Prerak Prasang

कर्तव्य पर 2 प्रेरक प्रसंग | Kartavya Par Prerak Prasang

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम कर्तव्य पर प्रेरक प्रसंग (Kartavya Par Prerak Prasang In Hindi) शेयर कर रहे हैं। ये दोनों प्रेरक प्रसंग हमें हर तरह की परिस्थितियों में कर्त्तव्य परायणता और कर्त्तव्य के प्रति ईमानदार रहने की सीख देते हैं। पढ़िए हिंदी प्रेरक प्रसंग :

Kartavya Par Prerak Prasang

Kartavya Par Prerak Prasang

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निमंत्रण पत्र : कर्त्तव्य पर गोपाल कृष्ण गोखले का प्रेरक प्रसंग

पुणे के एक अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में एक स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में आने वाले अतिथियों के निमंत्रण पत्र का परीक्षण करने और उनका अभिवादन करने का जिम्मा एक स्वयंसेवक को सौंपा गया। वह मुख्य द्वार पर खड़ा पूरी तन्मयता से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था। हर आने वाले अतिथि का वह विनम्रता पूर्वक अभिवादन करता और उनके निमंत्रण पत्र जांच करने के पश्चात ही भीतर जाने देता।

उसी समय वहाँ न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे पधारे, जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। जैसे ही वह मुख्य द्वार पर पहुँचे, द्वार पर तैनात स्वयंसेवक ने उनका अभिवादन किया और उनसे निमंत्रण पत्र की मांग की।

न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे ने कहा, “मेरे पास तो निमंत्रण पत्र नहीं है।”

“क्षमा करें! इस स्थिति में मैं आपको अंदर जाने नहीं दे सकता। अंदर जाने के लिए निमंत्रण पत्र अनिवार्य है।” स्वयंसेवक ने शालीनता से कहा।

महादेव गोविंद रानाडे वहीं रहे। उन्हें मुख्य द्वार पर खड़ा देखकर स्वागत समिति का अध्यक्ष वहाँ पहुँचा और स्थिति के बारे में जानकारी ली। स्वयंसेवक ने बताया कि इनके पास कार्यक्रम में सम्मिलित होने का निमंत्रण पत्र नहीं है। इसलिए इन्हें अंदर जाने नहीं दिया जा सकता।

स्वागत समिति के अध्यक्ष ने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि श्रीमान इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हैं। तुम्हें इन्हें यहाँ नहीं रोकना चाहिए था।”

“मैं अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था। आपने मेरे कर्तव्य निर्वहन में व्यवधान उत्पन्न किया है। मैंने यहाँ किसी के साथ भेदभाव नहीं किया, क्योंकि भेदभाव की नीति न मुझे पसंद है और न सही है।” स्वयंसेवक ने उत्तर दिया।

यह स्वयंसेवक थे गोपाल कृष्ण गोखले, जो सदा कर्त्तव्य परायण थे।

सीख

अपने कर्तव्य का निर्वहन करना कर्तव्य परायणता का आधार है। किंतु कर्तव्य पालन में व्यवधान उत्पन्न करने वाले को सचेत करना भी कर्तव्य का ही अंग है।

महात्मा और बिच्छू : कर्त्तव्य पर प्रेरक प्रसंग

एक बार एक महात्मा जी नदी में स्नान करने गये। उन्होंने देखा कि एक बिच्छू नदी के पानी में डूब रहा है। उन्होंने दयावश हाथ बढ़ाकर उसे पानी से बाहर निकालना चाहा, तो बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया। महात्मा जी ने कराहकर अपना हाथ पीछे खींच लिया।

कुछ देर बाद उन्होंने फिर से बिच्छू को निकालने के लिए हाथ बढ़ाया, बिच्छू ने फिर से उन्हें डंक मार दिया। वे बार-बार बिच्छू को बचाने के लिए हाथ बढ़ाते रहें और बिच्छू उन्हें’ डंक मारता रहा। किंतु वे रुके नहीं और उन्होंने उसे पानी से बाहर निकाल ही लिया।

यह सारा दृश्य महात्माजी के शिष्य नदी किनारे खड़े होकर देख रहे थे। जब वे बिच्छू को नदी के किनारे रखने पहुँचे, तो शिष्यों ने महात्माजी से पूछा, “महात्माजी! बिच्छू तो बार-बार आपको डंक मार रहा था, फिर भी आपने उसे क्यों बचाया।”

महात्माजी बोले, “बिच्छू का कर्म है डंक मारना। वह कर्तव्य समझकर अपना कर्म करता है। मानव होने के नाते दया करना हमारा कर्तव्य है और उस कर्तव्य की पूर्ति की दिशा में हमें कर्म करना चाहिए। जब बिच्छू होकर उसने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा, तो मैं मानव होकर अपना कर्तव्य कैसे छोड़ सकता था?

सीख

परिस्थितियाँ कैसी भी हों, कर्तव्य से अपना मुख न मोड़ें।

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