ऊँट की 7 कहानियाँ | 7 Camel Story In Hindi

फ्रेंड्स इस पोस्ट में हम ऊँट की कहानी लिखी हुई (Oont Ki Kahani, Camel Story In Hindi Written With Moral For Kids) की कहानी शेयर कर रहे हैं। 

Oont Ki Kahani

Oont Ki Kahani 

ऊँट और सियार की कहानी

ऊँट ने सियार को अपनी पीठ पर बैठाया और नदी के पानी में तैरने लगा. कुछ ही देर में दोनों तरबूज के खेत में पहुँच गये. वहाँ दोनों ने छककर तरबूज खाये. जब सियार का पेट भर गया, तो वह ख़ुश होकर ‘हुआ हुआ’ की आवाज़ निकालने लगा.

ऊँट ने उसे शांत करने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माना. उसकी आवाज़ खेत के कुछ दूरी पर रहने वाले किसान के कानों में पड़ गई. वह समझा गया कि खेत में कोई घुस आया है. हाथ में लाठी लेकर वह दौड़ता हुआ खेत में पहुँचा, जहाँ उसने ऊँट को खड़ा पाया.

किसान को देखकर सियार पहले ही भागकर एक पेड़ के पीछे छुप गया. अपने विशाल शरीर के कारण ऊँट के लिए कहीं छिपना संभव नहीं था. इसलिए वह वहीं खड़ा रह गया.

ऊँट को देखकर किसान आगबबूला हो गया. उसने उसे लाठी से पीटना शुरू कर दिया और पीटते-पीटते खेत से बाहर खदेड़ दिया. ऐसी जबरदस्त धुनाई के बाद बेचारा ऊँट कराहते हुए खेत के बाहर खड़ा ही था कि पेड़ के पीछे छुपा सियार चुपके से खेत से निकलकर उसके पास आ गया.

उसने ऊँट से पूछा, “तुम खेत में क्यों चिल्लाने लगे?”

“मित्र! खाने के बाद अगर मैं ‘हुआ हुआ’ की आवाज़ न निकालूं, तो मेरा खाना नहीं पचता.” सियार ने उत्तर दिया

उसका उत्तर सुनकर ऊँट को बहुत क्रोध आया. लेकिन वह चुप रहा. दोनों जंगल लौटने लगे. मार खाने के बाद भी ऊँट सियार को पीठ पर लादे नदी में तैर रहा था. सियार मन ही मन बड़ा ख़ुश था कि ऊँट की पिटाई हुई.

जब वे बीच नदी में पहुँचे, तो अचानक ऊँट ने पानी में डुबकी लगा दी. सियार डर के मारे चीखा, “ये क्या कर रहे हो मित्र?”

“मुझे खाने के बाद पानी में ऐसे ही डुबकी लगाने की आदत है.” ऊँट ने उत्तर दिया.

सियार समझ गया कि ऊँट ने उसके किये का बदला चुकाया है. वह बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा पाया और पूरी रास्ते डरा-सहमा सा रहा. उसे अपने किये का सबक मिल गया था. उस दिन के बाद से उसने कभी ऊँट के साथ चालाकी नहीं की.

सीख

जैसे को तैसा

सौ ऊंट सीख देने वाली कहानी 

राजस्थान के एक गाँव में रहने वाला एक व्यक्ति हमेशा किसी ना किसी समस्या से परेशान रहता था और इस कारण अपने जीवन से बहुत दु:खी था.

एक दिन उसे कहीं से जानकारी प्राप्त हुई कि एक पीर बाबा अपने काफ़िले के साथ उसके गाँव में पधारे है. उसने तय किया कि वह पीर बाबा से मिलेगा और अपने जीवन की समस्याओं के समाधान का उपाय पूछेगा.

शाम को वह उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ पीर बाबा रुके हुए थे. कुछ समय प्रतीक्षा करने के उपरांत उसे पीर बाबा से मिलने का अवसर प्राप्त हो गया. वह उन्हें प्रणाम कर बोला, “बाबा! मैं अपने जीवन में एक के बाद एक आ रही समस्याओं से बहुत परेशान हूँ. एक से छुटकारा मिलता नहीं कि दूसरी सामने खड़ी हो जाती है. घर की समस्या, काम की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या और जाने कितनी ही समस्यायें. ऐसा लगता है कि मेरा पूरा जीवन समस्याओं से घिरा हुआ है. कृपा करके कुछ ऐसा उपाय बतायें कि मेरे जीवन की सारी समस्यायें खत्म हो जाये और मैं शांतिपूर्ण और ख़ुशहाल जीवन जी सकूं.”

