33 सर्वश्रेष्ठ शिक्षाप्रद कहानियाँ | 33 Best Moral Stories In Hindi

मित्रों, इस पोस्ट में हम 33 शिक्षाप्रद कहानियाँ (“Moral Stories In Hindi”) शेयर कर रहे हैं. जीवन  कहानियों का अलग महत्व है. हमारा बचपन विभिन्न प्रकार की मनोरंजक, प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद कहानियों से गुलज़ार रहा है. वे सभी कहानियाँ सदाबहार है और हर दौर में हर उम्र के लोगों का मनोरंजन करने के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी प्रदान करती हैं. इस पोस्ट में शेयर की गई 33 शिक्षाप्रद कहानियाँ आपको अपने बचपन की याद दिलाएंगी और जो पहली बार ये कहानियाँ पढ़ रहे हैं, उन्हें जीवन मूल्य सिखा जायेंगी. पढ़िए :  

Moral Stories In Hindi
Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

33 Moral Stories In Hindi

Table of Contents

1# अहंकार का फल 

एक समय की बात है. एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था. मूर्तिकला के प्रति अत्यधिक प्रेम के कारण उसने अपना संपूर्ण जीवन मूर्तिकला को समर्पित कर दिया. परिणामतः वह इतना पारंगत हो गया कि उसकी बनाई हर मूर्ति जीवंत प्रतीत होती थी.

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उसकी बनाई मूर्तियों को देखने वाला उसकी कला की भूरी-भूरी प्रशंसा करता था. उसके गाँव में ही नहीं, बल्कि उसकी कला के चर्चे दूर-दूर के नगर और गाँव में होने लगे थे. ऐसी स्थिति में जैसा सामान्यतः होता है, वैसे ही मूर्तिकार के साथ भी हुआ. उसके भीतर अहंकार की भावना जागृत हो गई. वह स्वयं को सर्श्रेष्ठ मूर्तिकार मानने लगा.

उम्र बढ़ने के साथ जब उसका अंत समय निकट आने लगा, तो वह मृत्यु से बचने की युक्ति सोचने लगा. वह किसी भी तरह स्वयं को यमदूत की दृष्टि से बचाना चाहता था, ताकि वह उसके प्राण न हर सके.

अंततः उससे एक युक्ति सूझ ही गई. उसने अपनी बेमिसाल मूर्तिकला का प्रदर्शन करते हुए १० मूर्तियों का निर्माण किया. वे सभी मूर्तियाँ दिखने में हूबहू उसके समान थीं. निर्मित होने के पश्चात् सभी मूर्तियाँ इतनी जीवंत प्रतीत होने लगी कि मूर्तियों और मूर्तिकार में कोई अंतर ही ना रहा.

मूर्तिकार उन मूर्तियों के मध्य जाकर बैठ गया. युक्तिनुसार यमदूत का उसे इन मूर्तियों के मध्य पहचान पाना असंभव था.

उसकी युक्ति कारगर भी सिद्ध हुई. जब यमदूत उसके प्राण हरने आया, तो ११ एक सरीकी मूर्तियों को देख चकित रह गया. वह उन मूर्तियों में अंतर कर पाने में असमर्थ था. किंतु उसे ज्ञात था कि इन्हीं मूर्तियों के मध्य मूर्तिकार छुपा बैठा है.

मूर्तिकार के प्राण हरने के लिए उसकी पहचान आवश्यक थी. उसके प्राण न हर पाने का अर्थ था – प्रकृति के नियम के विरूद्ध जाना. प्रकृति के नियम के अनुसार मूर्तिकार का अंत समय आ चुका था.

मूर्तिकार की पहचान करने के लिए यमदूत हर मूर्ति को तोड़ कर देख सकता था. किंतु वह कला का अपमान नहीं करना चाहता था. इसलिए इस समस्या का उसने एक अलग ही तोड़ निकाला.

उसे मूर्तिकार के अहंकार का बोध था. अतः उसके अहंकार पर चोट करते हुए वह बोला, “वास्तव में सब मूर्तियाँ कलात्मकतता और सौंदर्य का अद्भुत संगम है. किंतु मूर्तिकार एक त्रुटी कर बैठा. यदि वो मेरे सम्मुख होता, तो मैं उसे उस त्रुटी से अवगत करा पाता.”

अपनी मूर्ति में त्रुटी की बात सुन अहंकारी मूर्तिकार का अहंकार जाग गया. उससे रहा नहीं गया और झट से अपने स्थान से उठ बैठा और यमदूत से बोला, “त्रुटि?? असंभव!! मेरी बनाई मूर्तियाँ सर्वदा त्रुटिहीन होती हैं.”

यमदूत की युक्ति काम कर चुकी थी. उसने मूर्तिकार को पकड़ लिया और बोला, “बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती और तुम बोल पड़े. यही तुम्हारी त्रुटी है कि अपने अहंकार पर तुम्हारा कोई बस नहीं..”

यमदूत मूर्तिकार के प्राण कर यमलोक वापस चला गया.

सीख

अहंकार विनाश का कारण है. इसलिए अहंकार को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए.

2# अंधा आदमी और लालटेन

Moral Stories In Hindi Short : दुनिया में तरह-तरह के लोग होते हैं. कुछ तो ऐसे होते हैं, जो स्वयं की कमजोरियों को तो नज़रंदाज़ कर जाते हैं किंतु दूसरों की कमजोरियों पर उपहास करने सदा तत्पर रहते हैं. वास्तविकता का अनुमान लगाये बिना वे दूसरों की कमजोरियों पर हँसते हैं और अपने तीखे शब्दों के बाणों से उन्हें ठेस पहुँचाते हैं. किंतु जब उन्हें यथार्थ का तमाचा पड़ता है, तो सिवाय ग्लानि के उनके पास कुछ शेष नहीं बचता.

आज हम आपको एक अंधे व्यक्ति की कहानी बता रहे हैं, जिसे ऐसे ही लोगों के उपहास का पात्र बनना पड़ा.

एक गाँव में एक अंधा व्यक्ति रहता था. वह रात में जब भी बाहर जाता, एक जली हुई लालटेन हमेशा अपने साथ रखता था.

एक रात वह अपने दोस्त के घर से भोजन कर अपने घर वापस आ रहा था. हमेशा की तरह उसके हाथ में एक जली हुई लालटेन थी. कुछ शरारती लड़कों ने जब उसके हाथ में लालटेन देखी, तो उस पर हंसने लगे और उस पर व्यंग्य बाण छोड़कर कहने लगे, “अरे, देखो-देखो अंधा लालटेन लेकर जा रहा है. अंधे को लालटेन का क्या काम?”

उनकी बात सुनकर अंधा व्यक्ति ठिठक गया और नम्रता से बोला, “सही कहते हो भाईयों. मैं तो अंधा हूँ. देख नहीं सकता. मेरी दुनिया में तो सदा से अंधेरा रहा है. मुझे लालटेन क्या काम? मेरी आदत तो अंधेरे में ही जीने की है. लेकिन आप जैसे आँखों वाले लोगों को तो अंधेरे में जीने की आदत नहीं होती. आप लोगों को अंधेरे में देखने में समस्या हो सकती है. कहीं आप जैसे लोग मुझे अंधेरे में देख ना पायें और धक्का दे दें, तो मुझ बेचारे का क्या होगा? इसलिए ये लालटेन आप जैसे लोगों के लिए लेकर चलता हूँ. ताकि अंधेरे में आप लोग मुझ अंधे को देख सकें.”

अंधे व्यक्ति की बात सुनकर वे लड़के शर्मसार हो गए और उससे क्षमा मांगने लगे. उन्होंने प्रण किया कि भविष्य में बिना सोचे-समझे किसी से कुछ नहीं कहेंगे.

सीख

कभी किसी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहये और कुछ भी कहने के पूर्व अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए.

 3# अवसर की पहचान

Moral Stories In Hindi : पहाड़ी क्षेत्र में नदी किनारे एक छोटा सा गाँव बसा हुआ था. उस गाँव के लोग बहुत धार्मिक प्रवृति के थे. गाँव के मध्य स्थित मंदिर में सभी गाँव वाले दैनिक पूजा-अर्चना करते थे. उस मंदिर की देखभाल की ज़िम्मेदारी वहाँ के पुजारी पर थी. जो मंदिर परिसर में ही निवास करता था. वह सुबह से लेकर रात तक ईश्वर की अर्चना में लीन रहता था.

एक दिन गाँव पर प्रकृति का कहर मूसलाधार बारिश के रूप में टूटा, जिससे गाँव की नदी में बाढ़ आ गई. बाढ़ का पानी जब गाँव में प्रवेश कर गया, तो गाँव के लोग घर छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की तैयारी करने लगे.

एक व्यक्ति को गाँव छोड़कर जाने के पहले मंदिर के पुजारी का ध्यान आया और वह भागता हुआ मंदिर पहुँचा. वहाँ पहुँचकर वह पुजारी से बोला,”पंडितजी! बाढ़ का पानी हमारे घरों में घुसने लगा है. धीरे-धीरे बढ़ते हुए वो मंदिर तक भी पहुँच जायेगा. यदि हमने गाँव नहीं छोड़ा, तो बाढ़ में बह जायेंगे. हम सभी सुरक्षित स्थान पर जा रहे हैं. आप भी हमारे साथ चलिये.”

लेकिन पंडित उस व्यक्ति के साथ जाने को राज़ी नहीं हुआ. वह बोला, “मैं तुम लोगों जैसा नास्तिक नहीं हूँ. मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है. पूरे जीवन मैंने उसकी आराधना की है. वह मुझे कुछ नहीं होने देगा. तुम लोगों को जाना है, तो जाओ. मैं यहीं रहूंगा.”

पंडित की बात सुनकर वह व्यक्ति वापस चला गया. पंडित भगवान की प्रार्थना में लीन हो गया.

कुछ ही देर में बाढ़ का पानी मंदिर तक पहुँच गया. बढ़ते-बढ़ते वह पंडित के कमर तक पहुँच गया. ठीक उसी समय एक आदमी नाव लेकर वहाँ आया और पंडित से बोला, “पंडित जी, मुझे गाँव के एक आदमी ने बताया कि आप अब भी यहीं हैं. मैं आपको लेने आया हूँ. चलिये, नाव पर बैठिये.”

पंडित ने वही बात नाव वाले व्यक्ति से भी कही, जो उसने पहले व्यक्ति से कहीं थी और जाने से इंकार कर दिया. नाव लेकर आया व्यक्ति चला गया.

कुछ देर में पानी मंदिर के छत तक पहुँच गया. भगवान को मदद के लिये याद करता हुआ पंडित मंदिर के सबसे ऊँचे शिखर पर जाकर खड़ा हो गया. तभी वहाँ एक सुरक्षा दल हेलीकॉप्टर से आया और पंडित को बचाने के लिए रस्सी फेंकी. लेकिन पंडित ने वही बात दोहराते हुए रस्सी पकड़ने से इंकार कर दिया. सुरक्षा दल का हेलीकॉप्टर दूसरों को बचाने आगे चला गया.

अब बाढ़ का पानी मंदिर के शिखर तक आ गया था. वहाँ खड़ा पंडित डूबने लगा. डूबने के पहले वह भगवान से शिकायत करते हुए बोला, “भगवान! मैंने पूरा जीवन तुझे समर्पित कर दिया. मैंने तुझ पर इतना विश्वास रखा. फिर भी तुम मुझे बचाने नहीं आये.”

पंडित की शिकायत सुन भगवान प्रकट हुए और बोले, “अरे मूर्ख! मैं तीन बार तुझे बचाने आया था. पहली बार मैं भागते हुए तुम्हारे पास आया और गाँव वालों के साथ गाँव छोड़कर चलने कहता रहा. फिर मैं नाव लेकर आया और अंत में हेलीकॉप्टर. अब इसमें मेरी क्या गलती कि तूने मुझे पहचाना नहीं?”

पंडित को अपनी गलती समझ में आ गई. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

सीख

जीवन में अवसर बिना बताये दस्तक देते है. हम उन्हें पहचान नहीं पाते और जीवन भर शिकायत करते रहते हैं कि अच्छा और सफ़ल जीवन जीने का हमें अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ. इसलिए अवसर किसी भी रूप में सामने आये, उसे अपने हाथ से ना जाने दें.

4# राजा का चित्र

Moral Stories In Hindi : एक समय की बात है. एक राज्य में राजा राज करता था. उसकी केवल एक आँख थी और एक पैर था. इन कमजोरियों की बाद भी वह एक कुशल, दयालु और बुद्धिमान शासक था. उसके शासन में प्रजा बहुत ख़ुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी.

एक दिन राजा अपने महल के गलियारे से टहल रहा था. सहसा उसकी दृष्टि गलियारे की दीवार पर लगे चित्रों पर पड़ी. वे चित्र उसके पूर्वज के थे. उन चित्रों को देख राजा के मन में विचार आया कि भविष्य में जब उसके उत्तराधिकारी महल के उस गलियारे से टहलेंगे, तो उन चित्रों को देख अपने पूर्वजों का स्मरण करेंगे.

राजा का चित्र अब तक उस दीवार पर नहीं लगा था. अपनी शारीरिक अक्षमताओं के कारण वह नहीं जानता था कि उसका चित्र कैसा दिखेगा? लेकिन उस दिन उसने सोचा कि उसे भी अपना चित्र उस दीवार पर लगवाना चाहिए.

अगले दिन उसने अपने राज्य के श्रेष्ठ चित्रकारों को दरबार में आमंत्रित किया. दरबार में उसने घोषणा की कि वह महल में लगवाने के लिए अपना सुंदर चित्र बनवाना चाहता है. जो उसका सुंदर चित्र बना सकता है, वह चित्रकार आगे आये. चित्र जैसा बनेगा, वैसा ही उस चित्रकार को ईनाम दिया जायेगा.

दरबार में उपस्थित चित्रकार अपनी कला में निपुण थे. लेकिन राजा की घोषणा सुनने के बाद वे सोचने लगे कि राजा तो काना और लंगड़ा है. ऐसे में उसका सुंदर चित्र कैसे बन पायेगा? चित्र सुंदर नहीं दिखा, तो हो सकता है राजा क्रोधित होकर उन्हें सजा दे दे. यह विचार किसी को आगे आने का साहस न दे सका. सब कोई न कोई बहाना बनाकर वहाँ से चले गए.

वहाँ मात्र एक युवा चित्रकार खड़ा रहा. राजा ने उससे पूछा, “क्या तुम मेरा चित्र बनाने को तैयार हो?”

युवा चित्रकार ने हामी भर दी. राजा ने उसे अपना चित्र बनाने की आज्ञा दे दी. अगले ही दिन से वह चित्रकार राजा का चित्र बनाने में जुट गया.

कुछ दिनों बाद चित्र बनकर तैयार था. जब चित्र के अनावरण का दिन आया, तो दरबार में दरबारी सहित वे सभी चित्रकार भी उपस्थित हुए, जिन्होंने राजा का चित्र बनाने से इंकार कर दिया था. सभी उत्सुकता से चित्र के अनावरण की प्रतीक्षा कर रहे थे.

जब चित्र का अनावरण हुआ, तो राजा सहित सबके मुँह खुले के खुले रह गए. चित्र बहुत ही सुंदर बना था. उस चित्र में राजा दोनों तरफ पैर कर घोड़े पर बैठा हुआ था, जिसे एक ओर से चित्रित किया था और उसमें राजा का एक ही पैर नज़र आ रहा था. साथ ही राजा धनुष चढ़ाकर एक आँख बंद कर निशाना साध रहा था, जिससे उसके काने होने की कमजोरी छुप गई थी.

यह चित्र देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ. चित्रकार ने अपनी बुद्धिमत्ता से उसकी अक्षमताओं को छुपाकर एक बहुत सुंदर चित्र बनाया था. राजा ने उसे पुरुस्कृत करने के साथ उसे अपने दरबार का मुख्य चित्रकार बना दिया.

सीख

जीवन में आगे बढ़ना है, तो हमें सदा सकारात्मक सोच रखना चाहिए. विषम परिस्थितियों में भी सकारात्मक दिशा में सोचने से किसी भी समस्या का समाधान आसानी से हो जाता है.

5# बंद मुट्ठी खुली मुट्ठी 

Moral Stories On Stinginess : एक व्यक्ति के दो पुत्र थे. दोनों का स्वभाव एक-दूसरे के विपरीत था. एक बहुत कंजूस था, तो दूसरा फ़िज़ूलखर्च. पिता उनके इस स्वभाव से परेशान था. उसने कई बार उनको समझाया. लेकिन उन्होंने अपना स्वभाव नहीं बदला.

एक दिन पिता को पता चला कि उनके गाँव में एक सिद्ध महात्मा पधारे हैं. वह उनके पास इस आस में पहुँच गया कि शायद वो उसके पुत्रों को समझा सके.

महात्मा को उसने पूरी बात बताई, जिसे सुनकर महात्मा ने कहा, “अपने पुत्रों को कल मेरे पास लेकर आना. मैं उनसे बात करूंगा.”

अगले दिन वह अपने पुत्रों को लेकर महात्मा के पास पहुँचा. महात्मा ने दोनों पुत्रों को अपने पास बैठाया और अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ बंद कर उन्हें दिखाते हुए पूछा, “यदि मेरे हाथ ऐसे हो जायें, तो कैसा लगेगा?”

“लगेगा मानो आपको कोढ़ है.” दोनों पुत्रों ने एक साथ उत्तर दिया.

उसके बाद महात्मा ने अपनी मुठ्ठी खोल ली. फिर अपनी दोनों हथेली फैलाकर उन्हें दिखाते हुए प्रश्न किया, “यदि मेरे हाथ ऐसे हो जायें, तो बताओ कैसा लगेगा?”

“अब भी लगेगा कि आपको कोढ़ है.” दोनों पुत्रों ने उत्तर दिया.

उत्तर सुनकर महात्मा गंभीर हो गए और उन्हें समझाने लगे, “पुत्रों! अपनी मुठ्ठी सदा बंद रखना या सदा खुली रखना एक तरह का कोढ़ ही है. यदि मुठ्ठी सदा बंद रखोगे, तो धनवान होते हुए भी निर्धन ही रहोगे और यदि अपनी मुठ्ठी सदा खुली रखोगे, तो फिर चाहे कितने भी धनवान क्यों ना हो, निर्धन होते देर नहीं लगेगी. इसलिए कभी अपनी मुठ्ठी बंद रखो कभी खुली. इस तरह से जीवन का संतुलन बना रहेगा.”

