कौवा की 7 कहानियाँ | 7 Best Kauwa Ki Kahani

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम बच्चों के लिए कौवा की कहानी (Kauwa Ki Kahani) शेयर कर रहे हैं. सभी कहानियाँ रोचक, मनोरंजक और  शिक्षाप्रद हैं.

Kauwa Ki Kahani
Kauwa Ki Kahani

Kauwa Ki Kahani

अबाबील और कौवे की कहानी 

जंगल में एक ऊँचे पेड़ पर एक अबाबील पक्षी रहता था. उसके पंख रंग-बिरंगे और सुंदर थे, जिस पर उसे बड़ा घमंड था. वह ख़ुद को दुनिया का सबसे सुंदर पक्षी समझता था. इस कारण हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था.

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एक दिन कहीं से एक काला कौवा आकर उस पेड़ की एक डाली पर बैठ गया, जहाँ अबाबील रहता था. अबाबील ने जैसे ही कौवे को देखा, तो अपनी नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहने लगा, “सुनो! तुम कितने बदसूरत हो. पूरे के पूरे काले. तुम्हारे किसी भी पंख में कोई रंग नहीं है. मुझे देखो, मेरे रंग-बिरंगे पंखों को देखो. मैं कितना सुंदर हूँ.”

कौवे ने जब अबाबील की बात सुनी, तो बोला, “कह तो तुम ठीक रहे हो. मेरे पंख काले हैं, तुम्हारे पंखों जैसे रंग-बिरंगे नहीं. लेकिन ये मुझे उड़ने में मदद करते हैं.”

“वो तो मुझे भी करते हैं. देखो.” कहते हुए अबालील उड़कर कौवे के पास जा पहुँचा और अपने पंख पसारकर बैठ गया. उसके रंग-बिरंगे और सुंदर पंखों को देखकर कौवा मंत्र-मुग्ध हो गया.

“मान लो कि मेरे पंख तुमसे बेहतर हैं.” अबाबील बोला.

“वाकई तुम्हारे पंख दिखने में मेरे पंखों से कहीं अधिक सुंदर हैं. लेकिन मेरे पंख ज्यादा बेहतर है क्योंकि ये हर मौसम में मेरे साथ रहते हैं और इनके कारण मौसम चाहे कैसा भी हो, मैं हमेशा उड़ पाता हूँ. लेकिन तुम ठंड के मौसम में उड़ नहीं पाते, क्योंकि तुम्हारे पंख झड़ जाते हैं. मेरे पंख जैसे भी हैं, वो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ते.” कौवा बोला.

कौवे की बात सुनकर अबाबील का घमंड चूर-चूर हो गया.

सीख 

“दोस्ती करें, तो सीरत देखकर करें न कि सूरत देखकर, क्योंकि अच्छी सीरत का दोस्त अच्छे-बुरे हर वक़्त पर आपके साथ रहेगा और आपका साथ देगा. वहीं मौका-परस्त दोस्त अपना मतलब साधकर बुरे वक़्त में आपको छोड़कर चला जायेगा.”


प्यासा कौआ की कहानी 

गर्मियों के दिन थे. एक कौआ प्यास से बेहाल था और पानी की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहा था. किंतु कई जगहों पर भटकने के बाद भी उसे पानी नहीं मिला.

वह बहुत देर से उड़ रहा था. लगातार उड़ते रहने के कारण वह बहुत थक कर चूर हो चुका था. उधर तेज गर्मी में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी. धीरे-धीरे वह अपना धैर्य खोने लगा. उसे लगने लगा कि अब उसका अंत समय निकट है. आज वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा. 

थकान के कारण अब उससे उड़ा नहीं जा रहा था. कुछ देर आराम करने वह एक मकान की छत पर बैठ गया. वहाँ उसने देखा कि छत के  एक कोने में घड़ा रखा हुआ है. घड़े में पानी होने की आस में वह उड़कर घड़े के पास गया और उसके अंदर झांक कर देखा.

कौवे ने देखा कि घड़े में पानी तो है, किंतु इतना नीचे है कि उसकी चोंच वहाँ तक नहीं पहुँच सकती थी. वह उदास हो गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे घड़े में रखे पानी तक पहुँचे. लेकिन फिर उसने सोचा कि उदास होने से काम नहीं चलेगा, कोई उपाय सोचना होगा.

