Munshi Prem Chand Ki Kahaniyan

पागल हाथी प्रेमचंद की कहानी | Pagal Hathi Story In Hindi Munshi Premchand

Pagal Hathi Story In Hindi Munshi Premchand
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फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम मुंशी प्रेमचंद की कहानी “पागल हाथी” (Pagal Hathi Story In Hindi For Kids Munshi Premchand) शेयर कर रहे है। ये Pagal Hathi Munshi Premchand Ki Baal Kahani राजा के पागल हो चुके हाथी और मुरली नामक एक बहादुर बच्चे की है. पढ़िये पूरी कहानी :

Pagal Hathi Story In Hindi

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Pagal Hathi Story In Hindi

Pagal Hathi Story In Hindi

मोती राजा साहब की सवारी का खास हाथी था। यों तो बादल बहुत ही सीधा और समझदार किस्म का था, पर कभी कभी उसका मिजाज़ बिगड़ जाता था और वह अपने आपे में न रहता था। उस हालत में उसे किसी बात की सुधि न रहती थी, महावत का दबाव भी न मानता था। एक बार उसने इसी पागलपन में अपने महावत को मार डाला।

राजा साहब ने यह खबर सुनी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। मोती की पदवी छिन गई। राजा साहब की सवारी से निकाल दिया गया। कुलियों की तरह उसे लकड़ियाँ ढोनी पड़ती, पत्थर उठाने पड़ते और शाम को पीपल के नीचे मोटी जंजीरों से बांध दिया जाता। उसके सामने खाने के लिए सूखी टहनियाँ डाल दी जाती। उन्हीं को खा कर अपनी भूख की आग बुझाता था।

जब वह इस दशा को पहले की दशा से मिलाता, तो वह बहुत चंचल हो उठता। सोचता – ‘कहाँ मैं राजा का सबसे प्यारा हाथी था, कहाँ आज मामूली मजदूर हूँ। यह सोचकर ज़ोर से चिंघाड़ता और उछलता। आखिर एक दिन उसे इतना जोश आया कि जंजीरे तोड़ डाली और जंगल की तरफ भागा।

थोड़ी ही दूर पर एक नदी थी। मोती पहले उस नदी में जाकर खूब नहाया। फिर वहाँ से  जंगल की ओर बढ़ा। इधर राजा साहब के सिपाही उसको पकड़ने के लिए दौड़े, मगर मारे डर के कोई उसके पास जा न सका। जंगल का जानवर जंगल ही में चला गया।

जंगल में पहुँचकर अपने साथियो को ढूंढने लगा। वह कुछ दूर और आगे बढ़ा, तो उसे उसके साथी दिख गये। पर जब उसके साथियो ने उसके गले मेरे रस्सी और पांव में टूटी जंजीर देखी, तो उससे मुँह फेर लिया। उसकी बात तक न पूछी। उनका शायद यह मतलब था कि तुम तो गुलाम थे ही, अब नमकहराम गुलाम हो गए हो। तुम्हारी जगह इस जंगल में नहीं हैं।

जब तक वे आँखों से ओझल न हो गए, मोती वहीं खड़ा ताकता रहा। फिर न जाने क्या सोचकर वहाँ से भागता हुआ महल की ओर चला।

वह रास्ते ही में था कि उसने देखा कि राजा साहब शिकारियों के साथ घोड़े पर चले आ रहे हैं। वह फौरन एक बड़ी चट्टान की आड़ में छिप गया। धूप तेज थी। राजा साहब जरा दम लेने को घोड़े से उतरे। अचानक मोती आड़ से निकल पड़ा और गरजता हुआ राजा साहब की ओर दौड़ा।

राजा साहब घबराकर भागे और एक छोटी झोंपड़ी में घुस गये। जरा देर बाद मोती भी पहुँचा। उसने राजा साहब को अंदर घुसते देख लिया था। पहले तो उसने अपनी सूंड़ से ऊपर का छप्पर गिरा दिया, फिर उसे पैरों से रौंदकर चूर-चूर कर डाला। भीतर राजा साहब का मारे डर के बुरा हाल था, जान बचने की कोई आशा न थी।

आखिर कुछ न सूझी, तो वह जान पर खेलकर पीछे दीवार पर चढ़ गए और दूसरी तरफ कूदकर भाग निकले। मोती द्वार पर खड़ा छप्पर रौंद रहा था और सोच रहा था कि दीवार कैसे गिराऊं। आखिर उसने धोखा देकर दीवार गिरा दी। मिट्टी की दीवार पागल हाथी का धक्का क्या सहती? मगर जब राजा साहब भीतर न मिले, तो उसने बाकी दीवारें भी गिरा दी और जंगल की तरफ चला गया।

घर लौटकर राजा साहब ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो व्यक्ति मोती को जीता पकड़कर लाएगा, उसे हजार रुपये इनाम दिया जायेगा। कई आदमी इनाम के लालच में उसे पकड़ने गये। मगर उनमें से एक भी न लौटा।

मोती के महावत का एक लड़का था। उसका नाम था मुरली। अभी वह कुल आठ नौ बरस का था। राजा साहब दया करके उसको और उसकी माँ को कुछ खर्च दिया करते थे। मुरली था तो बालक, पर हिम्मत का धनी था। कमर बांधकर मोती को पकड़ लाने के लिए तैयार हो गया। मगर माँ ने बहुतेरा समझाया, और लोगों ने भी समझाया, मगर उसने एक न सुनी और जंगल की ओर चल दिया।

जंगल में गौर से इधर-उधर देखने लगा। आखिर उसने देखा कि मोती सिर झुकाये उसी पेड़ की तरफ चला आ रहा हैं। उसकी चाल से ऐसा मालूम होता था कि उसका मिजाज ठंडा हो गया है। ज्यों ही मोती उस पेड़ के नीचे आया, उसने पेड़ के ऊपर से पुचकारा – ‘मोती!’

मोती इस आवाज को पहचानता था। वहीं रुक गया और सिर उठा कर ऊपर की ओर देखने लगा। मुरली को पहचान गया। यह वही मुरली था, जिसे वह अपनी सूंड में उठाकर अपने मस्तक पर बैठा लेता था।

‘मैंने ही इसके बाप को मार डाला है।’ यह सोच कर उसे उस बालक पर दया आई। खुशी से सूंड हिलाने लगा। मुरली उसके मन के भाव को पहचान गया। वह पेड़ से नीचे उतरा और उसकी सूंड को थप क्या देने लगा। फिर उसे बैठने का इशारा किया। मोती बैठा नहीं, मुरली को सूंड से उठाकर पहले की ही तरह मस्तक पर बिठा लिया और राजमहल की ओर चला।  

मुरली जब मोती को लिए हुए राजमहल के द्वार पर पहुँचा, तो सबने दांतो तले उंगली दबाई। फिर भी किसी की हिम्मत न होती थी कि मोती के पास जाये। मुरली चिल्लाकर बोला – ‘डरो मत। मोती बिल्कुल सीधा हो गया है। ऐसा किसी से न बोलेगा।’

राजा साहब भी डरते-डरते मोती के सामने आये। उन्हें कितना अचंभा हुआ कि वही पागल मोती अब गाय की तरह सीधा हो गया है।

उन्होंने मुरली को एक हजार इनाम दिया ही, उसे अपना खास महावत बना लिया और मोती फिर से राजा साहब का सबसे प्यारा हाथी बन गया।

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