मुल्ला नसरुद्दीन के बकरे का किस्सा | Mulla Nasruddin And Goat Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम मुल्ला नसरुद्दीन का बकरा कहानी (Mulla Nasruddin And Goat Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोसी उसके मोटे-ताज़े बकरे की दावत उड़ाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कौन सी तरक़ीब लगाईं और  फ़िर मुल्ला नसरुद्दीन ने क्या किया? ये जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी :  

Mulla Nasruddin And Goat Story In Hindi

Mulla Nasruddin And Goat Story In Hindi
Mulla Nasruddin And Goat Story In Hindi

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मुल्ला नसरुद्दीन के पास एक मोटा-ताज़ा बकरा था. वह उसकी खुराक का विशेष ध्यान रखता था. उसे खूब खिलाता-पिलाता था. उसकी मंशा उसे ईद के समय बेचकर अच्छी कमाई करने की थी.

मुल्ला के पड़ोसियों की उस बकरे पर कई दिनों से नज़र थी. वे जब भी उसे देखते, उनके मुँह में पानी आ जाता था. वे उसकी दावत उड़ाना चाहते थे. एक दिन उन्होंने मुल्ला को मूर्ख बनाकर उस बकरे पर हाथ साफ़ करने की तिकड़म लगाई.

वे सब मुल्ला के पास गए. एक पड़ोसी उससे बोला, “मुल्ला! जानते हो, कल प्रलय आने वाला है.”

“प्रलय? मुल्ला ने चौंककर पूछा.

“हाँ प्रलय. कल पूरी दुनिया तबाह हो जायेगी. कोई ज़िन्दा न बचेगा. आज की रात हम सबकी आखिरी रात है.” दूसरा पड़ोसी बोला.

“ऐसा तुम लोगों से किसने कहा?” मुल्ला ने उत्सुकतावश पूछा.

“चारों तरफ़ यही खबर फ़ैली है मुल्ला. तुम अब तक अनजान हो. अब कल सबकी जान तो जानी ही है, इसलिए हम सबने फ़ैसला किया है कि आज की रात जश्न मनाएंगे. हमने मोहल्ले में शानदार दावत का आयोजन किया है. तुम भी आओ ना.”

“ठीक है आ जाऊंगा.” मुल्ला शांति से बोला.

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“हम सब अपना कुछ न कुछ दे रहे हैं मुल्ला. कल के बाद दुनिया की चीज़ों का क्या काम? तुम भी अपना कुछ दे दो. ऐसा करो अपना बकरा ही दे दो.” चालाकी दिखाते हुए एक पड़ोसी बोला.

मुल्ला को पड़ोसियों पर शक़ हो गया कि वे उसे मूर्ख बनाने आये हैं. लेकिन, वह तैयार हो गया और बोला, “ठीक है, मेरा बकरा ले जाओ और शानदार दावत करो. मैं तुम लोगों से दावत में मिलता हूँ.”

पड़ोसियों की तो मन की मुराद पूरी हो गई. वे सब ख़ुशी-ख़ुशी मुल्ला का बकरा ले गए. शाम को उस बकरे की दावत हुई. सबने छककर दावत उड़ाई. मुल्ला भी दावत में शामिल हुआ.

सर्दियों के दिन थे. मुल्ला ने अलाव की व्यवस्था कर दी और सारी रात अलाव जलाकर रखी. जिसके इर्द-गिर्द रात भर ख़ूब नाच-गाना हुआ, जो सुबह तक चला.

अगली सुबह पड़ोसियों ने मुल्ला का शुक्रिया किया, “मुल्ला तुम्हारी वजह से कल रात की दावत शानदार रही. बकरे का मांस स्वादिष्ट था और जो अलाव तुमने रात भर जलाकर रखी, उससे ठंड का अहसास ही नहीं हुआ.”

“तुम सबका भी बहुत शुक्रिया.” मुल्ला ने जवाब दिया.

पड़ोसी चलने को हुए ही थे कि एक पड़ोसी को अलाव में एक अधजला कपड़ा दिखाई पड़ा. उसने मुल्ला से पूछा, “अरे मुल्ला, ये तो मेरे क़मीज़ के जैसा दिखाई पड़ रहा है. तुम्हें ये कहाँ से मिला?”

मुल्ला बोला, ”तुम लोगों ने ही तो बताया था कि आज प्रलय आने वाला है. दुनिया तो बचती नहीं, न ही हममें से कोई बचता. फ़िर वो सिल्क की कमीज़ किस काम की रहती? मैंने सोचा सर्दी में अलाव जलाने के काम ही आ जायेगी. मैंने सारे पड़ोसियों के सिल्क के कपड़े लेकर अलाव में डाल दिया. क्यों ठीक किया ना?”

पड़ोसी क्या कहते? उन्हें अपनी पोल खुलती जान पड़ी. मुल्ला के बकरे के बदला उन्होंने अपने सिल्क के कपड़ों से चुकाना पड़ा था. मन मारकर सारे वहाँ से ख़िसक गए.

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