पुत्रों को महात्मा की बात समझ में आ गई और उन्होंने निश्चय किया कि संतुलन बनाकर ही अपना धन खर्च करेंगे.

सीखजीवन में धन का बहुत महत्व है. उसका खर्च सोच-समझकर करना चाहिए. अधिक कंजूसी भी ठीक नहीं और अधिक फ़िज़ूलखर्ची भी ठीक नहीं. दोनों ही दरिद्रता का संकेत हैं. एक धन होते हुए भी दरिद्रता और एक धन चले जाने की दरिद्रता. अतः ऐसे  खर्च करें कि धन का संतुलन बना रहे. 

6# लालची आदमी 

Moral Stories In Hindi : एक नगर में एक लोभी व्यक्ति रहता था. अपार धन-संपदा होने के बाद भी उसे हर समय और अधिक धन प्राप्ति की लालसा रहती थी.

एक बार नगर में एक चमत्कारी संत का आगमन हुआ. लोभी व्यक्ति को जब उनके चमत्कारों के बारे में ज्ञात हुआ, तो वह दौड़ा-दौड़ा उनके पास गया और उन्हें अपने घर आमंत्रित कर उनकी अच्छी सेवा-सुश्रुषा की. सेवा से प्रसन्न होकर नगर से प्रस्थान करने के पूर्व संत ने उसे चार दीपक दिए.

चारों दीपक देकर संत ने उसे बताया, “पुत्र! जब भी तुम्हें धन की आवश्यकता हो, तो पहला दीपक जला लेना और पूर्व दिशा में चलते जाना. जहाँ दीपक बुझ जाये, उस जगह की जमीन खोद लेना. वहाँ तुम्हें धन की प्राप्ति होगी. उसके उपरांत पुनः तुम्हें धन की आवश्यकता हुई, तो दूसरा दीपक जला लेना. जिसे लेकर पश्चिम दिशा में तब तक चलते जाना, जब तक वह बुझ ना जाये. उस स्थान से जमीन में गड़ी अपार धन-संपदा तुम्हें प्राप्त होगा. धन की तुम्हारी आवश्यकता तब भी पूरी ना हो, तो तीसरा दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में चलते जाना. जहाँ दीपक बुझे, वहाँ की जमीन खोदकर वहाँ का धन प्राप्त कर लेना. अंत में तुम्हारे पास एक दीपक और एक दिशा शेष रहेगी. किंतु तुम्हें न उस दीपक को जलाना है, न ही उस दिशा में जाना है.”

इतना कहकर संत लोभी व्यक्ति के घर और उस नगर से प्रस्थान कर गए. संत के जाते ही लोभी व्यक्ति ने पहला दीपक जला लिया और धन की तलाश में पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा. एक जंगल में दीपक बुझ गया. वहाँ की खुदाई करने पर उसे एक कलश प्राप्त हुआ. वह कलश सोने के आभूषणों से भरा हुआ था.

लोभी व्यक्ति ने सोचा कि पहले दूसरी दिशाओं का धन प्राप्त कर लेता हूँ, फिर यहाँ का धन ले जाऊँगा. वह कलश वहीं झाड़ियों में छुपाकर उसने दूसरा दीपक जलाया और पश्चिम दिशा की ओर चल पड़ा. एक सुनसान स्थान में दूसरा दीपक बुझ गया. लोभी व्यक्ति ने वहाँ की जमीन खोदी. उसे वहाँ एक संदूक मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था.

लोभी व्यक्ति ने वह संदूक उसी गड्ढे में बाद में ले जाने के लिए छोड़ दिया. अब उसने तीसरा दीपक जलाया और दक्षिण दिशा की ओर बढ़ गया. वह दीपक एक पेड़ के नीचे बुझा. वहाँ जमीन के नीचे लोभी व्यक्ति को एक घड़ा मिला, जिसमें हीरे-मोती भरे हुए थे.

इतना धन प्राप्त कर लोभी व्यक्ति प्रसन्न तो बहुत हुआ, किंतु उसका लोभ और बढ़ गया. वह अंतिम दीपक जलाकर उत्तर दिशा में जाने का विचार करने लगा, जिसके लिए उसे संत ने मना किया था. किंतु लोभ में अंधे हो चुके व्यक्ति ने सोचा कि अवश्य उस स्थान पर इन स्थानों से भी अधिक धन छुपा होगा, जो संत स्वयं रखना चाहता होगा. मुझे तत्काल वहाँ जाकर उससे पहले उस धन को अपने कब्जे में ले लेना चाहिए. उसके बाद सारा जीवन मैं ऐशो-आराम से बिताऊंगा.

उसने अंतिम दीपक जला लिया और उत्तर दिशा में बढ़ने लगा. चलते-चलते वह एक महल के सामने पहुँचा. वहाँ पहुँचते ही दीपक बुझ गया.

दीपक बुझने के बाद लोभी व्यक्ति ने महल का द्वार खोल लिया और महल के भीतर प्रवेश कर महल के कक्षों में धन की तलाश करने लगा. एक कक्ष में उसे हीरे-जवाहरातों का भंडार मिला, जिन्हें देख उसकी आँखें चौंधियां गई. एक अन्य कक्ष में उसे सोने का भंडार मिला. अपार धन देख उसका लालच और बढ़ने लगा. कुछ आगे जाने पर उसे चक्की चलने की आवाज़ सुनाई पड़ी. वह एक कक्ष से आ रही थी. आश्चर्यचकित होकर उसने उस कक्ष का द्वार खोल लिया. वहाँ उसे एक वृद्ध व्यक्ति चक्की पीसता हुआ दिखाई पड़ा.

लोभी व्यक्ति ने उससे पूछा, “यहाँ कैसे पहुँचे बाबा?”

“क्या थोड़ी देर तुम चक्की चलाओगे? मैं ज़रा सांस ले लूं. फिर तुम्हें पूरी बात बताता हूँ कि मैं यहाँ कैसे पहुँचा और मुझे यहाँ क्या मिला?” वृद्ध व्यक्ति बोला.

लोभी व्यक्ति ने सोचा कि वृद्ध व्यक्ति से यह जानकारी प्राप्त हो जायेगी कि इस महल में धन कहाँ-कहाँ छुपा है और उसकी बात मानकर वह चक्की चलाने लगा. इधर वृद्ध व्यक्ति उठ खड़ा हुआ और जोर-जोर से हँसने लगा.

उसे हँसता देख लोभी व्यक्ति ने पूछा, “ऐसे क्यों हंस रहे हो?” यह कहकर वह चक्की बंद करने लगा.

“अरे अरे, चक्की बंद मत करना. अबसे ये महल तेरा है. इस पर अब तेरा अधिकार है और साथ ही इस चक्की पर भी. ये चक्की तुम्हें अब हर समय चलाते रहना है क्योंकि चक्की बंद होते ही ये महल ढह जायेगा और तू इसमें दब कर मर जायेगा.”

गहरी सांस लेकर वृद्ध व्यक्ति आगे बोला, “संत की बात न मानकर मैं भी लोभवश आखिरी दीपक जलाकर इस महल में पहुँच गया था. तब से यहाँ चक्की चला रहा हूँ. मेरी पूरी जवानी चक्की चलाते-चलाते निकल गई.” इतना कहकर वृद्ध व्यक्ति वहाँ से जाने लगा.

“जाते-जाते ये बताते जाओ कि इस चक्की से छुटकारा कैसे मिलेगा?” लोभी व्यक्ति पीछे से चिल्लाया.

“जब तक मेरे और तुम्हारे जैसा कोई व्यक्ति लोभ में अंधा होकर यहाँ नहीं आयेगा, तुम्हें इस चक्की से छुटकारा नहीं मिलेगा.” इतना कहकर वृद्ध व्यक्ति चला गया.

लोभी व्यक्ति चक्की पीसता और खुद को कोसता रह गया.

सीख 

लालच बुरी बला है.

7# शिक्षक की सीख 

एक कक्षा में अध्यापक छात्रों को पढ़ा रहे थे. तभी कक्षा के दो छात्र आपस में झगड़ने लगे. उनका झगड़ा देख अध्यापक ने पूछा, “क्या बात है? तुम दोनों ऐसे क्यों झगड़ रहे हो?”

“सर! ये मेरी बात सुन ही नहीं रहा है. बस अपनी बात पर अड़ा हुआ है.” एक छात्र बोला.

“सर, मैं इसकी बात क्यों सुनूं? ये जो कह रहा है, वो गलत हैं. ऐसे में इसकी बात सुनकर क्या फायदा?” दूसरा छात्र बोला.

इसके बाद दोनों फिर से आपस में उलझ गए. दोनों की सुलह कराने अध्यापक ने उन्हें अपने पास बुलाया. दोनों छात्र अध्यापक की डेस्क के पास जाकर खड़े हो गये. एक डेस्क की एक ओर और दूसरा डेस्क की दूसरी ओर.

अध्यापक ने डेस्क की दराज़ से एक गेंद निकाली और उसे डेस्क के बीचों-बीच रख दिया. उसके बाद वे दोनों छात्रों से बोले, “इस गेंद को देखकर बताओ, ये किस रंग की है?”

“ये सफ़ेद रंग की गेंद है सर.” पहला छात्र बोला.

“नहीं सर, ये तो काली है.” दूसरा छात्र बोला.

दोनों के उत्तर एक-दूसरे से भिन्न थे. लेकिन दोनों अपनी बात पर अडिग थे. दोनों में फिर तू-तू मैं-मैं होने लगी. अध्यापक ने दोनों को शांत कर अपने स्थान बदलने को कहा. दोनों ने अपने स्थान बदल लिए.

“अब गेंद को देखकर बताओ कि ये किस रंग की है?” अध्यापक ने फिर से वही प्रश्न दोहराया.

इस बार भी दोनों के जवाब एक-दूसरे से भिन्न थे. अब पहले छात्र ने कहा, “सर, गेंद काली है.” और दूसरे छात्र ने कहा, “सर, गेंद सफ़ेद है.” लेकिन अबकी बार वे अपने खुद के जवाब से हैरान भी थे.

अध्यापक दोनों को समझाते हुए बोले, “ये गेंद दो रंगों की बनी हुई है. एक तरफ से देखने पर सफ़ेद दिखती है, तो दूसरी तरफ से देखने पर काली. तुम दोनों के जवाब सही हैं. फर्क बस तुम्हारे देखने में है. जिस जगह से तुम इस गेंद को देख रहे हो, वहाँ से तुम्हें ये वैसे रंग की दिखाई दे रही है. जीवन भी ऐसा ही है. जीवन में भी किसी चीज़, परिस्थिति या समस्या को देखने का नज़रिया (Attitude) भिन्न हो सकता है. ये ज़रूरी नहीं कि जिसका मत आपसे भिन्न है, वो गलत है. ये बस नज़रिये का फर्क है. ऐसे में हमें विवाद में पड़ने के स्थान पर दूसरे के नज़रिये को समझने का प्रयास करना चाहिए. तभी हम किसी की बात बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और अपनी बात बेहतर ढंग से समझा पाएंगे.”

दोनों छात्रों को अध्यापक की बात समझ में आ गई और दोनों ने अपना झगड़ा भुलाकर सुलह कर ली.

सीख

जीवन में परिस्थितयाँ भिन्न हो सकती हैं. उन परिस्थितियों के प्रति लोगों का नज़रिया (Attitude)भिन्न हो सकता है. हम अक्सर किसी भी परिस्थिति को जाने बिना अपनी टिप्पणी दे देते हैं और अपनी बात पर अड़ जाते हैं. ऐसे में विवाद या बहस की स्थिति निर्मित होती है, जो अंततः संबंध बिगड़ने का कारण बन जाती है. इसलिए किसी भी बात पर अपनी टिप्पणी देने के पहले परिस्थिति या मामले की अच्छी तरह जानकारी ले लेना चाहिए. साथ ही यदि मतभिन्नता की स्थिति बने, तो दूसरे के नज़रिये को समझने को कोशिश करना चाहिए. ताकि विवाद नहीं बल्कि बेहतर संवाद स्थापित हो सके.       

8# हथौड़ा और चाभी

शहर की पुरानी बस्ती में ताले की एक दुकान थी. उस दुकान में ढेर सारे ताले-चाभी थे. लोग ताले ख़रीदने वहाँ आते. कभी-कभी मुख्य चाभी गुम हो जाने पर डुप्लीकेट चाभी बनवाने भी उस दुकान पर आते.

उसी दुकान में कोने में एक मजबूत हथौड़ा भी पड़ा हुआ था, जो ताला तोड़ने के काम आता था. लेकिन उसका प्रयोग कभी-कभार ही होता था.

कोने में पड़े-पड़े हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि मैं इतना मजबूत हूँ. इतना बलशाली हूँ. इसके बाद भी इतने प्रहार झेलता हूँ, तब ही ताले को खोल पाता हूँ. लेकिन चाभी इतनी छोटी होने के बावजूद किसी भी ताले को बड़ी ही आसानी से खोल लेती हैं. ऐसा क्या है इस छोटी सी चाभी में?

एक दिन जब दुकान बंद हुई, तो उससे रहा ना गया. उसने चाभी से पूछ ही लिया, “चाभी बहन, मैं बहुत दिनों से एक बात सोच रहा था, किंतु बहुत सोचने के बाद भी मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया. क्या तुम मेरे एक सवाल का जवाब देकर मुझे निष्कर्ष तक पहुँचने में मदद कर सकती हो?”

“पूछो भाई, बन पड़ा तो तुम्हारे सवाल का जवाब मैं तुम्हें अवश्य दूंगी.” चाभी नम्रता से बोली.

“बहन, तुममे में ऐसी क्या ख़ास बात है कि तुम इतनी छोटी होने पर भी हर प्रकार के ताले, चाहे वह कितना मजबूत और जिद्दी क्यों न हो, बड़ी आसानी से खोल लेती हो. जबकि मैं तुमसे बहुत बड़ा, बलशाली और शक्तिशाली होने के बावजूद ऐसा नहीं कर पाता. मुझसे ताला खोलने में बहुत मेहनत लगती हैं और कई बार प्रयास करने के बाद ही ताला टूटता है.”

चाभी मुस्कुराई और बोली, “बहुत ही साधारण सी बात हैं हथौड़े भाई. तुम ताले पर प्रहार करते हो. इस तरह तुम उस पर बल का प्रयोग करते हो और खोलने के प्रयास में उसे चोट पहुँचाते हो. ऐसे में ताला खुलता नहीं, बल्कि टूट जाता है. जबकि मैं बिना बल का प्रयोग किये और ताले को चोट पहुँचाये बगैर उसके अंतर्मन में उतर जाती हूँ. इसलिए मेरे निवेदन पर ताला तुरंत खुल जाता है.”

सीखजीवन में कई बार ऐसी परिस्थियाँ आती हैं, जब हमारे सामने हथौड़ा या चाभी बनने का विकल्प होता है. किसी का दिल जीतना है, तो उसे हथौड़ा बनकर जोर-जबरदस्ती से नहीं जीता जा सकता, बल्कि चाभी की तरह उसके दिल में उतरकर जीता जाता हैं. इसी प्रकार किसी से कोई काम करवाना है, तो डरा-धमकाकर और जबरदस्ती दबाव डालकर भी काम करवाया जा सकता हैं. लेकिन ऐसे में कार्य के प्रति उत्साह और समर्पण भावना नगण्य रहेगी. यदि किसी के दिल में कार्य के प्रति समर्पण भावना जागृत कर उसे उत्साहित कर कार्य करवाया जाये, तो कार्य मन लगाकर और समर्पण से किया जायेगा और ऐसे में कार्य बेहतर होगा और परिणाम भी बेहतर प्राप्त होगा.

9# पेड़ का रहस्य

The Moral Stories In Hindi : एक व्यक्ति मल्टीनेशनल कंपनी में सेल्स मैनेजर की जॉब करता था. उसने अपनी बचत से शहर के बाहर एक आलीशान मकान बनवाया. शहर के बाहर होने के कारण वह एरिया कुछ सुनसान था.

वह व्यक्ति अपनी पत्नि और बच्चों के साथ अपने नए घर में रहने लगा. सुबह होते ही वह काम पर निकल जाता और देर शाम तक लौटता.

सुनसान जगह इतना आलीशान मकान देखकर चोरों के एक समूह ने वहाँ चोरी करने की योजना बनाई. चोरी के पहले वे मैनेजर घर के पास चक्कर मारकर उसके घर की गतिविधियों का जायज़ा लेने लगे.

पहले ही दिन उनकी नज़र मैनेजर की एक अजीब हरक़त पर पड़ी. घर आने के बाद वह सबसे पहले अपने बगीचे में लगे आम के पेड़ के पास गया और अपने ऑफिस बैग से एक-एक कर कुछ निकालने लगा और उसे पेड़ में कहीं डालने लगा.

मैनेजर की पीठ चोरों की तरफ होने के कारण चोर ये देख नहीं पाए कि उसने अपने बैग में से क्या निकाला और पेड़ में किस जगह डाला? उन्होंने अंदाज़ा लगाया कि ये अवश्य ही कोई कीमती चीज़ होगी.

चोर मैनेजर के घर के पास घात लगाकर बैठ गए और अंधेरा होने का इंतज़ार करने लगे. रात में जब घर की लाइट्स बुझ गई, तो उन्हें इत्मिनान हुआ कि घर में सब सो गए हैं.

वे दीवार फांद कर घर में घुसे और सीधे आम के पेड़ के पास पहुँचे. फिर बिना समय गंवायें वे वहाँ मैनेजर की छुपाई चीज़ खोजने लगे. लेकिन बहुत खोजने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला. आखिरकार थक-हारकर वे वापस लौट गए.

अगले दिन वे फिर उस घर के पास छुपकर बैठ गए. मैनेजर जब ऑफिस से वापस आया, तो चोरों की नज़रें फिर उस पर ही गड़ गई. पिछले दिन की तरह वह सबसे पहले आम के पेड़ के पास गया और बैग से निकालकर उसमें कुछ डालने लगा. फिर वह घर के अंदर चला गया.

