परोपकारी राजा की कहानी (Paropakari Raja Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।
Paropakari Raja Ki Kahani
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बहुत समय पहले एक सुंदर और समृद्ध राज्य था, जिसका नाम सूरजनगढ़’ था। इस राज्य में एक परोपकारी और न्यायप्रिय राजा, राजा सुरजमल का शासन था। राजा सुरजमल को उनकी दया, उदारता और अपने प्रजाजनों के प्रति अगाध प्रेम के लिए जाना जाता था। वे हमेशा अपने राज्य के लोगों की भलाई के लिए कार्य करते और उनकी समस्याओं को सुनकर समाधान निकालते।
राजा सुरजमल का एक मुख्य सिद्धांत था कि राज्य की संपत्ति राज्य के लोगों की संपत्ति है और इसका उपयोग उनकी भलाई के लिए ही होना चाहिए। वे प्रतिदिन अपने दरबार में समय निकालते थे, ताकि वे अपनी प्रजा की समस्याओं को सुन सकें और उनके निवारण के लिए उचित कदम उठा सकें।
एक दिन राजा सुरजमल अपने महल के गलियारे में खड़े होकर नीचे देख रहे थे। उन्होंने देखा कि महल के द्वार पर एक गरीब किसान खड़ा है, जो राजा से मिलने की प्रार्थना कर रहा है। राजा ने तुरंत उसे दरबार में बुलाया। किसान ने राजा को बताया कि उसकी फसलें सूख गई हैं और उसके पास परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।
राजा सुरजमल ने उसकी बात ध्यान से सुनी और तुरंत उसे मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने अपने खजाने से किसान को आर्थिक सहायता दी और साथ ही उसके खेतों में पानी की सुविधा के लिए व्यवस्था करने का आदेश दिया। राजा ने यह सुनिश्चित किया कि किसान को अगले कुछ वर्षों तक किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े।
राजा सुरजमल का यही परोपकारी स्वभाव था कि उनके राज्य में कभी भी किसी प्रकार की बगावत या असंतोष नहीं हुआ। सुरजनगढ़ में सभी लोग खुश और संतुष्ट थे क्योंकि वे जानते थे कि उनका राजा हमेशा उनकी भलाई के लिए तत्पर है। राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्र में भी राजा ने अनेक सुधार किए।
उन्होंने राज्य में कई स्कूल और अस्पताल खोले, जहां गरीबों के लिए शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएं निःशुल्क थीं। इसके अलावा, उन्होंने सिंचाई की नयी प्रणालियाँ विकसित करवाईं, जिससे किसानों को खेती में बहुत मदद मिली। राजा सुरजमल के शासन में सुरजनगढ़ एक आदर्श राज्य बन गया था, जहाँ सभी लोग एक-दूसरे की मदद करते और भाईचारे के साथ रहते थे।
एक दिन राजा सुरजमल अपने मंत्री के साथ राज्य के भ्रमण पर निकले। उन्होंने देखा कि एक छोटा सा गाँव सूखा पड़ गया है और लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। राजा ने तुरंत वहाँ एक बड़ा तालाब खुदवाने का आदेश दिया और वहाँ पानी की उचित व्यवस्था करवाई। इस काम में उन्होंने न केवल अपने खजाने का उपयोग किया, बल्कि स्वयं भी श्रमदान किया। उनके इस कार्य से गाँव के लोग बहुत खुश हुए और राजा के प्रति उनकी श्रद्धा और बढ़ गई।
एक बार सुरजनगढ़ के पड़ोसी राज्य में अकाल पड़ा। वहाँ के राजा ने राजा सुरजमल से मदद की गुहार लगाई। राजा सुरजमल ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने पड़ोसी राज्य की मदद करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने खजाने के द्वार खोल दिए और पड़ोसी राज्य को भोजन, पानी और अन्य आवश्यक चीजें भेजीं। सुरजनगढ़ के लोग अपने राजा की इस परोपकारिता पर गर्व महसूस करने लगे।
राजा सुरजमल के इस महान कार्य का परिणाम यह हुआ कि उनके राज्य में एक अद्भुत चमत्कार हुआ। राज्य में चारों ओर हरियाली फैल गई, फसलें भरपूर होने लगीं और लोग खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगे। लोग यह मानने लगे कि राजा की परोपकारिता और दया के कारण ही राज्य में इतनी समृद्धि आई है। राजा सुरजमल ने यह साबित कर दिया कि जब हम दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं, तो प्रकृति भी हमें अपनी ओर से आशीर्वाद देती है।
राजा सुरजमल के अंतिम वर्षों में भी उनकी परोपकारिता कम नहीं हुई। एक बार एक भयानक महामारी ने राज्य में दस्तक दी। राजा ने अपने महल के दरवाजे खोल दिए और सभी बीमार लोगों को वहाँ आश्रय दिया। उन्होंने महल को एक अस्थायी अस्पताल में परिवर्तित कर दिया और स्वयं अपने चिकित्सकों के साथ मिलकर बीमार लोगों की देखभाल की।
राजा सुरजमल के इस त्याग और समर्पण ने राज्य के लोगों के दिलों में उनके प्रति असीम श्रद्धा और प्रेम भर दिया। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने लोगों की सेवा की और अंततः महामारी को परास्त करने में सफल रहे।
राजा सुरजमल के तीन पुत्र थे। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में अपने सबसे बड़े पुत्र, राजकुमार वीरमल, को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। राजा सुरजमल ने अपने पुत्र को यही सिखाया था कि राजा का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य उसकी प्रजा की भलाई करना है। उन्होंने वीरमल को अपने सिद्धांतों पर चलते हुए राज्य का संचालन करने की सलाह दी।
राजा सुरजमल का निधन राज्य के लिए एक बड़ा धक्का था, लेकिन उन्होंने जो नींव रखी थी, उस पर उनके पुत्र ने राज्य को आगे बढ़ाया। राजकुमार वीरमल ने अपने पिता के सिद्धांतों और परोपकार की नीति को अपनाया और सुरजनगढ़ को एक और ऊँचाई पर पहुँचाया। राज्य में राजा सुरजमल की यादें जीवित रहीं और उनके परोपकारी कार्यों की कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रहीं।
इस प्रकार, परोपकारी राजा सुरजमल की कहानी न केवल उनके राज्य सुरजनगढ़ के लिए बल्कि पूरे संसार के लिए एक प्रेरणा बन गई। उनकी दया, उदारता और न्यायप्रियता की मिसालें आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाती रहीं कि सच्चा राजा वही होता है जो अपने प्रजाजनों की भलाई के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य करता है।
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