उसकी पूरी बात सुनने के बाद पीर बाबा मुस्कुराये और बोले, “बेटा! मैं तुम्हारी समस्या समझ गया हूँ. उन्हें हल करने के उपाय मैं तुम्हें कल बताऊंगा. इस बीच तुम मेरा एक छोटा सा काम कर दो.”

व्यक्ति तैयार हो गया.

पीर बाबा बोले, “बेटा, मेरे काफ़िले में १०० ऊँट है. मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम उनकी रखवाली करो. जब सभी १०० ऊँट बैठ जायें, तब तुम सो जाना.”

यह कहकर पीर बाबा अपने तंबू में सोने चले गए. व्यक्ति ऊँटों की देखभाल करने चला गया.

अगली सुबह पीर बाबा ने उसे बुलाकर पूछा, “बेटा! तुम्हें रात को नींद तो अच्छी आई ना?”

“कहाँ बाबा? पूरी रात मैं एक पल के लिए भी सो न सका. मैंने बहुत प्रयास किया कि सभी ऊँट एक साथ बैठ जायें, ताकि मैं चैन से सो सकूं. किंतु मेरा प्रयास सफल न हो सका. कुछ ऊँट तो स्वतः बैठ गए. कुछ मेरे बहुत प्रयास करने पर भी नहीं बैठे. कुछ बैठ भी गए, तो दूसरे उठ खड़े हुए. इस तरह पूरी रात बीत गई.” व्यक्ति ने उत्तर दिया.

पीर बाबा मुस्कुराये और बोले, “यदि मैं गलत नहीं हूँ, तो तुम्हारे साथ कल रात यह हुआ?

कई ऊँट ख़ुद-ब-ख़ुद बैठ गए.

कईयों को तुमने अपने प्रयासों से बैठाया.

कई तुम्हारे बहुत प्रयासों के बाद भी नहीं बैठे. बाद में तुमने देखा कि वे उनमें से कुछ अपने आप ही बैठ गए.”

“बिल्कुल ऐसा ही हुआ बाबा.” व्यक्ति तत्परता से बोला.

तब पीर बाबा ने उसे समझाते हुए कहा, “क्या तुम समझ पाए कि जीवन की समस्यायें इसी तरह है :

कुछ समस्यायें अपने आप ही हल हो जाती हैं.

कुछ प्रयास करने के बाद हल होती है.

कुछ प्रयास करने के बाद भी हल नहीं होती. उन समस्याओं को समय पर छोड़ दो. सही समय आने पर वे अपने आप ही हल हो जायेंगी.

कल रात तुमें अनुभव किया होगा कि चाहे तुम कितना भी प्रयास क्यों न कर लो? तुम एक साथ सारे ऊँटों को नहीं बैठा सकते. तुम एक को बैठाते हो, तो दूसरा खड़ा हो जाता है. दूसरे को बैठाते हो, तो तीसरा खड़ा हो जाता है. जीवन की समस्यायें इन ऊँटों की तरह ही हैं. एक समस्या हल होती नहीं कि दूसरी खड़ी हो जाती है. समस्यायें जीवन का हिस्सा है और हमेशा रहेंगी. कभी ये कम हैं, तो कभी ज्यादा. बदलाव तुम्हें स्वयं में लाना है और हर समय इनमें उलझे रहने के स्थान पर इन्हें एक तरफ़ रखकर जीवन में आगे बढ़ना है.”

व्यक्ति को पीर बाबा की बात समझ में आ गई और उसने निश्चय किया कि आगे से वह कभी अपनी समस्याओं को खुद पर हावी होने नहीं देगा. चाहे सुख हो या दुःख जीवन में आगे बढ़ता चला जायेगा.

शेर, सियार, कौवे और ऊंट की कहानी

एक दिन उसने अपने अनुचरों की सभा बुलाई. सभा में सबको संबोधित कर वह बोला, “अनुचरों! मेरी अवस्था से आप सभी अवगत हो. मैं चाहता हूँ कि आप कोई ऐसा जीव तलाश करो, जिसे मैं इस अवस्था में भी मार सकूं. इस तरह हम सभी की भोजन की समस्या का निराकरण हो जायेगा.”

सिंह की आज्ञा पाकर सभी अनुचर विभिन्न दिशाओं में शिकार की तलाश में गए, किंतु किसी के हाथ कुछ न लगा. सबके हताश वापस लौटने के बाद कौवा, गीदड़ (Jackal) और बाघ आपस में मंत्रणा करने लगे. उनकी दृष्टि कई दिनों से कथनक ऊँट पर थी.