उस रात घर की लाइट्स बंद हो जाने के बाद फिर से चोर दीवार फांद आम के पेड़ के पास पहुँचे और जी-जान से उन चीजों को खोजने में लग गए, जो मैनेजर ने वहाँ छुपाई थी. लेकिन उन दिन उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ.

कुछ दिन तक वे रोज़ रात में आम के पेड़ के पास खोजबीन करते रहे. लेकिन उनके हाथ कुछ न लगा. वे परेशान हो गए कि मैनेजर आखिर कैसे उन चीज़ों को पेड़ में छुपाता है कि हम जैसे शातिर चोर भी उन्हें ढूंढ नहीं पा रहे हैं. अब चोरों में चोरी करने से ज्यादा इस रहस्य को जानने की जिज्ञासा पैदा हो गई.

आखिरकार अपनी जिज्ञासा शांत करने रविवार के दिन वे सभी मैनेजर से मिलने उसके घर पहुँचे. मैनेजर का उन्होंने शरीफ़ों की तरह अभिवादन किया.

फिर चोरों का सरदार बोला, “सर….प्लीज बुरा मत मानियेगा. एक बात आपसे पूछनी थी. हम लोग चोर हैं. पिछले कुछ दिनों से आपके घर चोरी करने की फ़िराक में हैं. हम रोज़ देखते हैं कि आप शाम को घर आकर आम के पेड़ में कुछ डालते हैं. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हम वो चीज़ें ढूंढ नहीं पाए. हम सब ये जानने को बेचैन हैं कि आप वहाँ चीज़ें कैसे छुपाते हैं कि वो मिलती नहीं हैं?”

चोरों की बात सुनकर मैनेजर हँस पड़ा, फिर बोला, “अरे भाई…..मैं वहाँ कुछ भी नहीं छुपाता. तुम लोगों को ग़लतफ़हमी हो गई है.”

“नहीं सर, हमने देखा है. आप रोज़ शाम को अपने बैग में से कुछ निकालकर पेड़ में डालते हैं. आप वहाँ कुछ न कुछ तो छुपाते हैं.” चोर एक स्वर में बोले.

अब मैनेजर गंभीर हो गया और बोला, “मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में सेल्स मैनेजर हूँ. काम का दबाव बहुत अधिक रहता है. जिस कारण तनाव होना लाज़िमी है. किसी भी हाल में टारगेट पूरा करना ही होता है. इसके लिये रोज़ किसी न किसी से झिक-झिक होती है. कस्टमर के ताने सुनने पड़ते हैं. बॉस की डांट झेलनी पड़ती है. मानसिक तनाव इतना अधिक होता है कि घर आने पर भी नहीं जाता. पहले अक्सर मेरे तनाव को बेवजह मेरे परिवारजन झेलते थे.”

कुछ देर रुककर मैनेजर आगे बताने लगा, “….जब मैंने ये नया घर बनवाया, तो सोचा कि इस घर का माहौल मैं शांतिपूर्ण रखूंगा. कभी ऑफिस का तनाव घर लेकर नहीं लाऊंगा. इसलिए घर आने के बाद मैं सबसे पहले आम के पेड़ के पास जाता हूँ और अपना पूरा तनाव एक-एक कर वहाँ डाल देता हूँ. कमाल की बात ये है कि अगले दिन जब मैं वो उठाने जाता हूँ, तब तक आधा तनाव तो गायब हो जाता है. जो थोड़ा-बहुत बचता है, उसे मैं अपने साथ ले जाता हूँ. लेकिन फिर जब शाम को घर आता हूँ, तो तनाव पेड़ के पास छोड़ जाता हूँ. यही पेड़ का रहस्य है.”

मैनजर की बात सुनकर चोरों को पेड़ का रहस्य समझ आया. चोरी करने में तो वे सफ़ल नहीं हो सके. लेकिन जीवन की एक बहुत बड़ी सीख उन्हें ज़रूर मिली.

सीखआज के दौर में जिंदगी में सुख-सुविधाओं के साधन तो बढ़ते जा रहे हैं और ज़िन्दगी आरामदायक होती जा रही हैं. लेकिन कहीं न कहीं तनाव भी बढ़ता जा रहा है. अक्सर आपने देखा होगा कि लोग ऑफिस का तनाव अपने घर ले आते हैं. इस तरह वे घर पर भी सुकून से नहीं रह पाते हैं, साथ ही अपने तनाव से परिवारजनों को भी प्रभावित करते हैं. क्या हर समय तनाव का बोझ ढोना आवश्यक है? क्या इस तरह जिंदगी कुछ ज्यादा कठिन नहीं बनती जा रही? तनाव को एकदम से तो समाप्त नहीं किया जा सकता. लेकिन कम से कम घर पर परिवारजनों के साथ होने पर तो तनाव को दूर रखा जा सकता है और उनके साथ खुशनुमा पल बिताये जा सकते हैं. इसलिए जब भी घर आयें, तनाव को बाहर ही छोड़ आयें.      

10# राजा की चिंता 

The Moral Stories In Hindi : प्राचीन समय की बात है. एक राज्य में एक राजा राज करता था. उसका राज्य ख़ुशहाल था. धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी. राजा और प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे.

एक वर्ष उस राज्य में भयंकर अकाल पड़ा. पानी की कमी से फ़सलें सूख गई. ऐसी स्थिति में किसान राजा को लगान नहीं दे पाए. लगान प्राप्त न होने के कारण राजस्व में कमी आ गई और राजकोष खाली होने लगा. यह देख राजा चिंता में पड़ गया. हर समय वह सोचता रहता कि राज्य का खर्च कैसे चलेगा?

अकाल का समय निकल गया. स्थिति सामान्य हो गई. किंतु राजा के मन में चिंता घर कर गई. हर समय उसके दिमाग में यही रहता कि राज्य में पुनः अकाल पड़ गया, तो क्या होगा? इसके अतिरिक्त भी अन्य चिंतायें उसे घेरने लगी. पड़ोसी राज्य का भय, मंत्रियों का षड़यंत्र जैसी कई चिंताओं ने उसकी भूख-प्यास और रातों की नींद छीन ली.

वह अपनी इस हालत से परेशान था. किंतु जब भी वह राजमहल के माली को देखता, तो आश्चर्य में पड़ जाता. दिन भर मेहनत करने के बाद वह रूखी-सूखी रोटी भी छक्कर खाता और पेड़ के नीचे मज़े से सोता. कई बार राजा को उससे जलन होने लगती.

एक दिन उसके राजदरबार में एक सिद्ध साधु पधारे. राजा ने अपनी समस्या साधु को बताई और उसे दूर करने सुझाव मांगा.

साधु राजा की समस्या अच्छी तरह समझ गए थे. वे बोले, “राजन! तुम्हारी चिंता की जड़ राज-पाट है. अपना राज-पाट पुत्र को देकर चिंता मुक्त हो जाओ.”

इस पर राजा बोला, ”गुरुवर! मेरा पुत्र मात्र पांच वर्ष का है. वह अबोध बालक राज-पाट कैसे संभालेगा?”

“तो फिर ऐसा करो कि अपनी चिंता का भार तुम मुझे सौंप दो.” साधु बोले.

राजा तैयार हो गया और उसने अपना राज-पाट साधु को सौंप दिया. इसके बाद साधु ने पूछा, “अब तुम क्या करोगे?”

राजा बोला, “सोचता हूँ कि अब कोई व्यवसाय कर लूं.”

“लेकिन उसके लिए धन की व्यवस्था कैसे करोगे? अब तो राज-पाट मेरा है. राजकोष के धन पर भी मेरा अधिकार है.”

“तो मैं कोई नौकरी कर लूंगा.” राजा ने उत्तर दिया.

“ये ठीक है. लेकिन यदि तुम्हें नौकरी ही करनी है, तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं. यहीं नौकरी कर लो. मैं तो साधु हूँ. मैं अपनी कुटिया में ही रहूंगा. राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से तुम ये राज-पाट संभालना.”

राजा ने साधु की बात मान ली और साधु की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा. साधु अपनी कुटिया में चले गए.

कुछ दिन बाद साधु पुनः राजमहल आये और राजा से भेंट कर पूछा, “कहो राजन! अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं और तुम्हारी नींद का क्या हाल है?”

“गुरुवर! अब तो मैं खूब खाता हूँ और गहरी नींद सोता हूँ. पहले भी मैं राजपाट का कार्य करता था, अब भी करता हूँ. फिर ये परिवर्तन कैसे? ये मेरी समझ के बाहर है.” राजा ने अपनी स्थिति बताते हुए प्रश्न भी पूछ लिया.

साधु मुस्कुराते हुए बोले, “राजन! पहले तुमने काम को बोझ बना लिया था और उस बोझ को हर समय अपने मानस-पटल पर ढोया करते थे. किंतु राजपाट मुझे सौंपने के उपरांत तुम समस्त कार्य अपना कर्तव्य समझकर करते हो. इसलिए चिंतामुक्त हो.”

सीख

जीवन में जो भी कार्य करें, अपना कर्त्तव्य समझकर करें. न कि बोझ समझकर. यही चिंता से दूर रहने का तरीका है.

 11# बिल्ली और कुत्ते की कहानी

Moral Stories In Hindi : एक दिन की बात है. एक बिल्ली (Cat) कहीं जा रही थी. तभी अचानक एक विशाल और भयानक कुत्ता (Dog) उसके सामने आ गया. कुत्ते को देखकर बिल्ली डर गई. कुत्ते और बिल्ली जन्म-बैरी होते है. बिल्ली ने अपनी जान का ख़तरा सूंघ लिया और जान हथेली पर रखकर वहाँ भागने लगी. किंतु फुर्ती में वह कुत्ते से कमतर थी. थोड़ी ही देर में कुत्ते ने उसे दबोच लिया. 

बिल्ली की जान पर बन आई. मौत उसके सामने थी. कोई और रास्ता न देख वह कुत्ते के सामने गिड़गिड़ाने लगी. किंतु कुत्ते पर उसके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. वह उसे मार डालने को तत्पर था. तभी अचानक बिल्ली ने कुत्ते के सामने एक प्रस्ताव रख दिया, “यदि तुम मेरी जान बख्श दोगे, तो कल से तुम्हें भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यता नहीं रह जायेगी. मैं यह ज़िम्मेदारी उठाऊंगी. मैं रोज़ तुम्हारे लिए भोजन लेकर आऊंगी. तुम्हारे खाने के बाद यदि कुछ बच गया, तो मुझे दे देना. मैं उससे अपना पेट भर लूंगी.”

कुत्ते को बिना मेहनत किये रोज़ भोजन मिलने का यह प्रस्ताव जम गया. उसने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. लेकिन साथ ही  उसने बिल्ली को आगाह भी किया कि धोखा देने पर परिणाम भयंकर होगा. बिल्ली ने कसम खाई कि वह किसी भी सूरत में अपना वादा निभायेगी.

कुत्ता आश्वस्त हो गया. उस दिन के बाद से वह बिल्ली द्वारा लाये भोजन पर जीने लगा. उसे भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यकता नहीं रह गई. वह दिन भर अपने डेरे पर लेटा रहता और बिल्ली की प्रतीक्षा करता. बिल्ली भी रोज़ समय पर उसे भोजन लाकर देती. इस तरह एक महिना बीत गया. महीने भर कुत्ता कहीं नहीं गया. वह बस एक ही स्थान पर पड़ा रहा. एक जगह पड़े रहने और कोई  भागा-दौड़ी न करने से वह बहुत  मोटा और भारी हो गया.

एक दिन कुत्ता रोज़ की तरह बिल्ली का रास्ता देख रहा था. उसे ज़ोरों की भूख लगी थी. किंतु बिल्ली थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी. बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद भी जब बिल्ली नहीं आई, तो अधीर होकर कुत्ता बिल्ली को खोजने निकल पड़ा.

वह कुछ ही दूर पहुँचा था कि उसकी दृष्टि बिल्ली पर पड़ी. वह बड़े मज़े से एक चूहे पर हाथ साफ़ कर रही है. कुत्ता क्रोध से बिलबिला उठा और गुर्राते हुए बिल्ली से बोला,  “धोखेबाज़ बिल्ली, तूने अपना वादा तोड़ दिया. अब अपनी जान की खैर मना.”

इतना कहकर वह बिल्ली की ओर लपका. बिल्ली पहले ही चौकस हो चुकी थी. वह फ़ौरन अपनी जान बचाने वहाँ से भागी.  कुत्ता भी उसके पीछे दौड़ा. किंतु इस बार बिल्ली कुत्ते से ज्यादा फुर्तीली निकली. कुत्ता इतना मोटा और भारी हो चुका था कि वह अधिक देर तक बिल्ली का पीछा नहीं कर पाया और थककर बैठ गया. इधर बिल्ली चपलता से भागते हुए उसकी आँखों से ओझल हो गई.

सीख दूसरों पर निर्भरता अधिक दिनों तक नहीं चलती. यह हमें कामचोर और कमज़ोर बना देती है. जीवन में सफ़ल होना है, तो आत्मनिर्भर बनो.

12# जौहरी की मूर्खता

Short Moral Stories In Hindi : एक गाँव में मेला (Fair) लगा हुआ था. मेले में मनोरंजन के कई साधनों के अतिरिक्त श्रृंगार, सजावट और दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं की अनेक दुकानें थी. शाम होते ही मेले की रौनक बढ़ जाती थी.

एक शाम रोज़ की तरह मेला सजा हुआ था. महिला, पुरुष और बच्चे सभी मेले का आनंद उठा रही थी. दुकानों में अच्छी-ख़ासी भीड़ उमड़ी हुई थी. उन्हीं दुकानों में से एक दुकान कांच से निर्मित वस्त्तुओं की थी, जिसमें कांच के बर्तन और गृह सज्जा की कई वस्तुयें बिक रही थी. अन्य दुकानों की अपेक्षा उस दुकान में लोगों की भीड़ कुछ कम थी.

एक जौहरी भी उस दिन मेले में घूम रहा था. घूमते-घूमते जब वह उस दुकान के पास से गुजरा, तो उसकी नज़र एक चमकते हुए कांच के टुकड़े पर अटक गई. उसकी पारखी नज़र तुरंत ताड़ गई कि वह कोई साधारण कांच का टुकड़ा नहीं, बल्कि बेशकीमती हीरा है.

वह समझ गया कि दुकानदार इस बात से अनभिज्ञ है. वह दुकान में गया और उस हीरे को उठाकर दुकानदार से उसकी कीमत पूछने लगा, “भाई, जरा इसकी कीमत तो बताना?”

दुकानदार बोला, “ये मात्र २० रूपये का है.”

जौहरी लालची था. वह कम से कम कीमत में उस कीमती हीरे को हथियाने की फ़िराक में था. वह दुकानदार से मोल-भाव करने लगा, “नहीं भाई…इतनी कीमत तो मैं नहीं दे सकता. मैं तुम्हें इसके १५ रूपये दे सकता हूँ. १५ रुपये में तुम मुझे ये दे सकते हो, तो दे दो.”

दुकानदार उस कीमत पर राज़ी नहीं हुआ. उस समय दुकान में कोई ग्राहक नहीं था. जौहरी ने सोचा कि थोड़ी देर मेले में घूम-फिरकर वापस आता हूँ. हो सकता है, तब तक इसका मन बदल जाए और ये १५ रूपये में मुझे यह कीमती हीरा दे दे. यह सोच हीरा बिना खरीदे वह वहाँ से चला गया.

कुछ देर बाद जब वह पुनः उस दुकान में लौटा, तो हीरे को नदारत पाया. उसने फ़ौरन दुकानदार से पूछा, “यहाँ जो कांच का टुकड़ा था, वो कहाँ गया?”

“मैंने उसे २५ रूपये में बेच दिया.” दुकानदार ने उत्तर दिया.

जौहरी ने अपना सिर पीट लिया और बोला, “ये तुमने क्या किया? तुम बहुत बड़े मूर्ख हो. वह कोई कांच का टुकड़ा नहीं, बल्कि बेशकीमती हीरा था. मात्र २५ रूपये में तुमने उसे बेच दिया.”

“मूर्ख मैं नहीं तुम हो. मैं तो नहीं जानता था कि वह बेशकीमती हीरा है. पर तुम तो जानते थे. फिर भी तुम मुझसे मोल-भाव कर ५ रूपये बचाने में लगे रहे और हीरा बिना ख़रीदे ही दुकान से चले गए.” दुकानदार ने उत्तर दिया.

दुकानदार का उत्तर सुन जौहरी अपनी मूर्खता पर पछताने लगा और पछताते हुए खाली हाथ वापस लौट गया.

सीख

मूर्खता और लालच दोनों नुकसान का कारण हैं.

13# राजा और वृद्ध

Moral Stories In Hindi : ठण्ड का मौसम था. शीतलहर पूरे राज्य में बह रही थी. कड़ाके की ठण्ड में भी उस दिन राजा सदा की तरह अपनी प्रजा का हाल जानने भ्रमण पर निकला था.  

महल वापस आने पर उसने देखा कि महल के मुख्य द्वार के पास एक वृद्ध (Old Man) बैठा हुआ है. पतली धोती और कुर्ता पहने वह वृद्ध ठण्ड से कांप रहा था. कड़ाके की ठण्ड में उस वृद्ध को बिना गर्म कपड़ों के देख राजा चकित रह गया.

उसके पास जाकर राजा ने पूछा, “क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लग रही?”

“लग रही है. पर क्या करूं? मेरे पास गर्म कपड़े नहीं है. इतने वर्षों से कड़कड़ाती ठण्ड मैं यूं ही बिना गर्म कपड़ों के गुज़ार रहा हूँ. भगवान मुझे इतनी शक्ति दे देता है कि मैं ऐसी ठण्ड सह सकूं और उसमें जी सकूं.” वृद्ध ने उत्तर दिया.

राजा को वृद्ध पर दया आ गई. उसने उससे कहा, “तुम यहीं रुको. मैं अंदर जाकर तुम्हारे लिए गर्म कपड़े भिजवाता हूँ.”

वृद्ध प्रसन्न हो गया. उसने राजा को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया.

