फ्रेंड्स, राजा और काना घोड़ा की कहानी (Raja Aur Kana Ghoda Ki Kahani) हम इस पोस्ट में शेयर कर रहे हैं। Raja Aur Kana Ghoda Moral Story In Hindi जीवन में संस्कार का महत्व बतलाती है। पढ़िए Sanskar Par Kahani :
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Raja Aur Kana Ghoda Ki Kahani
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Raja Aur Kana Ghoda Story
एक राजा के पास एक हृष्ट पुष्ट और सुंदर घोड़ी थी। वह उससे बहुत प्रेम करता था और उसका विशेष खयाल रखता था। इसका कारण ये था कि युद्ध क्षेत्र में घोड़ी ने कई बार राजा के प्राणों की रक्षा की थी। ये घोड़ी की वफादारी थी, जिसने राजा का दिल जीत लिया था।
घोड़ी ने कई वर्षों तक राजा की सेवा की और पूर्ण वफादार बनी रही। जब उसकी उम्र हो गई, तो उसकी जगह उसके बेटे ने ले ली। घोड़ी का बेटा हृष्ट पुष्ट था। मगर उसमें एक खामी थी। वह जन्म से ही काना था। इस बात को लेकर वह हमेशा दुखी रहा करता था।
एक बार उसने घोड़ी से पूछा, “मां! मैं काना क्यों जन्मा?”
घोड़ी ने बताया, “बेटा! जब तू मेरे गर्भ में था। उस समय एक दिन राजा मेरी सवारी कर रहा था और मेरे कदम लड़खड़ा जाने पर आवेश में आकर उसने मुझे एक चाबुक मार दिया था। शायद यही कारण है कि तू काना जन्मा।”
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ये सुनकर काने घोड़े का मन राजा के प्रति क्रोध से भर उठा। वह बोला, “मां! राजा ने मुझे जीवन भर का दुख दिया है। मैं उससे इसका प्रतिशोध लूंगा।”
घोड़ी ने समझाया, “नहीं बेटा! राजा हमारा पालक है। उसके प्रति प्रतिशोध की भावना अपने हृदय में मत ला। क्षणिक आवेग में उसे क्रोध आ गया और वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाया। इसका अर्थ ये कतई नहीं कि वह हमसे प्रेम नहीं करता। तू प्रतिशोध लेने का विचार अपने हृदय से निकाल दे।”
मां के समझाने पर भी काने घोड़े का क्रोध शांत नहीं हुआ। वह राजा से प्रतिशोध लेने का अवसर ढूंढने लगा। बहुत जल्द उसे यह अवसर मिल भी गया।
राजा युद्ध के मैदान में काने घोड़े पर सवार था। उसके और उसके पड़ोसी राज्य के राजा के बीच घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था। तलवारबाजी करते-करते अचानक राजा घोड़े से नीचे गिर पड़ा। मौत उसके करीब थी। काना घोड़ा उसे वहीं उसी हाल में छोड़कर भाग सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने फुर्ती दिखाई और राजा को फिर से अपनी पीठ पर बिठाकर उसके प्राण बचा लिए।
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वह चकित था कि उसने ऐसा क्यों किया। जिस व्यक्ति ने उसे काना बनाया, उसने उसके प्रति वफादारी क्यों दिखाई? क्यों उससे प्रतिशोध नहीं लिया?
ये प्रश्न उसने घोड़ी से पूछा, तो वह मुस्कुराते हुए बोली, “तू आखिर बेटा किसका है? मेरा ना! मेरी छत्रछाया में तू पला बढ़ा है। जो संस्कार मैंने तुझे दिए हैं, वे तेरी रग रग में रच बस गए हैं। उन संस्कारों के विपरीत तू जा ही नहीं सकता। वफादारी तेरे खून में है बेटा। तू वफादार ही रहेगा।”
सीख (Moral Of King And One Eyed Horse Story In Hindi)
दोस्तों! संस्कारों का आचरण पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। जिन संस्कारों के साए में बच्चे का पालन पोषण होता है, वे उसके अवचेतन में गहरे तक समाहित हो जाते हैं। ऐसे में अपने संस्कारों के विपरीत वह जा ही नहीं सकता।
संस्कारों का सबसे बड़ा आधार परिवार है, जहां से संस्कारों की नींव पड़ती है। हर माता पिता की जिम्मेदारी है कि वे अपने परिवार को अच्छे संस्कारों की नींव दे। अच्छे संस्कार के परिवार का व्यक्ति संस्कारी बनेगा और अपने कर्मों से समाज में सदा सम्मान पायेगा।
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