“मित्रों! कथनक इस वन में रहकर कितना हृष्ट-पुष्ट हो गया है. जब भी उसको देखता हूँ, तो मुँह में पानी आ जाता है. तुम लोगों का क्या विचार है? क्यों न इसे ही मारकर अपनी भूख मिटाई जाये. इधर-उधर भटकने का क्या लाभ?” गीदड़ बोला.

“कह तो तुम ठीक रहे हो गीदड़ भाई. किंतु वनराज ने उसे अभयदान दिया है. वे उसे नहीं मारेंगे. अब तुम ही बताओ कि उन्हें कैसे मनायें?” कौवा बोला.

गीदड़ इसका उपाय पहले ही सोच चुका था. उसके अपनी योजना कौवे और बाघ को बता दी. दोनों ने उस योजना के लिए हामी भर दी. साथ ही अन्य अनुचरों को भी योजना के बारे में अच्छी तरह समझा दिया.

इसके बाद वे सिंह के पास पहुँचे. गीदड़ आगे आकर बोला, “वनराज! हम सबने आपके लिए शिकार की बहुत खोज की. किंतु हमें कोई न मिला. कथनक शारीरिक रूप से विशाल है और अब तो वह हृष्ट-पुष्ट भी हो गया है. यदि आप उसका शिकार करें, तो हमारे कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.”

मैंने उसे अभयदान दिया है. मैं उसे नहीं मार सकता.” सिंह ने दो टूक उत्तर दिया.

“यदि कथनक स्वयं को आपकी भूख मिटाने प्रस्तुत करे तो? तब तो आपको कोई आपत्ति नहीं होगी.” गीदड़ बोला.

“नहीं, तब तो कोई आपत्ति नहीं है. किंतु क्या वह ऐसा करेगा?” सिंह अचरज में बोला.

“वनराज! कथनक क्या? आपके भूख मिटाने तो इस वन के समस्त प्राणी तत्पर है. आप आज्ञा करें.” इस तरह गीदड़ ने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से सिंह को मना लिया.

उसके बाद वह कथनक के पास पहुँचा और उसे बोला, “शाम को वनराज ने एक सभा रखी है. जिसमें तुम्हें भी बुलाया गया है.”

शाम को सिंह की सभा में वन के सभी जीव उपस्थित थे. कथनक भी उपस्थित हुआ. गीदड़ ने भरी सभा में कहा, “वनराज, हम सभी आपकी अवस्था देख बहुत दु:खी है. आज हम सभी यहाँ उपस्थित हुए हैं, ताकि आपके भोजन के लिए स्वयं को समर्पित कर सकें.”

इसके बाद एक-एक कर सभी जीव सामने आकर स्वयं को सिंह के भोजन के लिए प्रस्त्तुत करने लगे. किंतु गीदड़ उनमें कोई न कोई कमी निकाल देता और सिंह उन्हें खाने से मना कर देता. इस तरह किसी को छोटा, किसी के शरीर पर बाल, किसी के तेज नाखून होना आदि बहाने बनाकर गीदड़ उन्हें बचाता गया.

जब कथनक की बारी आई और उसने देखा कि सारे जीव स्वयं को सिंह के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं और सिंह किसी को भी नहीं मार रहा, तो सबकी देखा-देखी उसने भी स्वयं को सिंह के सामने प्रस्तुत कर दिया, “वनराज, आपके मुझ पर बहुत उपकार है. अब जब आपको आवश्यकता आ पड़ी है, तो मैं स्वयं को आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. कृपया मुझे मारकर अपनी भूख मिटा लीजिये.”

कथनक को विश्वास था कि अन्य जीवों की तरह सिंह उसको भी नहीं मारेगा. किंतु जैसे ही कथनक की बात पूरी हुई, गीदड़ और बाघ उस पर टूट पड़े और उसे मार डाला.

सीख

इस कहानी से सीख मिलती है कि लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में कभी नहीं आना चाहिए. स्वामी जब बुद्धिहीन हो और उसके साथी धूर्त, तो चौकन्ना और सावधान रहना आवश्यक है.

ऊंट के प्रश्न प्रेरणादायक कहानी 

एक दिन की बात है. एक ऊँट और उसका बच्चा बातें कर रहे थे. बातों-बातों में ऊँट के बच्चे ने उससे पूछा, “पिताजी! बहुत दिनों से कुछ बातें सोच रहा हूँ. क्या मैं आपसे उनके बारे में पूछ सकता हूँ?”

ऊँट बोला, “हाँ हाँ बेटा, ज़रूर पूछो बेटा. मुझसे बन पड़ेगा. तो मैं जवाब ज़रूर दूंगा.”

