Mythological Story

नाचिकेता और यमराज की कहानी पौराणिक कथा | Nachiketa And Yama Story In Hindi

नाचिकेता और यमराज की कहानी पौराणिक कथा | Nachiketa And Yama Story In Hindi

भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता की गहराइयों में कठोपनिषद एक ऐसा ग्रंथ है, जो जीवन, मृत्यु, और आत्मा के रहस्यों को उजागर करता है। इस ग्रंथ की कथा “नाचिकेता और यमराज” युवा नाचिकेता की साहसिक खोज और मृत्यु के देवता यमराज के साथ उनके संवाद के इर्द-गिर्द घूमती है।

यह कहानी हमें यह समझाती है कि सत्य की खोज और आत्म-ज्ञान ही जीवन का असली उद्देश्य है। नाचिकेता, एक बालक होने के बावजूद, अपने पिता के क्रोध और जीवन के अर्थ को समझने की जिज्ञासा से प्रेरित होकर मृत्यु के द्वार तक पहुँचता है। यमराज, जो आमतौर पर भय का प्रतीक माने जाते हैं, इस कहानी में एक ज्ञानी गुरु के रूप में उभरते हैं, जो नाचिकेता को आत्मा की अमरता और जीवन के गहरे रहस्यों का ज्ञान देते हैं। 

Nachiketa And Yama Story In Hindi

Nachiketa And Yama Story In Hindi

प्राचीन भारत में, एक ऋषि वाजश्रवस थे, जिनका एक पुत्र था—नाचिकेता। वाजश्रवस ने एक दिन एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपनी सारी संपत्ति और पशुओं को दान देने की घोषणा की। यह यज्ञ स्वर्ग की प्राप्ति के लिए था, लेकिन नाचिकेता ने देखा कि उसके पिता बूढ़े और कमजोर पशुओं को ही दान कर रहे थे, जो वास्तव में कोई मूल्य नहीं रखते थे। यह देखकर नाचिकेता के मन में सवाल उठा कि क्या यह सच्चा दान है। उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, आप मुझे किसे दान करेंगे?”

वाजश्रवस, जो अपने पुत्र की बात से नाराज हो गए, क्रोध में कह बैठे, “मैं तुम्हें यमराज को दान करता हूँ!”

नाचिकेता, जो अपने पिता की बात को गंभीरता से लेता था, उसने सोचा कि अगर पिता ने उसे यमराज को दे दिया, तो उसे मृत्यु के रहस्य को जानने का अवसर मिल सकता है। वह अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए यमलोक की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे कई कठिनाइयाँ आईं—जंगल, नदियाँ, और अंधेरे, लेकिन उसकी जिज्ञासा और साहस ने उसे आगे बढ़ाया। आखिरकार, वह यमराज के दरबार में पहुँचा, लेकिन उस समय यमराज घर पर नहीं थे। तीन दिन तक नाचिकेता भूखा-प्यासा यमदूतों के साथ प्रतीक्षा करता रहा।

जब यमराज लौटे, तो उन्हें पता चला कि एक ब्राह्मण बालक, जो उनके अतिथि हैं, उनकी प्रतीक्षा में है। यमराज ने नाचिकेता से क्षमा माँगी, क्योंकि अतिथि का अपमान करना पाप माना जाता है। उन्होंने नाचिकेता को तीन वरदान माँगने का प्रस्ताव दिया। नाचिकेता ने पहला वरदान माँगा कि उसके पिता का क्रोध शांत हो जाए और वे उसे पुनः स्वीकार करें। यमराज ने यह वरदान दे दिया। दूसरा वरदान नाचिकेता ने अग्निविद्या (आत्म-ज्ञान का एक रूप) का माँगा, जिसे यमराज ने उसे सिखाया और उसका नाम “नाचिकेता अग्नि” रखा।

लेकिन तीसरा वरदान था, जो नाचिकेता की सच्ची जिज्ञासा को दर्शाता था। उसने कहा, “हे यमराज, मुझे मृत्यु का रहस्य बताइए। आत्मा मरने के बाद क्या होती है? क्या वह नष्ट हो जाती है, या अमर है?”

यह प्रश्न सुनकर यमराज चकित हो गए। उन्होंने सोचा कि यह बालक बहुत साहसी और ज्ञान की खोज में गहरा है। फिर भी, उन्होंने नाचिकेता को चेतावनी दी, “यह प्रश्न बहुत गंभीर है। मैं तुम्हें धन, सुख, या लंबी आयु दे सकता हूँ। क्या तुम इसे नहीं चाहते?”

