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बाइबिल की कहानी : नूह की पोत | Bible Story Of Noah’s Ark In Hindi

noah story in hindi बाइबिल की कहानी : नूह की पोत | Bible Story Of Noah's Ark In Hindi
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फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम नूह की कहानी (Noah Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. धरती पर बढ़ते पापों को देख ईश्वर ने दु:खी होकर धरती से मानवजाति को मिटा देने का निर्णय लिया था और धरती पर जलप्रलय भेजा था. बाइबिल की यह कहानी (Bible Story) उस घटना का वर्णन करती है. पढ़िए पूरी कहानी :

नूह की कहानी | Noah Story In Hindi

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Noah Story In Hindi | Noah Ark Bible Story In Hindi

पृथ्वी पर मनुष्यों की दुष्टता बढ़ने लगी. उसका मन-मस्तिष्क बुरे विचारों और बुरी प्रवृत्तियों से भर गया. जब ईश्वर ने यह देखा, तो दु:खी हो गए. उन्हें खेद हुआ कि उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्यों को बनाया.

इसलिए उन्होंने कहा, “मैं उस मानवजाति को, जिसकी मैंने सृष्टि की है, पृथ्वी पर से मिटा दूंगा – और मनुष्यों के साथ-साथ पशुओ, रेंगने वाले जीव-जंतुओं और आकाश के पक्षियों को भी – क्योंकि मुझे खेद है कि मैंने उनको बनाया है.”

नूह सदाचारी और अपने समय के लोगों में निर्दोष व्यक्ति था. वह ईश्वर के मार्ग पर चलता था. उसके तीन पुत्र थे – सेम, हाम और याफेत. उस पर ईश्वर की कृपा-दृष्टि थी. जब संसार पर पाप बढ़ने लागा और सब शरीरधारी हिंसा और कुमार्ग पर चलने लगे थे, तब ईश्वर ने नूह से कहा, “सभी शरीरधारियों द्वारा संसार हिंसा से भर गया गया है. इसलिए मैंने उनका विनाश करने का संकल्प किया है.”

ईश्वर ने नूह से आगे कहा, “तुम अपने लिए गोफर वृक्ष की लकड़ी का एक पोत बना लो. वह पोत तीन सौ हाथ लंबा, पचास हाथ चौड़ा और तीस हाथ ऊँचा हो. उसमें ऊपर चारों ओर एक हाथ ऊँची खिड़की बनाना, एक दरवाज़ा बनाना और उसमें नीचे की, बीच की और ऊपर की मंजिलें बनाना. उस पोत में तुम कक्ष बनाना. मैं पृथ्वी के समस्त प्राणियों के विनाश हेतु जल-प्रलय भेजूंगा. जो कुछ पृथ्वी पर है, वह सब नष्ट हो जायेगा. परन्तु, मैं तुमसे अपना नाता रखूंगा. क्योंकि इस पीढ़ी में केवल तुम्हें मेरी दृष्टि में धार्मिक हो. तुम्हारे पुत्र, तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे पुत्रों की पत्नियाँ, सब तुम्हारे साथ पोत में प्रवेश करेंगे.”

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ईश्वर ने नूह को आदेश दिया कि वह पृथ्वी के समस्त शुद्ध पशुओं में से नर-मादा के सात-सात जोड़े और समस्त अशुद्ध पशुओं में से नर और मादा के दो जोड़े, आकाश के पक्षियों में से भी नर और मादा के सात-सात जोड़े उस पोत पर ले जाये. ताकि पृथ्वी पर उनका अस्तित्व बना रहे. ईश्वर ने नूह को पोत पर अपने साथ सब प्रकार के भोज्य पदार्थ ले जाने और उन्हें संचित रखने का निर्देश भी दिया.

नूह (Noah) ने ईश्वर के आदेश अनुसार सब किया. उसने पोत का निर्माण किया और अपने परिवार तथा ईश्वर द्वारा बताये पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं के साथ पोत पर चढ़ा. इसके बाद प्रभु ने पोत का दरवाज़ा बंद कर दिया.

