किसान की बारिश पर कहानी (Kisan Ki Barish Par Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। यह एक मेहनती किसान की कहानी है, जो अपनी मेहनत के दम पर बादल को भी बरसने को मजबूर कर देता है।
Kisan Ki Barish Par Kahani
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किसान शिवनाथ एक साधारण सा आदमी था, जो अपने पुश्तैनी खेतों में मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसके गांव का नाम था शिवपुर, जो अपनी उपजाऊ भूमि और हरे-भरे खेतों के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। गांव के लोग खेती को ही अपने जीवन का आधार मानते थे। यहां की मिट्टी में सोना उपजता था, और गांव वाले भगवान को धन्यवाद देते कि उनकी कृपा से गांव में कभी अनाज की कमी नहीं होती थी।
लेकिन एक दिन गांव में एक विचित्र घटना घटी। गांव में एक सिद्ध पुरुष आए, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे भविष्य देख सकते हैं। गांव के लोगों ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया और उनसे गांव के भविष्य के बारे में पूछा। सिद्ध पुरुष ने ध्यान लगाकर कुछ पल चुप्पी साधी, फिर बोले, “इस गांव में आने वाले दस सालों तक एक भी बूंद बारिश नहीं होगी। भूमि बंजर हो जाएगी, और लोग भूख और प्यास से तड़पेंगे।”
यह भविष्यवाणी सुनकर गांव के लोगों में हड़कंप मच गया। सबके चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आईं। क्या सच में ऐसा हो सकता है? गांव के बुजुर्गों ने भी सिर हिलाया, “अगर बारिश नहीं होगी, तो खेती कैसे होगी? और अगर खेती नहीं होगी, तो हम क्या खाएंगे?”
धीरे-धीरे इस डर ने गांव पर अपना साया डाल दिया। लोग गांव छोड़ने की तैयारी करने लगे। जो थोड़ी-बहुत जमापूंजी थी, उसे इकट्ठा करके गांव के लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे। उन्हें लगने लगा कि अगर वे शहर में जाकर मजदूरी करेंगे, तो शायद उनका जीवन किसी तरह चल सकेगा।
लेकिन शिवनाथ का मन कुछ और ही सोच रहा था। उसने अपने परिवार से कहा, “हम कहीं नहीं जाएंगे। यह भूमि हमारी माता है। हम इसे छोड़कर कैसे जा सकते हैं? भविष्यवाणी अपनी जगह है, लेकिन मैं अपना घर बार और खेती नहीं छोडूंगा।”
कुछ दिन यूं ही निकल गए। घर में बैठा किसान आसमान को देखता रहा। आसमान पर बादल ही नहीं थे। अचानक वह उठा और हल लेकर घर से जाने लगा। उसकी पत्नी ने पूछा, “कहां जा रहे हो?”
वह बोला, “खेत जा रहा हूं। हल जोतने।”
“लेकिन दस साल बादल नहीं बरसेंगे। बारिश नहीं होगी। क्या फायदा खेत में जुताई करके।”
“अगर मैं दस साल बिना हल जोते बैठा रहा, तो हल चलाना ही भूल जाऊंगा। इसलिए मैं हल जोतूंगा। अगर कभी भगवान को हमारी मेहनत पर दया आ गई और बादल बरस गए, तो कम से कम मैं उसके लिए तैयार हूंगा?”
शिवनाथ की पत्नी और बच्चे भी इस विचार से सहमत हो गए। किसान को लोग खेत में हल जोतते देखते, तो हंसते। वे उसे पागल कहने लगे – “शिवनाथ, तुम बेवकूफ हो। जब बारिश ही नहीं होगी, तो खेत में काम करने का क्या मतलब? तुम अपनी और अपने परिवार की जिंदगी बर्बाद कर रहे हो।”
लेकिन शिवनाथ ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। हर दिन वह सूरज उगने से पहले उठता, हल और बैल लेकर खेत पर पहुंच जाता। वह भूमि को जोतता, उसे तैयार करता, मानो किसी भी दिन बारिश हो सकती है। उसकी आंखों में उम्मीद की चमक थी, और उसकी मुठ्ठी में हल की पकड़ थी। वह हर रोज यही सोचता कि अगर वह जुताई करना भूल गया, तो उसकी जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी कैसे पूरी होगी?