घड़े के ऊपर बैठे-बैठे ही वह उपाय सोचने लगा. सोचते-सोचते उसकी दृष्टि पास ही पड़े कंकड़ो के ढेर पर पड़ी. फिर क्या था? कौवे के दिमाग की घंटी बज गई. उसे एक उपाय सूझ गया.

बिना देर किये वह उड़कर कंकडों के ढेर पर पहुँचा और एक उनमें से एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े तक लाकर घड़े में डाल दिया.  वह एक-एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े में लाकर डालने लगा. कंकड़ डालने से घड़े का पानी ऊपर आने लाग. कुछ देर में ही घड़े का पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ उसमें चोंच डालकर पानी पी सकता था. कौवे की मेहनत रंग लाई थी और वह पानी पीकर तृप्त हो गया.

सीख   

“चाहे समय कितना ही कठिन क्यों न हो, धैर्य से काम लेना चाहिए और उस कठिनाई से निकलने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए. धैर्य और बुद्धि से हर समस्या का निवारण संभव है. “

पढ़ें : शेर की कहानी | Sher Ki Kahani


कौवा और सांप की कहानी

नगर के पास बरगद के पेड़ पर एक घोंसला था, जिसमें वर्षों से कौवा और कौवी का एक जोड़ा रहा करता था. दोनों वहाँ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे. दिन भर भोजन की तलाश में वे बाहर रहते और शाम ढलने पर घोंसले में लौटकर आराम करते.

एक दिन एक काला सांप भटकते हुए उस बरगद के पेड़ के पास आ गया. पेड़ के तने में एक बड़ा खोल देख वह वहीं निवास करने लगा. कौवा-कौवी इस बात से अनजान थे. उनकी दिनचर्या यूं ही चलती रही.

मौसम आने पर कौवी ने अंडे दिए. कौवा और कौवी दोनों बड़े प्रसन्न थे और अपने नन्हे बच्चों के अंडों से निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे. लेकिन एक दिन जब  वे दोनों भोजन की तलाश में निकले, तो अवसर पाकर पेड़ की खोल में रहने वाले सांप ने ऊपर जाकर उनके अंडों को खा लिया और चुपचाप अपनी खोल में आकर सो गया.

कौवा-कौवी ने लौटने पर जब अंडों को घोंसलों में नहीं पाया, तो बहुत दु:खी हुए. उसके बाद से जब भी कौवी अंडे देती, सांप उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लेता. कौवा-कौवी रोते रह जाते.

मौसम आने पर कौवी ने फिर से अंडे दिए. लेकिन इस बार वे सतर्क थे. वे जानना चाहते थे कि आखिर उनके अंडे कहाँ गायब हो जाते हैं.

योजनानुसार एक दिन वे रोज़ की तरह घोंसले से बाहर निकले और दूर जाकर पेड़ के पास छुपकर अपने घोंसले की निगरानी करने लगे. कौवा-कौवी को बाहर गया देख काला सांप पेड़ की खोल से निकला और घोंसले में जाकर अंडों को खा गया.

आँखों के सामने अपने बच्चों को मरते देख कौवा-कौवी तड़प कर रह गए. वे सांप का सामना नहीं कर सकते थे. वे उसकी तुलना में कमज़ोर थे. इसलिए उन्होंने अपने वर्षों पुराने निवास को छोड़कर अन्यत्र जाने का निर्णय किया.

जाने के पूर्व वे अपने मित्र गीदड़ से अंतिम बार भेंट करने पहुँचे. गीदड़ को पूरा वृतांत सुनाकर जब वे विदा लेने लगे, तो गीदड़ बोला, “मित्रों, इन तरह भयभीत होकर अपना वर्षों पुराना निवास छोड़ना उचित नहीं है. समस्या सामने है, तो उसका कोई न कोई हल अवश्य होगा.”

कौवा बोला, “मित्र, हम कर भी क्या सकते हैं. उस दुष्ट सांप की शक्ति के सामने हम निरीह हैं. हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते. अब कहीं और जाने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है. हम हर समय अपने बच्चों को मरते हुए नहीं देख सकते.”

गीदड़ कुछ सोचते हुए बोला, “मित्रों, जहाँ शक्ति काम न आये, वहाँ बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए.” यह कहकर उसने सांप से छुटकारा पाने की एक योजना कौवा-कौवी को बताई.

