कैसे हुआ नारियल का जन्म ? | Birth of Coconut Mythological Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में नारियल के जन्म की पौराणिक कथा (Nariyal Ka Janm Pauranik Katha) शेयर कर रहे हैं. यहाँ कहानी प्रतापी राजा सत्यव्रत से जुड़ी हुई है. पढ़िये पूरी कहानी :

Nariyal Ka Janm Pauranik Katha

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Nariyal Ka Janm Pauranik Katha
Nariyal Ka Janm Pauranik Katha

हिन्दू धर्म में नारियल का विशेष महत्व है. पूजा-अनुष्ठान और हर शुभ और मंगल कार्य के आरंभ में नारियल फोड़ा जाता है. यह क्रिया वर्षों से चली आ रही हैं.

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क्या आप जानते हैं कि नारियल के जन्म के पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा है. यह ऋषि विश्वामित्र से जुडी हुई है. आइये जानते हैं, “Nariyal Ka janm Pauranik Katha’ :

नारियल के जन्म की कहानी प्रतापी राजा सत्यव्रत से जुड़ी हुई है. ईश्वर पर अटूट विश्वास रखने वाले राजा सत्यव्रत को स्वर्गलोक का अलौकिक सौंदर्य सदा आकर्षित करता था.

वर्षों से पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक जाने की कामना उनके ह्रदय में दबी हुई थी. किंतु ज्ञान के अभाव में वे उसे यथार्थ रूप में परिणित नहीं कर पा रहे थे.

एक बार राजा सत्यव्रत के राज्य में भयंकर सूखा पड़ा. इन स्थिति में राजा ने धन-धान्य से अपनी प्रजा की भरपूर सहायता की.

राजा की सहायता प्राप्त करने वालों में ऋषि विश्वामित्र का परिवार भी सम्मिलित था, जो विश्वामित्र के तपस्या के लिए वन चले जाने के पश्चात् भूखा-प्यासा भटक रहा था.

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जब विश्वामित्र तपस्या से वापस आये, तब राजा सत्यव्रत की भूरि-भूरि प्रशंषा करते हुए उनकी पत्नि ने उन्हें बताया कि कैसे उनकी अनुपस्थिति में उपजी विषम परिस्थितियों में राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की?

यह सुनकर ऋषि विश्वामित्र (Vishwamitra) आभार व्यक्त करने राजा सत्यव्रत के दरबार पहुँचे. राजा सत्यव्रत ने उनका स्वागत और आदर-सत्कार किया और उनके आने का कारण पूछा.

ऋषि विश्वामित्र (Vishwamitra) ने अपने परिवार की सहायता के लिए राजा का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें वरदान मांगने को कहा.

राजा सत्यव्रत ने अपने ह्रदय में दबी स्वर्ग जाने की कामना का वर्णन कर ऋषि विश्वामित्र से निवेदन किया कि यदि उन्हें वरदान देना ही है, तो वरदान स्वरुप उन्हें स्वर्ग जाने का मार्ग बता दें.

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राजा को वरदान देते हुए विश्वामित्र ने अपने तेज और शक्ति से एक ऐसे मार्ग का निर्माण किया, जो सीधा स्वर्ग को जाता था. सत्यव्रत उस मार्ग से स्वर्ग के द्वार तक पहुँच गए. किंतु जैसे ही उन्होंने स्वर्ग के भीतर प्रवेश किया, देवराज इंद्र ने उन्हें धक्का दे दिया.

सत्यव्रत पृथ्वीलोक पर आ गिरे. उन्होंने देवराज इंद्र (Indra) की धृष्टता का वर्णन जब विश्वामित्र से किया, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और देवताओं के पास पहुँचे.

देवतागण विश्वामित्र का बहुत सम्मान करते थे, किंतु किसी मनुष्य को स्वर्गलोक में प्रवेश देने वे तैयार नहीं हुए. अंततः इस समस्या का एक हल निकाला गया.

ऋषि विश्वामित्र ने पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक के मध्य एक क्षद्म स्वर्गलोक का निर्माण करवाया, जो राजा सत्यव्रत के लिए था. देवताओं को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. राजा सत्यव्रत भी प्रसन्न थे.

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किंतु नए स्वर्गलोक के संबंध में ऋषि विश्वामित्र चिंतित थे. उन्हें डर था कि कहीं तेज हवा के झोंके से उनका बनाया स्वर्गलोक डगमगा ना जाये. ऐसे में राजा सत्यव्रत पुनः पृथ्वी पर गिर पड़ेंगे.

इस समस्या का निदान करते हुए उन्होंने नवीन स्वर्गलोक को सहारा देने पृथ्वीलोक से नवीन स्वर्गलोक तक एक मजबूत खंबे का निर्माण किया.

माना जाता है कि इस खंबे का तना बाद में एक पेड़ में परिवर्तित हो गया और राजा सत्यव्रत का सिर इसका फल बन गया. इस पेड़ को ही नारियल का पेड़ और राजा के सिर को ‘नारियल’ का फल माना जाता है.

यही कारण है कि नारियल के पेड़ बहुत ऊँचे होते हैं और उसके फल बहुत ऊंचाई पर लगते हैं.

कथानुसार पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक के मध्य लटके होने के कारण राजा सत्यव्रत को ‘ना इधर का का ना उधर का’ उपाधि दी गई.

यह थी नारियल के जन्म की रोचक कहानी (Nariyal Birth Story In Hindi) .

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