मूर्खों की कहानी (Murkhon Ki Kahani) मूर्खता एक ऐसी विशेषता है, जो व्यक्ति को सच को देखने से रोकती है और उसे अपनी ही दुनिया में होशियार महसूस कराती है। लेकिन असली मज़ा तब आता है, जब वही मूर्खता किसी हास्यास्पद घटना को जन्म देती है। इस कहानी में, हम तीन मूर्ख दोस्तों की बातें करेंगे, जो खुद को बहुत होशियार मानते थे लेकिन उनकी मूर्खता ने उन्हें कई बार मुसीबत में डाल दिया। कहानी के अंत में, हमें यह भी समझने को मिलेगा कि असली बुद्धिमत्ता क्या है।
Murkhon Ki Kahani
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किसी गाँव में तीन दोस्त रहते थे—रघु, मंगल और भोला। तीनों खुद को गाँव का सबसे चतुर व्यक्ति समझते थे और बाकी सभी को बेवकूफ। ये दोस्त हर दिन मिलकर नए-नए “होशियार” प्लान बनाते थे और हमेशा किसी न किसी परेशानी में फँस जाते थे।
एक दिन रघु ने एक पंक्ति पढ़ ली—”पत्थर में भी सोना होता है।” वह भागता हुआ अपने दोस्तों के पास गया।
“सुनो! अगर पत्थर में सोना होता है, तो हमें बस उसे निकालने का तरीका खोजना है। हम अमीर हो जाएँगे!”
मंगल और भोला उसकी बात सुनकर झट से सहमत हो गए।
“बिल्कुल सही कहा! हमें गाँव के सबसे बड़े पत्थर को तोड़ना चाहिए,” मंगल बोला।
तीनों ने एक बड़ा हथौड़ा और कुदाल उठाई और गाँव के तालाब के किनारे पड़े बड़े पत्थर को तोड़ने में लग गए। दिन भर कड़ी मेहनत की, लेकिन पत्थर से कुछ नहीं निकला। थक-हारकर वे बैठ गए। तभी भोला बोला,
“पत्थर में सोना छुपा हुआ है। हमें उसकी आत्मा को प्रसन्न करना पड़ेगा।”
तीनों ने रातभर नाच-गाना किया और अगले दिन फिर पत्थर तोड़ने लगे। लेकिन जब हफ्तों बाद भी कुछ न निकला, तो गाँववालों ने उन्हें देखकर कहा,
“अरे मूर्खो! पत्थर में सोना तो होता है, पर मेहनत और समझदारी से! खेती-बाड़ी करो, वहीं से तुम्हारा सोना निकलेगा।”
पर तीनों ने उनकी बात अनसुनी कर दी।
एक दिन मंगल ने सुना कि पड़ोस के गाँव के राजा ने ऐलान किया है कि जो भी सबसे होशियार तरकीब लाएगा, उसे इनाम मिलेगा। तीनों ने सोचा कि वे राजा को बेवकूफ बना सकते हैं।
मंगल बोला, “मैं राजा बनूँगा, और तुम दोनों मेरे मंत्री। राजा को हमारी चालाकी देखकर इनाम देना ही पड़ेगा।”
वे नए कपड़े पहनकर पड़ोस के गाँव गए। मंगल ने सिर पर ताजनुमा टोपी पहन ली और दरबार में पहुँचकर ऊँची आवाज में कहा,
“मैं महान राजा मंगल हूँ! मेरे मंत्री रघु और भोला हैं। हम अपने राज्य के अनुभव साझा करने आए हैं।”
राजा को यह अजीब लगा, लेकिन उसने उनका नाटक देखने का फैसला किया। मंगल ने कहा,
“हमारे राज्य में हर घर में एक सोने का पहाड़ है। और हमारी प्रजा इतनी समझदार है कि वे पानी में आग लगा देते हैं।”
राजा ने हँसते हुए पूछा, “कैसे?”
भोला बोला, “बहुत आसान है। पहले पानी में तेल डालो और फिर आग जला दो!”
राजा उनकी बात सुनकर समझ गया कि वे झूठ बोल रहे हैं। उसने उन्हें गधे पर बिठाकर गाँव से बाहर निकाल दिया।
“शायद राजा हमारा मजाक समझ नहीं पाया,” रघु ने कहा।
“कोई बात नहीं, अगली बार और चतुर बनेंगे,” मंगल ने उत्तर दिया।
एक दिन तीनों ने सोचा कि वे गधा खरीदकर उसे घोड़ा बना सकते हैं और उसे ऊँचे दाम पर बेचेंगे।
भोला ने कहा, “गधे को सफेद रंग से रंग दो, और उसकी गर्दन पर सुंदर घुंघरू बाँध दो। लोग इसे घोड़ा समझेंगे!”
