लालची चिकन वाला की कहानी (Lalchi Chicken Wala Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Lalchi Chicken Wala Ki Kahani
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एक गाँव में मोहन नाम का एक आदमी रहता था, जो चिकन की दुकान चलाता था। गाँव के लोग उसे “चिकन वाला” कहकर पुकारते थे। उसकी दुकान पूरे गाँव में मशहूर थी, क्योंकि उसकी मुर्गियाँ ताजी होती थीं, और लोग उसके चिकन के स्वाद के दीवाने थे। लेकिन मोहन का एक दोष था—वह बहुत लालची था। वह हमेशा सोचता था कि कैसे जल्दी से जल्दी ज्यादा पैसे कमा सकता है।
मोहन का लालच दिन-ब-दिन बढ़ता गया। पहले तो वह केवल अपने ग्राहकों से छोटी-छोटी बातें छुपाकर मुनाफा कमाता था, जैसे कि वजन में थोड़ा कम करके देना या हिसाब में कुछ गड़बड़ी करना। लेकिन धीरे-धीरे उसका लालच इतना बढ़ गया कि उसने सोचना शुरू कर दिया कि कैसे एक मुर्गी को ज्यादा दिन तक जिंदा रखकर मुनाफा कमाया जा सकता है। उसने कई तरीके अपनाए, जैसे कि सस्ती और बासी खुराक देना या पानी मिलाकर वजन बढ़ाना।
एक दिन मोहन को एक नया विचार आया। उसने सोचा, “अगर मैं अपने मुर्गों और मुर्गियों को जल्दी बड़ा कर दूं, तो ज्यादा वजन होगा और मैं ज्यादा मुनाफा कमा सकूंगा।” उसने शहर जाकर ऐसी दवाइयाँ खरीदीं, जो मुर्गियों को तेजी से बड़ा कर सकती थीं। अब मोहन ने अपने सभी मुर्गों और मुर्गियों को वह दवाइयाँ देनी शुरू कर दीं। कुछ ही दिनों में उसके मुर्गे-मुर्गियाँ बहुत मोटी और बड़ी हो गईं। गाँव के लोग भी हैरान थे कि मोहन की मुर्गियाँ इतनी जल्दी कैसे बड़ी हो जाती हैं।
शुरू में लोग उसकी दुकान से बहुत खुश होकर चिकन खरीदते रहे। उन्हें मोहन की मुर्गियों का वजन और सस्ता दाम देखकर अच्छा लगने लगा। मोहन भी अपने बढ़ते मुनाफे से खुश था। लेकिन उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि वह जो दवाइयाँ इस्तेमाल कर रहा है, उनसे मुर्गियों की सेहत पर बुरा असर हो सकता है। उसका ध्यान केवल पैसे कमाने पर था।
धीरे-धीरे गाँव के लोगों ने महसूस किया कि मोहन के चिकन का स्वाद पहले जैसा नहीं रहा। कई लोग बीमार भी पड़ने लगे। किसी को पेट की समस्या होने लगी, तो किसी का गला खराब रहने लगा। गाँव में अफवाहें फैलने लगीं कि मोहन के चिकन में कुछ गड़बड़ है। एक दिन, गाँव के एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा, “मुझे शक है कि मोहन अपनी मुर्गियों को कुछ ऐसा खिला रहा है, जो हमें नुकसान पहुँचा रहा है। हमें जाकर उससे बात करनी चाहिए।”
गाँव के कुछ लोग मोहन के पास गए और उससे पूछा, “मोहन, तुम्हारी मुर्गियों का स्वाद पहले जैसा क्यों नहीं रहा? क्या तुम कुछ गलत खिला रहे हो?”
