Jatak Katha

कृष्ण जातक कथा | Krishna Jatak Katha

कृष्ण जातक कथा (Krishna Jatak Katha) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। किसी समय जब बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे, उन्होंने उन्हें जीवन के सत्य और धर्म का पाठ पढ़ाने के लिए कई कहानियाँ सुनाई थीं। उन्हीं में से एक है “कृष्ण जातक” कथा। यह कथा बताती है कि जीवन में मोह, लालच, और आसक्ति कैसे मनुष्य को पतन की ओर ले जा सकती है और कैसे सत्य और नैतिकता का पालन करते हुए मनुष्य वास्तविक सुख और शांति प्राप्त कर सकता है।

Instagram follow button कृष्ण जातक कथा | Krishna Jatak Katha

Krishna Jatak Katha

Table of Contents

Krishna Jatak Katha

बहुत समय पहले, काशी राज्य में एक धर्मप्रिय राजा शासन करता था। वह राजा बुद्ध के पूर्व जन्म में थे, जिन्हें जातक कथा में बोधिसत्त्व कहा जाता है। बोधिसत्त्व उस समय एक राजा के रूप में जन्मे थे और उन्होंने राज्य को न्याय, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलाया। उनके राज्य में लोग सुखी और संतुष्ट थे, क्योंकि राजा सदैव अपने प्रजा के हित की चिंता करते थे।

राजा के पास एक प्रिय मित्र था, जिसका नाम था “कृष्ण”। कृष्ण बहुत ही चतुर, बुद्धिमान और लोभी स्वभाव का था। वह राजा के साथ रहते हुए उसकी निकटता का लाभ उठाना चाहता था। कृष्ण को धन और ऐश्वर्य की अत्यधिक लालसा थी, और वह हमेशा सोचता रहता कि कैसे वह अधिक से अधिक संपत्ति और अधिकार प्राप्त कर सके। उसके मन में यह धारणा थी कि यदि वह राजा का विश्वासपात्र बना रहे, तो उसे अवश्य ही धनी और शक्तिशाली बना दिया जाएगा।

राजा के दरबार में कृष्ण को विशेष सम्मान मिलता था, क्योंकि वह राजा का मित्र था। परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया, कृष्ण की लालच और बढ़ती गई। वह चाहने लगा कि राजा उसे अपने राज्य का आधा हिस्सा दे दे, ताकि वह अपनी सुख-सुविधाओं में वृद्धि कर सके। वह यह समझने में असमर्थ था कि सच्चा सुख धनोपार्जन या ऐश्वर्य में नहीं, बल्कि मानसिक शांति और संतोष में होता है।

कृष्ण ने राजा के सामने अपने इस मनोभाव को प्रकट नहीं किया, परंतु उसके मन में एक योजना बनने लगी। उसने सोचा कि अगर वह किसी तरह राजा को धोखा दे सके, तो वह राज्य का एक बड़ा हिस्सा हथिया सकता है। उसके लालच ने उसे नैतिकता और मित्रता के मूल्यों से दूर कर दिया, और वह अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचने लगा।

एक दिन कृष्ण ने एक चालाक योजना बनाई। उसने राजा से कहा, “महाराज, मैंने सुना है कि पहाड़ों के उस पार एक बहुत ही अद्भुत खजाना है। अगर हम उसे प्राप्त कर लें, तो यह राज्य और भी धनी हो जाएगा। मैं चाहता हूँ कि आप मुझे इस खजाने की खोज के लिए भेजें।”

राजा ने पहले तो सोचा कि कृष्ण का प्रस्ताव उचित है, क्योंकि राज्य के विकास के लिए यह खजाना उपयोगी हो सकता है। परंतु राजा के मन में संदेह भी था। उन्होंने कृष्ण को खजाना खोजने के लिए भेजा, लेकिन साथ ही अपने कुछ विश्वासपात्र सैनिकों को उसके साथ भेज दिया, ताकि वे उसके हर कदम पर नज़र रखें।