अगले दिन योजनानुसार कौवा-कौवी नगर ने सरोवर में पहुँचे, जहाँ राज्य की राजकुमारी अपने सखियों के साथ रोज़ स्नान करने आया करती थी. उन दिन भी राजकुमारी अपने वस्त्र और आभूषण किनारे रख सरोवर में स्नान कर रही थी. पास ही सैनिक निगरानी कर रहे थे.

अवसर पाकर कौवे ने राजकुमारी का हीरों का हार अपनी चोंच में दबाया और काव-काव करता हुआ राजकुमारी और सैनिकों के दिखाते हुए ले उड़ा.

कौवे को अपना हार ले जाते देख राजकुमारी चिल्लाने लगी. सैनिक कौवे के पीछे भागे. वे कौवे के पीछे-पीछे बरगद के पेड़ के पास पहुँच गए. कौवा यही तो चाहता था.

राजकुमारी का हार पेड़ के खोल में गिराकर वह उड़ गया. सैनिकों ने यह देखा, तो हार निकालने पेड़ की खोल के पास पहुँचे.

हार निकालने उन्होंने खोल में एक डंडा डाला. उस समय सांप खोल में ही आराम कर रहा था. डंडे के स्पर्श पर वह फन फैलाये बाहर निकला. सांप को देख सैनिक हरक़त में आ गए और उसे तलवार और भले से मार डाला.

सांप के मरने के बाद कौवा-कौवी ख़ुशी-ख़ुशी अपने घोंसले में रहने लगे. उस वर्ष जब कौवी ने अंडे दिए, तो वे सुरक्षित रहे.

सीख 

“जहाँ शारीरिक शक्ति काम न आये, वहाँ बुद्धि से काम लेना चाहिए. बुद्धि से बड़ा से बड़ा काम किया जा सकता है और किसी भी संकट का हल निकाला जा सकता है. “

पढ़ें : बंदर की कहानी | Bandar Ki kahani


    लोमड़ी और कौवा की कहानी 

एक लोमड़ी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी. एक पेड़ के पास से गुजरते हुए उसकी नज़र ऊँची डाल पर बैठे कौवे पर पड़ी. वह ठिठक गई. ऐसा नहीं था कि लोमड़ी ने पहले कौवा नहीं देखा था. लेकिन जिस चीज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया था, वह उस कौवे की चोंच में दबा हुआ रोटी का टुकड़ा था.

अब कहीं और जाने की ज़रुरत नहीं. ये रोटी अब मेरी है.’ – चालाक लोमड़ी ने मन ही मन सोचा और पेड़ के नीचे जाकर खड़ी हो गई. फिर ऊपर सिर उठाकर मीठी आवाज़ में कौवे से बोली, “शुभ-प्रभात मेरे सुंदर दोस्त.”

लोमड़ी की आवाज़ सुनकर कौवे ने अपना सिर नीचे झुकाया और लोमड़ी को देखा. लेकिन अपनी चोंच उसने कसकर बंद रखी और लोमड़ी के अभिवादन का कोई उत्तर नहीं दिया.

“तुम कितने सुंदर हो दोस्त…” लोमड़ी ने अपनी बोली में पूरी मिठास झोंक दी, “देखो तुम्हारे पंख कैसे चमक रहे हैं? तुम जैसा सुंदर पक्षी मैंने आज तक नहीं देखा. तुम विश्व के सबसे सुंदर पक्षी हो. मेरे ख्याल से तुम तो पक्षियों के राजा हो.”

कौवे ने अपनी इतनी प्रशंषा आज तक नहीं सुनी थी. वह बहुत खुश हुआ और गर्व से फूला नहीं समाया. लेकिन उसने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी.  

इधर लोमड़ी प्रयास करती रही, “दोस्त! मैं सोच रही हूँ कि जो पक्षी इतना सुंदर है, इसकी आवाज़ कितनी मीठी होगी? क्या तुम मेरे लिए एक गीत गुनगुना सकते हो?”

लोमड़ी के मुँह से अपनी आवाज़ की प्रशंषा सुनकर कौवे से रहा न गया. वह गाना गाने के लिए मचल उठा. लेकिन जैसे ही उसने गाना गाने के लिए अपना मुँह खोला, उसकी चोंच में दबा रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया.