तीनों ने ऐसा ही किया और बाजार में गधे को ले गए।
“देखो! यह एक दुर्लभ सफेद घोड़ा है। इसकी कीमत केवल सौ सोने के सिक्के है,” रघु चिल्लाया।
एक आदमी ने पास आकर कहा, “अगर यह सचमुच घोड़ा है, तो मैं इसे खरीद लूँगा। लेकिन इसे दौड़ाकर दिखाओ।”
गधा दौड़ने के बजाय वहीं खड़ा हो गया और जोर-जोर से रेंकने लगा।
लोग हँसने लगे और कहने लगे,
“गधा गधा ही रहेगा, चाहे तुम उसे कितना भी रंग लो।”
तीनों को शर्मिंदा होकर बाजार छोड़कर भागना पड़ा।
तीनों ने तय किया कि अब वे मेहनत करेंगे और किसी मूर्खतापूर्ण काम में नहीं उलझेंगे। लेकिन उनकी मूर्खता इतनी आसानी से उनका पीछा छोड़ने वाली नहीं थी। एक दिन, जब वे खेत जोतने का काम कर रहे थे, रघु को एक पुराना घड़ा मिला। घड़े के अंदर कुछ सिक्के और सोने की चेन थी।
“अरे, हमने तो सोना ढूंढ लिया! देखा, मैं कहता था कि मेहनत से ही सोना निकलता है।” रघु चिल्लाया।
मंगल ने सिक्के देखे और बोला, “नहीं-नहीं, यह मेरी समझदारी का नतीजा है। मैंने ही कहा था कि खेत में काम करो, और देखो, सोना मिल गया।”
भोला ने तुरंत बीच में टोकते हुए कहा, “तुम दोनों गलत हो। यह मेरी पूजा-पाठ और पत्थर की आत्मा को खुश करने का परिणाम है। वह आत्मा अब हमें इनाम दे रही है।”
तीनों में बहस शुरू हो गई कि किसकी वजह से यह खजाना मिला। तभी गाँव के बुजुर्ग आ पहुँचे। उन्होंने घड़ा देखा और बोले,
“अरे, यह तो राजा के जमाने का पुराना खजाना लगता है। इसे राजा को सौंपना होगा। यह गाँव का है, तुम्हारा नहीं।”
लेकिन तीनों ने सोचा कि अगर यह राजा को दे दिया तो उनका नाम नहीं होगा। मंगल बोला,
“चलो, इसे गुपचुप बाजार में बेच देते हैं। वहाँ से जो पैसे मिलेंगे, उन्हें बराबर बाँट लेंगे।”
तीनों ने खजाना छुपा लिया और उसे बेचने के लिए शहर की ओर चल पड़े। रास्ते में वे एक बुढ़िया से मिले, जो परेशान थी। उसने उनसे पूछा, “बेटा, मेरा बैल खो गया है। क्या तुमने उसे देखा है?”
तीनों ने सोचा कि बुढ़िया को मदद करके वे पुण्य कमा सकते हैं। भोला ने झट से जवाब दिया,
“हमने बैल नहीं देखा, लेकिन हम तुम्हें ढूँढने में मदद करेंगे। बदले में हमें आशीर्वाद देना।”
वे बुढ़िया के साथ बैल ढूँढने निकले। थोड़ी दूर जाने पर उन्हें एक बैल दिखा, जो पेड़ के पास बँधा हुआ था। बुढ़िया ने खुशी-खुशी उन्हें धन्यवाद दिया और उन्हें एक पुरानी पोटली दी।
“यह मेरे पास बचा-खुचा धन है। इसे रख लो।”
जब उन्होंने पोटली खोली, तो उसमें पुराने समय के सोने के सिक्के और कीमती गहने थे। वे खुशी से झूम उठे।
“देखा! हमारी होशियारी से ही यह मिला है,” रघु बोला।
“नहीं, यह मेरी अच्छाई का फल है,” भोला चिल्लाया।
मंगल ने हँसते हुए कहा, “नहीं, यह हमारी किस्मत का खेल है। हम तो पैदा ही होशियार हुए हैं!”
अब तीनों गाँव लौटे और उन्होंने सबको यह कहानी सुनाई कि कैसे उनकी “चतुराई” से खजाने पर खजाना मिल रहा है। गाँववाले पहले उनकी बात पर हँसते थे, लेकिन इस बार सचमुच सिक्के देखकर प्रभावित हो गए।
तीनों ने इस घटना से कोई सीख नहीं ली। वे फिर से अपने मूर्खतापूर्ण कामों में लग गए, लेकिन किस्मत बार-बार उन्हें सही रास्ते पर ले आती। हर बार वे अपनी मूर्खता को होशियारी मानते और दूसरों को सलाह देने लगते।
सीख
मूर्खता कभी-कभी किस्मत से जीत सकती है, लेकिन बार-बार नहीं। और जो लोग खुद को सबसे होशियार मानते हैं, उनकी मूर्खता एक दिन ज़रूर सामने आती है।
लेकिन रघु, मंगल और भोला की किस्मत उन्हें बार-बार बचा रही थी, इसलिए वे अपनी “होशियारी” पर हमेशा इतराते रहे।
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