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फूल और भंवरे की कहानी | Phool Aur Bhanvare Ki Kahani

फूल और भंवरे की कहानी (Phool Aur Bhanvare Ki Kahani) प्रकृति की अनमोल कृतियों में से एक हैं फूल और भंवरे। दोनों के बीच का संबंध हमें जीवन की सरलता और जटिलता को समझने का एक अद्भुत उदाहरण प्रदान करता है। फूल अपनी सुंदरता, सुगंध और कोमलता से भंवरे को आकर्षित करता है, जबकि भंवरा उसकी परागण प्रक्रिया को सफल बनाकर उसे जीवन का नया चक्र प्रदान करता है। यह कहानी इस रिश्ते की गहराई और जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सिखाने के उद्देश्य से लिखी गई है।  

Phool Aur Bhanvare Ki Kahani

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Phool Aur Bhanvare Ki Kahani

एक हरे-भरे जंगल में एक सुंदर सा बगीचा था। उसमें हर प्रकार के फूल खिलते थे। लाल गुलाब, सफेद चमेली, पीले सूरजमुखी, और न जाने कितने प्रकार के रंगीन फूल बगीचे की शोभा बढ़ाते थे। इन्हीं फूलों में से एक था, एक सुंदर गुलाबी रंग का फूल। उसका नाम था “गुलिका”। गुलिका को अपनी सुंदरता पर बड़ा गर्व था। वह हर सुबह सूरज की किरणों के साथ खिल उठती और अपनी खुशबू से पूरे बगीचे को महका देती।  

गुलिका के पास अक्सर भंवरे आते थे। वे उसकी सुगंध और रस का आनंद लेते थे और परागण के लिए उसके पास मंडराते रहते थे। भंवरे के बीच एक भंवरा “भुवन” भी था, जो सबसे अलग और थोड़ा आलसी था। भुवन को लगता था कि फूल तो उसके लिए ही खिले हैं। वह जब चाहे आए और जितना चाहे रस ले जाए।  

एक दिन भुवन गुलिका के पास आया और बोला,  

“ओ सुंदर गुलिका! तुम्हारी खुशबू इतनी मनमोहक है कि मैं हर दिन तुम्हारे पास आने से खुद को रोक नहीं पाता।”  

गुलिका मुस्कुराई और गर्व से बोली,  

“भुवन, यह मेरी खूबसूरती और सुगंध का कमाल है। तुम्हारे जैसे भंवरे मेरे पास आते हैं और मैं अपनी महक से सबको खुश कर देती हूं। लेकिन ध्यान रहे, तुम मेरी सुंदरता को हल्के में मत लेना।”  

भुवन ने हंसते हुए कहा,  

“तुम्हारे बिना मेरा भी काम नहीं चलता, गुलिका। मैं तुम्हारे रस के बिना उड़ नहीं सकता। लेकिन यह रिश्ता तो परस्पर है। तुम्हें भी तो मेरी जरूरत है।”  

गुलिका ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और सोचा कि वह तो अकेले ही इतनी सुंदर और अद्भुत है कि भंवरे उसके बिना रह ही नहीं सकते।  

समय बीतता गया। भुवन रोज गुलिका के पास आता, रस पीता और परागण का काम करता। लेकिन धीरे-धीरे गुलिका को अहंकार होने लगा कि उसकी खूबसूरती ही भुवन को आकर्षित करती है। उसने सोचा, “क्यों न मैं भुवन को सबक सिखाऊं कि मेरे बिना वह कुछ नहीं है।”  

अगले दिन जब भुवन गुलिका के पास आया, तो उसने अपनी पंखुड़ियों को बंद कर लिया। भुवन ने हैरानी से पूछा,  

“गुलिका, तुमने अपनी पंखुड़ियां क्यों बंद कर लीं? मैं तो तुम्हारे रस के लिए आया हूं।”  

गुलिका ने घमंड भरे स्वर में कहा,  

“भुवन, मैंने फैसला किया है कि आज से मैं किसी को भी अपना रस नहीं दूंगी। मेरी खूबसूरती का सभी आनंद लें, लेकिन मैं खुद को किसी के लिए नहीं खोलूंगी।”  

भुवन ने समझाने की कोशिश की,  

“गुलिका, यह सही नहीं है। तुम्हारे रस से न केवल मैं, बल्कि पूरी प्रकृति का संतुलन जुड़ा है। तुम्हारे परागण से नए फूल खिलते हैं, पेड़-पौधों का जीवन चक्र चलता है।”  

लेकिन गुलिका ने उसकी बात नहीं मानी। भुवन निराश होकर वहां से उड़ गया।  

गुलिका के इस अहंकारी निर्णय का असर जल्द ही दिखने लगा। भुवन और अन्य भंवरे अब दूसरे फूलों के पास जाने लगे। गुलिका के पास कोई नहीं आता। उसकी पंखुड़ियां मुरझाने लगीं क्योंकि परागण के बिना वह कमजोर हो रही थी।  

दूसरी ओर, भुवन को भी समझ में आया कि गुलिका के रस के बिना वह भी उतना मजबूत नहीं रह सकता। उसके बिना परागण की प्रक्रिया धीमी हो गई, और बगीचे में फूल कम खिलने लगे।  

एक दिन जब गुलिका ने देखा कि उसका रंग फीका पड़ने लगा है और उसकी खुशबू भी कम हो रही है, तो उसने महसूस किया कि उसका जीवन दूसरों के साथ जुड़े रिश्तों पर निर्भर है। उसने अपने गर्व को त्यागने का निर्णय लिया।  

गुलिका ने भुवन को बुलाकर कहा,  

“भुवन, मुझे माफ कर दो। मैंने अपने घमंड में यह समझने की गलती की कि मैं अकेले ही सब कुछ हूं। लेकिन सच्चाई यह है कि तुम और मैं, दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। कृपया वापस आ जाओ और मेरे रस का आनंद लो।”  

भुवन ने मुस्कुराते हुए कहा,  

“गुलिका, तुम्हें यह समझने में थोड़ा समय लग गया, लेकिन यह सीख महत्वपूर्ण है। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, क्योंकि हमारा रिश्ता परस्पर सम्मान और सहयोग का है।”  

गुलिका और भुवन ने फिर से अपने पुराने संबंध को जीवित किया। भुवन ने गुलिका की परागण में मदद की, और गुलिका ने अपनी सुगंध और रस से भुवन को ऊर्जा दी। उनके इस मिलन से बगीचा फिर से खिल उठा। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल और खुशबू फैलने लगी।

सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कोई भी व्यक्ति या चीज़ अकेले पूर्ण नहीं होती। हर किसी का जीवन दूसरे से जुड़ा हुआ है। एक-दूसरे के सहयोग और सम्मान से ही संतुलन बना रहता है। अहंकार और स्वार्थ न केवल हमारे लिए, बल्कि पूरे समाज और प्रकृति के लिए हानिकारक हो सकते हैं।  

फूल और भंवरे का रिश्ता हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची सुंदरता और खुशी दूसरों के साथ साझा करने में है। जब हम अपने जीवन का उद्देश्य दूसरों की भलाई और सहयोग में ढूंढते हैं, तभी हम सच्चे अर्थों में खुशहाल और संतुष्ट हो सकते हैं।  

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