वृद्ध को आश्वासन देकर राजा महल के भीतर चला गया. किंतु महल के भीतर जाकर वह अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया और वृद्ध के लिए गर्म कपड़े भिजवाना भूल गया.

अगली सुबह एक सिपाही ने आकर राजा को सूचना दी कि महल के बाहर एक वृद्ध मृत पड़ा है. उसके मृत शरीर के पास ज़मीन पर एक संदेश लिखा हुआ है, जो वृद्ध ने अपनी मृत्यु के पूर्व लिखा था.

संदेश यह था : “इतने वर्षों से मैं पतली धोता-कुर्ता पहने ही कड़ाके की ठण्ड सहते हुए जी रहा था. किंतु कल रात गर्म वस्त्र देने के तुम्हारे वचन ने मेरी जान ले ली.”

सीख

दूसरों से की गई अपेक्षायें अक्सर हमें उन पर निर्भर बना देती है, जो कहीं न कहीं हमारी दुर्बलता का कारण बनती है. इसलिए, अपनी अपेक्षाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के स्थान पर स्वयं को सबल बनाने का प्रयास करना चाहिए.

 14# रोता हुआ कुत्ता

The Moral Stories In Hindi : एक युवक अपने नए घर में शिफ्ट हुआ. नया घर और वहाँ का वातावरण उसे बहुत पसंद आया. लेकिन एक बात थी, जो उसे थोड़ी खटक रही थी. जब से वह आया था, तब से किसी कुत्ते के रोने की आवाज़ उसे लगातार परेशान कर रही थी. काफ़ी देर वह यही सोचता रहा कि थोड़ी देर में यह आवाज़ बंद हो जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि कुत्ते के रोने की आवाज़ दिन भर आती रही.

अगले दिन भी जब कुत्ते की रोने की आवाज़ बंद नहीं हुई, तब युवक ने न रहा गया. वह घर से बाहर निकला. कुत्ते के रोने की आवाज़ उसके पड़ोस के एक घर से आ रही थी. वह उस घर में पहुँचा.

वहाँ उसने देखा कि एक व्यक्ति बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा है और पास ही लकड़ी की एक पाटिया पर बैठा कुत्ता रो रहा था. यह नज़ारा देख युवक कुछ हैरान हुआ. वह उस व्यक्ति के पास पहुँचा और अपना परिचय देने के बाद बोला, “महाशय, आपका कुत्ता कल से बहुत रो रहा है.”

“हाँ, ये तो मैं भी ये देख रहा हूँ.” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया.

“तो फिर आपने यह जानने की कोशिश नहीं की कि इसे क्या परेशानी है. परेशानी जानकार इसकी मदद की जा सकती है.”

“अरे..कुछ नहीं. ये एक कील (Nail) के ऊपर बैठा हुआ है. वो कील इसके पेट में चुभ रही है. इसलिए ये रो रहा है.” व्यक्ति ने बड़ी ही शांति से उत्तर दिया.

उत्तर सुन युवक हैरत में पड़ गया और बोला, ““यदि ऐसा है, तो ये इस जगह से उठ क्यों नहीं जाता?”

“क्योंकि इसे अभी बहुत ज्यादा दर्द नहीं हो रहा है. जब दर्द इसकी सहनशक्ति से बाहर हो जायेगा, तो ये ख़ुद-ब-ख़ुद यहाँ से उठ जायेगा.”

सीखउस कुत्ते की तरह हम सब अपने जीवन में चुभती कीलों पर बैठे हुए होते है. हममें से कुछ जॉब की चुभती कीलों पर बैठे हैं. हम अपने Nature of Job से संतुष्ट नहीं होते, Boss के व्यवहार और work envoirnment से खुश नहीं होते. जो salary हमें मिल रही होती है, वह हमें अपनी मेहनत के मुकाबले बहुत कम लगती है. उस जॉब में development और growth के अवसर बहुत कम नज़र आते हैं. इस कारण हम आये दिन job को लेकर शिकायतें करते रहते है. लेकिन इतनी शिकायतों के बाद भी वह job करते चले जाते हैं.

कुछ रिश्तों की चुभती कीलों पर बैठे हुए है. कई abusive relationship में फंसे हुए हैं. किसी रिश्ते में प्यार और सम्मान नहीं है. कई रिश्तों में आ रही दूरी से परेशान हैं, तो कई अपने पार्टनर्स के धोखे से दु:खी हैं. लेकिन सब कुछ जानते हुए भी सब कुछ सह रहे हैं.

कुछ आर्थिक परेशानियों की चुभती कीलों पर बैठे हुए है. खर्च बढ़ते जा रहे हैं, पर उसके अनुपात में आय नहीं बढ़ रही. जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही है, लेकिन उन्हें निभाने के साधन सीमित हैं. घर, गाड़ी, बच्चों की पढ़ाई, शादी जैसे कई खर्च सामने नज़र आते हैं और अपने हाथ बंधे से महसूस होते है.

इन सबके अलावा भी कई कीलें हैं, जो हमें चुभती रहती है. जैसे स्वास्थ्य, परिवार, दोस्ती, बुरी आदतें जैसी कई कीलें. हर किसी के जीवन में इस तरह की कुछ कीलें हैं, जो अपनी चुभन से परेशान करती रहती हैं. कुछ को छोटी कीलें चुभ रही हैं, तो कुछ को बड़ी. कुछ को एक कील चुभ रही है, तो कुछ को एक साथ कई कीलों की चुभन सहनी पड़ रही है. लेकिन हम उस चुभती कीलों से छुटकारा पाना के लिए कुछ नहीं करते, क्योंकि हमें लगता है कि अभी इनकी चुभन या दर्द इतना ज्यादा नहीं है. हम उस चुभन को तब तक सहते चले जाते हैं, जब तक वह असहनीय नहीं हो जाता. ऐसी कीलों की चुभन से छुटकारा पाने का उपाय तुरंत करना चाहिए, क्योंकि देर करने से समस्या बढ़ती है. हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने से कोई भी समस्या हल नहीं होती. इसलिए जीवन के किसी भी क्षेत्र में समस्या सामने आये, तो उसके निदान हेतु तुरंत प्रयास करें. ऐसा न हो कि बाद में बहुत देर हो जाये.

15# राजा का प्रश्न 

Moral Stories In Hindi : बहुत समय पहले की बात है. एक राज्य में एक राजा का राज था. वह अक्सर सोचा करता था कि मैं राजा क्यों बना? एक दिन इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने उसने अपने राज्य के बड़े-बड़े ज्योतिषियों को आमंत्रित किया.

ज्योतिषियों के दरबार में उपस्थित होने पर राजा ने यह प्रश्न उनके सामने रखा, “जिस समय मेरा जन्म हुआ, ठीक उसी समय कई अन्य लोगों का भी जन्म हुआ होगा. उन सबमें मैं ही राजा क्यों बना?”

इस प्रश्न का उत्तर दरबार में उपस्थित कोई भी ज्योतिषी नहीं दे सका. एक बूढ़े ज्योतिषी ने राजा को सुझाया कि राज्य के बाहर स्थित वन में रहने वाले एक महात्मा कदाचित उसके प्रश्न का उत्तर दे सकें.

राजा तुरंत उस महात्मा से मिलने वन की ओर निकल पड़ा. जब वह महात्मा के पास पहुँचा, तो देखा कि वो अंगारे खा रहे है. राजा घोर आश्चर्य में पड़ गया. किंतु उस समय राजा की प्राथमिकता अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त करना था. इसलिए उसने इधर-उधर की कोई बात किये बिना अपना प्रश्न महात्मा के सामने रख दिया.

प्रश्न सुन महात्मा ने कहा, “राजन! इस समय मैं भूख से बेहाल हूँ. मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता. कुछ दूरी पर एक पहाड़ी है. उसके ऊपर एक और महात्मा तुम्हें मिलेंगे. वे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे देंगे. तुम उनसे जाकर मिलो.”

राजा बिना समय व्यर्थ किये पहाड़ी पर पहुँचा. वहाँ भी उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब उसने देखा कि वहाँ वह महात्मा चिमटे से नोंच-नोंचकर अपना ही मांस खा रहे हैं.

राजा ने उनके समक्ष वह प्रश्न दोहराया. प्रश्न सुनकर महात्मा बोले, “राजन! मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता. मैं भूख से तड़प रहा हूँ. इस पहाड़ी ने नीचे एक गाँव है. वहाँ ५ वर्ष का एक बालक रहता है. वह कुछ ही देर में मरने वाला है. तुम उसकी मृत्यु पूर्व उससे अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त कर लो.”

राजा गाँव में जाकर उस बालक से मिला. वह बालक मरने की कगार पर था. राजा का प्रश्न सुन वह हंसने लगा. एक मरते हुए बालक को हँसता देख राजा चकित रह गया. किंतु वह शांति से अपने पूछे गए प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.

बालक बोला, “राजन! पिछले जन्म में मैं, तुम और वो दो महात्मा, जिनसे तुम पहले मिल चुके हो, भाई थे. एक दिन हम सभी भाई भोजन कर रहे थे कि एक साधु हमारे पास आकर भोजन मांगने लगा. सबसे बड़े भाई ने उससे कहा कि तुम्हें भोजन दे दूंगा, तो क्या मैं अंगारे खाऊंगा? और आज वह अंगारे खा रहा है. दूसरे भाई ने कहा कि तुम्हें भोजन दे दूंगा, तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊंगा? और आज वह अपना ही मांस नोंचकर खा रहा है. साधु ने जब मुझसे भोजन मांगा, तो मैंने कहा कि तुम्हें भोजन देकर क्या मैं भूखा मरूंगा? और आज मैं मरने की कगार पर हूँ. किंतु तुमने दया दिखाते हुए उस साधु को अपना भोजन दे दिया. उस पुण्य का ही प्रताप है कि इस जन्म में तुम राजा बने.”

इतना कहकर बालक मृत्यु को प्राप्त हो गया. राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था. वह अपने राज्य की ओर चल पड़ा.

सीख (moral of this moral story in hindi) – अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता है. इसलिए सदा सद्कर्म करो और जहाँ तक संभव हो, दूसरों की सहायता करो.    

 16# गुलाब का घमंड

Moral Stories In Hindi : वसंत ऋतु में जंगल के बीचों-बीच लगा गुलाब (Rose) का पौधा अपने फूलों की सुंदरता पर इठला रहा था. पास ही लगे चीड़ (Pine) के कुछ पेड़ आपस में बातें कर रहे थे. एक चीड़ के पेड़ ने गुलाब को देखकर कहा, “गुलाब के फूल कितने सुंदर होते है. मुझे मलाल है कि मैं इसके जैसा सुंदर नहीं हूँ.”

“मित्र, उदास होने की आवश्यकता नहीं है. हर किसी के पास सब कुछ तो नहीं हो सकता.” दूसरे चीड़ के उसकी इस बात का उत्तर दिया.  

गुलाब ने उनकी बातें सुन ली और उसे अपनी सुंदरता पर और गुमान हो गया. वह बोला, “इस जंगल में सबसे सुंदर मैं ही हूँ.”

तभी सूरजमुखी के फूल ने उसकी इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा, “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? इन जंगल में बहुत सारे सुंदर फूल है और तुम बस उनमें से एक हो.”

“लेकिन सब मुझे देख कर ही तारीफ़ करते हैं.” गुलाब ने इतराते हुए कहा, “देखो, इस नागफनी के पौधे को. ये कितना बदसूरत है. इस पर तो कांटे ही कांटे हैं. कोई इसकी तारीफ़ नहीं करता.”

“ये तुम किस तरह की बात कर रही हो.” अबकी बार चीड़ का पेड़ बोला, “तुममें भी तो कांटे है. लेकिन फिर भी तुम सुंदर हो.”

गुलाब को इस बात पर गुस्सा आ गया, “तुम्हें तो सुंदरता का मतलब ही नहीं पता. तुम इस तरह मेरे कांटों और उस नागफनी के कांटों की तुलना नहीं कर सकते. हममें बहुत फ़र्क है. मैं सुंदर हूँ और वो नहीं.”

“तुममें घमंड चढ़ गया है गुलाब.” इतना कहकर चीड़ के पेड़ ने अपनी डालियों दूसरी ओर झुका ली.

इन सबके बीच नागफनी का पौधा चुपचाप रहा. लेकिन गुलाब ने गुस्से में अपनी जड़े नागफनी के पौधे से दूर हटाने की कोशिश की. लेकिन ऐसा संभव नहीं था. कुछ देर प्रयास करने के बाद गुलाब ने चिढ़कर नागफनी के पौधे से कहा, “तुम एक निरर्थक पौधे हो. तुममें न सुंदरता है, न ही तुम किसी काम के हो. मुझे दुःख है कि मुझे तुम्हारे पास रहना पड़ रहा है.”

गुलाब की बात सुनकर नागफनी को दुःख हुआ और वह बोला, “भगवान ने किसी को भी निरर्थक जीवन नहीं दिया है.”

गुलाब ने उसकी बात अनसुनी कर दी.

मौसम बदला और वसंत ऋतु चली गई. धूप की तपिश बढ़ने लगी और पेड़-पौधे मुरझाने लगे. गुलाब भी मुरझाने लगा.

एक दिन गुलाब ने देखा कि एक चिड़िया नागफनी के पौधे पर चोंच गड़ाकर बैठी है. कुछ देर बाद वह चिड़िया वहाँ से उड़ गई. वह चिड़िया ताज़गी से भरी लग रही थी. गुलाब को ये बात समझ नहीं आई कि वह चिड़िया नागफनी पर बैठकर क्या कर रही थी?

उसन चीड़ के पेड़ से पूछा “ये चिड़िया क्या कर रही थी?’

चीड़ के पेड़ ने कहा, “ये चिड़िया नागफनी के पौधे से पानी ले रही है.”

“ओह, लेकिन क्या इसके चोंच गड़ाने से नागफनी को दर्द नहीं हुआ होगा.” गुलाब ने पूछा.

“अवश्य हुआ होगा. किंतु दयालु नागफनी चिड़िया को तकलीफ़ में नहीं देख सकता था.” चीड़ के पेड़ ने उत्तर दिया.

“ओह तो इस गर्मी में नागफनी के पास पानी है. मैं तो पानी के बिना सूख रहा हूँ.” गुलाब उदास हो गया.

“तुम नागफनी से मदद क्यों नहीं मांगते? वह अवश्य तुम्हारी मदद करेगा. चिड़िया अपनी चोंच में भरकर तुम्हारे पास ले आएगी.” चीड़ के पेड़ ने सलाह दी.

गुलाब नागफनी से कैसे मदद मांगता? उसने तो अपनी सुंदरता के घमंड में उसे बहुत बुरा-भला कहा था. लेकिन तेज धूप में अपना जीवन बचाने के लिए आखिरकार एक दिन उसने नागफनी से मदद मांग ही ली.

नागफनी दयालु था. वह मदद के लिए फ़ौरन राज़ी हो गया. चिड़िया भी मदद को आगे आई. उसने नागफनी से पानी चूसा और अपनी चोंच में भरकर गुलाब के पौधे की जड़ों में डाल दिया. गुलाब का पौधा फिर से तरोताज़ा हो गया.

गुलाब को समझ आ गया था कि किसी को देखकर उसके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए. उसने नागफनी से माफ़ी मांग ली.

सीख –

१. किसी की शक्ल देखकर कोई राय नहीं बनानी चाहिए. इंसान की बाहरी सुंदरता नहीं, बल्कि आंतरिक सुंदरता मायने रखती है.

२. हर किसी को भगवान ने अलग-अलग गुणों से नवाज़ा है. इसलिए अपने गुणों पर अभिमान मत करो. एक-दूसरे की सहायता से ही जीवन आगे बढ़ता है.   

 17 # सोने की गिन्नियों का बंटवारा

Short Moral Stories In Hindi : एक दिन की बात है. दो मित्र सोहन और मोहन अपने गाँव के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर बातें कर रहे थे. इतने में एक तीसरा व्यक्ति जतिन उनके पास आया और उनकी बातों में शामिल हो गया.

तीनों दिन भर दुनिया-जहाँ की बातें करते रहे. कब दिन ढला? कब शाम हुई? बातों-बातों में उन्हें पता ही नहीं चला. शाम को तीनों को भूख लग आई. सोहन और मोहन के पास क्रमशः ३ और ५ रोटियाँ थीं, लेकिन जतिन के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था.

सोहन और मोहन ने तय किया कि वे अपने पास की रोटियों को आपस में बांटकर खा लेंगें. जतिन उनकी बात सुनकर प्रसन्न हो गया. लेकिन समस्या यह खड़ी हो गई है कि कुल ८ रोटियों को तीनों में बराबर-बराबर कैसे बांटा जाए?

सोहन इस समस्या का समाधान निकालते हुए बोला, “हमारे पर कुल ८ रोटियाँ हैं. हम इन सभी रोटियों के ३-३ टुकड़े करते हैं. इस तरह हमारे पास कुल २४ टुकड़े हो जायेंगे. उनमें से ८-८ टुकड़े हम तीनों खा लेंगें.”

मोहन और जतिन को यह बात जंच गई और तीनों ने वैसा ही किया. रोटियाँ खाने के बाद वे तीनों उसी मंदिर की सीढ़ियों पर सो गए, क्योंकि रात काफ़ी हो चुकी थी.

रात में तीनों गहरी नींद में सोये और सीधे अगली सुबह ही उठे. सुबह जतिन ने सोहन और मोहन से विदा ली और बोला, “मित्रों! कल तुम दोनों ने अपनी रोटियों में से तोड़कर मुझे जो टुकड़े दिए, उसकी वजह से मेरी भूख मिट पाई. इसके लिए मैं तुम दोनों का बहुत आभारी हूँ. यह आभार तो मैं कभी चुका नहीं पाऊंगा. लेकिन फिर भी उपहार स्वरुप मैं तुम दोनों को सोने की ये ८ गिन्नियाँ देना चाहता हूँ.”

यह कहकर उसने सोने की ८ गिन्नियाँ उन्हें दे दी और विदा लेकर चला गया.       

सोने की गिन्नियाँ पाकर सोहन और मोहन बहुत खुश हुए. उन्हें हाथ में लेकर सोहन मोहन से बोला, “आओ मित्र, ये ८ गिन्नियाँ आधी-आधी बाँट लें. तुम ४ गिन्नी लो और ४ गिन्नी मैं लेता हूँ.”

