Zen Katha

काटो, मारो, कोई द्वंद्व नहीं जेन कथा | Kato Maro Koi Dvandva Nahin Zen Katha 

काटो मारो कोई द्वंद्व नहीं जेन कथा | Kato Maro Koi Dvandva Nahin Zen Katha 

जेन दर्शन का सार है — सीधा अनुभव, द्वंद्व से परे दृष्टि, और क्षण में पूर्ण जागरूकता। जेन यह नहीं सिखाता कि जीवन में हिंसा या अहिंसा को लेकर कोई एक पक्ष लो, बल्कि यह सिखाता है कि हर कार्य पूर्ण जागरूकता और करुणा से हो। जेन में कर्म केवल बाहरी रूप नहीं होता, बल्कि उसकी भीतर की चेतना ही मायने रखती है। “काटो, मारो, कोई द्वंद्व नहीं” नामक यह कथा इसी विचार को दर्शाती है — कि जीवन के निर्णय तब सही होते हैं जब मन द्वंद्व से मुक्त होता है और कार्य सहज स्वभाव से होता है, न कि भय, क्रोध या मोह से।

Kato Maro Koi Dvandva Nahin Zen Katha 

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Kato Maro Koi Dvandva Nahin Zen Katha

जापान के एक पर्वतीय क्षेत्र में एक प्रसिद्ध जेन मास्टर रहते थे — योशितो रोशि। वे न केवल ध्यान के मर्मज्ञ थे, बल्कि तलवार-कला (केनजुत्सु) में भी निष्णात थे। वे युवावस्था में एक योद्धा थे, पर बाद में सब त्यागकर जेन साधक बन गए थे। उनके पास कई शिष्य थे, जो उनसे न केवल ध्यान, बल्कि जीवन की सूक्ष्म समझ भी सीखते थे।

उनका एक शिष्य था — हिकारी, जो अत्यंत कुशाग्र और साहसी था, पर भीतर से अभी भी द्वंद्वों में उलझा था। कभी वह सोचता — क्या शांति ही जीवन का अंतिम सत्य है? क्या किसी पर प्रहार करना उचित है? क्या जेन के मार्ग में हिंसा का कोई स्थान है?

एक दिन एक दुष्ट डाकू उस मठ में घुस आया। वह तलवार लहराते हुए बोला, “मुझे इस मठ की सारी संपत्ति चाहिए! कोई भी बीच में आया, तो मार दिया जाएगा।”

शिष्य भयभीत हो गए। मठ में कोई हथियार नहीं था, और गुरु उस समय ध्यान-कक्ष में मौन साधना कर रहे थे। हिकारी डगमगाया नहीं। उसने डाकू से कहा, “रुको, मैं गुरु से मिलने जाता हूँ।”

वह भीतर गया और गुरु को प्रणाम कर बोला, “गुरुदेव, बाहर एक डाकू तलवार लेकर मठ लूटना चाहता है। मैं क्या करूँ? क्या हम उसे रोकें? क्या यह अहिंसा का मार्ग होगा?”

गुरु ने शांत स्वर में कहा,”तुम्हारा मन क्या कहता है?”

हिकारी बोला, “मेरा मन कहता है कि मुझे उसका सामना करना चाहिए, पर मैं द्वंद्व में हूँ। यदि मैं उस पर वार करता हूँ, तो क्या मैं हिंसा करूँगा? क्या यह जेन के विपरीत होगा?”

गुरु उठे, और उन्होंने दीवार से अपनी पुरानी तलवार उतारी, जिसे वर्षों से नहीं छुआ गया था। उन्होंने तलवार हिकारी को दी और बोले, “जाओ, जो करना है करो। पर याद रखो — काटो, मारो, पर कोई द्वंद्व नहीं।”

हिकारी अचंभित था। वह तलवार लेकर बाहर गया। डाकू अभी भी धन की माँग कर रहा था। हिकारी उसके सामने खड़ा हुआ और बोला, “यह मठ किसी का नहीं, न तेरा, न मेरा। यदि तुझे लूटना है, तो पहले मुझे पार करना होगा।”

डाकू हँसा, “तू क्या करेगा? तेरे हाथ में तलवार है, पर आँखों में भय है।”

हिकारी ने तलवार उठाई, पर उसे रोका नहीं, न आगे बढ़ाया। उसने डाकू की आँखों में देखा — बिना द्वेष, बिना भय। केवल साक्षी भाव से।

डाकू थोड़ा घबरा गया। वह झल्लाया, “क्या तू वार नहीं करेगा?”

हिकारी ने शांत स्वर में कहा, “मैं मार सकता हूँ, पर मेरी तलवार द्वेष से नहीं चलती। मेरी तलवार शून्यता से चलती है, जहाँ कोई द्वंद्व नहीं। यदि तू एक और जीवन बर्बाद करना चाहता है, तो आ जा।”

डाकू अचानक थम गया। पहली बार वह किसी की आँखों में ऐसा निर्भय मौन देख रहा था। उसने तलवार गिरा दी और भाग गया।

हिकारी वापस गुरु के पास आया। गुरु मुस्कराए और बोले, “तूने आज तलवार नहीं चलाई, पर द्वंद्व को काट डाला। युद्ध बाहरी नहीं, भीतर का होता है। जब भीतर द्वंद्व न रहे, तो कार्य सही होता है, चाहे तलवार चले या न चले।”

कथा से सीख:

1. सही और गलत का निर्णय द्वंद्व में नहीं होता – जब मन शांत और जागरूक हो, तब ही कार्य शुद्ध होता है।

2. अहिंसा और हिंसा के पार – जेन दृष्टि में कोई कर्म स्वयं अच्छा या बुरा नहीं, बल्कि उस कर्म की भीतर की चेतना उसे रूप देती है।

3. निर्भयता का आधार द्वंद्व-रहित मन है – जो भीतर स्पष्ट है, वही बाहर निर्भय खड़ा हो सकता है।

4. तलवार की तरह मन भी धारदार हो – विचारों की उलझन नहीं, केवल सजगता — यही जीवन का शस्त्र है।

5. सच्चा साहस मौन में जन्मता है – शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि मौन की शक्ति ही सच्चा पराक्रम है।

“काटो, मारो, कोई द्वंद्व नहीं” केवल एक युद्ध की कथा नहीं, बल्कि जीवन के हर निर्णय की शिक्षा है। जब हम द्वंद्व से मुक्त होकर, पूर्ण जागरूकता से कार्य करते हैं, तब हम जेन पथ पर होते हैं। फिर चाहे तलवार चले या न चले — भीतर शांति ही शस्त्र बनती है। जेन यही कहता है — कार्य करो, पर मन निर्विकार हो। यही कर्म, यही ध्यान, यही मुक्ति है।

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