नीचे मुँह खोले खड़ी लोमड़ी इसी फिराक़ में थी. उसने रोटी झपट ली और चलती बनी.

सीख 

“चापलूसों से बचकर रहो.”

पढ़ें : लोमड़ी की कहानी | Lomadi Ki Kahani


कौवा, हिरण और लोमड़ी

एक जंगल में एक कौवा और हिरण रहते थे. दोनों में गाढ़ी मित्रता थी. अक्सर दोनों साथ रहते और मुसीबत के समय एक-दूसरे का साथ देते.

हिरण हट्टा-कट्ठा और मांसल था. जंगल के कई जानवरों उसके मांस का भक्षण करने लालायित रहा करते थे. किंतु जब भी वे हिरण के निकट आने का प्रयास करते, कौवा हिरण को चौकन्ना कर देता और हिरण कुंचाले भरता हुआ भाग खड़ा होता.

जंगल में रहने वाली एक लोमड़ी भी हिरण के मांस का स्वाद लेना चाहती थी. लेकिन कौवे के रहते ये संभव न था. एक दिन उसने सोचा, “क्यों ना हिरण से मित्रता कर उसका विश्वास प्राप्त कर लूं? फिर किसी दिन अवसर पाकर उसे दूर कहीं ले जाऊंगी और उसका काम-तमाम कर दूंगी. तब जी-भरकर उसके मांस का भक्षण करूंगी.”

उस दिन के बाद से वह ऐसा अवसर तलाशने लगी, जब हिरण अकेला हो और कौवा उसके आस-पास न हो. एक दिन उस वह अवसर प्राप्त हो ही गया. जंगल में उसे हिरण अकेला घूमता हुआ दिखाई पड़ा, तो धीरे से उसके पास पहुँची और स्वर में मिठास घोलकर बोली, “मित्र! मैं दूसरे जंगल से आई हूँ. यहाँ मेरा कोई मित्र नहीं है. तुम मुझे भले लगे. क्या तुम मुझसे मित्रता करोगे? मैं तुम्हें जंगल के उस पार के हरे-भरे खेतों में ले चलूंगी. वहाँ तुम पेट भरकर हरी घास चरना.”

हिरण लोमड़ी की मीठी बातों में आ गया और उससे मित्रवत व्यवहार करने लगा. उस दिन के बाद से लोमड़ी रोज़ हिरण के पास आती और उससे ढेर सारी बातें करती.

एक दिन कौवे ने हिरण को लोमड़ी से बातें करते हुए देख लिया. उसे लोमड़ी की मंशा समझते देर न लगी. लोमड़ी के जाते ही वह हिरण के पास गया और उसे चेताते हुए बोला, “मित्र! ये लोमड़ी दुष्ट है. इसकी मंशा तुम्हें मारकर खा जाने की है. प्राण बचाने हैं, तो इससे दूरी बनाकर रखो.”

हिरण बोला, “मित्र! हर किसी को शंका की दृष्टि से देखना उचित नहीं है. लोमड़ी सदा मुझसे मित्रवत रही है. विश्वास करो वह शत्रु नहीं, मित्र है. उसके द्वारा मुझे हानि पहुँचाने का प्रश्न ही नहीं उठता. तुम निश्चिंत रहो.”

हिरण का उत्तर सुनकर कौवा चला गया. किंतु उसे लोमड़ी पर तनिक भी विश्वास नहीं था. वह दूर से हिरण पर नज़र रखने लगा.

एक दिन लोमड़ी ने देखा कि मक्के के एक खेत में उसके मालिक ने मक्का चोर को पकड़ने के लिए जाल बिछा कर रखा है. हिरण को फंसाने का यह एक सुअवसर था. लोमड़ी तुरंत हिरण के पास गई और बोली, “मित्र! आज मैं तुम्हें मक्के के खेत में ले चलता हूँ.”

हिरण सहर्ष तैयार हो गया. दोनों जंगल के पास स्थित मक्के के खेत में पहुँचे. किंतु खेत में प्रवेश करते ही हिरण खेत के मालिक द्वारा बिछाए जाल में फंस गया. उसने निकलने का बहुत प्रयास किया, किंतु सफ़ल नहीं हो सका.

