Jain Dharm Ki Kahaniyan

पक्षी और वृक्षराज का त्याग जैन कथा | Pakshi Aur Vrikshraj Ka Tyag Jain Katha

पक्षी और वृक्षराज का त्याग जैन कथा  (Pakshi Aur Vrikshraj Ka Tyag Jain Katha)

जैन धर्म की कहानियाँ त्याग, अहिंसा और परोपकार की प्रेरणा देती हैं। इन्हीं कहानियों में से एक है “वृक्षराज और पक्षी का त्याग”, जो सहिष्णुता, त्याग और दया का अनमोल संदेश देती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा त्याग वह है जो दूसरों के भले के लिए किया जाए, भले ही उसमें हमें कष्ट क्यों न उठाना पड़े।  

Pakshi Aur Vrikshraj Ka Tyag Jain Katha

Table of Contents

Pakshi Aur Vrikshraj Ka Tyag Jain Katha

 

प्राचीन काल में एक विशाल जंगल था, जहाँ विविध प्रकार के पेड़-पौधे और जीव-जन्तु रहते थे। उसी जंगल के बीचों-बीच एक विशाल वृक्ष था, जिसे सभी “वृक्षराज” कहकर पुकारते थे। वृक्षराज केवल अपनी विशालता और छायादार प्रकृति के कारण नहीं, बल्कि अपने उदार हृदय के कारण भी प्रसिद्ध थे। वे सदैव दूसरों की भलाई और सेवा के लिए तत्पर रहते थे।  

वृक्षराज की घनी शाखाओं पर असंख्य पक्षी रहते थे। वे सब वृक्षराज को अपना रक्षक मानते थे। वृक्ष की छाँव में वे निश्चिंत होकर विश्राम करते, वर्षा के दिनों में सुरक्षित रहते और वृक्ष के फलों और पत्तियों से अपना पेट भरते। वृक्षराज का हृदय इतना विशाल था कि वे सबकी आवश्यकताओं को बिना किसी संकोच के पूरा करते।  

एक दिन, सर्दियों के प्रारंभ में, एक छोटा और दुर्बल पक्षी उस जंगल में पहुँचा। वह ठंड से काँप रहा था और भूख से व्याकुल था। वह उड़ते-उड़ते वृक्षराज की एक शाखा पर आकर बैठ गया। वृक्षराज ने प्रेमपूर्वक उस पक्षी से पूछा, “वत्स, तुम इतनी दुर्बल और थकी हुई क्यों दिख रही हो?”  

पक्षी ने काँपती आवाज में उत्तर दिया, “हे वृक्षराज, मैं बहुत दूर से आ रहा हूँ। ठंड के कारण मेरे पंख कमजोर हो गए हैं और भोजन के अभाव में मैं और अधिक उड़ने में असमर्थ हूँ। क्या आप मुझे थोड़ी देर के लिए अपनी शाखाओं में शरण देंगे?”  

वृक्षराज ने स्नेहपूर्वक कहा, “वत्स, यह वृक्ष तो सदैव सबके लिए खुला है। तुम यहाँ जितना चाहो विश्राम कर सकते हो। मेरी शाखाएँ तुम्हारे लिए सुरक्षित स्थान हैं और यहाँ तुम्हें भोजन भी मिलेगा।”  

वृक्षराज ने अपनी शाखाओं से फल गिराए, ताकि वह पक्षी अपना पेट भर सके। पक्षी ने भोजन किया और थोड़ा विश्राम किया। उसने वृक्षराज को धन्यवाद दिया और कहा, “आपका उपकार मैं कभी नहीं भूलूँगा। आपने मुझे जीवनदान दिया है।”  

वृक्षराज ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह मेरा कर्तव्य है। जो दूसरों की सहायता करता है, वही सच्चे अर्थों में जीवन जीता है।”  

कुछ समय बीता, और ठंड दिनों-दिन बढ़ती गई। सभी जीव-जन्तु अपनी सुरक्षा के लिए स्थान ढूँढने लगे। छोटे पक्षी के लिए भी ठंड सहन करना कठिन हो गया। वृक्षराज ने देखा कि वह पक्षी ठंड के कारण काँप रहा है। उन्होंने अपनी कुछ पत्तियाँ नीचे गिरा दीं, ताकि पक्षी को आश्रय मिल सके।  