लेकिन मोहन ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. वह बोला, “ऐसे कैसे? तुम्हारी ३ रोटियाँ थीं और मेरी ५. मेरी रोटियाँ ज्यादा थीं, इसलिए मुझे ज्यादा गिन्नियाँ मिलनी चाहिए. तुम ३ गिन्नी लो और मैं ५ लेता हूँ.”

इस बात पर दोनों में बहस छोड़ गई. बहस इतनी बढ़ी कि मंदिर के पुजारी को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा. पूछने पर दोनों ने एक दिन पहले का किस्सा और सोने की गिन्नियों की बात पुजारी जी को बता दी. साथ ही उनसे निवेदन किया कि वे ही कोई निर्णय करें. वे जो भी निर्णय करेंगे, उन्हें स्वीकार होगा.

यूँ तो पुजारी जी को मोहन की बात ठीक लगी. लेकिन वे निर्णय में कोई गलती नहीं करना चाहते थे. इसलिए बोले, “अभी तुम दोनों ये गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ. आज मैं अच्छी तरह सोच-विचार कर लेता हूँ. कल सुबह तुम लोग आना. मैं तुम्हें अपना अंतिम निर्णय बता दूंगा.

सोहन और मोहन सोने की गिन्नियाँ पुजारी जी के पास छोड़कर चले गए. देर रात तक पुजारी जी गिन्नियों के बंटवारे के बारे में सोचते रहे. लेकिन किसी उचित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके. सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई और वे सो गए. नींद में उन्हें एक सपना आया. उस सपने में उन्हें भगवान दिखाई पड़े. सपने में उन्होंने भगवान से गिन्नियों के बंटवारे के बारे में पूछा, तो भगवान बोले, “सोहन को १ गिन्नी मिलनी चाहिए और मोहन को ७.”

यह सुनकर पुजारी जी हैरान रह गए और पूछ बैठे, “ऐसा क्यों प्रभु?”

तब भगवान जी बोले, “देखो, राम के पास ३ रोटियाँ थी, जिसके उसने ९ टुकड़े किये. उन ९ टुकड़ों में से ८ टुकड़े उसने ख़ुद खाए और १ टुकड़ा जतिन को दिया. वहीं मोहन में अपनी ५ रोटियों के १५ टुकड़े किये और उनमें से ७ टुकड़े जतिन को देकर ख़ुद ८ टुकड़े खाए. चूंकि सोहन ने जतिन को १ टुकड़ा दिया था और मोहन ने ७. इसलिए सोहन को १ गिन्नी मिलनी चाहिए और मोहन को ७.”

पुजारी जी भगवान के इस निर्णय पर बहुत प्रसन्न और उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देते हुए बोले, “प्रभु. मैं ऐसे न्याय की बात कभी सोच ही नहीं सकता था.”

अगले दिन जब सोहन और मोहन मंदिर आकर पुजारी जी से मिले, तो पुजारी जी ने उन्हें अपने सपने के बारे में बताते हुए अंतिम निर्णय सुना दिया और सोने की गिन्नियाँ बांट दीं.

सीखजीवन में हम जब भी कोई त्याग करते हैं या काम करते हैं, तो अपेक्षा करते हैं कि भगवान इसके बदले हमें बहुत बड़ा फल देंगे. लेकिन जब ऐसा नहीं हो पाता, तो हम भगवान से शिकायत करने लग जाते हैं. हमें लगता है कि इतना कुछ त्याग करने के बाद भी हमें जो प्राप्त हुआ, वो बहुत कम है. भगवान ने हमारे साथ अन्याय किया है. लेकिन वास्तव में, भगवान का न्याय हमारी सोच से परे है. वह महज़ हमारे त्याग को नहीं, बल्कि समग्र जीवन का आंकलन कर निर्णय लेता है. इसलिए जो भी हमें मिला है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए और भगवान से शिकायतें नहीं करनी चाहिए. क्योंकि भगवान का निर्णय सदा न्याय-संगत होता है और हमें जीवन में जो भी मिल रहा होता है, वो बिल्कुल सही होता है.

 18# चिड़िया की सीख

Short Moral Stories In Hindi : एक समय की बात है. एक राज्य में एक राजा राज करता था. उसके महल में बहुत ख़ूबसूरत बगीचा था. बगीचे की देखरेख की ज़िम्मेदारी एक माली के कंधों पर थी. माली पूरा दिन बगीचे में रहता और पेड़-पौधों की अच्छे से देखभाल किया करता था. राजा माली के काम से बहुत ख़ुश था.

बगीचे में एक अंगूर की एक बेल लगी हुई थी, जिसमें ढेर सारे अंगूर फले हुए थे. एक दिन एक चिड़िया बगीचे में आई. उनसे अंगूर की बेल पर फले अंगूर चखे. अंगूर स्वाद में मीठे थे. उस दिन के बाद से वह रोज़ बाग़ में आने लगी.

चिड़िया अंगूर की बेल पर बैठती और चुन-चुनकर सारे मीठे अंगूर खा लेती. खट्टे और अधपके अंगूर वह नीचे गिरा देती. चिड़िया की इस हरक़त पर माली को बड़ा क्रोध आता. वह उसे भगाने का प्रयास करता, लेकिन सफ़ल नहीं हो पाता.

बहुत प्रयासों के बाद भी जब माली चिड़िया को भगा पाने में सफ़ल नहीं हो पाया, तो राजा के पास चला गया. उसने राजा को चिड़िया की पूरी कारिस्तानी बता दी और बोला, “महाराज! चिड़िया में मुझे तंग कर दिया है. उसे काबू में करना मेरे बस के बाहर है. अब आप ही कुछ करें.”

राजा ने ख़ुद ही चिड़िया से निपटने का निर्णय किया. अगले दिन वह बाग़ में गया और अंगूर की घनी बेल की आड़ में छुपकर बैठ गया. रोज़ की तरह चिड़िया आई और अंगूर की बेल पर बैठकर अंगूर खाने लगी. अवसर पाकर राजा ने उसे पकड़ लिया.

चिड़िया ने राजा की पकड़ से आज़ाद होने का बहुत प्रयास किया, किंतु सब व्यर्थ रहा. अंत में वह राजा से याचना करने लगी कि वो उसे छोड़ दें. राजा इसके लिए तैयार नहीं हुआ. तब चिड़िया बोली, “राजन, यदि तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हें ज्ञान की ४ बातें बताऊंगी.”

राजा चिड़िया पर क्रोधित था. किंतु इसके बाद भी उसने यह बात मान ली और बोला, “ठीक है, पहले तुम मुझे ज्ञान की वो ४ बातें बताओ. उन्हें सुनने के बाद ही मैं तय करूंगा कि तुम्हें छोड़ना ठीक रहेगा या नहीं.” 

चिड़िया बोली, “ठीक है राजन. तो सुनो. पहली बात, कभी किसी हाथ आये शत्रु को जाने मत दो.”

“ठीक है और दूसरी बात?” राजा बोला.

“दूसरी ये है कि कभी किसी असंभव बात पर यकीन मत करो.” चिड़िया बोली.

“तीसरी बात?”

“बीती बात पर पछतावा मत करो.”

“और चौथी बात.”

“राजन! चौथी बात बड़ी गहरी है. मैं तुम्हें वो बताना तो चाहती हूँ, किंतु तुमनें मुझे इतनी जोर से जकड़ रखा है कि मेरा दम घुट रहा है. तुम अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करो, तो मैं तुम्हें चौथी बात बताऊं.” चिड़िया बोली,

राजा ने चिड़िया की बात मान ली और अपनी पकड़ ढीली कर दी. पकड़ ढ़ीली होने पर चिड़िया राजा एक हाथ छूट गई और उड़कर पेड़ की ऊँची डाल पर बैठ गई. राजा उसे ठगा सा देखता रह गया.

पेड़ की ऊँची डाल पर बैठी चिड़िया बोली, “राजन! चौथी बात ये कि ज्ञान की बात सुनने भर से कुछ नहीं होता. उस पर अमल भी करना पड़ता है. अभी कुछ देर पहले मैंने तुम्हें ज्ञान की ३ बातें बताई, जिन्हें सुनकर भी आपने उन्हें अनसुना कर दिया. पहली बात मैंने आपसे ये कही थी कि हाथ में आये शत्रु को कभी मत छोड़ना. लेकिन आपने अपने हाथ में आये शत्रु अर्थात् मुझे छोड़ दिया. दूसरी बात ये थी कि असंभव बात पर यकीन मत करें. लेकिन जब मैंने कहा कि चौथी बात बड़ी गहरी है, तो आप मेरी बातों में आ गए. तीसरी बात मैंने आपको बताई थी कि बीती बात पर पछतावा न करें और देखिये, मेरे आपके चंगुल से छूट जाने पर आप पछता रहे हैं.”

इतना कहकर चिड़िया वहाँ से उड़ गई और राजा हाथ मलता रह गया.

सीख –

  • मात्र ज्ञान अर्जित करने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता. ज्ञानी वो होता है, जो अर्जित ज्ञान पर अमल करता है.
  • जीवन में जो बीत गया, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं. किंतु वर्तमान हमारे हाथों में हैं. आज का वर्तमान कल के भविष्य कल का निर्माण करेगा. इसलिए वर्तमान में रहकर कर्म करें और अपना भविष्य बनायें.

 19# पंडितजी का बेटा 

Short Moral Stories In Hindi : एक राज्य में एक पंडितजी रहा करते थे. वे अपनी बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थे. उनकी बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे.

एक दिन उस राज्य के राजा ने पंडितजी को अपने दरबार में आमंत्रित किया. पंडित जी दरबार में पहुँचे. राजा ने उनसे कई विषयों पर गहन चर्चा की. चर्चा समाप्त होने के पश्चात् जब पंडितजी प्रस्थान करने लगे, तो राजा ने उनसे कहा, “पंडितजी! आप आज्ञा दें, तो मैं एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ.”

पंडित ने कहा, “पूछिए राजन.”

“आप इतने बुद्धिमान है पंडितजी, किंतु आपका पुत्र इतना मूर्ख क्यों हैं?” राजा ने पूछा.

राजा का प्रश्न सुनकर पंडितजी को बुरा लगा. उन्होंने पूछा, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं राजन?”

“पंडितजी, आपके पुत्र को ये नहीं पता कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है.” राजा बोला.

ये सुनकर सारे दरबारी हँसने लगे.

सबको यूं हँसता देख पंडितजी ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया. किंतु वे बिना कुछ कहे अपने घर लौट आये.

घर पहुँचने पर उनका पुत्र उनके लिए जल लेकर आया और बोला, “पिताश्री, जल ग्रहण करें.”

उस समय भी सारे दरबारियों की हँसी पंडितजी के दिमाग में गूंज रही थी. वे अत्यंत क्रोध में थे. उन्होंने जल लेने से मना कर दिया और बोले, “पुत्र, जल तो मैं तब ग्रहण करूंगा, जब तुम मेरे इस प्रश्न का उत्तर दोगे.”

“पूछिये पिताश्री.” पुत्र बोला.

“ये बताओ कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है?” पंडितजी ने पूछा.

“सोना अधिक मूल्यवान है.” पुत्र के तपाक से उत्तर दिया,

पुत्र का उत्तर सुनने के बाद पंडितजी ने पूछा, “तुमने इस प्रश्न का सही उत्तर दिया है. फिर राजा तुम्हें मूर्ख क्यों कहते हैं? वे कहते हैं कि तुम्हें सोने और चाँदी के मूल्य का ज्ञान नहीं है.”

पंडितजी की बात सुनकर पुत्र सारा माज़रा समझ गया. वह उन्हें बताने लगा, “पिताश्री! मैं प्रतिदिन सुबह जिस रास्ते से विद्यालय जाता हूँ, उस रास्ते के किनारे राजा अपना दरबार लगाते हैं. वहाँ ज्ञानी और बुद्धिमान लोग बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं. मुझे वहाँ से जाता हुआ देख राजा अक्सर मुझे बुलाते है और अपने एक हाथ में सोने और एक हाथ में चाँदी का सिक्का रखकर कहते हैं कि इन दोनों में से तुम्हें जो मूल्यवान लगे, वो उठा लो. मैं रोज़ चाँदी का सिक्का उठाता हूँ. यह देख वे लोग मेरा परिहास करते हैं और मुझ पर हँसते हैं. मैं चुपचाप वहाँ से चला जाता हूँ.”

पूरी बात सुनकर पंडितजी ने कहा, “पुत्र, जब तुम्हें ज्ञात है कि सोने और चाँदी में से अधिक मूल्यवान सोना है, तो सोने का सिक्का उठाकर ले आया करो. क्यों स्वयं को उनकी दृष्टि में मूर्ख साबित करते हो? तुम्हारे कारण मुझे भी अपमानित होना पड़ता है.”

पुत्र हँसते हुए बोला, “पिताश्री मेरे साथ अंदर आइये. मैं आपको कारण बताता हूँ.”

वह पंडितजी को अंदर के कक्ष में ले गया. वहाँ एक कोने पर एक संदूक रखा हुआ था. उसने वह संदूक खोलकर पंडितजी को दिखाया. पंडितजी आश्चर्यचकित रह गए. उस संदूक में चाँदी के सिक्के भरे हुए थे.

पंडितजी ने पूछा, “पुत्र! ये सब कहाँ से आया?”

पुत्र ने उत्तर दिया, “पिताश्री! राजा के लिए मुझे रोकना और हाथ में सोने और चाँदी का सिक्का लेकर वह प्रश्न पूछना एक खेल बन गया है. अक्सर वे यह खेल मेरे साथ खेला करते हैं और मैं चाँदी का सिक्का लेकर आ जाता हूँ. उन्हीं चाँदी के सिक्कों से यह संदूक भर गया है. जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया. उस दिन ये खेल बंद हो जायेगा. इसलिए मैं कभी सोने का सिक्का नहीं उठाता.”

पंडितजी को पुत्र की बात समझ तो आ गई. किंतु वे पूरी दुनिया को ये बताना चाहते थे कि उनका पुत्र मूर्ख नहीं है. इसलिए उसे लेकर वे राजा के दरबार चले गए. वहाँ पुत्र ने राजा को सारी बात बता दी है कि वो जानते हुए भी चाँदी का सिक्का ही क्यों उठाता है.

पूरी बात जानकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ. उसने सोने के सिक्कों से भरा संदूक मंगवाया और उसे पंडितजी के पुत्र को देते हुए बोला “असली विद्वान तो तुम निकले.”

सीखकभी भी अपने सामर्थ्य का दिखावा मत करो. कर्म करते चले जाओ. जब वक़्त आएगा, तो पूरी दुनिया को पता चल जायेगा कि आप कितने सामर्थ्यवान हैं. उस दिन आप सोने की तरह चमकोगे और पूरी दुनिया आपका सम्मान करेगी. 

 20# दुःख का कारण

Moral Stories In Hindi : एक शहर में एक आलीशान और शानदार घर था. वह शहर का सबसे ख़ूबसूरत घर माना जाता था. लोग उसे देखते, तो तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाते.

एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया. कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटा, तो देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है. करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी. उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था. वहाँ तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी.

अपने ख़ूबसूरत घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें.

उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, “ पिताजी, घबराइए मत. सब ठीक हो जायेगा.”

इस बात पर कुछ नाराज़ होता हुआ पिता बोला, “कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है.” 

बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, माफ़ कीजियेगा. एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था. कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था. उसने मेरे सामने मकान की कीमत की ३ गुनी रकम का प्रस्ताव रखा. सौदा इतना अच्छा था कि मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया.”

ये सुनकर पिता की जान में जान आई. उसने राहत की सांस ली और आराम से यूं खड़ा हो गया, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो. अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगा.

तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इसे जलता हुआ देख रहे हैं. आप कुछ करते क्यों नहीं?”

“बेटा चिंता की बात नहीं है. तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है. अब ये हमारा नहीं रहा. इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता.” पिता बोला.

“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था. लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है. अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं. अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”

यह सुनकर पिता फिर से चिंतित हो गया और सोचने लगा कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए. वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा.

तभी उसका तीसरा बेटा आया और बोला, “पिता जी घबराने की सच में कोई बात नहीं है. मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने मकान का सौदा किया था. उसने कहा है कि मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ. मेरे आदर्श कहते हैं कि चाहे जो भी हो जाये, अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए. इसलिए अब जो हो जाये, जबान दी है, तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूंगा.”

पिता फिर से चिंतामुक्त हो गया और घर को जलते हुए देखने लगा.

सीख :

मित्रों, एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है. उदाहारण के लिए जलते हुए घर के मालिक को ही लीजिये. घर तो वही था, जो जल रहा था. लेकिन उसके मालिक की सोच में कई बार परिवर्तन आया और उस सोच के साथ उसका व्यवहार भी बदलता गया. असल में, जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं, तो उसके छिन जाने पर या दूर जाने पर हमें दुःख होता है. लेकिन यदि हम किसी चीज़ को ख़ुद से अलग कर देखते हैं, तो एक अलग सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छूता तक नहीं है. इसलिए दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता (mindset) पर निर्भर करता है. सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं, बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं.  

 21# भगवान की मर्ज़ी

Moral Stories In Hindi : एक आदमी मंदिर में सेवक था. उसका काम मंदिर की साफ-सफ़ाई करना था. भक्तों और श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान में से थोड़ा-बहुत उसे मंदिर के पुजारी द्वारा दे दिया जाता. इसी से उसकी गुजर-बसर चल रही थी.

वह अपनी जिंदगी से बहुत परेशान और दु:खी था. मंदिर में काम करते-करते वह दिन भर अपनी ज़िंदगी को लेकर शिकायतें करता रहता. एक दिन शिकायत करते हुये वह भगवान से बोला, “भगवान जी! आपकी ज़िंदगी कितनी आसान है. आपको बस एक जगह आराम से खड़े रहना होता है. मेरी ज़िंदगी को देखो. कितनी कठिन ज़िंदगी जी रहा हूँ मैं. दिन भर कड़ी मेहनत करता हूँ, तब कहीं दो जून की रोटी नसीब हो पाती है. काश मेरी ज़िंदगी भी आपकी तरह होती.”

