मज़ेदार भूत की कहानी (Majedar Bhut Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है
Majedar Bhut Ki Kahani
Table of Contents
किस्सा है एक छोटे से गांव ‘कुंवरपुर’ का, जहां ‘भूतबाबा की हवेली’ नाम की एक विशाल और पुरानी हवेली थी। गांववाले कहते थे कि वहां एक भूत रहता है, जिसका नाम ‘भोलू भूत’ है। भोलू भूत कोई साधारण भूत नहीं था, वह बहुत मजेदार और शरारती था। उसकी शरारतों की वजह से गांववालों के बीच वह एक मशहूर और प्यारी शख्सियत बन गया था।
भोलू भूत का असली नाम “भोलू सिंह” था। वह इस दुनिया में रहते हुए एक बहुत ही नटखट और हंसमुख आदमी था। उसे शरारतें करना और लोगों को हंसाना बहुत पसंद था। उसकी मौत के बाद भी उसकी यह आदतें नहीं गईं, बल्कि वह एक भूत बनकर भी लोगों के जीवन में हंसी और मस्ती भरता रहा। भोलू ने ठान लिया था कि वह अपनी भूतिया जिंदगी को भी मजेदार बनाएगा।
भोलू का सबसे पसंदीदा शिकार थे गांव के बच्चे। बच्चे जब भी हवेली के पास से गुजरते, भोलू कोई न कोई शरारत कर देता। कभी वह झाड़ियों में छुपकर ‘बू’ की आवाज निकालता, तो कभी अचानक से किसी के सामने आकर गायब हो जाता। बच्चे पहले तो डर जाते, लेकिन फिर भोलू की हरकतों पर हंसने लगते। उन्हें पता था कि यह भूत उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, बस थोड़ी मस्ती करेगा।
एक बार की बात है, गांव के कुछ लड़कों ने भूतबाबा की हवेली में रात बिताने की ठानी। वे सोचते थे कि अगर भोलू सच में वहां है, तो वह रात भर उन्हें परेशान करेगा। लड़के खाने-पीने का सामान लेकर हवेली में पहुंचे और एक बड़े हॉल में डेरा डाल लिया। उन्हें लगा कि वे भोलू को देख लेंगे और गांववालों को उसकी कहानियां सुनाएंगे।
लेकिन भोलू ने पहले ही उनकी योजना भांप ली थी। उसने सोचा कि क्यों न इस बार इन बच्चों के साथ कुछ अलग शरारत की जाए। वह चुपचाप बच्चों के पास पहुंचा और उनके सामान के साथ खेल करना शुरू कर दिया। कभी किसी का खाने का सामान गायब कर देता, तो कभी सोते हुए किसी के कान के पास जाकर फुसफुसाता, “मैं भोलू भूत हूँ।”
लड़के पहले तो हैरान हो गए कि उनके सामान कहां जा रहे हैं। फिर जब उनमें से एक ने भोलू की आवाज सुनी, तो वह डरकर चिल्लाने लगा। “भूत! भूत! यहां सच में भूत है!” उसकी आवाज सुनकर सभी लड़के घबरा गए और इधर-उधर भागने लगे। लेकिन जैसे ही वे दौड़े, भोलू ने उनके सामने आकर जोर-जोर से हंसना शुरू कर दिया।
“अरे, रुको-रुको! मैं तो मजाक कर रहा था,” भोलू ने कहा, हंसते-हंसते उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। लड़के समझ गए कि यह वही भोलू भूत है, जिसके बारे में वे सुनते आए थे। सभी ने राहत की सांस ली और फिर से अपनी जगह पर बैठ गए।
“तो तुम ही हो भोलू भूत?” एक लड़के ने हंसते हुए पूछा।
“हां, मैं ही हूँ। लेकिन मैं कोई डरावना भूत नहीं हूँ, मैं तो बस हंसाने वाला भूत हूँ,” भोलू ने गर्व से कहा।
फिर तो लड़कों ने भोलू से ढेर सारी बातें कीं। भोलू ने उन्हें अपनी भूतिया जिंदगी की मजेदार कहानियां सुनाईं। उसने बताया कि कैसे वह गांववालों की शरारतें करता है और उन्हें हंसाता है। लड़कों को भोलू की बातें सुनकर बहुत मजा आया। वे सब मिलकर देर रात तक हंसते-खिलखिलाते रहे।
कुछ दिनों बाद, गांव में मेला लगा। हर साल की तरह, इस बार भी मेले में खूब रौनक थी। भोलू को यह देखकर बहुत अच्छा लगा, लेकिन वह सोच रहा था कि कैसे वह इस मेले को और भी मजेदार बना सकता है। भोलू ने सोचा कि क्यों न वह मेले में कुछ ऐसी शरारतें करे जिससे सबका ध्यान उसकी ओर जाए, लेकिन इस बार उसने फैसला किया कि वह अपनी शरारतों से लोगों को डराएगा नहीं, बल्कि खुश करेगा।
भोलू ने अपनी जादुई शक्तियों का इस्तेमाल किया और मेले के झूलों को खुद-ब-खुद चलाने लगा। लोग हैरान थे कि यह कैसे हो रहा है। कुछ ही देर में बच्चे झूलों में बैठने लगे और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। फिर भोलू ने मिठाइयों के ठेले पर जाकर बिना किसी की मदद के मिठाइयों को उड़ाना शुरू कर दिया और बच्चों के हाथों में पहुंचाने लगा। बच्चे खुशी-खुशी मिठाइयां खा रहे थे और सभी हंसते हुए यह सोच रहे थे कि यह जादू कैसे हो रहा है।
अंत में भोलू ने सबसे बड़ा खेल खेला। उसने अचानक मेले की लाइट्स बंद कर दीं और अंधेरे में अपनी चमकदार परछाई दिखाने लगा। लोग कुछ पलों के लिए डर गए, लेकिन तभी भोलू ने अपनी शरारत का खुलासा करते हुए जोर से हंसकर कहा, “डरो मत, यह मैं हूँ, तुम्हारा भोलू भूत!”
लोगों को जब पता चला कि यह सब भोलू की शरारतें थीं, तो वे भी जोर-जोर से हंसने लगे। मेले में मौजूद सभी लोग, बूढ़े, बच्चे, औरतें, सभी भोलू की शरारतों का लुत्फ उठाने लगे। भोलू ने उस दिन पूरे मेले में हंसी और खुशी बिखेर दी।
इस घटना के बाद, भोलू और भी मशहूर हो गया। अब गांववाले उसे सिर्फ एक भूत के रूप में नहीं, बल्कि एक दोस्त के रूप में देखने लगे। भोलू भी अब और ज्यादा शरारती हो गया था, लेकिन उसकी शरारतें अब लोगों के जीवन में खुशी लाने वाली थीं।
गांव के लोग अब कभी भोलू से नहीं डरते थे, बल्कि उसका इंतजार करते थे कि वह कब आएगा और अपनी शरारतों से सबका दिन बना देगा। भोलू ने अपनी अनोखी मस्ती और शरारतों से भूत की डरावनी छवि को बदल दिया था। अब वह भोलू भूत नहीं, बल्कि ‘मजेदार भोलू’ के नाम से जाना जाता था।
और इस तरह भोलू भूत की शरारतें और मस्ती भरी जिंदगी गांववालों के लिए एक खुशहाल यादगार बन गईं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही। गांववालों के लिए भोलू भूत कोई डरावना साया नहीं, बल्कि हंसी और खुशी का प्रतीक बन गया था।