पंजाबी भोजन : कश्मीर की लोक कथा | Panjabi Bhojan Folk Tale Of Kashmir In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम कश्मीरी कहानी “पंजाबी भोजन” (Panjabi Bhojan Kashmiri Lok Katha) शेयर कर रहे है. यह कहानी दो भिन्न प्रांतों में रहने वाले दोस्तों की है. एक कश्मीर का और एक पंजाब का. दोनों अपने-अपने प्रांतों के भोजन को श्रेष्ठ दिखाना चाहते हैं. कहानी क्या मोड़ लेती है और इसका अंत क्या होता है? जानने के लिए पढ़िये कश्मीर की ये लोक कथा  : 

Panjabi Bhojan Kashmir Ki Lok Katha
Panjabi Bhojan Kashmir Ki Lok Katha

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आफ़ताब और मिल्खा सिंह गहरे दोस्त थे. मिल्खासिंह पंजाब का रहने वाला था और आफ़ताब कश्मीर का. दोनों को मिले सालों हो गये थे. एक दिन आफ़ताब को मिल्खा सिंह की चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था कि वो उससे मिलने आ रहा है. आफ़ताब बहुत ख़ुश हुआ.

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जब मिल्खा सिंह आफ़ताब कश्मीर आया और आफताब के घर पहुँचा, तो आफ़ताब ने उसे गले से लगा लिया और उसका जोर-शोर से स्वागत किया. दोनों बैठ कर बातें करने लगे. उधर रसोईघर में दोपहर के भोजन के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई. आफ़ताब की बेगम एक से बढ़कर एक पकवान बना रही थी, जिसकी खुशबू पूरे घर में उड़ रही थी.

जब भोजन का समय आया, तो मिल्खा सिंह को सारे पकवान परोसे गये. मिल्खा सिंह ने खूब डटकर भोजन किया. ये देख आफताब बड़ा ख़ुश हुआ. उसने सोचा की हमारे कश्मीर के व्यंजन मिल्खा सिंह को पसंद आये हैं.

उसने पूछा, “दोस्त खाना कैसा लगा?”

मिल्खा सिंह ने उत्तर दिया, “यार, खाना तो चंगा है, पर साडे पंजाब दीयों केहड़ीआं रीसां (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता).”

ये सुनकर आफ़ताब को बुरा लगा. उसने अपनी बेगम को रात के भोजन पर इससे भी बढ़िया खाना तैयार करने कहा. बेगम ने तैयारी शुरू कर दी. गुच्छी की सब्जी से लेकर तरह-तरह के मांसाहारी व्यंजन तैयार किये गये.

रात में जब मिल्खा सिंह को भोजन परोसा गया और मिल्खा सिंह ने छककर भोज किया, तो आफ़ताब ने उससे पूछा, “दोस्त, तुम्हें खाना कैसा लगा?”

मिल्खा सिंह ने वही बात दोहरा दी, “साडे पंजाब दीयों केहड़ीआं रीसां (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता).”

आफ़ताब का मुँह उतर गया. वह अपने कश्मीर के भोजन की बड़ाई सुनना चाहता था. पर उसका दोस्त पंजाब के ही राग अलाप रहा था. अगले दिन उसने अपने घर शहर के बड़े-बड़े खानसामे बुलवा लिये और ऐसा खाना तैयार करने कहा कि उसका दोस्त उंगलियाँ चाटता रह जाये.    

उसके घर शाही दावत की तरह पकवान तैयार होने लगे. दोपहर को जब खाने का समय आया, तो मिल्खा सिंह के सामने पकवानों की लाइन लगी थी. रोगनजोड़ा, केसरिया चांवल, कबाब, करम का साग, खीर और भी कई पकवान.

मिल्खा सिंह इतने सारे पकवान देख हैरान था. वो बोला, “आज तो शादी की  दावत जैसे पकवान सजे हैं यार!”

आफ़ताब यह सुनकर बड़ा ख़ुश हुआ. उसने लगा कि खाना खाने के बाद आज तो मिल्खा सिंह ज़रूर कश्मीर के भोजन की तारीफ़ करेगा. 

खाने के बाद उसने पूछा, “दोस्त खान कैसा लगा?”

और मिल्खा सिंह ने वही रटा-रटाया उत्तर दिया, “साडे पंजाब दीयों केहड़ीआं रीसां (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता).”

उसके बाद शाम को मिल्खा सिंह पंजाब लौट गया.

कुछ महीनों बाद आफ़ताब को किसी कम से पंजाब जाना पड़ा. उसने सोचा कि चलो मिल्खा सिंह के घर जाता हूँ और देखता हूँ कि आखिर उसके घर किसा खाना बनता है.

वो मिल्खा सिंह के घर गया. मिल्खा सिंह ने उसका तहे दिल से स्वागत किया. जब भोजन का समय आया, तो मिल्खा सिंह की पत्नी ने थाली में मक्के का साग और सरसों की सब्जी परोसी. साथ में एक बड़े से गिलास में लस्सी उसके सामने रख दी गई.

मिल्खा सिंह बोला, “यार, खाना शुरू करो.”

आफ़ताब यह सुनकर हैरान था. उसे लगा था कि अभी और पकवान परोसे जायेंगे. खैर, उसने यह सोचते हुए भोजन किया कि हो सकता है शाम को उसे पंजाब के और व्यंजन खाने को मिले.

मगर शाम को भी उसे खाने में सरसों का साग और मक्के की रोटी परोसी गई. उससे रहा न गया और उसने पूछा, “दोस्त, तुम तो कहते थे साडे पंजाब दीयों केहड़ीआं रीसां. पर यहाँ तो तुम एकदम सादा भोजन खाते हो.”

मिल्खा सिंह हंसने लगा, फिर बोला, “यार! तुम्हारे घर का भोजन स्वाद में बहुत बढ़िया था. वैसा खाना तो मैंने कभी खाया ही नहीं था. मैं तो साधारण गाँव का आदमी हूँ. सादा भोजन खाता हूँ. उतना महंगा हम कहाँ खा पायेंगे. हम तो सादा और सस्ता भोजन करते हैं, जो पौष्टिक भी रहता है. इससे हमारी सेहत भी बनी रहती है. इसलिए मैंने कहा था साडे पंजाब दीयों केहड़ीआं रीसां.”

आफ़ताब को समझ आ गया कि सादा भोजन ही अच्छी सेहत का राज़ है और भोजन वही अच्छा, जो सेहत अच्छी रखे.

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