तेनालीराम की कहानी : कुत्ते की पूंछ | Kutte Ki Poonchh Tenali Ram Ki Kahani

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम तेनालीराम की कहानी – कुत्ते की पूंछ (Kutte Ki Poonchh Tenali Ram Ki Kahani) शेयर कर रहे है. Tale Of A Dog Tenali Raman Story In Hindi तेनालीराम की चतुराई की कहानी है. उससे जलने वाले राज दरबारियों ने महाराज के कान भरे और तेनालीराम से कुछ ऐसा कार्य करवाना चाहा, जो असंभव था. क्या था वह कार्य और तेनालीराम ने कुत्ते के माध्यम से कैसे जलनखोर दरबारियों  की छुट्टी की? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी – :

Kutte Ki Poonchh Tenali Ram Ki Kahani

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Kutte Ki Poonchh Tenali Ram Ki Kahani
Kutte Ki Poonchh Tenali Ram Ki Kahani

अपनी बुद्धिमानी और चतुराई के कारण तेनालीराम महाराज कृष्ण देवराय के अतिप्रिय थे. इसलिए उनके प्रति राजगुरू और अन्य दरबारियों की ईर्ष्या चरम पर रहती थे. सभी ऐसे अवसर की प्रतीक्षा में रहते थे, जब वे तेनाली राम को महाराज के समक्ष नीचा दिखा सकें.

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एक दिन राजगुरू ने सबके साथ मिलकर तेनालीराम को अपमानित करने की योजना बनाई और महाराज के पास जा पहुँचे. उन्होंने महाराज के कान भरते हुए कहा, “महाराज! क्या आप जानते हैं कि तेनालीराम के पास वह विद्या है, जिससे लोहा भी सोना बन जाता है.”

यह बार सुनकर राजा कृष्णदेव राय के सोचा कि इस विद्या का उपयोग प्रजा की भलाई के लिए होना चाहिए. वे राजगुरू से बोले, “ठीक है, इस बारे में तेनालीराम से बात करूंगा.”

अगले दिन उन्होंने तेनालीराम को राजदरबार में बुलाकर पूछा, “तेनाली, मुझे ज्ञात हुआ है कि तुम्हारे पास लोहे को सोने में परिवर्तित करने की विद्या है और उसके प्रयोग से तुमने बहुत सारा धन इकठ्ठा कर लिया है.”

राजा की बात सुनकर तेनालीराम समझ गया कि अवश्य ही यह राजगुरू की नई चाल है. उसने राजा को उत्तर दिया, “जी महाराज, मैंने एक ऐसी विद्या सीखी है.”

“तो मैं चाहता हूँ कि उसका प्रदर्शन तुम दरबार में करो.” महाराज बोले.

“अवश्य महाराज, कल सुबह मैं अपनी विद्या का प्रदर्शन करूंगा. कृपा कर मुझे कल तक का समय प्रदान करें.”

राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को अगले दिन तक का समय दे दिया. अगले दिन राजदरबार भरा हुआ था, लोग लोहे को सोना बनता हुआ देखने के लिए जमा थे. वहाँ उपस्थित राजगुरू और उनके साथी बड़े प्रसन्न थे कि अब तेनालीराम को महाराज के सामने अपमान का मुँह देखना पड़ेगा.

कुछ देर बाद तेनालीराम दरबार में उपस्थित हुआ. उसके साथ एक कुत्ता भी था, जिसकी पूँछ एक नली में डली हुई थी. कुत्ते को राजदरबार में देख राजा क्रोधित हो गये और तेनालीराम से बोले, “तेनाली, तुम्हारा इतना साहस कि तुम कुत्ते को दरबार में लेकर आ गए.”

“महाराज, मेरी धृष्टता के लिए क्षमा करें. किंतु मुझे कोई भी सजा देने के पूर्व कृपा कर मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें.” तेनालीराम हाथ जोड़कर बोला.

“पूछो”

“महाराज कितने वर्षों तक कुत्ते की पूँछ को नली में डालकर रखने पर वह सीधी हो जायेगी?” तेनालीराम ने पूछा.

“तेनालीराम, कुत्ते की पूँछ कभी भी सीधी नहीं होती, चाहे उसे कितने भी वर्ष नली में रखा जाये. वह अपनी प्रकृति नहीं छोड़ती.” राजा ने उत्तर दिया.

“ठीक कहा महाराज, जिस प्रकार कुत्ते की पूँछ अपनी प्रकृति नहीं छोड़ती, वैसे ही लोहा भी अपनी प्रकृति नहीं छोड़ता. वह कैसे सोना बन जायेगा?”

राजा कृष्णदेव राय को अपनी गलती का भान हो गया. वे समझ गए कि राजगुरू ने तेनालीराम को अपमानित करने के लिए उनके कान भरे थे. उन्होंने राजगुरू को कुछ कहा तो नहीं, किंतु तेनालीराम की भूरी- भूरी प्रशंषा करते हुए उसे पुरूस्कृत किया. राजगुरू और उसके साथी अपना सा मुँह लेकर रह गए.

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