उसकी बात सुनकर भगवान बोले, “तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा नहीं है. मेरी जगह रहना बिल्कुल आसान नहीं है. मुझे बहुत सारी चीज़ें देखनी पड़ती है. बहुत सी व्यवस्थायें करनी पड़ती है. ये हर किसी के बस की बात नहीं है.”

“भगवान जी! कैसी बात कर रहे हैं आप? आपका काम आसान ही तो है. आपकी तरह तो मैं भी दिन भर खड़े रह सकता हूँ. इसमें कौन सी बड़ी बात है?” मंदिर का सेवक बोला.

“तुम नहीं कर पाओगे. इस काम में बहुत धैर्य की आवश्यकता पड़ती है.” भगवान बोले.

“मैं ज़रूर कर पाऊँगा. आप मुझे एक दिन अपनी ज़िंदगी जीने दीजिये. आप जैसा बतायेंगे, मैं वैसा ही करूंगा.” मंदिर का सेवक ज़िद करने लगा.

उसकी ज़िद के आगे भगवान मान गए और बोले, “ठीक है. आज पूरा दिन तुम मेरी ज़िंदगी जिओ. मैं तुम्हारी ज़िंदगी जीता हूँ. लेकिन मेरी ज़िंदगी जीने के लिए तुम्हें कुछ शर्ते माननी होगी.”

“मैं हर शर्त मानने को तैयार हूँ भगवान जी.” सेवक बोला.

“ठीक है. तो ध्यान से सुनो. मंदिर में दिन भर बहुत से लोग आयेंगे और तुमसे बहुत कुछ कहेंगे. कुछ तुम्हें अच्छा बोलेंगे, तो कुछ बुरा. तुम्हें हर किसी की बात चुपचाप एक जगह मूर्ति की तरह खड़े रहकर धैर्य के साथ सुननी है और उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है.”

सेवक मान गया. भगवान और उसने अपनी ज़िंदगी एक दिन के लिए आपस में बदल ली. सेवक भगवान की जगह मूर्ति बनकर खड़ा हो गया. भगवान मंदिर की साफ़-सफाई का काम निपटाकर वहाँ से चले गए.

कुछ समय बीतने के बाद मंदिर में एक धनी व्यापारी आया. भगवान से प्रार्थना करते हुए वह बोला, “भगवान जी! मैं एक नई फैक्ट्री डाल रहा हूँ. मुझे आशीर्वाद दीजिये कि यह फैक्ट्री अच्छी तरह चले और मैं इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाऊँ.”

प्रार्थना करने के बाद वह प्रणाम करने के लिए नीचे झुका, तो उसका बटुआ गिर गया. जब वह वहाँ से जाने लगा, तो भगवान की जगह खड़े मंदिर के सेवक का मन हुआ कि उसे बता दें कि उसका बटुआ गिर गया है. लेकिन शर्त अनुसार उसे चुप रहना था. इसलिये वह कुछ नहीं बोला और ख़ामोश खड़ा रहा.

इसके तुरंत बाद एक गरीब आदमी वहाँ आया और वो भगवान से बोला, “भगवान जी! बहुत गरीबी में जीवन काट रहा हूँ. परिवार का पेट पालना है. माँ की दवाई की व्यवस्था करनी है. समझ नहीं पा रहा हूँ कि इतना सब कैसे करूं. आज देखो, मेरे पास बस १ रुपया है. इससे मैं क्या कर पाऊंगा? आप ही कुछ चमत्कार करो और मेरे लिए धन की व्यवस्था कर दो.”

प्रार्थना करने का बाद जैसे ही वह जाने को हुआ, उसे नीचे गिरा व्यापारी का बटुआ दिखाई दिया. उसने बटुआ उठा लिया और भगवान को धन्यवाद देते हुए बोला “भगवान जी आप धन्य है. आपने मेरी प्रार्थना इतनी जल्दी सुन ली. इन पैसों से मेरा परिवार कुछ दिन भोजन कर सकता है. माँ की दवाई की भी व्यवस्था हो जाएगी.”

भगवान को धन्यवाद देकर वह वहाँ से जाने लगा. तब भगवान बने मंदिर के सेवक का मन हुआ कि उसे बता दे कि वह बटुआ तो व्यापारी का है. उसे मैंने नहीं दिया है. वह जो कर रहा है, वह चोरी है. लेकिन वह चुप रहने के लिए विवश था. इसलिए मन मारकर चुपचाप खड़ा रहा.

मंदिर में आने वाला तीसरा व्यक्ति एक नाविक था. वह १५ दिन के लिए समुद्री यात्रा पर जा रहा था. भगवान से उसने प्रार्थना की कि उसकी यात्रा सुरक्षित रहे और वह सकुशल वापस वापस आ सके.

वह प्रार्थना कर ही रहा था कि धनी व्यापारी वहाँ आ गया. वह अपने साथ पुलिस भी लेकर आया था. नाविक को देखकर वह पुलिस से बोला, “मेरे बाद ये मंदिर में आया है. ज़रुर इसने ही मेरा बटुआ चुराया होगा. आप इसे गिरफ़्तार कर लीजिये.”

पुलिस नाविक को पकड़कर ले जाने लगी. भगवान बने आदमी को अपने सामने होता हुआ ये अन्याय सहन नहीं हुआ. शर्त अनुसार उसे चुप रहना था. लेकिन उसे लगा कि बहुत गलत हो चुका है. यदि अब मैं चुप रहा, तो एक बेकुसूर आदमी को व्यर्थ में ही सजा भुगतनी पड़ेगी.

उसने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ”आप गलत व्यक्ति को पकड़ कर ले जा रहे हैं. ये बटुआ इस नाविक ने नहीं, बल्कि इसके पहले आये गरीब व्यक्ति ने चुराया है. मैं भगवान हूँ और मैंने सब देखा है.”

पुलिस भगवान की बात कैसे नहीं मानती? उनकी बात मानकर उन्होंने नाविक को छोड़ दिया और उस गरीब आदमी को पकड़ लिया, जिसने बटुआ लिया था.

शाम को जब भगवान वापस आये, तो मंदिर के सेवक ने पूरे दिन का वृतांत सुनाते हुए उन्हें गर्व के साथ बताया कि आज मैंने एक व्यक्ति के साथ अन्याय होने से रोका है. देखिये आपकी ज़िंदगी जीकर आज मैंने कितना अच्छा काम किया है.

उसकी बात सुनकर भगवान बोले, “ये तुमने क्या किया? मैंने तुमसे कहा था कि चुपचाप मूर्ति बनकर खड़े रहना. लेकिन वैसा न कर तुमने मेरी पूरी योजना पर पानी फेर दिया. उस धनी व्यापारी ने बुरे कर्म करने इतना धन कमाया है. यदि उसमें से कुछ पैसे गरीब आदमी को मिल जाते, तो उसका भला हो जाता और व्यापारी के पाप भी कुछ कम हो जाते. जिस नाविक को तुमने समुद्री यात्रा पर भेज दिया है, अब वह जीवित वापस नहीं आ पायेगा. समुद्र में बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है. यदि वह कुछ दिन जेल में रहता, तो कम से कम बच जाता.

सेवक को यह सुनकर अहसास हुआ कि वह तो बस वही देख पा रहा था, जो आँखों के सामने हो रहा था. उन सबके पीछे की वास्तविकता को वह देख ही नहीं पा रहा था. जबकि भगवान जीवन के हर पहलू पर विचार अपनी योजना बनाते हैं और लोगों के जीवन को चलाते हैं.  

सीख  –

हम सब भी भगवान की योजनाओं को समझ नहीं पाते. जब हमारे साथ कुछ गलत हो रहा होता है या हमारे हिसाब से कुछ नहीं हो रहा होता है, तो अपना धैर्य खोकर हम भगवान को दोष देने लगते हैं. हम ये समझ नहीं पाते कि इन सबके पीछे भगवान की कोई न कोई योजना छुपी हुई होती है. ऐसे समय में हमें भगवान पर विश्वास रखकर धैर्य धारण करने की आवश्यता है. इसलिए चिंता न करें. यदि आपकी मर्ज़ी से कुछ नहीं हो रहा, तो इसका अर्थ है कि वह भगवान की मर्ज़ी से हो रहा है और भले ही देर से ही सही, भगवान की मर्ज़ी से सब अच्छा ही होता है.

22# वस्तु का मूल्य 

बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। उसके दो बेटे थे। बूढ़ा वस्तुओं के उपयोग के मामले में कंजूस था और उन्हें बचा-बचा कर उपयोग किया करता था।

उसके पास एक पुराना चांदी का पात्र था। वह उसकी सबसे मूल्यवान वस्तु थी। उसने उसे संभालकर संदूक में बंद कर रखता था। उसने सोच रखा था कि सही अवसर आने पर ही उसका उपयोग करेगा।

एक दिन उसके यहाँ एक संत आये। जब उन्हें भोजन परोसा जाने लगा, तो एक क्षण को बूढ़े व्यक्ति के मन में विचार आया कि क्यों न संत को चांदी के पात्र में भोजन परोसूं? किंतु अगले ही क्षण उसने सोचा कि मेरा चांदी का पात्र बहुत कीमती है। गाँव-गाँव भटकने वाले इस संत के लिए उसे क्या निकालना? जब कोई राजसी व्यक्ति मेरे घर पधारेगा, तब यह पात्र निकालूंगा। यह सोचकर उसने पात्र नहीं निकाला।

कुछ दिनों बाद उसके घर राजा का मंत्री भोजन करने आया। उस समय भी बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि चांदी का पात्र निकाल लूं। किंतु फिर उसे लगा कि ये तो राजा का मंत्री है। जब राजा स्वयं मेरे घर भोजन करने पधारेंगे, तब अपना कीमती पात्र निकालूंगा।

कुछ दिनों के बाद स्वयं राजा उसके घर भोजन के लिए पधारे। राजा उसी समय पड़ोसी राज्य से युद्ध हार गए थे और उनके राज्य के कुछ हिस्से पर पड़ोसी राजा ने कब्जा कर लिया था। भोजन परोसते समय बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि अभी-अभी हुई पराजय से राजा का गौरव कम हो गया है। मेरे पात्र में किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन करना चाहिए। इसलिए उसने चांदी का पात्र नहीं निकाला।

इस तरह उसका पात्र बिना उपयोग के पड़ा रहा। एक दिन बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई।

उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे ने उसका संदूक खोला। उसमें उसे काला पड़ चुका चांदी का पात्र मिला। उसने वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया और पूछा, “इसका क्या करें?”

पत्नी ने काले पड़ चुके पात्र को देखा और मुँह बनाते हुए बोली, “अरे इसका क्या करना है। कितना गंदा पात्र है। इसे कुत्ते को भोजन देने के लिए निकाल लो।”

उस दिन के बाद से घर का पालतू कुत्ता उस चांदी के पात्र में भोजन करने लगा। जिस पात्र को बूढ़े व्यक्ति ने जीवन भर किसी विशेष व्यक्ति के लिए संभालकर रखा, अंततः उसकी ये गत हुई।

सीख 

किसी वस्तु का मूल्य तभी है, जब वह उपयोग में लाई जा सके। बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती वस्तुओं का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए यदि आपके पास कोई वस्तु है, तो यथा समय उसका उपयोग कर लें।

23# माता पिता की सेवा 

गाँव के पनघट पर चार औरतें पानी भरने आई. पानी भरते-भरते वे एक-दूसरे से बातें करने लगी. चारों के एक-एक पुत्र थे. बातों-बातों में उन्होंने अपने पुत्रों के गुणों का बखान करना प्रारंभ कर दिया. पहली औरत बोली, “मेरा पुत्र बहुत सुरीली बांसुरी बजाता है. जो भी उसकी बांसुरी सुनता है, मंत्रमुग्ध हो जाता है. मैं ऐसा गुणवान पुत्र पाकर बहुत प्रसन्न हूँ.”

दूसरी औरत बोली, “मेरा पुत्र बहुत बड़ा पहलवान है. इस गाँव में ही नहीं, बल्कि दूर-दूर के गाँव में उसकी बहादुरी का डंका बजता हैं. ऐसा गुणवान पुत्र भगवान सबको दे.”

तीसरी औरत कहाँ पीछे रहती, वह बोली, “मेरा पुत्र कुशाग्र बुद्धि है. उससे अधिक बुद्धिमान इस पूरे गाँव में नहीं. लोग अपनी समस्यायें लेकर उसके पास आते हैं. मैं ऐसा पुत्र पाकर धन्य हो गई.”

चौथी औरत ने सबकी बातें सुनी, लेकिन कहा कुछ भी नहीं. इस पर वे औरतें उससे कहने लगी, “बहन! तुम भी तो कुछ कहो ना. तुम्हारे पुत्र में क्या गुण है? कोई न कोई गुण तो उसमें अवश्य होगा.”

वह औरत बोली, “क्या कहूं बहनों? मेरे पुत्र में तुम्हारे पुत्रों की तरह कोई गुण नहीं है.”

उसकी बात सुनकर तीनों औरतों ने गर्व ने अपना सिर उठा लिया. कुछ देर में सबने पानी भर लिया और वापस जाने के लिए अपना-अपना घड़ा उठाने लगी. उसी समय पहली औरत का पुत्र हाथ में बांसुरी लिए वहाँ से गुजरा. उसने देखा कि उसकी माँ पानी से भरा घड़ा नहीं उठा पा रही है. किंतु वह यह अनदेखा कर बांसुरी बजाते हुए वहाँ से चला गया.

दूसरी औरत का पहलवान पुत्र कुछ ही दूरी पर मुद्गर घुमा रहा था. उसकी माँ कुएं से घड़ा उठाकर जैसे ही उतरी, उसका पैर फिसल गया. किसी प्रकार वह संभल गई, किंतु पहलवान पुत्र अपनी माँ को नज़र उठा कर देखने के बाद भी उसके पास नहीं आया और अपनी कसरत में लगा रहा.

तीसरी औरत का पुत्र भी वहाँ से किताब पढ़ते हुए निकला. उसकी माँ ने उससे कहा, “पुत्र! मैं दोनों हाथों से घड़ा पकड़े हुए हूँ. ये रस्सी जरा मेरे कंधे पर डाल दे.” लेकिन वह अपनी माँ की बात अनसुनी कर वहाँ से चला गया.

तभी चौथी औरत का पुत्र वहाँ आया. अपनी माँ के सिर पर घड़ा देख वह उसके पास गया और उसके सिर से घड़ा उतारकर अपने सिर पर रखकर चलने लगा.

कुएं के पास बैठी एक बुढ़िया यह सब देख-सुन रही थी. वह बोल पड़ी, “मुझे तो यहाँ बस एक ही गुणवान पुत्र नज़र आ रहा है – वही जो अपने सिर पर घड़ा लिए जा रहा है. माता-पिता की सेवा करने वाले पुत्र से गुणवान पुत्र भला कौन हो सकता है. ”

सीख 

गुणवान वही है, जो अपने माता-पिता की सेवा करे और साथ ही सबकी सहायता के लिए तत्पर रहे. 

24# हाथी और छः अंधे व्यक्ति 

एक गाँव में छः अंधे व्यक्ति रहते थे. एक दिन उनके गाँव में एक हाथी आया, जो पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन गया. सब उसे देखने जाने लगे, विशेषकर बच्चे. लंबी सूंड और पंखे जैसे कान वाले विशालकाय हाथी को देखकर बच्चे बड़े ख़ुश थे.

छः अंधे व्यक्तियों को भी एक गाँव वाले ने बताया कि आज गाँव में हाथी आया है. हाथी के बारे में सुनकर उनमें जिज्ञासा जाग उठी. उन्होंने हाथी के बारे में सुना अवश्य था, किंतु छूकर उसके स्पर्श को महसूस नहीं किया था.

एक अंधे व्यक्ति बोला, “दोस्तों! इतना सुन रखा है हाथी के बारे में. आज गाँव में हाथी आया है, तो मैं उसे छूकर महसूस करना चाहता हूँ. क्या तुम लोग नहीं चाहते?”

उसकी बात सुनकर अन्य पाँच भी हाथी को छूकर महसूस करने के लिए लालायित हो उठे. वे सभी उस जगह पर पहुँचे, जहाँ हाथी था. वे हाथी के करीब गए और उसे छूने लगे.

पहले व्यक्ति ने हाथी के खंबे जैसे विशाल पैर को छुआ और बोला, “ओह, हाथी खंबे जैसा होता है.”

दूसरे व्यक्ति के हाथ में हाथी की पूंछ आई, जिसे पकड़कर वह बोला, “गलत कर रहे हो दोस्त, हाथी खंबे की तरह नहीं, बल्कि रस्सी की तरह होता है.”

तीसरे व्यक्ति के हाथी की लंबी सूंड पकड़ी और कहने लगा, “अरे नहीं, हाथी तो पेड़ के तने जैसा होता है.”

चौथे व्यक्ति ने हाथी के पंखें जैसे कान छुए और उसे लगा कि बाकी सब गलत कह रहे हैं, वो उन्हें समझाते हुए बोला, “हाथी पंखें जैसा होता है.”

पांचवें व्यक्ति ने हाथी का पेट छूते हुए कहा, “अरे तुम सब कैसे अजीब बातें कर रहे हो. हाथी तो दीवार की तरह होता है.”

छटवें व्यक्ति ने हाथी के दांत को छुआ और बोला, “सब गलत कह रहे हो. हाथी कठोर नली की तरह होता है.”

सब अपनी-अपनी बात पर अडिग थे. कोई दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं था. वे आपस में बहस कर अपनी बात सही साबित करने में लग गए. धीरे-धीरे बहस बढ़ती गई और झगड़े में तब्दील हो गई.

उस समय एक सयाना व्यक्ति वहाँ आया. उन सबको झगड़ते हुए देख उनसे पूछा, “तुम लोग आपस में क्यों झगड़ रहे हो?”

छहो अंधे व्यक्तियों ने उसे बताया कि वे हाथी को छूकर महसूस करने आये थे और उसे छूने के बाद हम सबमें बहस हो रही है कि हाथी होता कैसा है. फ़िर सबने उसे अपना आंकलन बताया.