“हम ऊँटों के पीठ पर कूबड़ क्यों होता है पिताजी?” ऊँट के बच्चे ने पूछा.

ऊँट बोला, “बेटा, हम रेगिस्तान में रहने वाले जीव हैं. हमारे पीठ में कूबड़ इसलिए है, ताकि हम इसमें पानी जमा करके रख सकें. इससे हम कई-कई दिनों तक बिना पानी के रह सकते हैं.”

“अच्छा और हमारे पैर इतने लंबे और पंजे गोलाकार क्यों हैं?” ऊँट के बच्चे ने दूसरा प्रश्न पूछा.

“जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि हम रेगिस्तानी जीव हैं. यहाँ की भूमि रेतीली होती है और हमें इस रेतीली भूमि में चलना पड़ता है. लंबे पैर और गोलाकार पंजे के कारण हमें रेत में चलने में सहूलियत होती है.”

“अच्छा, मैं हमारे पीठ में कूबड़, लंबे पैर और गोलाकार पंजों का कारण तो समझ गया. लेकिन हमारी घनी पलकों का कारण मैं समझ नहीं पाता. इन घनी पलकों के कारण कई बार मुझे देखने में भी परेशानी होती है. ये इतनी घनी क्यों है?” ऊँट का बच्चा बोला.

“बेटे! ये पलकें हमारी आँखों की रक्षाकवच हैं. ये रेगिस्तान की धूल से हमारी आँखों की रक्षा करते हैं.”

“अब मैं समझ गया कि हमारी ऊँट में कूबड़ पानी जमा कर रखने, लंबे पैर और गोलाकार पंजे रेतीली भूमि पर आसानी से चलने और घनी पलकें धूल से आँखों की रक्षा करने के लिए है. ऐसे में हमें तो रेगिस्तान में होना चाहिए ना पिताजी, फिर हम लोग इस चिड़ियाघर में क्या कर रहे हैं?”

सीख 

प्राप्त ज्ञान, हुनर और प्रतिभा तभी उपयोगी हैं, जब आप सही जगह पर हैं. अन्यथा सब व्यर्थ है. कई लोग प्रतिभावान होते हुए भी जीवन में सफ़ल नहीं हो पाते क्योंकि वे सही जगह/क्षेत्र पर अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल नहीं करते. अपनी प्रतिभा व्यर्थ जाने मत दें.

ऊंट की गर्दन अकबर बीरबल की कहानी 

अकबर अक्सर बीरबल की अक्लमंदी और हाज़िर जवाबी से खुश होकर उसे ईनाम दिया करते थे. एक बार उन्होंने भरे दरबार में बीरबल को ईनाम देने की घोषणा की. लेकिन बाद वे ईनाम देना भूल गए. बीरबल कई दिनों तक इंतज़ार करता रहा, लेकिन उसे ईनाम नहीं मिला. मांगना उसे उचित नहीं लग रहा था और अकबर थे कि ईनाम देने का नाम नहीं ले रहे थे. अकबर के इस रवैये से बीरबल थोड़ा दु:खी था.

एक दिन अकबर बीरबल को साथ लेकर सैर पर निकले. वे दोनों यमुना नदी के तट पर पैदल टहल रहे थे. तभी वहाँ से एक ऊँट गुज़रा. ऊँट की मुड़ी हुई गर्दन को देख अकबर के ज़ेहन में एक सवाल कौंध गया और उन्होंने फ़ौरन बीरबल से पूछा, “बीरबल, देखो इस ऊँट को. इसकी गर्दन मुड़ी हुई है. ऐसा क्या कारण है कि ऊँट की गर्दन मुड़ी हुई होती है?”

अकबर का ये सवाल सुनकर बीरबल ने सोचा कि ये अच्छा मौका है बादशाह सलामत को ईनाम के बारे में याद दिलाने का और वह बोला, “जहाँपनाह, ऊँट ने किसी से कोई वादा किया था और अपना वादा निभाना भूल गया था. इसलिए भगवान ने इसकी गर्दन मोड़ दी है. ऐसा भगवान हर उस इंसान के साथ करता है, जो वादा करके उसे निभाता नहीं है.”

बीरबल की बात सुनकर अकबर को याद आया कि उन्होंने बीरबल को ईनाम देने का वादा किया था. लेकिन अब तक उसे ईनाम नहीं दिया है. वे बीरबल की लेकर फ़ौरन राजमहल पहुँचे और वादे अनुसार बीरबल को उसका ईनाम दे दिया.

इस तरह बीरबल ने चतुराई दिखाते हुए बिना मांगे ही अपना ईनाम प्राप्त कर लिया.

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