Gonu Jha Ki Kahaniyan

नहले पर दहला गोनू झा की कहानी | Nehle Par Dehla Gonu Jha Ki Kahani 

नहले पर दहला गोनू झा की कहानी (Nehle Par Dehla Gonu Jha Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

Nehle Par Dehla Gonu Jha Ki Kahani

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Nehle Par Dehla Gonu Jha Ki Kahani

एक शाम गोनू झा अपने तालाब के पास टहल रहे थे। शांत वातावरण, हलवाहों की आवाजें, पनिहारिनों की चहल-पहल, और पक्षियों की चहचहाहट से सजी यह शाम गोनू झा को बहुत मनभावन लग रही थी। वे इस सौन्दर्य का आनंद ले रहे थे, जब अचानक उन्होंने देखा कि महाराज का किशोर पुत्र, युवराज, उनकी ओर तेज़ी से आता हुआ दिखा। युवराज हाँफता हुआ उनके सामने खड़ा हो गया और उन्हें नमस्कार किया। 

गोनू झा ने आश्चर्य से पूछा, “युवराज, गाँव की सैर के लिए निकले हो?”

युवराज ने सांसों पर काबू पाते हुए कहा, “पंडित जी! मुझे कोई सच सा लगनेवाला ऐसा झूठ बताइए, जिससे बड़ा कोई दूसरा झूठ नहीं हो।”

गोनू झा समझ गए कि जरूर कुछ ऐसा हुआ है जिससे युवराज परेशान हैं। उन्होंने युवराज को अपने घर चलने का निमंत्रण दिया, ताकि वहाँ आराम से बातचीत की जा सके।

गोनू झा के घर पहुँचकर युवराज ने बताया कि वह दीवान और नगर सेठ के पुत्रों के साथ झूठ की बाजी लगाकर हार गया है। उसने दोनों को सौ-सौ स्वर्ण-मुद्राएँ दे दी थीं, जो कि राजकोष की थीं। अब उसे एक ऐसा झूठ चाहिए था, जिससे वह अपनी स्वर्ण-मुद्राएँ वापस पा सके। गोनू झा ने युवराज को दिलासा दिया और कहा कि वे अगले दिन उसके साथ चलेंगे और उसकी मदद करेंगे।

अगले दिन गोनू झा और युवराज बाजार पहुंचे। वहाँ दीवान और नगर सेठ के पुत्र भी आ गए। युवराज ने अपने मित्रों का परिचय गोनू झा से कराया और कहा कि उनके मामा भी इस झूठ की बाजी में हिस्सा लेना चाहते हैं। युवराज के मित्रों ने शर्त को बढ़ाकर दो-दो सौ स्वर्ण-मुद्राएँ कर दीं। गोनू झा ने सहमति जताई और बाजी शुरू हो गई।

गोनू झा ने अपनी कहानी शुरू की, “मेरे दादा के पास एक दस गज ऊँचा घोड़ा था। उसकी पीठ पर एक वट वृक्ष उग आया था और दादा जी ने उस पर खेती करनी शुरू कर दी। सूखे के समय मेरे दादा ने दीवान और नगर सेठ के दादाओं को अनाज देकर उनकी मदद की थी और इसके बदले दस्तावेज बनवाए थे। अब तक उन दस्तावेजों के अनुसार अनाज वापस नहीं मिला है।”

दीवान और नगर सेठ के पुत्रों ने गोनू झा की कहानी को झूठा करार दिया। गोनू झा ने मुस्कुराते हुए कहा, “यदि मेरी बातें झूठ हैं, तो निकालो दो-दो सौ स्वर्ण-मुद्राएँ, नहीं तो मैं निकालता हूँ तुम्हारे दादाओं के दस्तावेज!” दोनों झेंप गए और अपनी हार मान ली। उन्होंने युवराज को उसकी स्वर्ण-मुद्राएँ लौटा दीं और भविष्य में इस तरह की शर्तें न लगाने का वचन दिया।

गोनू झा ने तीनों युवकों को मिठाई की दुकान में ले जाकर मिठाई खिलाई और खुशी-खुशी अपने घर लौट आए।

सीख:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि झूठ और छल से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। सच्चाई और बुद्धिमानी से ही समस्याओं का सही समाधान निकलता है। गोनू झा की सूझबूझ ने न केवल युवराज की समस्या हल की, बल्कि दीवान और नगर सेठ के पुत्रों को भी सही राह दिखा दी।

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