मुठ्ठी भर मेंढक शिक्षाप्रद कहानी | Muththi Bhar Mendhak Hindi Kahani 

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम मुठ्ठी भर मेंढक कहानी (Muththi Bhar Mendhak Hindi Kahani) शेयर कर रहे हैं. यह कहानी अपने बारे में दूसरों की सोच के संबंध में जो भ्रांति अक्सर लोगों में होती है, उस पर प्रकाश डालती है. पढ़िये :

Muththi Bhar Mendhak Hindi Kahani 

Muththi Bhar Mendhak Hindi Kahani 
Muththi Bhar Mendhak Hindi Kahani | Muththi Bhar Mendhak Hindi Kahani

बहुत समय पहले की बात है. एक गाँव में एक सज्जन और ईमानदार व्यक्ति रहता था. गाँव के सभी लोग उसकी बहुत प्रशंषा करते थे. सभी लोगों का प्रशंषापात्र होने के कारण वह बहुत प्रसन्न था.

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एक दिन की बात है. काम से लौटते हुए उसे अपने आगे कुछ दूरी पर चलते हुए लोगों की बातें सुनाई पड़ी. वे उसके बारे में ही बातें कर रहे थे. वह जानता था कि गाँव के लोग उसकी प्रशंषा के पुल बांधा करते है. वह अपनी प्रशंषा सुनने के उत्साह को रोक नहीं सका और दबे पांव उनके पीछे चलते हुए उनकी बातें सुनने लगा.

लेकिन जब उसने उनकी बातें सुनी, तो वह उदास हो गया, क्योंकि वे सभी लोग उसकी बुराई कर रहे थे. कोई उसे घमंडी बता रहा था, तो कोई दिखावेबाज़.

उन बातों ने उसके मन को झकझोरकर रख दिया. उसे महसूस होने लगा कि अब तक वह भुलावे में था कि सभी लोग उसकी प्रशंषा करते है. जबकि वास्तविकता इसके उलट है.

उस दिन के बाद से जब भी वह किसी को बातें करते हुए देखता, तो सोचता कि अवश्य ही वे उसकी बुराई कर रहे हैं. प्रशंषा करने पर भी वह उसे अपना मज़ाक लगता. इस सोच के दिमाग में घर करने के कारण वह बदल गया और उदास रहने लगा.

उसकी पत्नि भी कुछ दिनों में उसके व्यवहार में आये बदलाव को समझ गई. पूछने पर पत्नि को उस व्यक्ति ने पूरी बात बता दी. पत्नि समझ नहीं पा रही थी कि अपने पति को कैसे समझाये. आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद वह उसे गाँव के एक महात्मा के पास लेकर गई.

पूरी घटना का विवरण करने के बाद व्यक्ति ने कहा कि गुरुदेव लोगों की बुरी बातों से मैं आहत हूँ. हर कोई मेरी बुराई ही करता रहता है. मैं चाहता हूँ कि सब कुछ पहले जैसा हो जाये और सब मेरी प्रशंषा करें.

व्यक्ति की बात ध्यान से सुनने के बाद महात्मा ने कहा, “बेटा! तुम अपनी पत्नि को घर छोड़ आओ. आज रात तुम्हें मेरे आश्रम में ही रहना होगा.”

पत्नि को घर छोड़ने के बाद वह व्यक्ति आश्रम में वापस आ गया. रात में जब वह सोने गया, तो मेंढकों के टर्राने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी. आश्रम के पीछे एक तालाब था, मेंढकों के टर्राने की आवाज़ वहीं से आ रही थी.

सारी रात कोलाहल के कारण वह ठीक से सो न सका. सुबह उठकर वह महात्मा के पास गया और बोला, “गुरुदेव! मेंढकों के कारण मेरी नींद ही नहीं पड़ी. लगता है तालब में पचास-साठ हजार मेंढक होंगें. आपको भी उनसे परेशानी होती होगी. मैं ऐसा करता हूँ कि कुछ मजदूर लेकर आता हूँ और उनको निकालकर दूर किसी नदी में डाल आता हूँ.”

महात्मा से आज्ञा लेकर वह व्यक्ति तालाब पर मेंढक निकालने गया. जब तालाब में जाल फेंका गया, तो उसमें से मुठ्ठी भर मेंढक ही निकले.

यह देखकर व्यक्ति हैरान हो गया. उसने महात्मा से पूछा, “गुरुदेव रात में तो लग रहा था कि तालाब में हज़ारों मेंढक है. आज सब कहाँ चले गए.”

महात्मा बोले, “बेटा! रात में भी ये मुठ्ठी भर मेंढक ही थे. लेकिन उन्होंने इतना शोर मचाया कि तुम्हें इनकी संख्या हज़ारों में लगी. ऐसा ही तुम्हारे जीवन में भी है. तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते हुए सुना और तुम्हें गलतफ़हमी हो गई कि पूरा गाँव तुम्हारी बुराई करता है. अब कभी भी कहीं भी अपनी बुराई सुनो, तो सोचना कि वे लोग तालाब के मुठ्ठी भर मेंढक जितने ही हैं. और हाँ, चाहे तुम कितने भी अच्छे क्यों न हो, कुछ लोग तो रहेंगे ही जो तुम्हारी बुराई करेंगे.”

व्यक्ति को महात्मा की बात समझ में आ गई और वह घोर निराशा से बाहर निकल गया.

सीख  (Moral Of Frog Story) 

मित्रों, हमें कुछ लोगों के व्यवहार को सबका व्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए. परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हो, उसमें लोगों का व्यवहार चाहे कैसा भी हो, हमें सदा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. सकारात्मक सोच से हर प्रकार की समस्या का हल निकल आता है. प्रारंभ में हमें लगता है कि समस्या बहुत बड़ी है, किंतु निराकरण होने के बाद वही समस्या छोटी लगने लगती है. इसलिए समस्या को अपनी सोच में बड़ा बनाने के स्थान पर उसके निराकरण के बारे में सोचना चाहिये.

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