मोहन ने तुरंत जवाब दिया, “अरे नहीं, ये सब तुम्हारा वहम है। मेरी मुर्गियाँ ताजी हैं, और मैं उनका पूरा ध्यान रखता हूँ।” लेकिन लोग अब उस पर भरोसा नहीं कर रहे थे।
मोहन के जवाब से गाँव वाले संतुष्ट नहीं हुए। उन्हें लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। एक दिन गाँव के स्कूल के मास्टर जी, जो पढ़े-लिखे और समझदार माने जाते थे, ने गाँव वालों को इकट्ठा किया और कहा, “हमें इस बात की सच्चाई पता लगानी होगी। अगर मोहन सचमुच अपनी मुर्गियों को कुछ गलत खिला रहा है, तो यह हम सबकी सेहत के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है। हमें मिलकर इसका हल निकालना चाहिए।”
गाँव के लोग मास्टर जी की बात मान गए। उन्होंने फैसला किया कि वे रात के समय मोहन की दुकान और उसके मुर्गियों के दड़बे की जाँच करेंगे। अगले दिन रात को कुछ लोग मोहन की दुकान के पीछे चुपके से पहुंचे। उन्होंने देखा कि मोहन अपनी मुर्गियों को कुछ पाउडर मिला हुआ चारा खिला रहा था, जो उसने शहर से लाकर रखा था। वह पाउडर वही दवा थी, जो मुर्गियों को जल्दी बड़ा करने के लिए थी, लेकिन सेहत के लिए हानिकारक थी।
अब गाँव वालों का शक यकीन में बदल गया। अगले दिन सुबह होते ही सभी गाँव वाले मोहन की दुकान पर इकट्ठे हो गए और उससे सवाल करने लगे, “मोहन, तुम हमारी सेहत से खिलवाड़ क्यों कर रहे हो? तुम अपनी मुर्गियों को ऐसी खुराक क्यों दे रहे हो, जो हमारे लिए हानिकारक है?”
मोहन घबरा गया। उसने सोचा था कि लोग कभी उसकी चाल को समझ नहीं पाएंगे। लेकिन अब उसका झूठ पकड़ा जा चुका था। उसने डरते हुए कहा, “मैं सिर्फ अपने मुनाफे के लिए ऐसा कर रहा था। मुझे नहीं पता था कि इससे आप लोगों की सेहत को इतना नुकसान होगा।”
गाँव वाले गुस्से में थे। एक बुजुर्ग ने कहा, “मोहन, तुम्हारा लालच तुम्हारे लिए और हमारे लिए भी बहुत खतरनाक साबित हुआ है। पैसे के लालच में तुमने हमारी सेहत से खिलवाड़ किया। अगर तुम्हें सच में मुनाफा कमाना था, तो मेहनत और ईमानदारी से कमाते। अब हम तुम्हारी दुकान से कभी कुछ नहीं खरीदेंगे।”
गाँव वालों के इस फैसले से मोहन को बहुत बड़ा सबक मिला। उसकी दुकान पर अब कोई नहीं आता था। उसकी आमदनी बंद हो गई और उसका लालच उसे भारी पड़ गया। उसे समझ में आया कि उसका लालच उसे बर्बादी की ओर ले गया है। कुछ दिनों बाद, वह खुद मास्टर जी के पास गया और उनसे माफी मांगी। उसने वादा किया कि अब वह कभी ऐसा काम नहीं करेगा जिससे किसी की सेहत को नुकसान हो।
मास्टर जी ने कहा, “अगर तुम सच में सुधरना चाहते हो, तो मेहनत से काम करो और गाँव वालों का भरोसा फिर से जीतने की कोशिश करो।”
मोहन ने मास्टर जी की सलाह मानी और ईमानदारी से काम करने का निश्चय किया। उसने अपनी दुकान दोबारा खोली, लेकिन इस बार उसने लालच को त्याग दिया। धीरे-धीरे गाँव वालों ने देखा कि मोहन बदल गया है और फिर से उसकी दुकान पर आने लगे।
अब मोहन की दुकान चलने लगी थी, लेकिन इस बार वह सिर्फ उतना ही कमाता जितना ईमानदारी से कमा सकता था। उसने समझ लिया था कि लालच से कुछ समय के लिए तो मुनाफा हो सकता है, लेकिन अंत में सच्चाई और ईमानदारी ही काम आती है।
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