कौन है पति : अरुणाचल प्रदेश की लोक कथा | Kaun Hai Pati Folk Take Of Arunachal Pradesh In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम अरुणाचल प्रदेश की लोक कथा “कौन है पति” (Kaun Hai Pati Arunachal Pradesh Ki Lok Katha) शेयर कर रहे है. यह लोक कथा अरुणाचल प्रदेश की जनजाति अपातानी की एक युवती तामांग है, जो एक युवक से प्रेम करती है. उसका पिता उसके विवाह के लिए चार युवकों के सामने तीन शर्तें रखता है. क्या तामांग का प्रेमी शर्त जीतकर तामांग से विवाह कर पायेगा. जानने के लिए पढ़िए : 

Kaun Hai Pati Arunachal Pradesh Ki Lok Katha

Kaun Hai Pati Arunachal Pradesh Ki Lok Katha
Kaun Hai Pati Arunachal Pradesh Ki Lok Katha

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अरुणाचल की एक जनजाति अपातानी के मुखिया डोनीगर्थ की एक पुत्री थी. उसका नाम तामांग था. वह अत्यंत रूपवती थी. उजला रंग, कजरारी आँखें, सुनहरे बाल, उसका उजला रूप देख जनजाति के लोग प्रायः कह उठते – ‘ये तो सूर्य देवता की पुत्री प्रतीत होती है.’

तामांग रूपवती होने के साथ-साथ गुणवती भी थी. नृत्य और गायन कला में बेजोड़ होने के साथ ही वह हथकरघे पर वस्त्र बुनाई में भी निपुण थी. उसके रूप, यौवन और गुण के कारण कई युवक उससे विवाह के इच्छुक थे. किंतु, तामांग का पिता उसका विवाह डिंग सिल, आचू आब्यो और ट्यूबो लिओबा नाम के तीन देवपुरुषों में से किसी एक से करना चाहता था. इसके पीछे का कारण धन का लोभ था. उनकी जनजाति की परंपरा अनुसार विवाह के समय वर-पक्ष वधु-पक्ष को मुँह-मांगा धन देते थे. देवपुरुषों से डोनीगर्थ इतना धन पाने की आशा थी कि जीवन भर उसे परिश्रम ना करना पड़े.

एक दिन उनके गाँव में एक मेला लगा, जहाँ कई प्रकार के सांस्कृतिक और खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन हुआ. महिलाओं के हथकरघा और पुरुषों के तीर-कमान प्रतियोगिता के लिए लोगों में सबसे अधिक उत्साह था. तामांग तो हथकरघा में निपुण थी. उसने नीले रंग की रेशमी शॉल पर चाँद, तारे, सूरज बनाये थे, जो देखने में वास्तविक ही जान पड़ते थे. उसने शॉल के चारों किनारे पर सुनहरी झालर लगाईं थी. शॉल देखकर ऐसा लग रहा था, मानो आसमान ही नीचे उतर आया हो. जिसने भी यह शॉल देखी, तामांग की खूब प्रशंषा की. प्रथम पुरूस्कार तामांग को ही मिला. 

फिर पुरुषों की तीर-कमान प्रतियोगिता प्रारंभ हुई, जिसमें तीर-कमान से नकली पक्षियों, मछलियों और तितलियों को निशाना साधना था. इस प्रतियोगिता का विजेता आबूतानी नामक युवक रहा. उसने अपने सटीक निशाने से सबको मंत्र-मुग्ध कर दिया था.

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प्रतियोगिताओं के उपरांत नृत्य का आयोजन हुआ. तामांग और आबूतानी ने साथ में नृत्य किया और नृत्य करते-करते एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गये. उनकी जोड़ी भी बहुत सुंदर थी. जिसने भी उन दोनों को नृत्य करते देखा, वह उनकी सुंदर जोड़ी की प्रशंषा करने से ख़ुद को रोक नहीं पाया.

आबूतानी एक गरीब युवक था. तमांग जानती थी कि धन का लोभी उसका पिता उसका विवाह आबूतानी से नहीं होने देगा. दोनों का प्रेम गहरा गया था. एक दिन दोनों ने चुपके से विवाह कर लिया. घर में तामांग ने यह बात अपने पिता को नहीं बताई, वह उचित अवसर की प्रतीक्षा में थी.

एक दिन उसके पिता ने उससे कहा कि तीन देवपुरुष उससे विवाह करने के इच्छुक हैं. तब तामांग ने अपने पिता को बताया कि उसने आबूतानी से विवाह कर लिया है.

उसके पिता ने उस विवाह को स्वीकार करने से मना कर दिया और बोला, “मैं इस विवाह को नहीं मानता, न ही वे तीन पुरुष मानेंगे.”

“तब मैं क्या करूं पिताजी?” तामांग ने पूछा.

“मैं देवपुरुषों को नाराज़ नहीं कर सकता. इसलिए अब सबको एक साथ इकठ्ठा होकर तुम्हें पाने के लिए मेरी तीन शर्तें पूरी करनी होगी. जो तीनों शर्तें पूरी कर पाया, उसे ही तुम्हें वरमाला पहनानी होगी.”

तामांग ने ये बात आबूतानी को बताई. आबूतानी तामांग के पिता की शर्त पूरी करने के लिए तैयार हो गया.

अगले दिन तीनों देवपुरुष और आबूतानी तामांग के घर के आये. तामांग के पिता ने पहली शर्त रखी –

“चारों को जमीन पर इस तरह नृत्य करना होगा कि जमीन से ध्वनि उत्पन्न हो जाए.”

