Learning From Experience Success Mantra : एक नगर में एक महान तलवारबाज़ रहता था. उसके जैसा तलवारबाज़ उस पूरे नगर में तो क्या पूरे राज्य में नहीं था. राज्य भर में उसकी ख्याति फैली हुई थी. अपनी तलवारबाज़ी के दम पर उसने अपने राजा को कई युद्धों में जीत दिलवाई थी. इसलिए सभी उसका बहुत सम्मान करते थे.
समय बीतने के साथ वह वृद्ध हो चला था. वह नहीं चाहता था कि उसकी कला उसके साथ ही इस दुनिया से चली जाये. इसलिए उसने पूरे राज्य में एलान करवाया कि जो भी तलवारबाज़ी सीखना चाहता है, वह उसके पास आकर सीख सकता है.
राज्य के कई युवक उसके पास आये और उसके शिष्य बनकर तलवारबाज़ी सीखने लगे. वह भी अपनी कला के हर गुर अपने शिष्यों को सिखाने लगा. उन शिष्यों में से एक शिष्य असाधारण था. उसने शीघ्र ही तलवारबाज़ी के सारे गुर सीख लिए और तलवारबाज़ी में पारंगत हो गया.
पारंगत होने के बाद उसे अपनी तलवारबाज़ी पर घमंड हो गया. वह स्वयं को अपने गुरू से भी महान तलवारबाज़ समझने लगा. किंतु उसे अपने गुरू सरीखी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं थी.
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वह प्रतिष्ठा पाने नित नए उपाय सोचा करता. एक दिन उसने सोचा क्यों ना तलवारबाज़ी का एक मुकाबला गुरू के साथ किया जाये. उन्हें पराजित कर दूंगा, तो लोग मुझे उनसे महान तलवारबाज़ स्वीकार कर लेंगे.
उसने अपने वृद्ध गुरू को तलवारबाज़ी की चुनौती दे दी. गुरू ने वह चुनौती स्वीकार कर ली. सात दिन बाद दोनों में मध्य तलवारबाज़ी का मुकाबला नियत किया गया.
पूरे राज्य में इस मुकाबले की चर्चा थी. यहाँ तक कि राज्य के राजा भी वह मुकाबला देखने को आतुर थे. शिष्य को अपनी तलवारबाज़ी पर पूरा भरोसा था. किंतु दिन गुजरने के साथ उसका यह भरोसा कम होने लगा. उसे लगने लगा कि गुरू ने अवश्य तलवारबाज़ी की एक न एक विधा उसे नहीं सिखाई होगी. वह अपने गुरू पर नज़र रखने लगा, ताकि अभ्यास के दौरान यदि गुरू वह विधा प्रयोग करे, तो उसे देखकर वह सीख सके.
एक दिन उसने देखा कि गुरू कहीं जा रहा है. वह उसका पीछा करने लगा. गुरू लोहार के पास पहुँचा और लोहार को १५ फुट लंबी म्यान तैयार करने का आदेश दिया है. शिष्य ने सोचा अवश्य ही गुरू १५ फुट लंबी तलवार बनवाकर उतनी दूर से ही उसका सिर कलम कर देने की योजना बना रहा है. बिना समय व्यर्थ किये वह एक अन्य लोहार के पास गया और उससे १६ फुट लंबी तलवार बनवा ली.
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मुकाबले का दिन आया. गुरू और शिष्य दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने थे. जैसे ही मुकाबला शुरू हुआ, गुरू ने म्यान से तलवार निकालकर शिष्य की गर्दन पर रख दी. उधर शिष्य म्यान से अपनी १६ फुट लंबी तलवार निकालता ही रह गया. वास्तव में, गुरू ने म्यान १५ फुट की बनवाई थी, किंतु उसकी तलवार एक सामान्य तलवार थी.
सीख –
- १. जीवन में हर युद्ध ताकत और बल के सहारे नहीं जीते जाते. आत्मज्ञान और अनुभव के सामने ताकत और बल भी फ़ीके पड़ जाते हैं.
- २. घमंड को कभी न कभी नीचा देखना ही पड़ता है. अपनी कला पर घमंड करने के बजाय उसे निखारने में समय लगायें.
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