गीदड़ गीदड़ ही रहता है : पंचतंत्र की कहानी ~ लब्धप्रणाश | Lioness And The Young Jackal Panchatantra Tale In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम शेरनी और गीदड़ की कहानी (Lioness And The Young Jackal Panchatantra Tale In Hindi) शेयर कर रहे है. पंचतंत्र के तंत्र (भाग) लब्धप्रणाश से ली गई ये कहानी एक ऐसे गीदड़ की है, जो शेरों के साथ पलता है और इस बात से अनभिज्ञ रहता है कि वह गीदड़ है. जब उसे इस बात का पता चलता है, तो वह क्या करता है? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी (Geedar Geedar Rahta Hai) : 

Lioness And The Young Jackal Panchatantra Tale

Lioness And The Young Jackal Panchatantra Tale In Hindi
Lioness And The Young Jackal Panchatantra Tale In Hindi

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जंगल की एक गुफ़ा में शेर-शेरनी का जोड़ा रहता था. उनके दो बच्चे थे. शेर प्रतिदिन जंगल जाकर शिकार करता और उसे लेकर गुफ़ा आ जाता. गुफ़ा में दोनों मिलकर शिकार के मांस का भक्षण किया करते थे.

एक दिन पूरा जंगल छान मारने के बाद भी शेर (Lion) के हाथ कोई शिकार नहीं लगा. निराश होकर वह वापस लौट रहा था कि रास्ते में उसे एक गीदड़ (Jackal) का बच्चा दिखाई पड़ा. बच्चा जानकार वह उसे मार नहीं पाया और जीवित ही मुँह में दबाकर गुफ़ा ले आया.

उसे शेरनी (Lioness) को सौंपते हुए वह बोला, “प्रिये! आज कोई शिकार मेरे हाथ नहीं लगा. वापस लौटने हुए ये गीदड़ का बच्चा दिखाई पड़ा, तो मैं इसे उठा ले आया. मैं तो इस बच्चे को दयावश खा नहीं पाया. यदि तुम चाहो, तो इसे खाकर अपनी भूख मिटा लो.”

शेरनी बोली, “जिसे बच्चा जानकार तुम नहीं मार पाए, उसे मैं कैसे मार सकती हूँ? इस निरीह बच्चे को देखकर मेरा हृदय भी ममता से भर उठा है. आजसे यह मेरी तीसरी संतान है. अपने बच्चे की तरह ही मैं इसका पालन-पोषण करूंगी.”

उस दिन के बाद से गीदड़ का बच्चा शेर-शेरनी की गुफ़ा में ही पलने लगा. शेरनी  उसे अपना दूध पिलाती और अपने बच्चे की तरह देखभाल करती थी. गीदड़ का बच्चा शेर-शेरनी को ही अपने माता-पिता समझता और उनके दोनों बच्चों को अपने भाई. वे सभी प्रेम-पूर्वक एक साथ रहते थे.

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समय बीतने लगा और शेर-शेरनी के बच्चे बड़े होने लगे. एक दिन वे तीनों जंगल में खेल रहे थे कि एक मद-मस्त हाथी (Elephant) आ गया. हाथी को देखते ही शेर के दोनों बच्चे गुर्राते हुए उसकी ओर लपके. किंतु गीदड़ का बच्चा डर गया. उसने शेर के दोनों बच्चों को समझाया, “बंधुओं! हाथी हमारा शत्रु है और बहुत बलशाली है. हम उसका सामना करने में सक्षम नहीं है. इसलिए हमें उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिये, अन्यथा जान से हाथ धोना पड़ जायेगा. आओ भाग चले.”

शेर के बच्चे उसकी बात मानकर गुफ़ा चले आये. वहाँ उन्होंने शेरनी को जंगल की घटना के बारे में बताया कि कैसे हाथी को देखकर गीदड़ का बच्चा डर गया और कायरता दिखाते हुए हम दोनों को भी भागने को विवश कर दिया. वे दोनों मिलकर गीदड़ के बच्चे का उपहास करने लगे.

अपना उपहास गीदड़ के बच्चे से सहन नहीं हुआ और वह क्रोधित होकर शेर के बच्चों को भला-बुरा कहकर झगड़ने लगा. शेरनी बीच-बचाव करते हुए गीदड़ के बच्चे को समझाने लगी, “ये दोनों तेरे बंधु हैं. इनकी बातों का बुरा मत मान और झगड़ा बंद कर प्रेम से रह.”

किंतु गीदड़ का बच्चा तैश में था. वह बोला, “ये सदा मेरा उपहास करते हैं. बताओ मैं इनसे किस मामले में कम हूँ. मैं भी बहादुर हूँ. मैं चाहूँ, तो अभी इन दोनों को मज़ा चखा सकता हूँ. आज ये मेरे हाथों से बचेंगे नहीं.”

गीदड़ की बातें सुनकर शेरनी समझ गई कि अब उसे वास्तविकता बताने का समय आ गया है. वह बोली, “पुत्र! मेरी बात ध्यान से सुन. तुम बहादुरी में किसी से कम नहीं हो. किंतु जिस कुल में तुम्ह जन्मे हो, वहाँ हाथी से शत्रुता मोल नहीं ली जाती. वास्तव में तुम गीदड़ हो. मैंने तुम्हें अपना दूध पिलाकर अपने बच्चे की तरह पाला है. लेकिन गीदड़ होने के कारण तुममें गीदड़ के ही गुण हैं. अब तुम्हारा भला इसी में है कि तुम अपने कुल में जाकर मिल जाओ. यदि यह बात तुम्हरे दोनों भाइयों को पला चल गई, तो मारे जाओगे.”

शेरनी की बात सुनकर गीदड़ वहाँ से भाग खड़ा हुआ और गीदड़ों के दल में जाकर मिल गया.

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