फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम मणिपुर की लोक कथा “साहसी इबोहल” (Sahsi Ibohal Manipuri Lok Katha) शेयर कर रहे है. यह कहानी एक साहसी युवा इबोहल की है. वह अपने राज्य की मूक राजकुमारी को कैसे ठीक करता है? जानने के लिए पढ़िये पूरी कहानी :
Sahsi Ibohal Manipuri Lok Katha
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मणिपुर के काम्बीरेन गाँव में इबोहल नामक युवक रहता था. वह बुद्धिमान और वीर था. परेशानी आने पर गाँव के लोग उससे परामर्श और सहायता लेने आया करते थे. धीरे-धीरे उसकी बुद्धिमानी और वीरता की चर्चा आस-पास के गाँवों में भी होने लगी.
इबोहल घुमक्कड़ प्रवृत्ति का था. वह अपने घर से निकल जाता और महिनों घूमते हुए बिताता था. नए स्थानों का भ्रमण करने में उसे बड़ा आनंद आता था. एक बार घूमते-घूमते वह बहुत दूर निकल गया और एक सुंदर नगरी में पहुँच गया. उस नगरी का हाट-बाज़ार भी बहुत सुंदर था.
सूरज ढल रहा था और लोग जल्दी-जल्दी अपनी दुकानें बंद कर घरों को लौट रहे थे. सभी बहुत चिंतित दिखाई दे रहे थे. इबोहल उकी चिंता का कारण समझ नहीं पाया. तभी उसकी दृष्टि एक स्त्री पर पड़ी, तो ज़ोर-ज़ोर से विलाप कर रही थी.
इबोहल उसके पास गया और पूछा, “बहन! किस बात से दु:खी हो? क्यों रो रही हो?”
स्त्री ने उत्तर दिया, “आज राजकुमारी मेरे पति की बलि ले लेगी.” और रोने लगी.
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इबोहल को कुछ समझ नहीं आया. तब पास खड़े एक व्यक्ति ने उसे बताया कि उस नगरी की राजकुमारी बोल नहीं सकती. उसके कक्ष में रोज़ रात एक व्यक्ति को भेजा जाता है. ताकि उसकी बलि से वह ठीक हो सके और बोलने लग जाये.
इबोहल ने पूरी बात की तह तक जाने का निर्णय लिया और ओझा का रूप धारण कर राजमहल पहुँच गया. राजमहल की दीवारों पर मोटी काली परत चढ़ी हुई थी. शाही बाग़ के सारे पेड़-पौधे काले पड़ कर मुरझा चुके थे. इबोहल ये देखकर चकित हो गया.
उसने द्वारपाल से कहकर राजा को संदेश भिजवाया कि वह एक ओझा है और राजकुमारी को ठीक करने का प्रयास करना चाहता है.
राजा ने उसे अपने पास बुलाया. इबोहल राजा को प्रणाम कर बोला, “महाराज! मैं एक ओझा हूँ और राजुकुमारी का इलाज़ करने आया हूँ.”
राजा ख़ुश हो गया. उसने एक सेवक से कहकर ओझा बने इबोहल को तत्काल राजकुमारी के कक्ष में भिजवा दिया.
राजकुमारी के कक्ष में पहुँचते ही इबोहल को अजीब सी दुर्गंध आई. कक्ष के हर कोने से सड़ी हुई दुर्गंध आ रही थी.
राजकुमारी खिड़की के पास बैठी हुई थी. एक दासी उसके केश संवार रही थी. दासी केशों को समेटती, तो वे खुल जाते. बार-बार खुल रहे केशों से राजकुमारी तंग आ चुकी थी. वह क्रोध में दासी को बोली, “काट दो इन केशों को.”
दासी ने जैसे ही केश काटे, वे तुरंत बढ़ गए. इबोहल ये देखकर चकित रह गया. वह राजकुमारी के पास गया और अपना परिचय देकर उसे बताया कि राजा ने उसे उसके पास भेजा है.
फ़िर उसने अपने झोले में से खुखरी निकाली और राजकुमारी के केश काट दिए. किंतु, तुरंत ही राजकुमारी के केश दुगुनी गति से बढ़ने लगे. तब इबोहल ने एक मंत्र पढ़ा और पुनः राजकुमारी के केश को खुखरी अलग कर दिया. इस बार केश नहीं बढ़े. यह देख राजकुमारी प्रसन्न हो गई.
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रात में इबोहल राजकुमारी के कक्ष में ही रुका. राजकुमारी सो रही थी और वो पहरा दे रहा था. आधी रात को जब चाँद की रौशनी झरोखे से होती हुई राजकुमारी के कक्ष में आई, तो एक भयंकर नागिन राजकुमारी के मुँह से बाहर निकली.
इबोहल जगा हुआ था. वह नागिन को देख चौकन्ना हो गया. नागिन फन फैलाकर इबोहल को डसने के लिए बढ़ी, तो इबोहल ने फुर्ती से अपना बचाव किया और खुखरी से नागिन पर वार कर उसका अंत कर दिया.
शोर सुन राजकुमारी की नींद खुल गई. उसने देखा कि एक भयंकर नागिन दो टुकड़ों में जमीन पर पड़ी है और इबोहल खुखरी लिए सामने खड़ा है.
इबोहल ने राजकुमारी को सारी बात बताई. राजकुमारी ख़ुशी से झूम उठी. वास्तव में नागिन के राजकुमारी ने पेट में रहने के कारण वो बोल नहीं पाती थी और हर रात राजकुमारी के कक्ष में आने वाले व्यक्ति को नागिन ही डस लिया करती थी. राजमहल के बाग़ के पेड़-पौधे भी नागिन की जहरीली फुकार के कारण काले पड़ गए थे.
राजकुमारी के ख़ुशी से चिल्लाने की आवाज़ सुन सारा राजमहल जाग गया. राजा दौड़ता हुआ राजकुमारी के कक्ष में आया. इबोहल ने उसे सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया. राजा ने ख़ुश होकर इबोहल को ढेर सारे पुरस्कार दिए. इबोहल अपने गाँव लौट गया.
अब राजमहल की रौनक फिर से लौट आई थी. चारों ओर हरियाली थी. पेड़-पौधे फूल-पत्तियों से भरे हुए थे. सरोवर कमल के फूलों से महक रहे थे. राजमहल में राजा और राजकुमारी सहित सभी ख़ुश थे.
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