पक्षी ने उन पत्तियों के सहारे अपना घोंसला बना लिया और ठंड से कुछ राहत पाई। वृक्षराज ने अपने पत्तों का त्याग करके उस पक्षी की रक्षा की।  

कुछ समय बाद, ठंड इतनी अधिक बढ़ गई कि बर्फ गिरने लगी। जंगल में बर्फ की चादर बिछ गई और ठंडी हवाएँ चलने लगीं। वृक्षराज ने देखा कि वह छोटा पक्षी ठंड से बुरी तरह काँप रहा था और उसके जीवन पर संकट मंडरा रहा था। वृक्षराज को उस पक्षी पर बहुत दया आई।  

उन्होंने पक्षी को सुरक्षित रखने का निश्चय किया। वृक्षराज ने अपनी कुछ शाखाएँ तोड़कर पक्षी के चारों ओर घना आश्रय बना दिया, ताकि ठंडी हवाएँ पक्षी तक न पहुँच सकें। लेकिन ऐसा करने से वृक्षराज को बहुत पीड़ा हुई, क्योंकि उनकी शाखाएँ उनके शरीर का ही हिस्सा थीं।  

वृक्षराज की इस पीड़ा से अन्य पेड़-पौधे और पक्षी व्यथित हो गए। उन्होंने वृक्षराज से कहा, “हे वृक्षराज, यह आप क्या कर रहे हैं? अपने शरीर को कष्ट देकर आप इस पक्षी की रक्षा क्यों कर रहे हैं?”  

वृक्षराज ने उत्तर दिया, “यदि मेरे त्याग से किसी का जीवन बच सकता है, तो यह पीड़ा कोई बड़ी बात नहीं है। सच्चा सुख दूसरों की भलाई में है।”  

वृक्षराज ने अपनी कई शाखाएँ और पत्तियाँ गिरा दीं, ताकि वह पक्षी सुरक्षित रह सके। धीरे-धीरे ठंड समाप्त हुई और वसंत का आगमन हुआ। वृक्षराज कमजोर हो गए थे, लेकिन उनके चेहरे पर संतोष और आनंद था।  

वसंत के आगमन के साथ ही जंगल में नई हरियाली लौट आई। वृक्षराज की शाखाएँ भी धीरे-धीरे पुनः हरी-भरी हो गईं। वह छोटा पक्षी अब स्वस्थ और शक्तिशाली हो गया था। उसने वृक्षराज के पास जाकर कहा, “हे वृक्षराज, आपने मेरे लिए जो त्याग किया है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। आपके कारण ही आज मैं जीवित हूँ। आप महान हैं, आपके इस त्याग ने मुझे सच्चे धर्म का मार्ग दिखाया है।”  

वृक्षराज ने मुस्कुराते हुए कहा, “वत्स, यह तो मेरा कर्तव्य था। जीवन का सच्चा धर्म दूसरों की भलाई में है। यदि हमारे त्याग से किसी को सुख और सुरक्षा मिलती है, तो वही सबसे बड़ा धर्म है।”  

सीख

1. त्याग का महत्व: सच्चा त्याग वह है, जो दूसरों के भले के लिए किया जाए।  

2. दया और करुणा: दूसरों के प्रति करुणा और दया का भाव रखना ही मानव धर्म है।  

3. सहिष्णुता: कठिनाइयों और कष्टों को सहन करते हुए भी दूसरों की सहायता करना सच्चे धर्म का प्रतीक है।  

4. परोपकार का सुख: जीवन का सच्चा सुख दूसरों की भलाई में है, न कि स्वयं के लिए जीने में।  

वृक्षराज और पक्षी की यह कहानी त्याग, सहिष्णुता और परोपकार की प्रेरणा देती है। वृक्षराज ने अपने कष्ट को सहन कर उस छोटे पक्षी की रक्षा की और यह सिखाया कि सच्चा धर्म वही है, जिसमें दूसरों के जीवन को सुख और सुरक्षा मिले। यह कहानी हमें अहिंसा, करुणा और परोपकार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।  

Instagram follow button पक्षी और वृक्षराज का त्याग जैन कथा | Pakshi Aur Vrikshraj Ka Tyag Jain Katha

ऋषभदेव की जीवन यात्रा की कहानी

सोने का हिरण और सत्य की खोज जैन कथा

जैन मुनि और भूखा शेर की कहानी 

श्रवण कुमार की कहानी

सिद्धार्थ और हंस की कहानी 

Leave a Comment