Jain Dharm Ki Kahaniyan

राजा मनोरथ की कहानी जैन कथा | Raja Manorath Ki Kahani Jain Katha

राजा मनोरथ की कहानी जैन कथा (Raja Manorath Ki Kahani Jain Katha)

जैन धर्म में त्याग, करुणा और दया के मूल्यों को अत्यंत उच्च स्थान दिया गया है। यह कथा राजा मनोरथ की है, जो अपनी प्रजा के प्रति स्नेह और जीवों के प्रति करुणा के कारण प्रसिद्ध थे। यह कहानी उनकी परीक्षा और त्याग की अद्भुत मिसाल है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म केवल बाहरी क्रियाओं में नहीं, बल्कि हमारे मन और कर्मों में होता है।  

Raja Manorath Ki Kahani Jain Katha

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Raja Manorath Ki Kahani Jain Katha

प्राचीन समय की बात है। राजा मनोरथ अपने राज्य में धर्म और न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। वे हर समय अपने प्रजा की भलाई के लिए तत्पर रहते और जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करते थे। उनकी प्रजा सुखी और संतुष्ट थी। राजा ने अपने जीवन का उद्देश्य केवल परोपकार और धर्म की साधना को बनाया था।  

राजा मनोरथ के जीवन का एक ही नियम था—अहिंसा और जीव दया। उन्होंने अपने राज्य में जीव हत्या को प्रतिबंधित कर दिया था और सभी प्राणियों को स्नेहपूर्वक देखभाल की शिक्षा दी थी।  

राजा मनोरथ के अद्भुत धर्म पालन और करुणा को देखकर देवताओं ने उनका सम्मान करना चाहा। एक दिन स्वर्ग के देवताओं ने उन्हें स्वर्ग आने का निमंत्रण दिया। राजा ने इस निमंत्रण को विनम्रता से स्वीकार किया। स्वर्ग में पहुँचने पर उन्होंने देवताओं की अद्भुत सुंदरता और ऐश्वर्य देखा।  

देवताओं ने उनका स्वागत करते हुए कहा, “हे राजा! आपका धर्म और त्याग अद्वितीय है। लेकिन स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने के लिए आपको एक परीक्षा से गुजरना होगा। क्या आप इसके लिए तैयार हैं?”  

राजा मनोरथ ने कहा, “यदि यह परीक्षा धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने से संबंधित है, तो मैं अवश्य इसके लिए तैयार हूँ।”  

देवताओं ने योजना बनाई। उन्होंने एक देवता को कबूतर और दूसरे को बहेलिया का रूप दिया। परीक्षा का स्थान राजा का ही महल चुना गया।  

एक दिन राजा मनोरथ अपने महल के उद्यान में बैठे थे। तभी एक घायल कबूतर तेजी से उड़ता हुआ आया और उनकी गोद में शरण ली। राजा ने देखा कि वह कबूतर डर और दर्द से कांप रहा है।  

कबूतर ने कहा, “हे दयालु राजा! कृपया मुझे बचा लीजिए। एक बहेलिया मेरा पीछा कर रहा है और मुझे मारना चाहता है।”  

राजा ने कबूतर को स्नेहपूर्वक अपनी गोद में लिया और उसकी रक्षा का वचन दिया।  

थोड़ी देर में एक बहेलिया राजा के पास आया। उसने कहा, “हे राजा! यह कबूतर मेरा शिकार है। मैंने इसे पकड़ा था, लेकिन यह भाग गया। कृपया इसे मुझे लौटा दीजिए।”  

राजा मनोरथ ने कहा, “इस कबूतर ने मेरी शरण ली है। मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकता। जैन धर्म के अनुसार, शरण में आए प्राणी की रक्षा करना मेरा धर्म है।”  

बहेलिया ने क्रोधित होकर कहा, “यदि आप मुझे मेरा शिकार नहीं देंगे, तो मुझे इसके बदले में मांस दीजिए, ताकि मेरे बाज की भूख शांत हो सके।”  

राजा ने बहेलिया से कहा, “मैं तुम्हें कबूतर के बदले अपना मांस देने के लिए तैयार हूँ।” उन्होंने अपनी मंत्रियों को बुलाया और कहा कि वह तराजू लाए और कबूतर को एक पलड़े में रखा जाए। दूसरे पलड़े में वह अपना मांस रखवाएँगे।  

जब कबूतर को तराजू के एक पलड़े में रखा गया, तो राजा ने अपने शरीर से मांस काटकर दूसरे पलड़े में रखवाना शुरू किया। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि कबूतर का पलड़ा हल्का ही बना रहा।  

राजा ने अपने शरीर का और मांस काटकर रखा, लेकिन तराजू फिर भी संतुलित नहीं हुआ। अंततः राजा ने कहा, “यदि मेरे शरीर का मांस पर्याप्त नहीं है, तो मैं स्वयं इस तराजू पर बैठता हूँ।”  

उन्होंने अपनी प्रजा और मंत्रियों से कहा कि यह उनके धर्म का पालन है, और इसमें कोई बाधा न दी जाए। राजा ने स्वयं तराजू पर बैठकर अपना जीवन कबूतर के लिए अर्पित कर दिया।  

जैसे ही राजा मनोरथ ने तराजू में बैठकर अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया, उसी क्षण देवता अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। कबूतर और बहेलिया फिर से देवता बन गए।  

उन्होंने राजा से कहा, “हे धर्मात्मा राजा! यह एक परीक्षा थी। आपके त्याग और करुणा ने यह सिद्ध कर दिया है कि आप सच्चे धर्म के मार्ग पर हैं। आपने अपनी प्रजा, अपने शरीर, और यहाँ तक कि अपने जीवन को भी धर्म के लिए न्योछावर कर दिया। हम आपके इस त्याग से अभिभूत हैं।”  

राजा मनोरथ ने विनम्रता से कहा, “यह मेरा कर्तव्य था। धर्म के मार्ग पर चलना और जीवों की रक्षा करना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है।” 

देवताओं ने राजा को स्वर्ग और मोक्ष का आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा, “आपका जीवन और कार्य सभी के लिए प्रेरणा है। आपके इस अद्भुत त्याग से हम स्वयं भी शिक्षा ले रहे हैं।”  

राजा मनोरथ ने इस परीक्षा के माध्यम से न केवल देवताओं का विश्वास जीता, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि सच्चा धर्म केवल वचन में नहीं, बल्कि कर्म में है। 

सीख

1. शरण में आए प्राणी की रक्षा: जो भी हमारी शरण में आता है, उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है।  

2. त्याग और करुणा: सच्चे धर्म का पालन करने के लिए हमें अपने स्वार्थ, अहंकार, और यहाँ तक कि अपने शरीर को भी त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए।  

3. धर्म का पालन: सच्चे धर्म का पालन करना कठिन हो सकता है, लेकिन इसके फल अद्वितीय होते हैं।  

4. परीक्षा के लिए तैयार रहना: जीवन में धर्म के मार्ग पर चलते हुए कई बार हमारी परीक्षा ली जाती है। हमें हर परिस्थिति में अडिग रहना चाहिए। 

राजा मनोरथ की यह जैन कथा त्याग, करुणा, और धर्म के महत्व को गहराई से दर्शाती है। यह हमें सिखाती है कि जीवन का असली उद्देश्य केवल स्वयं के लिए जीना नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा और रक्षा करना है। राजा मनोरथ का जीवन हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो हमें सच्चे धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। Instagram follow button राजा मनोरथ की कहानी जैन कथा | Raja Manorath Ki Kahani Jain Katha

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