राजा और चतुर बुढ़िया की कहानी (Raja Aur Chatur Budhiya Ki Kahani) यह कहानी एक बुद्धिमान और चतुर बुढ़िया की है, जो अपनी चालाकी और हिम्मत से असंभव को संभव कर दिखाती है।
Raja Aur Chatur Budhiya Ki Kahani
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बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक बूढ़ी औरत रहती थी। बुढ़िया गरीब थी, लेकिन वह अपने दिमाग से बहुत चतुर और चालाक थी। उसके पास ज्यादा संपत्ति नहीं थी, बस एक पुराना मिट्टी का मटका था। यह मटका बहुत बड़ा था, और बुढ़िया इसी मटके में अपना सारा सामान रखती थी।
एक दिन गाँव में खबर फैली कि राजा ने एक नया फरमान जारी किया है। राजा ने घोषणा की थी कि उसके राज्य में जितने भी बूढ़े और अशक्त लोग हैं, उन्हें दरबार में पेश किया जाए। राजा ने यह आदेश इसलिए दिया था, ताकि वह राज्य के बूढ़े लोगों को पकड़कर कहीं दूर भेज दे।
जब बुढ़िया ने यह सुना, तो वह भी चिंता में पड़ गई। वह जानती थी कि राजा के फरमान की अवहेलना करना ठीक नहीं होगा, लेकिन वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे दरबार में पेश किया जाए। बुढ़िया ने सोचा कि अगर वह दरबार में गई, तो राजा उसे कहीं दूर भेज देगा और वह अपने गाँव और घर को कभी नहीं देख पाएगी।
बुढ़िया ने सोचा, “मैं राजा के दरबार में नहीं जाऊंगी, लेकिन मुझे कुछ ऐसा करना होगा कि राजा के सैनिक मुझे ढूंढ न पाएं।”
बुढ़िया ने अपनी चालाकी का इस्तेमाल किया और एक अनोखा उपाय निकाला। उसने अपने बड़े मटके को साफ किया, उसमें थोड़ा सा पानी और खाने का सामान रखा, और खुद उसमें बैठ गई।
अब बुढ़िया मटके के अंदर थी, और उसने मटके का ढक्कन भी बंद कर लिया। उसने सोचा कि जब सैनिक आएंगे, तो वे उसे नहीं ढूंढ पाएंगे, क्योंकि वह मटके के अंदर छुपी होगी। लेकिन इसके बाद बुढ़िया ने और भी चतुराई दिखाई। उसने मटके के अंदर से मटके को घुमाना शुरू किया, जिससे मटका धीरे-धीरे चलने लगा।
जब राजा के सैनिक गाँव में आए और बुढ़िया के घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि दरवाजे पर एक बड़ा मटका रखा है। सैनिकों को बुढ़िया कहीं दिखाई नहीं दी। वे हैरान थे कि बुढ़िया कहां गई। तभी उन्होंने देखा कि मटका धीरे-धीरे अपने आप चल रहा है। सैनिकों को यह देखकर बड़ा अचंभा हुआ। वे आपस में बात करने लगे, “यह कैसा मटका है जो अपने आप चल रहा है? कहीं इसमें कोई जादू तो नहीं?”
सैनिकों ने मटके को रोका और उसकी जांच करने की कोशिश की, लेकिन बुढ़िया ने अंदर से इतनी जोर से आवाज़ की कि सैनिक डरकर पीछे हट गए। उन्होंने सोचा कि यह कोई जादुई मटका है और इसे छूने से कोई अनहोनी हो सकती है। इसलिए उन्होंने मटके को छोड़ दिया और वहां से चले गए। बुढ़िया ने यह देखकर राहत की सांस ली और मटके को और तेजी से घुमाने लगी।
इस तरह बुढ़िया मटके के अंदर बैठकर धीरे-धीरे गाँव से बाहर जाने लगी। गांव के लोगों ने जब मटके को चलते हुए देखे, तो वे हैरान रह गए। सभी सोचने लगे कि यह मटका कैसे चल रहा है और इसमें क्या रहस्य है। राजा के कानों में ये बात पहुंची, तो उसने सैनिकों को आदेश दिया कि वे मटके को लेकर लाएं।
सैनिक मटके को लेकर दरबार में पहुंचे। राजा ने पूछा, “यह कौन है, जो इस मटके को चला रहा है?”
बुढ़िया ने अंदर से ही जोर से कहा, “मैं हूँ, महाराज! मैं बुढ़िया हूँ, जो आपके दरबार में आई हूँ, लेकिन मेरे पास कोई घोड़ा या बैल नहीं था, इसलिए मैं अपने मटके में बैठकर आई हूँ।”
राजा ने यह सुनकर जोर से हंसी और कहा, “तुम्हारे जैसे चतुर और चालाक लोग ही मेरे राज्य में रहने चाहिए। तुमने अपनी चतुराई से अपनी रक्षा की है, और यह मुझे बहुत पसंद आया।”
राजा ने बुढ़िया को सम्मानित किया और उसे कुछ उपहार भी दिए। उन्होंने कहा, “तुम्हारे जैसे बुद्धिमान व्यक्ति हमारे राज्य के लिए गौरव हैं। तुम घर जाओ और शांति से अपना जीवन जियो।”
बुढ़िया ने राजा का धन्यवाद किया और मटके में बैठकर ही वापस अपने गाँव की ओर चल पड़ी। गाँव के लोग और सैनिक यह देखकर अचंभित थे कि बुढ़िया ने कैसे अपनी चालाकी से खुद को बचाया और सम्मान प्राप्त किया।
इस घटना के बाद, बुढ़िया गाँव में और भी प्रसिद्ध हो गई। सभी उसकी बुद्धिमानी और हिम्मत की तारीफ करते थे। वह मटका, जो कभी एक साधारण वस्तु था, अब गाँव में उसकी चतुराई और साहस का प्रतीक बन गया था।
सीख
- कठिन परिस्थितियों में भी, धैर्य और चतुराई से काम लेना चाहिए।
- हमारे पास जो भी साधन हों, अगर हम उनका सही तरीके से इस्तेमाल करें, तो हम किसी भी समस्या का हल निकाल सकते हैं।