उसने लोमड़ी से सहायता की गुहार लगाई. लेकिन लोमड़ी तो इस फ़िराक में थी कि कब खेत का मालिक हिरण को मारे और वह भी अवसर देखकर उसका मांस चख सके. उसने हिरण को उत्तर दिया, “इतने मजबूत जाल को काटना मेरे बस की बात कहाँ? तुम यहीं ठहरो, मैं सहायता लेकर आती हूँ.”

यह कहकर लोमड़ी खेत के पास ही झाड़ियों के पीछे छुपकर खेत के मालिक के आने की प्रतीक्षा करने लगी.

इधर जंगल में अपने मित्र हिरण को न पाकर कौवा खोज-बीन करता हुआ मक्के के खेत में आ पहुँचा. वहाँ हिरण को जाल में फंसा देख वह उसके पास गया और बोला, “मित्र! चिंता मत करो. मैं तुम्हारे साथ हूँ. मैं तुम्हारे प्राणों की रक्षा करूंगा. अब तुम ठीक वैसा करो, जैसा मैं कहता हूँ. सांस रोककर बिना हिले-डुले जमीन पर ऐसे पड़ जाओ, मानो तुममें जान ही नहीं है. खेत का मालिक तुम्हें मरा समझकर ज्यों ही जाल हटायेगा, मैं आवाज़ देकर तुम्हें इशारा करूं दूंगा. बिना एक क्षण गंवाए तुम भाग खड़े होना.”

हिरण ने वैसा ही किया. खेत के मालिक ने उसे मरा जानकार जैसे ही जाल हटाया, कौवे ने इशारा कर दिया और इशारा मिलते ही हिरण भाग खड़ा हुआ. हिरण को भागता देख खेत के मालिक ने हाथ में पकड़ी कुल्हाड़ी पूरे बल से उसकी ओर फेंकी. किंतु हिरण बहुत दूर निकल चुका था. वह कुल्हाड़ी झाड़ी के पीछे छुपी लोमड़ी के सिर पर जाकर लगी और वो वहीं ढेर हो गई. लोमड़ी को अपनी दुष्टता का फल मिल चुका था.

सीख 

मित्र का चुनाव करते समय हमेशा सावधानी रखो. कभी भी किसी अजनबी पर आँख मूंदकर विश्वास न करो.

पढ़ें : चूहा की कहानी | Chuha Ki Kahani


शेर, ऊँट, सियार और कौवा

एक वन में मदोत्कट नामक सिंह निवास करता था. उसके बाघ, गीदड़, कौवे जैसे कई अनुचर थे. ये दिन-रात सिंह की सेवा करते और सिंह के मारे शिकार के अवशेष से अपना पेट भरते थे.

एक दिन एक ऊँट कहीं से भटकता हुआ उस वन में आ गया. जब सिंह की दृष्टि ऊँट पर पड़ी, तो उसने अपने अनुचरों से पूछा, “ये कौन सा जीव है? हमने पहली बार ऐसा जीव अपने वन में देखा है. यह वन्य प्राणी है या ग्राम्य?”

कौवे ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सिंह को बताया, “वनराज! यह ऊँट है और यह ग्राम्य जीव है. भाग्य इसे आपका भोजन बनाकर ही यहाँ लाया है. आप इसे मारकर खा जाइये.”

“नहीं, मैं ऐसा नहीं करूंगा. यह तो हमारा अतिथि है. अतिथि को मैं कैसे मार सकता हूँ? यह तो पाप होगा. मैं उसे अभयदान देता हूँ. जाओ, उसे आदरपूर्वक मेरे पास लेकर आओ. मैं उससे मिलना चाहता हूँ.” सिंह ने कौवे को आदेश दिया.

कौवा कुछ अनुचरों के साथ ऊँट के पास गया और उसे सिंह का संदेश सुनाते हुए बोला, “मित्र, वनराज सिंह ने तुम्हें अभयदान प्रदान किया है. वन के राजा होने के नाते वे तुमसे मिलना चाहते हैं.” अभयदान की बात सुन ऊँट कौवे और अन्य अनुचरों के साथ सिंह के पास आ गया.

सिंह ने उससे परिचय और वन में आने का कारण पूछा, तो ऊँट दु:खी होकर बोला, “महाराज, मेरा नाम कथनक है. मैं अपने साथियों संग भ्रमण करते हुए वन में पहुँचा और उनसे बिछुड़ गया. अब मैं यहाँ अकेला रह गया हूँ.”

