किसी चीज़ का स्वामी न बनो जेन कथा | Own Nothing Be Free Zen Story In Hindi
जेन दर्शन में त्याग का अर्थ केवल बाहरी वस्तुओं को छोड़ना नहीं है, बल्कि मोह, अहंकार और स्वामित्व की भावना से मुक्त होना है। जेन कहता है कि जब हम किसी चीज़ को अपना मानते हैं, तो वास्तव में वह हमें पकड़ लेती है। स्वामित्व का मोह हमें स्वतंत्र नहीं, बल्कि परतंत्र बनाता है।
इस कथा में हम देखेंगे कि कैसे एक जेन साधु ने सिखाया कि संपत्ति, विचार, पहचान—इनमें से किसी का भी स्वामी बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि जीवन को मुक्त प्रवाह की तरह जीना चाहिए।
Own Nothing Be Free Zen Story In Hindi
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जापान के एक प्रसिद्ध जेन मठ में सोजुन नाम के एक जेन गुरु रहते थे। उनकी सादगी और ज्ञान के कारण दूर-दूर से लोग उनके पास सीखने आते थे।
एक दिन एक धनी व्यापारी उनके मठ में आया। वह बहुत सफल था, उसके पास धन, जमींदारी, नौकर और व्यापार के असंख्य साधन थे, लेकिन फिर भी वह अशांत था।
उसने सोजुन से कहा, “गुरुदेव, मेरे पास सब कुछ है, फिर भी मैं सुखी नहीं हूँ। मुझे शांति चाहिए।”
सोजुन मुस्कराए और बोले, “तुम्हारे पास सब कुछ है, लेकिन क्या तुम्हें इन चीज़ों का स्वामी होने का अहंकार है?”
व्यापारी ने सोचा और कहा, “हां, मैं अपनी मेहनत से इन्हें प्राप्त करता हूँ, तो यह मेरी संपत्ति है।”
सोजुन उसे अपने कक्ष में ले गए। वहाँ एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी थी।
गुरु ने पूछा, “क्या यह कुर्सी तुम्हारी है?”
व्यापारी बोला, “नहीं, यह आपकी है।”
सोजुन हँसे और बोले, “यदि मैं इसे अपना मान लूँ, और कोई इसे छूए, तो क्या मुझे क्रोध आएगा?”
व्यापारी बोला, “शायद हाँ, क्योंकि यह आपकी वस्तु है।”
गुरु बोले, “तो फिर कुर्सी ने मुझे पकड़ रखा है, या मैंने इसे पकड़ा है?”
व्यापारी चुप हो गया।
गुरु ने कहा, “स्वामित्व का भाव एक भ्रम है। जब हम किसी चीज़ को अपना मानते हैं, तो हम ही उसके दास बन जाते हैं।”
गुरु ने व्यापारी को एक जंगल में ले जाकर एक विशाल वृक्ष दिखाया और पूछा,
“यह वृक्ष किसका है?”
व्यापारी ने कहा,”यह किसी का नहीं, यह प्रकृति का है।”
गुरु ने हँसकर कहा,”यदि यह किसी का नहीं है, तो यह सभी का है। लेकिन यदि कोई इसे अपना कहे, तो वह केवल भ्रम में जीता है।”
व्यापारी सोच में पड़ गया।
गुरु ने कहा,”तुम्हारा धन, तुम्हारी संपत्ति, यहाँ तक कि तुम्हारा शरीर—इनमें से कुछ भी तुम्हारे साथ नहीं जाएगा। फिर तुम इसके स्वामी कैसे हो सकते हो?”
व्यापारी ने कहा,”तो क्या मुझे सब कुछ छोड़ देना चाहिए?”
गुरु ने उत्तर दिया,”नहीं, छोड़ना भी एक आसक्ति है। बस यह समझो कि तुम किसी चीज़ के स्वामी नहीं हो। तुम बस एक संरक्षक हो, एक यात्री हो, जिसे इन चीज़ों का उपयोग करना है, लेकिन उनमें उलझना नहीं है।”
व्यापारी ने सिर झुका लिया। वह अब समझ चुका था कि असली शांति पाने के लिए स्वामित्व का मोह त्यागना आवश्यक है।
कथा से सीख
1. स्वामित्व का मोह हमें परतंत्र बना देता है – जब हम किसी वस्तु को पकड़ते हैं, तो वास्तव में वह हमें पकड़ लेती है।
2. छोड़ना भी एक आसक्ति हो सकती है – जेन सिखाता है कि त्याग तभी सार्थक है जब वह स्वाभाविक हो, जबरदस्ती नहीं।
3. संपत्ति की रक्षा करो, पर स्वामित्व का अहंकार मत पालो – हमें चीज़ों का उपयोग करना चाहिए, पर उनमें खो नहीं जाना चाहिए।
4. स्वतंत्रता का अर्थ है पकड़ से मुक्त होना – न केवल भौतिक चीज़ों से, बल्कि विचारों, पहचान और अहंकार से भी।
5. सच्चा सुख वस्तुओं में नहीं, बल्कि स्वच्छंदता में है – जब हम किसी चीज़ के स्वामी बनने का प्रयास नहीं करते, तभी हम वास्तव में स्वतंत्र होते हैं।
“किसी चीज़ का स्वामी न बनो” जेन का मूल संदेश है। जब हम किसी चीज़ को अपना मानकर उसके लिए चिंता करने लगते हैं, तो हम उसकी ज़ंजीरों में बंध जाते हैं। लेकिन जब हम इस स्वामित्व के भ्रम को त्याग देते हैं, तो हम सही मायनों में मुक्त और शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।
उम्मीद है आपको Kisi Cheez Ka Swami Na Bano Zen Story पसंद आई होगी। अन्य कहानियां भी पढ़ें। धन्यवाद।
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