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शर्त सुनकर तामांग परेशान हुई. आबूतानी को भी समझ नहीं आ रहा था कि शर्त कैसे पूरी करे. तब आबूतानी की बहन ने उन्हें एक उपाय बताया. जहाँ आबूतानी को नृत्य करना था, उस जमीन की मिट्टी के नीचे  उसने “तालो” अर्थात् पीतल की तश्तरियाँ छुपा दी.

कुछ समय बाद तीनों देवपुरुषों और आबूतानी ने अपने-अपने स्थान पर नृत्य करना प्रारंभ किया. देवपुरुष जमीन पर बहुत उछले, पर कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं हुई. मगर, जैसे ही अबूतानी ने नृत्य प्रारंभ किया, उस स्थान में मिट्टी के नीचे दबी “तालो” बज उठी और सबको लगा कि जमीन से ध्वनि उत्पन्न हो रही है. इस तरह आबूतानी ने पहली शर्त जीत ली.

अब तामांग के पिता ने दूसरी शर्त रखी. इस शर्त के अनुसार अब उन चारों को ‘टंलो’ अर्थात् धातु के गोले पर इस तरह निशाना साधना था कि तीर टंलो पर ही लगा रहे. इस बार आबूतानी के बहन ने आबूतानी के तीरों के नोकों पर मधुमक्खी के छत्ते से निकाली गई मोम लगा दी.

जब चारों के तीरंदाज़ी कौशल की परीक्षा प्रारंभ हुई, तो सबसे पहले निशाना लगाने वाले देवपुरुष का तीर टंलो तक पहुँचा ही नहीं, बहुत पहले ही गिर गया. दूसरे देवपुरुष का तीर टंलो के पास तो पहुँचा, मगर उसके बाजू से होकर निकल गया. तीसरे देवपुरुष का तीर टंलो पर लगा अवश्य, पर तुरंत गिर गया. अंत में आबूतानी ने निशाना साधा. उसका निशाना सटीक था. उसका तीर मधुमक्खी के छत्ते की मोम के कारण टंलो पर ही लगा रहा. इस प्रकार दूसरी शर्त भी आबूतानी ने जीत ली.

अब आखिरी शर्त की बारी आई. तामंगा के पिता ने शर्त बताई :

“जो कोई कोयले के टुकड़ों और मिट्टी के कुलड़े को सबसे दूर फेंकेगा, वही विजेता घोषित होगा और तामंगा का ब्याह भी उसी से होगा.”

इस बार आबूतानी की बहन ने उपाय बताया, “मिट्टी के कुलड़े पर शहद  लगा दो और मेरी पालतू मधुमक्खियों को कोयले के चूरे से लथपथ कर दो.” 

आबूतानी ने वैसा ही किया और प्रतियोगिता के लिए तैयार हो गया. तीनों देवपुरुषों ने जब अपने-अपने मिट्टी के कुलड़े और कोयले के टुकड़ों को फेंका, तो बहुत अधिक दूर नहीं जा पाये. जब आबूतानी की बारी आई, तो उसने मिट्टी के कुलड़े कोपूरी ताकत से फेंका, वो सबसे दूर जा गिरा. उसके बाद कोयले के चूरे से लथपथ मधुमक्खियाँ फेंकी, जो कोयले के टुकड़ों जैसी ही दिख रही थीं. मधुमक्खियों को मिट्टी के कुलड़े से शहद की गंध आई, तो वे उसके पास चली गई. इस प्रकार आबूतानी यह शर्त जीतकर तीनों शर्त जीत गया.

तामांग के पिता ने घोषणा की कि कल आबूतानी का विवाह तामांग से होगा. तामांग और आबूतानी बहुत ख़ुश थे. अगले दिन सारे गाँववाले तामांग के घर उपस्थित थे. जब तामांग वरमाला लेकर आई, तो उसने देखा कि वहाँ एक की जगह चार दुल्हे खड़े हैं और सभी आबूतानी के वेश में हैं. वह चकित रह गई. वह समझ गई कि यह उसके पिता की चाल है.

उसके पिता ने कहा, “पहचानो अपने पति को और उसे माला पहनाओ.”

तामांग बोली,”मैं पहले सबसे हाथ मिलऊंगी, फिर माला पहनाऊंगी.”

“बिल्कुल” तीन दुल्हे बोले, पर एक चुप रहा. तामांग ने अब पहले दूल्हे से हाथ मिलाया, तो उसने उसका हाथ ज़ोर से पकड़ लिया और उसे आँख मारी. दूसरा हाथ मिलाने की जगह दोनों बाहें फैलाये उसकी ओर बढ़ा, तीसरे ने उतावलेपन में तामांग का हाथ जोर से पकड़कर बहुत देर तक हिलाया. जब तामांग आखिरी दूल्हे के पास पहुँची, तो उसने शांति से हाथ मिलाया. उसका परिचित स्पर्श और उसकी आँखों में प्रेम देखकर तामांग समझ गई कि ये ही आबूतानी है. उसने उसके गले में वरमाला डाल दी. सभी लोगों ने पुष्पवर्षा कर उनके विवाह की रस्में पूरी की.

तामांग के पिता और देवपुरुषों की चाल असफल हुई.

सीख (Moral of the story)

बुद्धि के प्रयोग से सभी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है.

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