उनकी बात सुनकर सयाना व्यक्ति हँस पड़ा और बोला, “तुम सब लोग ख़ुद को सही साबित करने के लिए झगड़ रहे हो और सच ये है कि तुम सब सही हो.”

“ऐसा कैसे हो सकता है?” अंधे व्यक्ति हैरत में बोले.

“बिल्कुल हो सकता है और ऐसा ही है. तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो. तुम लोगों ने हाथी के शरीर के अलग-अलग अंगों को छुआ है और उसके हिसाब से उसका वर्णन किया है. इसलिए हाथी के बारे में तुम्हारा आंकलन भिन्न है. वास्तव में हाथी तुम सबके आंकलन अनुसार ही है, वह खंबे जैसे पैरों वाला, पंखे जैसे कान वाला, रस्सी जैसे पूंछ वाला, तने जैसे सूंड वाला, दीवार जैसे पेट वाला, नली जैसे दांतों वाला एक विशालकाय जानवर है. इसलिए झगड़ा बंद करो और अपने-अपने घर जाओ.”

यह सुनकर सब सोचते लगे कि हम सब बेकार में ही झगड़ रहे थे और फ़िर सब घर लौट गये.

सीख :

१. अक्सर हम किसी विषय के संबंध में सीमित ज्ञान के आधार पर अपनी धारणा बना लेते हैं और दूसरों से अपनी धारणा को लेकर उलझ जाते हैं तथा स्वयं को सही साबित करने की कोशिश करने लगते हैं. जबकि संभव है कि उस व्यक्ति की धारणा भी उसके सीमित ज्ञान के दायरे में सही हो. किसी भी विषय के हर पहलू के बारे में जाने बिना उस संबंध में एकदम से कोई अटल धारणा नहीं बनाना चाहिए.

२. कई बार फ़र्क नज़रिये का होता है. किसी भी चीज़ को देखने का हमारा नज़रिया दूसरों से भिन्न हो सकता है. हमें एक-दूसरे के नज़रिये का भी सम्मान करना चाहिए.  

25# फूटा घड़ा 

बहुत समय पहले की बात है. एक गांव में एक किसान रहता था. उसके पास दो घड़े थे. उन दोनों घड़ों को लेकर वह रोज़ सुबह अपने घर से बहुत दूर बहती एक नदी से पानी लेने जाया करता था. पानी भरने के बाद वह उन घड़ों को एक बांस की लकड़ी के दोनो सिरों पर बांध लेता और उसे अपने कंधे पर लादकर वापस घर तक लाता था. रोज़ सुबह उसकी यही दिनचर्या थी.

दोनों घड़ों में से एक घड़ा सही-सलामत था, लेकिन दूसरा घड़ा एक जगह से फूटा हुआ था. इसलिए जब भी किसान नदी से पानी भरकर घर तक पहुँचता, एक घड़ा पानी से लबालब भरा रहता और दूसरे घड़े से पानी रिसने के कारण वह घड़ा आधा खाली हो चुका रहता था.

सही-सलामत घड़े को खुद पर बड़ा घमंड था कि वह किसान के घर तक पूरा पानी पहुँचाता है. दूसरी ओर फूटा घड़ा खुद को नीचा समझता था और हमेशा शर्मिंदा रहता कि वह किसी काम का नहीं है. उसे ग्लानि महसूस होती कि उसके कारण किसान की पूरी मेहनत बेकार चली जाती है.

एक दिन उस फूटे घड़े से नहीं रहा गया और उसने किसान से क्षमा मांगते हुए कहा, “मालिक! मैं खुद पर बहुत शर्मिंदा हूँ. मैं ठीक तरह से आपके काम नहीं आ पा रहा हूँ.”

किसान ने पूछा, “क्यों? ऐसी क्या बात हो गई?”

घड़े ने बताया, “मालिक! शायद आप इस बात से अनजान हैं कि मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ और नदी से घर तक पहुँचते-पहुँचते मेरा आधा पानी रिस जाता है. मेरी इस कमी के कारण आपकी मेहनत व्यर्थ चली जाती है.”

सुनकर वह किसान उस घड़े से बोला, ”तुम दु:खी मत हो. बस आज नदी से वापस आते हुए मार्ग में खिले हुए सुंदर फूलों को देखना. तुम्हारा मन बहल जायेगा.”

फूटे घड़े ने वैसा ही किया. वह रास्ते भर सुंदर फूलों को देखता हुआ आया. इससे उसका विचलित मन शांत हो गया. लेकिन जब घर पहुँचते ही उसने पाया कि वह पुनः आधा खाली हो चुका है, तो उस पर फिर से उदासी छा गई. उसने किसान से अनुनय किया कि वह उसकी जगह कोई अच्छा और सही-सलामत घड़ा ले ले.

यह सुनकर किसान बोला, “क्या तुमने ध्यान दिया कि बांस के जिस सिरे पर तुम बंधे रहते हो, उस ओर के मार्ग में सुंदर फूल खिले हुए हैं, जबकि मार्ग के दूसरी और सूखी जमीन है? ऐसा नहीं है कि मैं इस बात से अनजान हूँ कि तुम फूटे हुए हो. यह बात जानते हुए ही मैंने मार्ग के उस ओर सुंदर और रंग-बिरंगे फूल लगा दिए. जब मैं नदी से पानी भरकर लाता हूँ, तो तुम्हारे द्वारा उन फूलों को पानी मिल जाता है और वे सदा उस मार्ग को हरा-भरा रखते है. तुम्हारे कारण ही वह मार्ग इतना सुंदर हो पाया है. इसलिए तुम खुद को कम मत आंकों.”

सीख 

कोई भी ऊँचा या नीचा नहीं होता. इस दुनिया में हर इंसान को एक रोल मिला हुआ है. जिसे हर कोई बखूबी निभा रहा है. इसलिए जो जैसा है, हमें उसे वैसा ही स्वीकारना चाहिए और उसकी कमजोरियों के स्थान पर उसकी अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए.

26# भगवान पर भरोसा रखें

एक आदमी रेगिस्तान में भटक रहा था. आधा दिन निकल चुका था और रास्ते का कुछ पता नहीं था. वह समझ नहीं पा रहा था कि किस तरह उस रेगिस्तान से बाहर निकले. उसका खाने-पीने का सारा सामान ख़त्म हो गया था. प्यास से गला सूखा जा रहा था. लेकिन पानी का दूर-दूर तक कोई नामो-निशान नहीं था.

थोड़ी दूर और चलने पर उसे एक झोपड़ी दिखाई पड़ी. वह इस आशा में झोपड़ी की ओर चल पड़ा कि वहाँ उसे पानी अवश्य मिल जायेगा और वह वहाँ रहने वालों से रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता भी पूछ लेगा.

लेकिन झोपड़ी के पास पहुँचकर वह निराश हो गया. झोपड़ी खाली पड़ी थी. वहाँ कोई नहीं था. लेकिन उसके बाद भी उसने भगवान पर भरोसा रखा और झोपड़ी के अंदर गया.

झोपड़ी के अंदर एक हैण्डपंप लगा हुआ पाया. वह खुश हो गया कि अब वह अपनी प्यास बुझा सकता है. उसने भगवान को धन्यवाद दिया और हैण्डपंप चलाने लगा. लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी हैण्डपंप नहीं चला.

वह थक कर चूर हो चुका था. वह जमीन पर लेट गया. पानी के बिना उसे अपनी ज़िंदगी खत्म होती नज़र आने लगी थी. तभी उसे झोपड़ी की छत पर पानी की एक बोतल लटकी हुई दिखाई पड़ी और उसकी जान में जान आ गई.

उसने सोचा कि ये भगवान की कृपा है कि पानी की ये बोतल उसे दिख गई. अब वह अपनी प्यास बुझा सकता है. उसने पानी की बोतल नीचे उतारी. लेकिन जैसे ही वह पानी पीने को हुआ, उसकी नज़र बोतल के नीचे चिपके कागज पर पड़ी.

उस कागज पर लिखा था – इस पानी का इस्तेमाल हैण्डपंप चलाने के लिए लिए करें. जब हैण्डपंप चल जाए, तो पानी पी ले और फिर से इस बोतल में पानी भरकर वापस वही लटका दें, जहाँ से आपने इसे उतारा था.

कागज पर लिखे संदेश को पढ़कर आदमी सोच में पड़ गया कि क्या करें? यदि पानी हैण्डपंप में डाला और वह नहीं चला तो? सही तो यह होगा कि बोतल का पानी पीकर वहाँ से आगे बढ़ा जाए.

वह दुविधा में पड़ चुका था. लेकिन अंत में उसने ऊपर वाले को याद किया और कागज पर लिखे संदेश पर भरोसा करने का निर्णय लिया. उसने बोतल का पानी हैण्डपंप में डाल दिया और हैण्डपंप चलाने की कोशिश करने लगा.

१-२ प्रयास में हैण्डपंप चल गया और उसमें से ठंडा-ठंडा पानी आने लगा. आदमी ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और बोतल में पानी भरकर उसे वापस उसी जगह लटका दिया, जहाँ से उसने उसे उतारा था.

वह वहाँ से निकल ही रहा था कि झोपड़ी से एक कोने में उसे एक नक्शा और पेंसिल का टुकड़ा मिला. उस नक़्शे में रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता बना हुआ था.

आदमी खुश हो गया और भगवान का लाख-लाख धन्यवाद दिया. वह नक्शा लेकर बाहर निकल गया. लेकिन कुछ दूर चलने के बाद वह रुका और वापस झोपड़ी में आया. उसने पानी की बोतल के नीचे लगे कागज पर पेंसिल से लिखा – यकीन मानिये ये काम करता है.

सीख

  • जब भी ज़िंदगी में बुरा वक़्त या परिस्थिति आये, भगवान और खुद पर विश्वास रखें. विश्वास बहुत बड़ी चीज़ होती है. विश्वास है, तो दुनिया में हर चीज़ संभव है.
  • बिना प्रयास के ज़िंदगी में कुछ भी हासिल नहीं होता. जैसे उस आदमी ने हैण्डपंप में पानी डाला और उसे चलाया, तब कहीं जाकर उसे अपने प्रयास का फल पानी के रूप में नसीब हुआ. उसी प्रकार ज़िंदगी में कुछ करना है, तो प्रयास करने पड़ेंगे. प्रयास करेंगे, तो सफ़लता अवश्य मिलेगी.

27# पारस पत्थर

वन में स्थित एक आश्रम में एक ज्ञानी साधु रहते थे. ज्ञान प्राप्ति की लालसा में दूर-दूर से छात्र उनके पास आया करते थे और उनके सानिध्य में आश्रम में ही रहकर शिक्षा प्राप्त किया करते थे.

आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में से एक छात्र बहुत आलसी था. उसे समय व्यर्थ गंवाने और आज का काम कल पर टालने की बुरी आदत थी. साधु को इस बात का ज्ञान था. इसलिए वे चाहते थे कि शिक्षा पूर्ण कर आश्रम से प्रस्थान करने के पूर्व वह छात्र आलस्य छोड़कर समय का महत्व समझ जाए.  

इसी उद्देश्य से एक दिन संध्याकाल में उन्होंने उस आलसी छात्र को अपने पास बुलाया और उसे एक पत्थर देते हुए कहा, “पुत्र! यह कोई सामान्य पत्थर नहीं, बल्कि पारस पत्थर है. लोहे की जिस भी वस्तु को यह छू ले, वह सोना बन जाती है. मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ. इसलिए दो दिनों के लिए ये पारस पत्थर तुम्हें दे रहा हूँ. इन दो दिनों में मैं आश्रम में नहीं रहूंगा. मैं पड़ोस के गाँव में रहने वाले अपने एक मित्र के घर जा रहा हूँ. जब वापस आऊंगा, तब तुमसे ये पारस पत्थर ले लूंगा. उसके पहले जितना चाहो, उतना सोना बना लो.”

छात्र को पारस पत्थर देकर साधु अपने मित्र के गाँव चले गए. इधर छात्र अपने हाथ में पारस पत्थर देख बड़ा प्रसन्न हुआ. उसने सोचा कि इसके द्वारा मैं इतना सोना बना लूंगा कि मुझे जीवन भर काम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी और मैं आनंदपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर पाऊँगा.     

उसके पास दो दिन थे. उसने सोचा कि अभी तो पूरे दो दिन शेष हैं. ऐसा करता हूँ कि एक दिन आराम करता हूँ. अगला पूरा दिन सोना बनाता रहूंगा. इस तरह एक दिन उसने आराम करने में बिता दिया.

जब दूसरा दिन आया, तो उसने सोचा कि आज बाज़ार जाकर ढेर सारा लोहा ले आऊंगा और पारस पत्थर से छूकर उसे सोना बना दूंगा. लेकिन इस काम में अधिक समय लगेगा नहीं. इसलिए पहले भरपेट भोजन करता हूँ. फिर सोना बनाने में जुट जाऊंगा.

भरपेट भोजन करते ही उसे नींद आने लगी. ऐसे में उसने सोचा कि अभी मेरे पास शाम तक का समय है. कुछ देर सो लेता हूँ. जागने के बाद सोना बनाने का काम कर लूंगा. फिर क्या? वह गहरी नींद में सो गया. जब उसकी नींद खुली, तो सूर्य अस्त हो चुका था और दो दिन का समय पूरा हो चुका था. साधु आश्रम लौट आये थे और उसके सामने खड़े थे.

साधु ने कहा, “पुत्र! सूर्यास्त के साथ ही दो दिन पूरे हो चुके हैं. तुम मुझे वह पारस पत्थर वापस कर दो.”

छात्र क्या करता? आलस के कारण उसने अमूल्य समय व्यर्थ गंवा दिया था और साथ ही धन कमाने का एक सुअवसर भी. उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था और समय का महत्व भी समझ आ गया. वह पछताने लगा. उसने उसी क्षण निश्चिय किया कि अब से वह कभी आलस नहीं करेगा.

सीख 

  • जीवन में उन्नति करना चाहते हैं, तो आज का काम कल पर टालने की आदत छोड़ दें.
  • समय अमूल्य है, इसे व्यर्थ ना गंवायें, क्योंकि एक बार हाथ से निकल जाने के बाद समय कभी दोबारा वापस नहीं आता.

28# लोभी राजा मिदास

कई वर्षों पहले एक राज्य में मिदास नामक एक लोभी राजा राज करता था. उसकी एक बहुत ही सुंदर पुत्री थी, जिसका नाम ‘मेरीगोल्ड’ था.

मिदास अपनी पुत्री से बहुत प्रेम करता था, किंतु उससे कहीं अधिक उसे सोने से प्रेम था. उसका ख़जाने में सोने का भंडार था. उतना सोना दुनिया में किसी भी राजा के ख़जाने में नहीं था. इसके बाद भी खजाने में जितना सोना बढ़ता, राजा मिदास की लालसा उतनी ही बढ़ती जाती थी. उसके दिन का अधिकांश समय खजाने में रखे सोने को गिनने में निकल जाता था. सोने के लालसा में अक्सर वह अपनी पुत्री को अनदेखा कर देता था.

दिन पर दिन उसकी सोने की ललक बढ़ती जा रहे थी. और अधिक सोना प्राप्त करने के उद्देश्य से उसने एक बार अन्न-जल त्याग कर ईश्वर की कठोर उपासना की. उसकी उपासना से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उसे दर्शन दिये और मनचाहा वरदान मांगने को कहा.

मिदास बोला, ”हे ईश्वर! मुझे वरदान दीजिये कि मैं जिस भी वस्तु हो छुऊं, वह सोने की बन जाये.”

ईश्वर मिदास की लालसा समझ रहे थे. वरदान देने के पूर्व उन्होंने पूछा, “राजन! क्या यह वरदान मांगने के पूर्व तुमने अच्छी तरह विचार कर लिया है.”

“हे ईश्वर! मैं इस विश्व का सबसे धनी राजा बनना चाहता हूँ. मैंने अच्छी तरह सोच लिया है. मुझे यही वरदान चाहिए. कृपया मुझे वरदान प्रदान कीजिये.” मिदास ने उत्तर दिया.

“तथास्तु! मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि कल सूर्य की पहली किरण के साथ तुम जिस भी वस्तु को छुओगे, वह सोने की बन जायेगी.” आशीर्वाद देने के उपरांत ईश्वर अंतर्ध्यान हो गए.

राजा मिदास यह वरदान पाकर खुशी से फूला नहीं समाया. दूसरे दिन सोकर उठने के उपरांत अपनी शक्ति परखने के लिए उसने अपने पलंग को छूकर देखा. वह पलंग सोने का बन गया. मिदास बहुत खुश हुआ. दिन भर वह सुध-बुध खोकर अपने महल की हर चीज़ को सोने में परिवर्तित करने में लगा रहा. उसे भोजन तक का होश न रहा.

शाम तक वह थककर चूर हो चुका था. उसे जोरों की भूख लग आई थी. उसने अपने सेवकों को भोजन परोसने के लिये कहा. भोजन परोसा गया. किंतु यह क्या? जैसे ही उसने भोजन को हाथ लगाया, वह सोने में परिवर्तित हो गया. अब सोने को तो खाया नहीं जा सकता था. भूख से बेहाल राजा मिदास ने फल खाकर भूख मितानी चाही. किंतु उसके छूते ही वह भी सोने में परिवर्तित हो गया. वह गुस्से से तिलमिला उठा और उठकर बाहर चला आया.

बाहर टहलते हुए वह अपने महल के उद्यान में पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि उसकी नन्ही पुत्री ‘मेरीगोल्ड’ खेल रही है. उसका सुंदर मुख देख राजा के मन में प्रेम उमड़ आया. कुछ क्षणों के लिए वह अपनी भूख भूल गया. जब ‘मेरीगोल्ड’ ने अपने पिता को देखा, तो वह उसके पास दौड़ी चली आई और प्रेमपूर्वक उससे लिपट गई. राजा मिदास ने प्जैरेम जताते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और तुरंत ही वह सोने में परिवर्तित हो गई. अपनी नन्ही पुत्री को सोने का बना देख वह दु:खी हो गया और रोने लगा.

उसने फिर से ईश्वर से प्रार्थना की. प्रार्थना सुनकर ईश्वर प्रकट हुए और उससे पूछा, “राजन! क्या हुआ? अब तुम्हें क्या वरदान चाहिए?”

