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मां की दर्द भरी कहानी | Maa Ki Dard Bhari Kahani

maa ki dard bhari kahani मां की दर्द भरी कहानी | Maa Ki Dard Bhari Kahani
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मां की दर्द भरी कहानी (Maa Ki Dard Bhari Kahani) यह कहानी एक ऐसी मां की है, जिसकी ज़िंदगी प्यार, त्याग, और दर्द से भरी हुई थी। उसकी ज़िंदगी ने उसे हर मोड़ पर परखा, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। यह कहानी सिर्फ एक मां की नहीं, बल्कि उन सभी माताओं की कहानी है जो अपने बच्चों के लिए अपना सर्वस्व त्याग देती हैं, फिर भी उनकी भावनाओं और त्यागों को अक्सर समझा नहीं जाता।

Maa Ki Dard Bhari Kahani

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मीरा, इस कहानी की मुख्य पात्र, एक छोटे से गाँव में पैदा हुई थी। उसकी शादी बहुत कम उम्र में ही कर दी गई थी, और जल्द ही वह एक बड़ी ज़िम्मेदारी का सामना कर रही थी—मां बनने की। मीरा ने अपनी शादी को एक नए सफर की तरह देखा, जिसमें उसने अपने सारे सपने और इच्छाओं को अपने परिवार के लिए छोड़ दिया। उसकी दुनिया उसके पति और बच्चों तक ही सीमित हो गई थी। 

मीरा का पति, रमेश, एक किसान था। खेतों में दिन-रात मेहनत करके वह परिवार का पेट पालने की कोशिश करता था, लेकिन हालात हमेशा साथ नहीं देते थे। फसल का खराब होना, बाढ़ या सूखा, इन सबने उनके जीवन को और कठिन बना दिया था। इन कठिनाइयों के बीच भी मीरा ने कभी शिकायत नहीं की। वह घर और बच्चों की ज़िम्मेदारियों को संभालती रही, ताकि रमेश को कोई तकलीफ़ न हो।

मीरा के तीन बच्चे थे—दो बेटे और एक बेटी। उनके पैदा होने के बाद से ही मीरा ने खुद को पूरी तरह से बच्चों की देखभाल में समर्पित कर दिया। बच्चों की छोटी-छोटी ज़रूरतों का ख्याल रखना, उनके लिए खाना बनाना, उनके कपड़े धोना, उन्हें स्कूल भेजना—ये सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गए थे। 

लेकिन रमेश, जो काम के बोझ तले दबा हुआ था, धीरे-धीरे मीरा से दूर होता गया। उसकी बेरुखी ने मीरा के दिल को कई बार तोड़ा, लेकिन उसने अपने बच्चों के लिए सब सहन किया। उसका मानना था कि एक मां का कर्तव्य अपने बच्चों की देखभाल करना है, चाहे उसके अपने जीवन में कितनी भी परेशानियाँ क्यों न हों। 

मीरा को कभी-कभी ऐसा लगता था कि उसके त्याग और समर्पण को उसके अपने ही परिवार द्वारा अनदेखा किया जा रहा है। रमेश तो बाहर के कामों में उलझा रहता था, लेकिन उसके बच्चे भी बड़े होते-होते उसकी भावनाओं को समझने में असमर्थ थे। वे अपनी ज़रूरतों के हिसाब से ही मां को याद करते, और मीरा की खुद की इच्छाएँ और जरूरतें पीछे छूटती गईं।

समय बीतता गया और बच्चे बड़े होने लगे। सबसे बड़ा बेटा, रवि, पढ़ाई पूरी करके शहर में नौकरी करने चला गया। बेटी, पायल, की शादी कर दी गई, और छोटा बेटा, सुमित, भी अब कॉलेज में था। मीरा को लगा था कि जब बच्चे बड़े हो जाएंगे, तो शायद उसका जीवन थोड़ा आसान हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