लेकिन नाचिकेता अडिग रहा। उसने कहा, “सांसारिक सुख क्षणिक हैं। मैं सत्य जानना चाहता हूँ।”

यमराज ने नाचिकेता की दृढ़ता देखकर उसे आत्म-ज्ञान का उपदेश देना शुरू किया। उन्होंने बताया कि आत्मा अमर है—यह शरीर से अलग और शाश्वत है। शरीर मर जाता है, लेकिन आत्मा न तो जन्मती है और न ही मरती है। यह सत्य का स्वरूप है, जो हर प्राणी में विद्यमान है।

यमराज ने कहा, “जो मन को नियंत्रित करता है, जो इंद्रियों को वश में रखता है, वही आत्मा को जान सकता है। यह ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।” उन्होंने नाचिकेता को ध्यान, सत्यनिष्ठा, और कर्म के महत्व को समझाया।

नाचिकेता ने यमराज के हर शब्द को ध्यान से सुना और उसे अपने हृदय में संजोया। उसने सीखा कि जीवन का असली उद्देश्य आत्म-ज्ञान प्राप्त करना और सांसारिक मोह-माया से मुक्त होना है। यमराज ने उसे यह भी बताया कि जो व्यक्ति इस ज्ञान को समझ लेता है, वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। नाचिकेता ने इस ज्ञान को अपने जीवन में अपनाया और अपने गाँव लौटकर लोगों को भी इसे सिखाया। उसकी खोज ने न केवल उसे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित किया।

सीख

“नाचिकेता और यमराज” की कहानी हमें कई गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक सबक सिखाती है:

1. सत्य की खोज जीवन का उद्देश्य है : नाचिकेता का मृत्यु के रहस्य को जानने की जिज्ञासा हमें सिखाती है कि सत्य की खोज ही जीवन का असली लक्ष्य है। सांसारिक सुख और धन क्षणिक हैं, लेकिन आत्म-ज्ञान शाश्वत है।

2. साहस और दृढ़ता : नाचिकेता का यमलोक तक पहुँचना और यमराज से प्रश्न पूछना उसके साहस और दृढ़ता का प्रतीक है। यह हमें प्रेरित करता है कि कठिनाइयों का सामना करने और सत्य की राह पर चलने का साहस रखना चाहिए।

3. आत्मा की अमरता : यमराज का उपदेश हमें सिखाता है कि आत्मा नश्वर शरीर से अलग और अमर है। यह ज्ञान भय और अनिश्चितता से मुक्ति दिलाता है।

4. इंद्रियों पर नियंत्रण : यमराज ने नाचिकेता को बताया कि मन और इंद्रियों को वश में रखना आत्म-ज्ञान का आधार है। यह हमें ध्यान और आत्म-संयम की ओर ले जाता है।

5. मोक्ष का मार्ग : कहानी हमें यह समझाती है कि मोक्ष—जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति—तभी संभव है, जब हम आत्मा को पहचानें और सांसारिक बंधनों से मुक्त हों।

6. गुरु और शिष्य का रिश्ता : यमराज और नाचिकेता का संवाद हमें यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान एक योग्य गुरु से ही मिलता है, और शिष्य को जिज्ञासु और समर्पित होना चाहिए।

“नाचिकेता और यमराज” की कथा कठोपनिषद का एक अमूल्य हिस्सा है, जो हमें जीवन के गहरे अर्थ और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाती है। नाचिकेता का साहस और यमराज का ज्ञान हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने जीवन में सत्य की खोज को प्राथमिकता दें। यह कहानी हमें सिखाती है कि मृत्यु भय का विषय नहीं, बल्कि आत्म-चेतना का एक अवसर है। नाचिकेता की यात्रा हमें याद दिलाती है कि जिज्ञासा और दृढ़ संकल्प के साथ हम अपने भीतर छिपे सत्य को जान सकते हैं। यह ज्ञान न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि समाज को भी एक नई दिशा दे सकता है। इस कहानी का संदेश है कि जीवन का असली लक्ष्य आत्म-ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति है, जो हमें शाश्वत शांति प्रदान करता है।

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आशा है, आपको नचकेता और यमराज की कहानी पसंद आई होगी।

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