समझदार जज लियो टॉलस्टाय की कहानी | A Just Judge Leo Tolstoy Story In Hindi

फ्रेंड्स, समझदार जज लियो टॉलस्टाय की कहानी (Samajhdar Judge Leo Tolstoy Story In Hindi) हम इस पोस्ट में शेयर कर रहे हैं। A Just Judge Leo Tolstoy Story In Hindi एक ऐसे जज की कहानी है, जो अपनी न्यायप्रियता से दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है। एक दिन राजा उसकी परीक्षा लेने गया। क्या जज उस परीक्षा में सफ़ल हो पाया? जानने के लिए पढ़ें पूरी कहानी :

लियो टॉलस्टाय द्वारा उनकी मूल भाषा में लिखी कहानी पब्लिक डोमेन में है। यह कहानी हमारी वेबसाइट के द्वारा हिंदी भाषा में अपने शब्दों में लिखी गई है, जिसका कॉपीराइट website admin के पास है। कृपया बिना अनुमति Youtube या अन्य डिजिटल या प्रिंट मीडिया में इस्तेमाल न करें। अन्यथा कार्यवाही की जावेगी। 

Samajhdar Judge Leo Tolstoy Story

Table of Contents

>
Samajhdar judge Leo Tolstoy Story In Hindi
Samajhdar Judge Leo Tolstoy Ki Kahani

बहुत समय पहले की बात है। अफ्रीका के अल्जीरिया देश में बकाउस नामक राजा राज्य करता था। उसके ही राज्य के एक नगर में एक समझदार जज रहता था, जिसकी न्यायप्रियता के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे। 

जब राजा के कानों में उसकी न्यायप्रियता के चर्चे पहुंचे, तो उसने उसकी परीक्षा लेने का निर्णय किया। 

वह घोड़े पर सवार हुआ और जज के नगर की ओर चल पड़ा। जब वह नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंचा, तो वहां उसे एक अपाहिज भिखारी बैठा दिखाई पड़ा।

भिखारी ने राजा को रुकने का संकेत किया। राजा रुक गया। 

उसने राजा से कहा, “मेरी मदद कर दो। मुझे अगले चौक तक छोड़ दो।”

राजा ने उसे घोड़े पर बिठा लिया। जब वे अगले चौक पर पहुंचे और राजा ने भिखारी को घोड़े से उतरने को कहा, तो भिखारी कहने लगा, “ये मेरा घोड़ा है। तुम घोड़े से उतरो।”

ये भी पढ़ें : ईदगाह मुंशी प्रेमचंद की कहानी 

दोनों में बहस होने लगी। लोग उनके आसपास इकट्ठा हो गए। बहस बढ़ती देखकर लोगों ने मशविरा दिया कि वे लोग फैसले के लिए जज साहब के पास चले जाएं।

दोनों कचहरी पहुंचे। कचहरी में बहुत भीड़ थी। जज साहब एक एक करके सबको बुलाकर उनकी दलीलें सुन रहे थे। सबसे पहले उन्होंने एक लेखक और किसान को बुलाया। उनके साथ एक स्त्री भी थी। 

लेखक ने स्त्री की तरफ इशारा करके कहा, “जज साहब ये स्त्री मेरी है।”

किसान ने कहा, “ये झूठ बोल रहा है जज साहब। ये मेरी स्त्री है।”

जज साहब ने उनकी दलीलें सुनी। लेखक और किसान को उन्होंने अगले दिन आने को कहा। स्त्री को रोक लिया।

उसके बाद उनके सामने कसाई और तेली हाज़िर हुए। कसाई के कपड़ों पर खून से छींटें थे, वहीं तेली के कपड़ों पर जगह जगह तेल के दाग लगे हुए थे। कसाई के हाथ में पैसों की एक थैली थी।

ये भी पढ़ें : बाबाजी का भोग मुंशी प्रेमचंद की कहानी 

कसाई बोला, “जज साहब! पैसों की ये थैली मेरी है।”

