अंतिम दौड़ : परोपकार पर प्रेरणादायक कहानी | Paropkar Par Kahani

फ्रेंड्स, हम इस पोस्ट में परोपकार पर प्रेरणादायक कहानी “अंतिम दौड़” (Paropkar Par Kahani) शेयर कर रहे हैं. जीवन की भागमभाग में अक्सर हम इतने स्व-केंद्रित हो जाते हैं कि दूसरों के बारे में सोचना ही छोड़ देते हैं. सफ़लता की राह में दूसरों की भलाई को कभी दरकिनार न करें, यह कहानी यही सीख देती हैं:  पढ़िए Story On Charity In Hindi:

Paropkar Par Kahani

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Paropkar Par Kahani
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बहुत समय पहले की बात है. एक प्रसिद्ध ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे. उनके गुरुकुल में अनेक राज्यों के राजकुमारों के साथ-साथ साधारण परिवारों के बालक भी शिक्षा प्राप्त करते थे.

उस दिन वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े ही उत्साह से अपने-अपने घर लौटने की तैयारी में थे. जाने के पूर्व ऋषिवर ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया. सभी शिष्य उनके समक्ष आकर एकत्रित हो गए. ऋषिवर सभी शिष्यों को संबोधित करते हुए बोले –

“प्रिय शिष्यों, आज आप सबका इस गुरूकुल में अंतिम दिन है. मेरी इच्छा है कि यहाँ से प्रस्थान करने के पूर्व आप सब एक दौड़ में सम्मिलित हो. ये एक बाधा दौड़ है, जिसमें आपको विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना होगा. आपको कहीं कूदना होगा, तो कहीं पानी में दौड़ना होगा. सारी बाधाओं को पार करने के उपरांत अंत में आपको एक अंधेरी सुरंग मिलेगी, जो आपकी अंतिम बाधा होगी. उस सुरंग को पार करने के उपरांत ही आपकी दौड़ पूर्ण होगी. तो क्या आप सब इस दौड़ में सम्मिलित होने के लिए तैयार है?”

“हम तैयार है.” सभी शिष्य एक स्वर में बोले.

दौड़ प्रारंभ हुई. सभी तेजी से भागने लगे. समस्त बाधाओं को पार करने के उपरांत वे अंत में सुरंग में पहुँचे. सुरंग में बहुत अंधेरा था, जब शिष्यों ने सुरंग में भागना प्रारंभ किया तो पाया कि उसमें जगह-जगह नुकीले पत्थर पड़े हुए है. वे पत्थर उनके पांव में चुभने लगे और उन्हें असहनीय पीड़ा होने लगी. लेकिन जैसे-तैसे दौड़ समाप्त कर वे सब वापस ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हो गए.

ऋषिवर के उनसे प्रश्न किया, “शिष्यों, आप सबमें से कुछ लोंगों ने दौड़ पूरी करने में अधिक समय लिया और कुछ ने कम. भला ऐसा क्यों?”

उत्तर में एक शिष्य बोला, “गुरुवर! हम सभी साथ-साथ ही दौड़ रहे थे. लेकिन सुरंग में पहुँचने के बाद स्थिति बदल गई. कुछ लोग दूसरों को धक्का देकर आगे निकलने में लगे हुए थे, तो कुछ लोग संभल-संभल कर आगे बढ़ रहे थे. कुछ तो ऐसे भी थे, जो मार्ग में पड़े पत्थरों को उठा कर अपनी जेब में रख रहे थे, ताकि बाद में आने वालों को कोई पीड़ा न सहनी पड़े. इसलिए सबने अलग-अलग समय पर दौड़ पूरी की.”

पूरा वृत्तांत सुनने के उपरांत ऋषिवर ने आदेश दिया, “ठीक है! अब वे लोग सामने आये, जिन्होंने मार्ग में से पत्थर उठाये है और वे पत्थर मुझे दिखायें.”

आदेश सुनने के बाद कुछ शिष्य सामने आये और अपनी जेबों से पत्थर निकालने लगे. लेकिन उन्होंने देखा कि जिसे वे पत्थर समझ रहे थे, वास्तव में वे बहुमूल्य हीरे थे. सभी आश्चर्यचकित होकर ऋषिवर की ओर देखने लगे.

“मैं जानता हूँ कि आप लोग इन हीरों को देखकर अचरज में पड़ गए हैं.” ऋषिवर बोले, ”इन हीरों को मैंने ही सुरंग में डाला था. ये हीरे उन शिष्यों को मेरा पुरुस्कार है, जिन्होंने दूसरों के बारे में सोचा. शिष्यों यह दौड़ जीवन की भागमभाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ-न-कुछ पाने के लिए भाग रहा है. किन्तु अंत में समृद्ध वही होता है, जो इस भागमभाग में भी दूसरों के बारे में सोचता है और उनका भला करता है. अतः जाते-जाते ये बात गांठ बांध लें कि जीवन में सफलता की ईमारत खड़ी करते समय उसमें परोपकार की ईंटें लगाना न भूलें. अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूंजी होगी.


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