उसे दु;खी देख सिंह धीरज बंधाते हुए बोला, “कथनक! तुम हमारा आतिथ्य स्वीकार करो. इस वन में जहाँ चाहे विचरण करो और हरी-भरी घास का सेवन करो.”

कथनक सिंह की आज्ञा का पालन कर वहीं रहने लगा. हरी-भरी घास खाकर वह कुछ ही दिनों में हृष्ट-पुष्ट हो गया. बाघ, गीदड़, सियार आदि वन जीव जब भी उसे देखते, उनकी लार टपकने लगती. किंतु वे वन के राजा सिंह के आदेश के समक्ष विवश थे.

एक दिन कहीं से एक जंगली हाथी वन में आ गया. अपने अनुचरों की रक्षा के लिए सिंह को उससे युद्ध करना पड़ा. दोनों के मध्य घमासान युद्ध हुआ. युद्ध के दौरान हाथी ने सिंह को उठाकर जमीन पर पटक दिया और अपने नुकीले दांत उसके शरीर में गड़ा दिए. किसी तरह सिंह युद्ध में विजयी हो गया, किंतु वह बुरी तरह घायल था.

घायल अवस्था में उसके लिए शिकार पर जाना दुष्कर हो गया. जिससे वह स्वयं तो भूखा रहने लगा. साथ ही उसके अनुचर, जो उसके शिकार के अवशेष से अपना पेट भरते थे, वे भी भूखे रहने लगे. अपनी दुर्दशा देख और अपने अनुचरों की परेशानी देख सिंह दु:खी था.

एक दिन उसने अपने अनुचरों की सभा बुलाई. सभा में सबको संबोधित कर वह बोला, “अनुचरों! मेरी अवस्था से आप सभी अवगत हो. मैं चाहता हूँ कि आप कोई ऐसा जीव तलाश करो, जिसे मैं इस अवस्था में भी मार सकूं. इस तरह हम सभी की भोजन की समस्या का निराकरण हो जायेगा.”

सिंह की आज्ञा पाकर सभी अनुचर विभिन्न दिशाओं में शिकार की तलाश में गए, किंतु किसी के हाथ कुछ न लगा. सबके हताश वापस लौटने के बाद कौवा, गीदड़ और बाघ आपस में मंत्रणा करने लगे. उनकी दृष्टि कई दिनों से कथनक ऊँट पर थी.

“मित्रों! कथनक इस वन में रहकर कितना हृष्ट-पुष्ट हो गया है. जब भी उसको देखता हूँ, तो मुँह में पानी आ जाता है. तुम लोगों का क्या विचार है? क्यों न इसे ही मारकर अपनी भूख मिटाई जाये. इधर-उधर भटकने का क्या लाभ?” गीदड़ बोला.

“कह तो तुम ठीक रहे हो गीदड़ भाई. किंतु वनराज ने उसे अभयदान दिया है. वे उसे नहीं मारेंगे. अब तुम ही बताओ कि उन्हें कैसे मनायें?” कौवा बोला.

गीदड़ इसका उपाय पहले ही सोच चुका था. उसके अपनी योजना कौवे और बाघ को बता दी. दोनों ने उस योजना के लिए हामी भर दी. साथ ही अन्य अनुचरों को भी योजना के बारे में अच्छी तरह समझा दिया.

इसके बाद वे सिंह के पास पहुँचे. गीदड़ आगे आकार बोला, “वनराज! हम सबने आपके लिए शिकार की बहुत खोज की. किंतु हमें कोई न मिला. कथनक शारीरिक रूप से विशाल है और अब तो वह हृष्ट-पुष्ट भी हो गया है. यदि आप उसका शिकार करें, तो हमारे कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.”

“मैंने उसे अभयदान दिया है. मैं उसे नहीं मार सकता.” सिंह ने दो टूक उत्तर दिया.

“यदि कथनक स्वयं को आपकी भूख मिटाने प्रस्तुत करे तो? तब तो आपको कोई आपत्ति नहीं होगी.” गीदड़ बोला.

“नहीं, तब तो कोई आपत्ति नहीं है. किंतु क्या वह ऐसा करेगा?” सिंह अचरज में बोला.