सातवें दिन प्रलय का जल बरसने लगा. चालीस दिन और चालीस रात पृथ्वी पर वर्षा होती रही. पानी बढ़ता गया और पोत को पृथ्वी तल से ऊपर उठाता गया. पानी बढ़ते-बढ़ते पृथ्वी पर फैलता गया और पोत पानी की सतह पर तैरने लगा.

पृथ्वी पर इतना पानी बढ़ गया कि उसने पर्वतों को भी ढक दिया. पर्वतों से भी पंद्रह हाथ ऊपर तक पानी भर गया. पृथ्वी पर रहने सब शरीरधारी मर गए. ईश्वर ने पृथ्वी के समस्त प्राणियों का विनाश कर दिया. केवल वे ही जीवित रहे, जो नूह के साथ पोत में थे.

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चालीस दिन और चालीस रात वर्षा का जल बरसता रहा. उसके बाद वर्षा रुक गई. पृथ्वी पूरी तरह से जलमग्न थी. पृथ्वी पर पानी एक सौ पचास दिन तक फैला रहा. फिर ईश्वर ने हवा बहाई और पानी घटने लगा. पृथ्वी पर धीरे-धीरे पानी कम होने लगा. एक सौ पचास दिन बाद पानी घट गया और पोत अरारट की पर्वत श्रेणी पर जा लगा.

चालीस दिन बाद नूह ने पोत में बनाई गई खिड़की खोली और एक कौवा छोड़ दिया. वह कौवा तब तक आता-जाता रहा, जब तक पृथ्वी पर का पानी सूख नहीं गया.

सात दिन प्रतीक्षा करने के बाद नूह ने पोत से एक कपोत छोड़ा, जिससे ये पता चले कि पृथ्वी पर पानी सूखा है या नहीं. कपोत को कहीं भी पैर रखने की जगह नहीं मिली और वह नूह के पास वापस लौट आया. नूह ने कपोत को पकड़ लिया और उसे पोत के अंदर अपने पास रख लिया.

सात दिन और प्रतीक्षा करने के बाद उसने फिर से कपोत को पोत के बाहर छोड़ दिया. शाम को जब कपोत उसके पास लौटा, तो उसकी चोंच में जैतून की हरी पत्ती थी. नूह समझ गया कि पानी पृथ्वीतल पर घट गया है. उसने फिर सात दिन प्रतीक्षा करने के बाद कपोत को छोड़ दिया और इस बार वह उसके पास नहीं लौटा.

तब नोह ने पोत की छत हटाई और पोत के बाहर दृष्टि दौड़ाई. पृथ्वीतल सूख गया था.

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ईश्वर ने नूह से कहा, “अब तुम अपनी पत्नी, अपने पुत्रों और अपने पुत्रों की पत्नियों के साथ पोत से बाहर आओ. प्रत्येक प्राणी को – पशुओं, पक्षियों और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जंतुओं को बाहर ले आओ. वे पृथ्वी पर फ़ैल जायें – फलें-फूलें और पृथ्वी पर अपनी-अपनी जाति की संख्या बढ़ाएं.”

नूह अपने परिवार और समस्त जीव-जंतुओं के साथ पोत के बाहर आ गया. उसने ईश्वर के लिए एक वेदी बनाई और हर प्रकार के शुद्ध पशुओं और पक्षियों में से कुछ को चुन वेदी पर उनका होम चढ़ाया.

प्रभु ने उनकी सुगंध पाकर अपने मन में यह कहा, “मैं मनुष्य के कारण फिर कभी पृथ्वी को अभिशाप नहीं दूंगा, क्योंकि बचपन से ही मनुष्य की प्रवृत्ति बुराई की ओर होती है. मैं फिर कभी सब प्राणियों का विनाश नहीं करूंगा, जैसा मैंने अभी किया है.”

ईश्वर ने यह कहते हुए नूह और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया, फलो-फूलों और पृथ्वी पर फ़ैल जाओ और उसे अपने अधिकार में कर लो.

इस प्रकार उसके बाद पृथ्वी नूह के वंशजों से आबाद हुई.


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