किसान बोला, “नहीं जज साहब! ये थैली मेरी है।”

दोनों की दलीलें सुनकर जज साहब बोले, “ये पैसों की थैली यहीं छोड़ जाओ। तुम दोनों कल आना। मैं कल फैसला करूंगा।”

अंत में राजा और भिखारी की बारी आई।

राजा ने जज को सारी घटना बताई। तब जज ने कहा, “घोड़े को यहीं छोड़ दो। तुम दोनों कल आना।”

अगले दिन कचहरी में सब हाज़िर हुए। सबसे पहले जज साहब ने लेखक और किसान को बुलाया। दोनों सामने आए।

जज साहब ने फैसला दिया, “ये स्त्री लेखक की पत्नी है। किसान झूठा है। उसे पचास कोड़े लगाए जाए।”

उसके बाद उन्होंने कसाई और तेली को बुलाकर फैसला सुनाया, “ये पैसों की थैली कसाई की है। झूठे तेली को पचास कोड़े लगाए जाएं।”

अंत में राजा और भिखारी को बुलाया गया। जज साहब दोनों को लेकर अस्तबल के सामने पहुंचे। अस्तबल में कई घोड़े बंधे हुए थे। 

पहले जज राजा को लेकर अस्तबल में गया और घोड़े को पहचानने को कहा। राजा ने घोड़ा पहचान लिया। उसके बाद वह भिखारी को लेकर अस्तबल में गया। भिखारी ने भी घोड़ा पहचान लिया।

सब वापस कचहरी में आए। जज ने फैसला सुनाते हुए राजा से कहा, “वो घोड़ा आपका है।”

उसने भिखारी को पचास कोड़े लगाने का हुक्म दिया। 

ये भी पढ़ें : पूस की रात मुंशी प्रेमचंद की कहानी 

राजा जज के निर्णय से बहुत प्रभावित हुआ। कचहरी की कार्यवाही समाप्त होने के बाद राजा जज के पास गया और पूछने लगा, “जज साहब! मैं जानना चाहता हूं कि आप सारे फैसलों पर कैसे पहुंचे?”

जज ने बताया, “मैंने आज सुबह महिला को दवात से पेन में स्याही भरने को कहा। उसने ये काम बखूबी किया। मैं समझ गया कि वह लेखक की पत्नी है। पैसों की थैली से सिक्के निकालकर मैंने रात में पानी के बर्तन में डाल दिये थे। सुबह मैंने देखा कि पानी की सतह पर तेल नहीं तैर रहा। मैं समझ गया कि तेली झूठ बोल रहा है। वो पैसों की थैली कसाई की है। घोड़े का मामला जरा पेंचीदा था।”

“फिर आप निर्णय तक कैसे पहुंचे?” राजा ने पूछा।

जज बताने लगा, “आज सुबह जब मैं आप दोनों को अस्तबल ले गया और घोड़े को पहचानने को कहा, तो मेरा मकसद ये देखना नहीं था कि आप दोनों में से कौन घोड़े को पहचान पाता है, बल्कि ये देखना था कि घोड़ा आप दोनों में से किसे पहचानता है। जब आप घोड़े के पास पहुंचे, तो घोड़ा खुशी से पूंछ हिलाने लगा। किंतु जब भिखारी घोड़े के पास गया, तो उसने अपना पिछला पैर उठाया। मैं समझ गया कि आप घोड़े के मालिक हैं।”

राजा जज की समझदारी देखकर बहुत खुश हुआ। उसने अपना परिचय देते हुए जज को इनाम देना चाहा। पर जज ने विनम्रता से मना करते हुए कहा, “ये तो मेरा कर्तव्य है और मैं पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाता हूं।”

सीख (A Just Judge Leo Tolstoy Story Moral)

सदा अपना काम पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए।

अन्य कहानियां

कौन है पति अरुणाचल प्रदेश की लोककथा

देवरानी जेठानी महाराष्ट्र की लोक कथा 

 

Leave a Comment