गांव में अब गिने-चुने लोग बचे थे। वे भी शिवनाथ को हंसी उड़ाते और कहते, “यह आदमी पागल हो गया है। जब सबकुछ खत्म हो रहा है, तब भी इसे उम्मीद है कि कुछ बदल जाएगा।”
साल बीतते गए। एक के बाद एक साल बिना बारिश के बीत गए। गांव के तालाब सूख गए, कुएं बेकार हो गए, और नदियां मानो किसी सपने की तरह धुंधली हो गईं। लेकिन शिवनाथ का हल चलाना नहीं रुका। उसकी मेहनत और उसकी उम्मीद कायम थी। दो साल बीत गए, पर बारिश नहीं गई हुई। लोगों की परवाह किए बगैर किसान अपना काम करता रहा।
एक दिन कुछ बादल उस गांव के ऊपर से गुजर रहे थे। उन्होंने किसान को खेतों में मेहनत करते हुए देखा। वे हैरान हुए। शिवनाथ ने ऊपर देखा और आसमान से कहा, “तुम्हें बरसना नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि मैं जुताई करना नहीं भूला।”
जब बादलों ने किसान की बात सुनी, तो उन्होंने सोचा कि कहीं दस सालों में वे भी बरसना न भूल जाएं। इस सोच के साथ उन्होंने बरसने की ठानी। अचानक आसमान पर हल्के-हल्के बादल घिरने लगे। लोगों को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। क्या सचमुच बादल बरस सकते हैं? लेकिन शिवनाथ के चेहरे पर एक मुस्कान उभर आई।
धीरे-धीरे बादल गहराने लगे, और फिर एक दिन वह घड़ी आ गई, जिसका शिवनाथ को वर्षों से इंतजार था। आसमान से बूंदें गिरने लगीं। पहली बूंद शिवनाथ के गालों पर गिरी, तो वह भावुक हो गया। उसे ऐसा लगा मानो भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो। बारिश धीरे-धीरे तेज हो गई, और देखते ही देखते भूमि तृप्त हो गई। खेतों ने अपनी प्यास बुझाई और हरियाली फिर से लौट आई।
गांव के लोग, जिन्होंने गांव छोड़ दिया था, उन्हें भी खबर मिली कि शिवपुर में बारिश हो रही है। वे दौड़े-दौड़े गांव लौटे और यह देखकर हैरान रह गए कि शिवनाथ के खेत फिर से लहलहा रहे थे। उन्होंने शिवनाथ से माफी मांगी और कहा, “तुम सही थे। हमें अपनी मेहनत और उम्मीद को कभी नहीं छोड़ना चाहिए था।”
शिवनाथ ने मुस्कराते हुए कहा, “मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। चाहे कुछ भी हो जाए, हमें अपने काम को नहीं छोड़ना चाहिए। भगवान हमारी मेहनत को देखता है और जब सही समय आता है, तो हमें उसका फल जरूर मिलता है।”
इसके बाद गांव के लोग फिर से खेती करने लगे। उन्होंने शिवनाथ को अपना नेता माना और उसकी सलाह पर चलने लगे। गांव में फिर से खुशहाली लौट आई। अब लोग जानते थे कि चाहे कैसी भी विपत्ति आ जाए, मेहनत और उम्मीद का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
शिवनाथ ने अपनी जमीन को संजोए रखा, और गांव के लोग उसकी मेहनत की मिसाल देते रहे। शिवपुर फिर से हरा-भरा हो गया, और वहां की मिट्टी फिर से सोना उगलने लगी।
सीख
- कोई भी हुनर लगातार अभ्यास करने से ही निखरता है। इसलिए अभ्यास करना नहीं भूलना चाहिए।
- चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न आए, हमें अपने काम और कर्तव्य से कभी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। मेहनत और विश्वास से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।