह की नजरें हमेशा शिव के खेत पर लगी रहती थीं। शिव का खेत भले ही छोटा था, लेकिन उसमें उगने वाली फसलें बहुत अच्छी होती थीं। रघुवीर सिंह को शिव की ये समृद्धि नहीं भाती थी। उसने कई बार शिव को धमकाया और उससे उसका खेत खरीदने की कोशिश की, लेकिन शिव ने साफ मना कर दिया। शिव का कहना था कि वह खेत उसके पूर्वजों की विरासत है और वह उसे किसी भी कीमत पर नहीं बेचेगा।

रघुवीर सिंह को यह बात बहुत बुरी लगी और उसने शिव को सबक सिखाने का निश्चय किया। उसने अपने आदमियों को भेजकर शिव के खेत में जानबूझकर जानवर छोड़ दिए, जिससे उसकी फसल बर्बाद हो जाए। शिव ने जब यह देखा, तो उसका दिल टूट गया। उसने साल भर की मेहनत से जो फसल उगाई थी, वह एक ही रात में बर्बाद हो गई। उसकी आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने रघुवीर सिंह का विरोध नहीं किया। वह समझ गया था कि यह रघुवीर सिंह का ही काम है।

शिव ने भगवान से प्रार्थना की और कहा, “हे भगवान, मैंने किसी का बुरा नहीं किया। मैं हमेशा ईमानदारी से अपना काम करता रहा हूं। आपसे बस यही प्रार्थना है कि मुझे इस संकट से उबारें।” शिव के धैर्य और विश्वास ने उसे हारने नहीं दिया। उसने अगले साल फिर से अपने खेत में मेहनत की, लेकिन इस बार फसल बहुत कम हुई। गांव के लोग उसकी स्थिति देखकर दुखी थे, लेकिन कोई भी रघुवीर सिंह के खिलाफ खड़ा होने की हिम्मत नहीं कर पाया।

इधर, रघुवीर सिंह को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था। उसे लगता था कि उसने शिव को सबक सिखा दिया है और अब वह उसका खेत खरीद लेगा। लेकिन शिव ने फिर भी हार नहीं मानी। उसने गांव के अन्य किसानों से मदद मांगी और धीरे-धीरे अपने खेत को फिर से उपजाऊ बनाया।

समय बीतता गया, और एक दिन ऐसा आया जब रघुवीर सिंह को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ा। उस साल गांव में भयंकर बाढ़ आई। रघुवीर सिंह के बड़े-बड़े खेत बाढ़ की चपेट में आ गए और सारी फसलें बर्बाद हो गईं। उसकी संपत्ति का बड़ा हिस्सा भी बाढ़ में बह गया। वह जिस धन और शक्ति पर घमंड करता था, वह सब पल भर में नष्ट हो गया। दूसरी ओर, शिव का छोटा सा खेत, जो गांव के ऊँचे स्थान पर था, बाढ़ से बच गया। शिव ने उस साल बहुत अच्छी फसल उगाई और उसे बेचकर वह काफी धन कमाने में सफल रहा।

रघुवीर सिंह अब निर्धन हो गया था। गांव के लोग, जो कभी उससे डरते थे, अब उसे तिरस्कार की दृष्टि से देखने लगे। लेकिन शिव ने इस कठिन समय में भी अपनी दया और सहानुभूति नहीं छोड़ी। उसने रघुवीर सिंह के पास जाकर उसकी मदद की पेशकश की। उसने कहा, “जो भी हुआ, वह भगवान की मर्जी थी। मैंने हमेशा यही सीखा है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।”

रघुवीर सिंह को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। उसने शिव से माफी मांगी और कहा, “मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया, लेकिन तुमने फिर भी मुझे माफ कर दिया और मेरी मदद करने आए। तुम वास्तव में महान हो। अब मुझे समझ में आ गया है कि कर्मों का फल आखिरकार हर किसी को भुगतना पड़ता है।”

शिव ने रघुवीर सिंह को सांत्वना दी और कहा, “हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वही हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। जो जैसा करेगा, उसे वैसा ही फल मिलेगा। अगर हम अच्छे कर्म करेंगे, तो हमें उसका अच्छा परिणाम मिलेगा, और अगर बुरे कर्म करेंगे, तो उसका परिणाम भी बुरा ही होगा।”

रघुवीर सिंह ने अपनी गलतियों से सीख ली और अपने जीवन को बदलने का निश्चय किया। उसने अपना सारा शेष धन दान कर दिया और गरीबों की मदद करने में अपना जीवन बिताने लगा। उसने शिव को अपना सच्चा मित्र माना और हमेशा उसकी सलाह मानने लगा। 

गांव के लोगों के लिए यह एक बड़ा उदाहरण था कि कैसे कर्मों का फल अवश्य मिलता है। उन्होंने शिव के धैर्य और सच्चाई को सराहा और रघुवीर सिंह के जीवन में आए बदलाव से प्रेरणा ली। धीरे-धीरे गांव में सभी लोग ईमानदारी और परोपकार के मार्ग पर चलने लगे।

शिव और उसका परिवार अब सुखी और समृद्ध जीवन जी रहा था। उसने अपने बेटे को भी अच्छे संस्कार दिए और उसे सिखाया कि जीवन में हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। 

सीख

कर्मों का फल निश्चित होता है। अच्छे कर्म हमेशा अच्छे परिणाम लाते हैं, जबकि बुरे कर्म अंततः विनाश की ओर ले जाते हैं। जीवन में सफलता और संतोष पाने के लिए हमें सच्चाई, ईमानदारी और परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए। यही वास्तविक जीवन की सीख है, जो हमें सही दिशा में मार्गदर्शन करती है।

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