रवि ने नौकरी के बाद धीरे-धीरे अपनी मां से दूरी बना ली। उसे अब गांव की ज़िंदगी और अपनी मां का संघर्ष नज़र नहीं आता था। वह अब अपने शहर की चमक-दमक में खो गया था। फोन पर भी उससे बात करने में अनमना सा रहता। मीरा का दिल इस बदलाव को सह नहीं पाता था, लेकिन उसने कभी बच्चों से शिकायत नहीं की। 

पायल की शादी के बाद ससुराल वाले उसे काम में उलझाए रखते थे, जिससे वह भी अपनी मां से दूर होती चली गई। मीरा के मन में अब एक खालीपन बस गया था। वह सारा दिन अपने घर में अकेली रहती, कभी-कभी उसकी आंखों से आंसू बहने लगते, लेकिन उसे संभालने वाला कोई नहीं था। रमेश भी अब बीमार रहने लगा था और घर के खर्चे और बढ़ते जा रहे थे।

छोटा बेटा सुमित, जो अब कॉलेज में था, मीरा की उम्मीदों का आखिरी सहारा था। लेकिन समय के साथ वह भी बदल गया। दोस्तों के साथ उसकी संगत खराब हो गई और उसने मां से पैसे मांगने शुरू कर दिए। अगर मीरा मना करती, तो वह गुस्से में चिल्लाने लगता और कई बार उसे अपमानित भी करता। एक मां के लिए अपने ही बच्चे से ऐसे शब्द सुनना किसी सजा से कम नहीं था। मीरा का दिल रोज़-रोज़ टूटता रहा, लेकिन उसने अपने बेटे के भविष्य के लिए ये सब सहन किया।

मीरा ने अपने जीवन का हर पल अपने परिवार को समर्पित किया था, लेकिन अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा था—न उसका सम्मान, न उसकी खुशियाँ, न उसका स्वाभिमान। उसने सबकुछ अपने बच्चों और परिवार के लिए त्याग दिया था, लेकिन बदले में उसे सिर्फ उपेक्षा और अपमान ही मिला।

मीरा की तबीयत धीरे-धीरे खराब होने लगी थी, लेकिन उसने कभी किसी से इसका ज़िक्र नहीं किया। उसे डर था कि कहीं उसके बच्चों पर और बोझ न पड़ जाए। एक दिन जब उसका दर्द असहनीय हो गया, तो उसने सुमित से डॉक्टर के पास ले जाने को कहा। लेकिन सुमित ने उसकी बात को हल्के में लिया और कहा, “अभी टाइम नहीं है, मां। बाद में देख लूंगा।”

मीरा के लिए यह शब्द उसके दिल पर आखिरी चोट साबित हुए। उसने अपने दर्द को और सहने की कोशिश की, लेकिन उसकी हालत और बिगड़ती चली गई। आखिरकार, एक रात, जब घर में सब सो रहे थे, मीरा का शरीर उस दर्द को सहन नहीं कर पाया, और वह हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गई।

मीरा के जाने के बाद, घर में सन्नाटा पसर गया। सुमित ने जब सुबह मां को जगाने की कोशिश की, तो उसे समझ में आया कि वह अब इस दुनिया में नहीं है। उसने रोते हुए अपने भाई-बहनों को खबर दी। रवि और पायल तुरंत घर पहुंचे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 

मीरा के जाने के बाद, उसके बच्चों को अहसास हुआ कि उन्होंने अपनी मां के त्याग और प्यार को कभी समझा ही नहीं। उन्हें अब अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था, लेकिन अब कुछ बदलना संभव नहीं था। मां के बिना उनका घर खाली-खाली लगने लगा था, जैसे उस घर की आत्मा ही चली गई हो।

मीरा की कहानी हमें यह सिखाती है कि मां का प्यार और त्याग अनमोल होता है। हम अक्सर अपनी ज़िंदगी की भागदौड़ में उनकी भावनाओं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन जब तक हमें उनकी कद्र होती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। एक मां की असली महत्ता उसके जाने के बाद ही समझ आती है, लेकिन तब तक वह हमें हमेशा के लिए छोड़ चुकी होती है।

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