“वनराज! कथनक क्या? आपके भूख मिटाने तो इस वन के समस्त प्राणी तत्पर है. आप आज्ञा करें.” इस तरह गीदड़ ने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से सिंह को मना लिया.

उसके बाद वह कथनक के पास पहुँचा और उसे बोला, “शाम को वनराज ने एक सभा रखी है. जिसमें तुम्हें भी बुलाया गया है.”

शाम को सिंह की सभा में वन के सभी जीव उपस्थित थे. कथनक भी उपस्थित हुआ. गीदड़ ने भरी सभा में कहा, “वनराज, हम सभी आपकी अवस्था देख बहुत दु:खी है. आज हम सभी यहाँ उपस्थित हुए हैं, ताकि आपके भोजन के लिए स्वयं को समर्पित कर सकें.”

इसके बाद एक-एक कर सभी जीव सामने आकर स्वयं को सिंह के भोजन के लिए प्रस्त्तुत करने लगे. किंतु गीदड़ उनमें कोई न कोई कमी निकाल देता और सिंह उन्हें खाने से मना कर देता. इस तरह किसी को छोटा, किसी के शरीर पर बाल, किसी के तेज नाखून होना आदि बहाने बनाकर गीदड़ उन्हें बचाता गया.

जब कथनक की बारी आई और उसने देखा कि सारे जीव स्वयं को सिंह के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं और सिंह किसी को भी नहीं मार रहा, तो सबकी देखा-देखी उसने भी स्वयं को सिंह के सामने प्रस्तुत कर दिया, “वनराज, आपके मुझ पर बहुत उपकार है. अब जब आपको आवश्यकता आ पड़ी है, तो मैं स्वयं को आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. कृपया मुझे मारकर अपनी भूख मिटा लीजिये.”

कथनक को विश्वास था कि अन्य जीवों की तरह सिंह उसको भी नहीं मारेगा. किंतु जैसे ही कथनक की बात पूरी हुई, गीदड़ और बाघ उस पर टूट पड़े और उसे मार डाला.

सीख 

“इस कहानी से सीख मिलती है कि लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में कभी नहीं आना चाहिए. स्वामी जब बुद्धिहीन हो और उसके साथी धूर्त, तो चौकन्ना और सावधान रहना आवश्यक है.”


हंस और कौवा की कहानी

एक पेड़ पर हंस और कौवा साथ रहते थे. जहाँ हंस स्वभाव से सरल और दयालु था, वहीं कौवा धूर्त और कपटी थी. कौवे के इस स्वभाव के बावजूद हंस ने अपने सरल स्वभाव के कारण कभी उसका साथ नहीं छोड़ा और वह वर्षों से उस पेड़ पर उसके साथ ही रहा.

एक दिन एक शिकारी शिकार के प्रयोजन से जंगल में आया. वह दिन भर शिकार के लिए भटकता रहा, किंतु उसे कोई शिकार प्राप्त न हो सका. अंत में थक-हार कर तीर-कमान एक ओर रख वह आराम करने उसी पेड़ के नीचे बैठ गया, जहाँ हंस और कौवा का निवास था. शिकारी थका हुआ था. कुछ ही देर में वह में गहरी नींद में सो गया.

पेड़ की छाया में शिकारी सुध-बुध खोकर सो रहा था. किंतु कुछ देर बाद पेड़ की छाया हट गई और शिकारी पर धूप पड़ने लगी. जब हंस ने शिकारी पर धूप पड़ते देखा, तो उसे उस पर दया आ गई. उसने अपने पंख पसार लिए, ताकि शिकारी को छांव मिल सके.

कौवे ने जब यह देखा, तो अपनी धूर्तता से बाज़ नहीं आया. उसने शिकारी के मुख पर बीट कर दी और वहाँ से उड़ गया. मुख पर बीट पड़ते ही शिकारी उठ गया. उसने ऊपर देखा, तो हंस को पंख पसारा हुआ पाया. उसने सोचा, अवश्य इस हंस ने मेरे मुख पर बीट की है. उसने झट से अपना तीर-कमान उठाया और हंस पर निशाना साध दिया. हंस वही तड़प कर मर गया.

सीख 

बुरी संगत का फल बुरा होता है. इसलिए बुरे लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.


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