मिदास रो-रोकर कहने लगा, “हे ईश्वर! मुझे क्षमा करें. सोने की लालसा में मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और मैं यह वरदान मांग बैठा था. किंतु अपनी पुत्री को खोने के बाद अब मेरी आँखें खुल गई है. मुझे समझ आ गया है कि हर वस्तु अमूल्य है और उन सबमें सबसे अमूल्य है मेरी पुत्री. भगवन, कृपया यह वरदान वापस ले लें और मुझे मेरी पुत्री लौटा दें. अब मैं सोने की लालसा त्याग दूंगा और अपना कोषागार निर्धनों और ज़रूरतमंदों के लिए खोल दूंगा.”

ईश्वर ने जब उसके पछतावे के आँसू देखे, तो अपना वरदान वापस ले लिया. दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण के साथ सारी वस्तुएं अपने वास्तविक रूप में आने लगी. राजा मिदास की पुत्री भी अपने वास्तविक स्वरुप में आ गई. उसने  ने अपने वचन के अनुसार अपना कोषागार निर्धनों और ज़रूरतमंदों के लिए खोल दिया. उसका लोभ ख़त्म हो चुका था. वह एक संतुष्ट जीवन व्यतीत करने लगा.

सीख 

धन महत्वपूर्ण अवश्य है, किंतु सर्वस्व नहीं. प्रेम, ख़ुशी, संतुष्टि कभी भी धन से खरीदी नहीं जा सकती.

लोभ का परिणाम बुरा होता है.

29# ईमानदार लकड़हारा 

बहुत समय पहले की बात है. एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा अपने परिवार के साथ रहता था. वह रोज़ सुबह गाँव के समीप स्थित जंगल में जाकर लकड़ियाँ काटता और उसे बाज़ार में बेचकर पैसे कमाता था. इस तरह उसकी और उसके परिवार की गुजर-बसर चल रही थी.

एक दिन वह जंगल में नदी किनारे लगे एक पेड़ की लकड़ियाँ काट रहा था. अचानक उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से छूटकर नदी में जा गिरी. नदी गहरी थी, जिसमें उतरकर कुल्हाड़ी निकाल पाना लकड़हारे के लिए संभव नहीं था.

लकड़हारे के पास एक ही कुल्हाड़ी थी. उस कुल्हाड़ी के नदी में गिर जाने से वह परेशान हो गया. वह सोचने लगा कि अब वह अपनी जीविका कैसा चलायेगा. उसके पास जीविका चलाने का कोई और साधन नहीं था.

वह दु:खी होकर नदी किनारे खड़ा हो गया और भगवान से प्रार्थना करने लगा, “भगवन्! मेरी कुल्हाड़ी मुझे वापस दिला दीजिये.”

लकड़हारे की सच्चे मन से की गई प्रार्थना सुनकर भगवान प्रकट हुए. उन्होंने उससे पूछा, “पुत्र! तुम्हें क्या समस्या है?”

लकड़हारे ने कुल्हाड़ी नदी में गिरने की बात भगवान को बता दी और उनसे याचना की कि वे उसकी कुल्हाड़ी वापस दिला दें.

उसकी याचना सुनकर भगवान ने नदी के पानी में हाथ डालकर एक कुल्हाड़ी बाहर निकाली. वह कुल्हाड़ी चाँदी की थी. भगवान ने लकड़हारे से पूछा, “पुत्र! क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है.”

लकड़हारा बोला, “नहीं भगवन्, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है.”

भगवान ने पुनः अपना हाथ पानी में डाला. इस बार उन्होंने जो कुल्हाड़ी निकाली, वो सोने की थी. उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “पुत्र! क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

लकड़हारा बोला, “नहीं भगवन्, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है.”

भगवान बोले, “इसे अच्छी तरह से देख लो. ये सोने की कुल्हाड़ी है. क्या वास्तव में ये तुम्हारी नहीं है?”

“नहीं भगवन्” लकड़हारा बोला, “सोने की इस कुल्हाड़ी से लकड़ियाँ नहीं कटती. ये मेरे किसी काम की नहीं है. मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की है.”

भगवान मुस्कुराये और फिर से पानी में हाथ डाल दिया. इस बार जो कुल्हाड़ी उन्होंने निकाली, वह लोहे की थी. वह कुल्हाड़ी लकड़हारे को दिखाते हुए भगवान ने पूछा, “पुत्र! क्या यही है तुम्हारी कुल्हाड़ी?”

इस बार कुल्हाड़ी देख लकड़हारा प्रसन्न हो गया और बोला, “भगवन्, यही मेरी कुल्हाड़ी है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.”

भगवान लकड़हारे की ईमानदारी देख बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “पुत्र! मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत अत्यंत प्रसन्न हूँ. इसलिए तुम्हें लोहे की कुल्हाड़ी के साथ-साथ सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी भी देता हूँ.”

यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये. लकड़हारा अपनी ईमानदारी के कारण पुरुस्कृत हुआ.

सीख 

सदा ईमानदार रहें. ईमानदारी सदा सराही जाती है.

30# जल की मिठास

गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे एक शिष्य को अपने पिता का संदेश मिला. पिता ने उसे घर बुलाया था. बिना देर किये शिष्य गुरु के पास गया और उनसे घर जाने की अनुमति मांगी.

गुरु द्वारा अनुमति दे दी गई और अगले दिन शिष्य घर की ओर निकल पड़ा. वह पैदल चला जा रहा था. गर्मी के दिन थे. रास्ते में उसे प्यास लग आई.

वह पानी का स्रोत ढूंढते हुए आगे बढ़ने लगा. रास्ते एक किनारे उसे एक कुआं दिखाई पड़ा. उसने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझाई. उस कुएं का पानी शीतल और मीठा था. शिष्य उसे पीकर तृप्त हो गया.

वह आगे बढ़ने को हुआ ही था कि उनके मन में विचार आया – इतना मीठा जल मैंने आज तक कभी नहीं पिया. मुझे गुरूजी के लिए यह जल ले जाना चाहिए. वह भी तो इस मीठे जल का पान करके देखें.

यह सोचकर उसने कुएं से जल निकाला और मशक में भरकर वापस गुरुकुल की ओर चल पड़ा. गुरुकुल में उसे देख गुरूजी ने चकित होकर पूछा, “वत्स, तुम इतनी जल्दी लौट आये?”

शिष्य ने उन्हें अपनी वापसी का कारण बताया और मशक में भरा हुआ जल उनकी ओर बढ़ा दिया. गुरूजी ने वह जल पिया और बोले, “वत्स, ये तो गंगाजल की तरह है. इसे ग्रहण कर मेरी आत्मा तृप्त हो गई.”

गुरु के शब्द सुन शिष्य प्रसन्न हो गया. उसने पुनः गुरु से आज्ञा ली और अपने घर की ओर निकल गया.

शिष्य द्वारा लाया गया मशक गुरूजी के पास ही रखा था. उसमें कुछ जल अब भी शेष था. उस शिष्य के जाने के थोड़ी देर बाद गुरुकुल का एक छात्र गुरूजी के पास आया.

उसने वह जल पीने की इच्छा जताई, तो गुरूजी ने उस मशक दे दिया. छात्र ने मशक के जल का एक घूंट अपने मुँह में भरा और तुरंत बाहर थूक दिया.

वह बोला, “गुरूजी, ये जल कितना कड़वा है. मैं तो उस शिष्य की आपके द्वारा की गई प्रशंषा सुन इसका स्वाद लेने आया था. किंतु अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपके उसकी झूठी प्रशंषा क्यों की?”

गुरूजी ने उत्तर दिया, “वत्स, हो सकता है. इस जल में शीतलता और मिठास नहीं, किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इसे लाने वाले के मन में अवश्य है. जब उसने वह जल पिया, तो मेरे प्रति मन में उमड़े प्रेम के कारण वह मशक में जल भरकर गुरुकुल वापस लौट आया, ताकि मैं उस जल की मिठास का अनुभव कर सकूं. मैंने भी जब इस जल को ग्रहण किया, तो इसका स्वाद मुझे ठीक नहीं लगा, किंतु मैं उस शिष्य के हृदय में उमड़े प्रेम को देखते हुए उसे दु:खी नहीं करना चाहता था. इसलिए मैंने इस जल की प्रशंषा की. ये भी संभव है कि मशक के साफ़ न होने के कारण जल का स्वाद बिगड़ गया हो और वह वैसा न रहा हो, जैसा कुएं से निकाले जाते समय था. जो भी हो, मेरे लिए वह मायने नहीं रखता. जो मायने रखता है, वह है उस शिष्य का मेरे प्रति प्रेम. उस प्रेम की मिठास मेरे लिए जल की मिठास से अधिक महत्वपूर्ण है.”

सीख 

“हमें किसी भी घटना का सकारात्मक पक्ष देखना चाहिए. नकारत्मक पक्ष देखकर न सिर्फ़ हम अपना मन मलिन करते हैं, बल्कि दूसरों का भी. इसलिए सदा अच्छाई पर ध्यान दें. “

31 # बुद्धिमान तोता

बहुत समय पहले की बात है. एक घने जंगल में एक तोता अपने दो बच्चों के साथ रहता है. उनका जीवन ख़ुशी-ख़ुशी बीत रहा था.

एक दिन जंगल से गुज़रते एक शिकारी की दृष्टि तोते के बच्चों की ख़ूबसूरत जोड़ी पर पड़ी. उसने सोचा कि राजा को देने के लिए ये तोते बहुत सुंदर उपहार है. वह उन तोतों को पकड़कर राजा के पास ले गया.

जब उसने वे तोते राजा को उपहार स्वरुप दिए, तो राजा बहुत ख़ुश हुआ और शिकारी को उसने सौ सोने के सिक्के ईनाम में दिए.

राजमहल में लाये जाने के बाद तोते सबके आकर्षण का केंद्र बन गए. उन्हें सोने के पिंजरे में रखवाया गया. हर समय सेवक उनके आगे-पीछे दौड़ते रहते. ना-ना प्रकार के ताज़े फ़ल उन्हें खिलाये जाते. राजा उनसे बहुत प्रेम करता था. राजकुमार भी सुबह-शाम उनके पास आकर खेला करता था. ऐसा जीवन पाकर दोनों तोते बहुत ख़ुश थे.

एक दिन छोटा तोता बड़े तोते से बोला, “भाई, हम कितने ख़ुशनसीब हैं, जो इस राजमहल में लाये गए और ऐसा आरामदायक जीवन पा सके. यहाँ हर कोई हमसे कितना प्यार करता है. हमारा कितना ख्याल रखता है.”

“हाँ भाई, यहाँ हमारी ज़रूरत की हर चीज़ बिना मेहनत के हमें मिल जाती है. हमारा जीवन पहले से अधिक आरामदायक हो गया है. सबसे अच्छी बात ये है कि यहाँ हमें हर किसी से प्रेम मिलता है.”

तोते को राजमहल का आनंदपूर्ण जीवन बहुत रास आ रहा था. लेकिन एक दिन सब बदल गया. वह शिकारी जिसने राजा को उपहार में तोते दिए थे, राजदरबार में फिर से आया. इस बार उसने एक काला बंदर राजा को उपहार में दिया.

अब काला बंदर राजमहल में सबके आकर्षण का केंद्र था. सारे सेवक उसकी देख-रेख में लग गए. उसके खाने-पीने का विशेष ख्याल रखा जाने लगा. तोतों के प्रति सबने ध्यान देना बंद कर दिया. यहाँ तक कि राजकुमार भी अब तोतों के स्थान पर बंदर के साथ खेलने लगा.

यह देखकर छोटा तोता बहुत दु;खी था. वह बड़े तोते से बोला, “भाई, इस काले बंदर ने हमारी सारी ख़ुशियाँ छीन ली है. इसके कारण अब हमारी ओर कोई ध्यान ही नहीं देता.”

बड़ा तोता बोला, “कुछ भी स्थायी नहीं रहता मेरे भाई. वक़्त बदलते देर नहीं लगती.”

कुछ दिन बीते. बंदर था तो शरारती. एक दिन उसने महल में बहुत उत्पात मचाया. सेवकों को बहुत तंग किया. राजकुमार भी उसकी हरक़त से डर गया.

राजा को जब बंदर की कारस्तानी पता चली, तो उसने उसे जंगल में छोड़ आने का आदेश दे दिया. आदेश का पालन कर बंदर को जंगल में छोड़ दिया गया.

उस दिन के बाद से तोते फिर से महल में सबके आकर्षण का केंद्र बन गए. अब छोटा तोता बहुत ख़ुश था. वह बड़े तोते से बोला, “हमारे दिन फिर से वापस आ गए भाई.”

बड़ा तोता बोला, “याद रखो मेरे भाई. समय कभी एक जैसा नहीं रहता. इसलिये जब समय साथ न दे, तो दु:खी नहीं होना चाहिए. बुरा समय है, तो अच्छा समय भी आयेगा.”

छोटे तोते को बड़े तोते की बात समझ में आ गई और उसने तय किया कि बुरे वक़्त में वह धैर्य बनाकर रखेगा.

सीख 

कोई भी चीज़ स्थायी नहीं रहती. समय के साथ हर चीज़ बदलती है. इसलिए मुश्किल समय में धैर्य बनाकर रखें.

32 # सुई बरसाने वाला पेड़

बहुत समय पहले की बात है. घने जंगल किनारे एक गाँव बसा हुआ था. उस गाँव में दो भाई रहा करते थे. दोनों भाइयों के व्यवहार में बड़ा अंतर था. छोटा भाई बड़े भाई से बहुत प्यार करता था. लेकिन बड़ा भाई स्वार्थी, लालची और दुष्ट था. वह छोटे भाई से चिढ़ता था और सदा उससे बुरा व्यवहार किया करता था. बड़े भाई के इस व्यवहार से छोटा भाई दु:खी हो जाता था, लेकिन उसके प्रति प्रेम के कारण वह सब कुछ सह जाता था और कभी कुछ नहीं कहता था.

एक दिन बड़ा भाई लकड़ी काटने जंगल गया. वहाँ इधर-उधर तलाशने पर उसकी नज़र एक ऊँचे पेड़ पर पड़ी. आज इसी पेड़ की लकड़ी काटता हूँ, ये सोचकर उसने कुल्हाड़ी उठा ली. लेकिन वह कोई साधारण पेड़ नहीं, बल्कि एक जादुई पेड़ था.

जैसे ही बड़ा भाई पेड़ पर कुल्हाड़ी से वार करने को हुआ, पेड़ उससे विनती करने लगा, “बंधु! मुझे मत काटो. मुझे बख्श दो. यदि तुम मुझे नहीं काटोगे, तो मैं तुम्हें सोने के सेब दूंगा.”

सोने के सेब पाने के लालच में बड़ा भाई तैयार हो गया. पेड़ ने जब उसे सोने के कुछ सेब दिए, तो उसकी आँखें चौंधिया गई. उसका लालच और बढ़ गया. वह पेड़ से और सोने के सेब की मांग करने लगा. पेड़ के मना करने पर, वह उसे धमकाने लगा, “यदि तुमने मुझे और सेब नहीं दिए, तो मैं तुम्हें पूरा का पूरा काट दूंगा.”

यह बात सुनकर पेड़ को क्रोध आ गया. उसने बड़े भाई पर नुकीली सुईयों की बरसात कर दी. हजारों सुईयाँ चुभ जाने से बड़ा भाई दर्द से कराह उठा और वहीं गिर पड़ा. इधर सूर्यास्त होने के बाद भी जब बड़ा भाई घर नहीं आया, तो छोटे भाई को चिंता होने लगी. वह उसे खोजने जंगल की ओर निकल पड़ा.

जंगल पहुँचनकर वह उसे खोजने लगा. खोजते-खोजते वह उसी जादुई पेड़ के पास पहुँच गया. वहाँ उसने बड़े भाई को जमीन पड़े कराहते हुए देखा. वह फ़ौरन उसके करीब पहुँचा और उसके शरीर से सुईयाँ निकालने लगा. छोटे भाई का प्रेम देखकर बड़े भाई का दिल पसीज़ गया. उसे अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा. उसकी आँखों से आँसू बह निकले और वह अपने छोटे भाई से माफ़ी मांगने लगा. उसने वचन दिया कि आगे से कभी उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा.

छोटे भाई ने बड़े भाई को गले से लगा लिया. जादुई पेड़ ने भी जब बड़े भाई के व्यवहार में बदलाव देखा, तो उसे ढेर सारे सोने के सेब दिए. उन सोने के सेबों को बेचकर प्राप्त पैसों से दोनों भाइयों ने एक व्यवसाय प्रारंभ किया, जो धीरे-धीरे अच्छा चलने लगा और दोनों भाई सुख से रहने लगे.  

सीख 

दूसरों के प्रति सदा दयालु रहें. दयालुता सदा सराही जाती है.

33 # मक्खी और शहद

एक घर के किचन में शहद का जार रखा हुआ था, जिसमें मीठा शहद भरा हुआ था। एक दिन वह जार गिरकर टूट गया और उसमें भरा शहद फर्श पर फ़ैल गया।

मक्खियों ने जब इतना सारा शहद देखा, तो लालच में शहद पर जा बैठी और शहद खाने लगी। उन्हें मज़ा सा रहा था और वे बड़ी खुश थी। बड़े दिनों बाद उन्हें ऐसे मीठा शहद का स्वाद चखने को मिला था।

उन्होंने जी भर शहद खाया. कुछ देर में जब उनका पेट भर गया, तो वे उड़ने को हुई। लेकिन वे पूरी तरह से शहद में लथपथ हो चुकी थीं। उनके पैर और पंख तरल और चिपचिपे शहद में चिपक गए थे और अब उड़ पाना उनके लिए नामुमकिन हो चुका था।

मक्खियों ने उड़ने का बहुत प्रयास किया। लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ रहे और वे सभी वहीं शहद में चिपककर मर गई।

सीख 

  • कभी-कभी थोड़े समय का सुख मुसीबत का कारण बन जाता है। कई बार तो प्राणों पर बन आती है। इसलिए ऐसे क्षणिक सुख के झांसे में न आयें और जीवन में सोच-समझकर ही आगे बढ़ें।
  • लालच से बचें।

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