कृष्ण, जो अपने धोखे की योजना में पूरी तरह डूबा हुआ था, खजाने की खोज के बहाने दूर जंगल में निकल पड़ा। उसने सोचा कि वहाँ वह राजा के सैनिकों को छोड़कर अपने लिए कुछ और संपत्ति इकट्ठा करेगा और फिर वापस लौटकर राजा को धोखा देगा। परंतु उसके मन में यह लालच इतना बढ़ चुका था कि उसने सोचा कि क्यों न राजा को ही मारकर पूरा राज्य हथिया लिया जाए।

जैसे ही कृष्ण अपनी योजना को अंजाम देने की कोशिश कर रहा था, एक दिन जंगल में उसके रास्ते में एक साधु मिला। साधु बहुत ज्ञानी और शांत स्वभाव का था। उसने कृष्ण के लालच और धोखे को पहचान लिया और उससे कहा, “वत्स, तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो, वह तुम्हें केवल विनाश की ओर ले जाएगा। लालच का कोई अंत नहीं होता। जितना तुम पाओगे, उतनी ही तुम्हारी लालसा बढ़ती जाएगी। सत्य और धर्म का मार्ग ही तुम्हें वास्तविक सुख और शांति देगा।”

कृष्ण ने साधु की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी योजना पर आगे बढ़ता रहा। वह सोचता रहा कि साधु उसे केवल भ्रमित कर रहा है। परंतु उसकी योजना विफल हो गई। राजा के सैनिकों ने उसकी गतिविधियों पर नज़र रखी और उसकी धोखेबाज़ी का पता लगा लिया। वे कृष्ण को पकड़कर राजा के समक्ष ले आए।

राजा ने जब कृष्ण की सारी चालाकी और धोखे के बारे में सुना, तो वह अत्यंत दुखी हो गया। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका मित्र, जिसे वह इतना प्रेम और सम्मान देता था, उसे धोखा देने की कोशिश करेगा। राजा ने कृष्ण से कहा, “मैंने तुम्हें मित्रता, प्रेम और विश्वास दिया, परंतु तुमने मुझे धोखा दिया। तुमने लालच और असत्य का मार्ग चुना, जो तुम्हें केवल पतन की ओर ले जाएगा।”

कृष्ण को अपनी गलती का एहसास हुआ, परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी। राजा ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया और उसे जीवन भर के लिए एकांतवास में भेज दिया। कृष्ण को अब समझ में आया कि लालच और असत्य के मार्ग ने उसे केवल विनाश की ओर धकेला।

सीख:

  • कृष्ण जातक कथा हमें यह सिखाती है कि लालच और धोखेबाज़ी से कभी कोई वास्तविक सुख प्राप्त नहीं कर सकता। सच्चा सुख सत्य, धर्म, और निस्वार्थता के मार्ग पर चलने से ही मिलता है। यह कथा यह भी बताती है कि असत्य और लालच का मार्ग अंततः विनाश की ओर ले जाता है, चाहे व्यक्ति कितना भी चतुर या चालाक क्यों न हो।
  • साधु के शब्दों से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में मोह और लालसा का कोई अंत नहीं होता। जितना हम पाते हैं, उतनी ही हमारी इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं। इसलिए, हमें संतोष, सच्चाई, और नैतिकता के मार्ग पर चलना चाहिए। सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे मन की शांति और संतोष में होता है।
  • राजा के न्याय से हमें यह भी सीख मिलती है कि चाहे कोई कितना भी निकट या प्रिय क्यों न हो, अगर वह असत्य और धोखेबाज़ी के मार्ग पर चलता है, तो उसे उचित दंड मिलना चाहिए। मित्रता, प्रेम, और विश्वास तभी तक टिकते हैं जब तक उनमें सत्य और निष्ठा हो। जीवन में सच्चाई और धर्म का पालन करना ही सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही हमें वास्तविक सुख और शांति प्रदान करता है।

Instagram follow button कृष्ण जातक कथा | Krishna Jatak Katha

Read More Story In Hindi

घट जातक कथा 

मातंग जातक कथा

बुद्धिमान वानर जातक कथा 

संपूर्ण पंचतंत्र की कथाएं    

पौराणिक कथाएं

About the author

Editor

Leave a Comment